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पात्र प्राप्त करना[संपादित करें]

कोइ भी अभिनेता उसे दिये गये पात्र को कैसे समझ सक्ता है? दिये गये पात्र को मन्च पर निभाने के लिये हर अभिनेता अपना तरिका अप्नाता है। लेकिन वह करने से पहेले अभिनेता को लिपि को बहोत हि गौर से समज लेना चाहिये, दुसरे पात्रो कि पंक्तियां कि जान्च भी कर लेनी छहिए। लिपि पद्ने के बाद जो भी खायाल काहानी और पात्र के बारे मे आते है उसे लिपि मे ही लिख लेना छहिए। दुसरे पात्रो के द्वारा अप्ने पात्र के बारे मे बोहोत सी जानकारी भी मिल सक्ती है। अपने पात्र की कफी विशेश्ताए पंक्तियां से ही मील सक्ती है अगर लिपि को गौर से पदा जाए,विशेश्ताए जैसे की पात्र दिख्नने मे कैसा है - यदि अछा दिख्ता है या बुरा, उस्का व्यवाह्रर, उस्का भर्ताव, आवाज और अन्य छीजे। यदि अगर आप कोइ जिन्दा आदमी या औरत का पात्र निभा राहे है तो कोशिश करे की आप उनहे गौर से देखे, पर्यावेशन करे, उन्की छाल देखे, उन्के बात करने का तरीका देखे, उन्के काल के बारे मे पद के भी पात्र को अछे से निभाने के लिये जितना हो सके रिसर्च करे। अभिनेता को अपने निदेशक से ज़रूर बात करनी छहिये ताकी निदेशक के दीमाग मे जो पात्र का विचार है उसका उपयोग कर सके। कुछ निसदेशक पात्र के बारे मे बोहोत जानकारी दे कर काम आसान कर देते है, और कुछ निदेशक कुछ नही केह्ते, इस कारण अभिनेता को निदेशक के सात पात्र के उपर बहस नही करनी छहिये और अपनी कल्पना का पुरा फायदा उथाना चाहिए। हो सके तो अभयास करते सम्य पात्र के कपडे पेहेन कर करे क्योकि उस्से पात्र को मह्सूस करना आसान हो जाता है। अपने खाली सम्य मे अभिनेता को अपनी पंक्तियां दोर्हानी चाहिये, उस तरह कभी-कभी अप्ने पात्र के बारे मे कुछ नया पता चलता है। अगार कोई भावना है जो दिखाने मे मुशकील हो रही हो तब दिमाग मे कलप्ना की मद्द से कोई स्थिथि बना के उस भावना को उस स्थिथि से जोड कर उस्का प्र्योग करे। हर अभीनेता का अपना अपना तरीका होता है पात्र को प्राप्त करने का और इस कारण हर अभीनेता को वो ही तरीका इस्तमाल करना चाहिए जो उसे आरामदायक लगे।

सन्दर्भ ग्रन्थ[संपादित करें]

अनुभव