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हामीदारी[संपादित करें]

हामीदारी एक अनुबन्ध है जिसमे हामीदार यह सुनिश्चित करते है कि, अगर सार्वजनिक ने कंपनियों के शेयर और डिबेंचर में आवश्यक हद तक सदस्यता नहीं लिया तो वे उन बचे हुए शेयर या डिबेंचरों को खरीदेंगे। न्यूनतम सदस्यता पाने हेतु, कंपनियाँ हामीदारी का आश्रय लेते है। पब्लिक लिमिटेड कंपनियों की मामले मे, न्यूनतम सदस्यता को हासिल करने के उपरांत ही व्यापार प्रारंभ करने का प्रमाण पत्र पाया जा सकता है। हामीदार, जो इस अनुबन्ध मे प्रमुख है, उसे ऐसे परिभाषित किया गया है- एक व्यक्ति जो हामीदारी की समझौते में किसी निगमित निकाय की प्रतिभूति (मुद्दों) के व्यापार में संलग्न होता है। हामीदारी सार्वजनिक मुद्दों के लिए अनिवार्य है। इसलिए यह अनुबंध कंपनियों के लिए हामीदार द्वारा दी गयी गारंटी है कि सार्वजनिक प्रतिभूतियों में पूरी सदस्यता लेंगे वरना वे खुद बाकी के प्रतिभूतियों को लेंगे। इस करार को सुनिश्चित करने के लिए हामीदार कमीशन लेते है जिसे आम तौर पर शेयर और डिबेंचरों के निर्गम मूल्य पर गणना की जाती है।

हामीदार, उप हामीदार और दलाल[संपादित करें]

हामीदार[संपादित करें]

व्यक्ति या संस्थाएँ जो शेयर या डिबेंचर के सार्वजनिक निर्गम की हामीदारी करते है, उन्हे हामीगदार कहते है। हामीदार एक या अनेक व्यक्तियाँ हो सकते है, साझेदारी फर्म या संयुक्त स्टॉक कंपनियों हो सकते है। आम तौर पर, शेयर निर्गम या किसी कंपनी के डिबेंचरों को केवल एक व्यक्ति के बजाय, दो या अधिक फर्मों द्वारा हामीदारी काराया जाता है। हामीदार अपने लिए एक खाता खोलता है जिसे हामीदारी खाता माना जाता है। शेयरों और डिबेंचरों को खारीदने के लिए किये गए भुगतान को डेबिट किया जाता है और कंपनी से प्राप्त आयोग को क्रेडिट किया जाता है। हामीदार, कमीशन के रूप में पाया हुआ या वास्तव में खरीदा हुआ शेयर या डिबेंचरों को बेचने की कोशिश करता है। बेचने के बाद शेयर या डिबेंचरों के बिक्री आय को खाते में क्रेडिट किया जायेगा। बचे हुए शेयर या डिबेंचर बाजार मूल्य या लागत मूल्य में मूल्यवान हो जाएँगे। दोनों में जो भी कम कीमत के होंगे, उसका चयन किया जाएगा। संतुलन आंकड़ा लाभ या नष्ट होगा और लाभ & हानि खाते को जाएगा। शेयर या डिबेंचरों की हामीदारी भी सरकार द्वारा कुछ विशेष संस्थानों से करवाया जाता है जैसे भारतीय औद्योगिक ऋण और निवेश निगम, भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, भारतीय जीवन बीमा निगम, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया और भारतीय औद्योगिक विकास बैंक आदि। कुछ राष्ट्रीयकृत बैंक भी एक सीमित हद तक शेयरों और डिबेंचरों की हामीदारी के कारोबार करने लगे है।

उप हामीदार[संपादित करें]

एक हामीदार अपने दायीत्व को कम करने के लिए उप हामीदार के साथ अनुबन्ध मे प्रवेश करता जो आयोग के जिम्मेदारी के लिए कमीशन का एक भाग ग्रहण करेगा। कंपनी के साथ उप हामीदार का कोई लेना देना नही होता है। वह मुख्य हामीदार से अपना आयोग और अपने हिस्से के शेयर और डिबेंचरों को लेता है। अगर हामीदार ने एक उप हामीदार को नियुक्त किया तो उसके खाते मे उप हामीदार के आयोग को डेबिट किया जाएगा और उसके हिस्से के शेयर और डिबेंचरों को क्रेडिट किया जाएगा।

दलाल[संपादित करें]

दलाल कोई भी एक व्यक्ति या पार्टी (ब्रोकरेज फर्म) है जो एक सौदे में, आयोग के लिए, एक खरीदार और विक्रेता के बीच लेनदेन व्यवस्थित करता है। दलाल भी कंपनी की ओर से सार्वजनिक से शेयरों और डिबेंचरों की सदस्यता लेते है जिसके लिए उन्हे दलाली के रूप में पारिश्रमिक मिलता है। इस तरह के दलाल केवल सार्वजनिक सदस्यता की खरीदारी को समभालते है बल्कि कंपनी के लिए शेयरों या ऋणपत्रो में कोई सदस्यता लेने की जिम्मेदारी नहीं लेते है।

हामीदारों का वर्गीकरण[संपादित करें]

संस्थागत हामीदार

  • विकास बैंक
  • वाणिज्यिक बैंक
  • बीमा कंपनियाँ
  • राज्य वित्त निगम
  • यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया

गैर संस्थागत हामीदार

  • शेयर दलाल
  • व्यक्तियाँ

हामीदारी के प्रकार[संपादित करें]

हामीदारी को दो आधारों पर भिन्न प्रकार में वर्गीकृत किया जाता है:-

  1. हामीदारी के शेयर या डिबेंचरों के संख्या के आधार पर
  2. हामीदारों के दायित्व के आधार पर

हामीदारी के शेयर या डिबेंचरों के संख्या के आधार पर-

  • पूर्ण हामीदारी
  • आंशिक हामीदारी

पूर्ण हामीदारी यह एक व्यवस्था है जिसके तहत एक कंपनी के शेयर और डिबेंचरों की सारी मुद्दों को हामीदार द्वारा बीमा कराया जाता है। पूरे मुद्दे की हामीदारी सिर्फ़ एक या दो या फ़िर अनेक हामीदार कर सकते है।

आंशिक हामीदारी यह एक व्यवस्था है जिसके तहत एक कंपनी के शेयर और डिबेंचरों के एक भाग की हामीदारी कराया जाता है। इस भाग की हामीदारी को भी सिर्फ़ एक या दो या फ़िर अनेक हामीदार कर सकते है।


हामीदारों के दायित्व के आधार पर-

  • शुद्ध हामीदारी
  • फर्म हामीदारी

शुद्ध हामीदारी यह एक व्यवस्था है जिसके तहत हामीदार कंपनी के शेयर या ऋणपत्रों की हामीदारी सिर्फ़ तब करता है जब सार्वजनिक ने पूरा या आंशिक प्रमाण की प्रतिभूतियों में सदस्यता नहीं लेता है। इस में हामीदार के देयता सशर्त है।

फर्म हामीदारी यह एक व्यवस्था है जिसके तहत हामीदार प्रतिबद्धता लेते है कि निर्दिष्ट संख्या के शेयर और डिबेंचरों की हामीदारी करते है चाहे सार्वजनिक ने उन प्रतिभूतियों मे सदस्यता लिया हो या ना लिया हो।


  • चिह्नित अनुप्रयोग और अगोचर अनुप्रयोग - कंपनी द्वारा जारी किए गए शेयर या डिबेंचरों को आम तौर पर अनेक हामीदार मिलकर हामीदारी करते है। हर एक हामीदार अपने जोखिम को कम करने के प्रयास में अधिक से अधिक शेयर या डिबेंचरों को बेचता है। स्वाभाविक रूप से जब अनेक हामीदार मिलकर एक कंपनी की प्रतिभूतियों की हामीदारी करते है तो हर हामीदार के बीच में भेद करने के लिए प्रत्येक हामीदार का मुद्रा उन आवेदनों में लगाया जाता है। जब कंपनी ऐसे मुद्रांकित आवेदनों को प्राप्त करता है, उन्हे चिह्नित आवेदन या अनुप्रयोग कहते है। जो आवेदनों को बिना मुद्रा ही कंपनी प्राप्त करता है, उन्हे अगोचर आवेदन या अनुप्रयोग कहते है।

हामीदारी आयोग[संपादित करें]

यह आयोग हामीदार को एक कंपनी के शेयर या ऋणपत्रों की हामीदारी करने के लिए भुगतान के रूप में दिया जाता है। भले ही शेयर या ऋणपत्र को हामीदार ना खरीदे, पर उन को एक निर्दिष्ट दर पर तैर आयोग ज़रूर मिलता है, जिसके वे हखदार है। आम तौर पर हर बैंक करीब १० प्रतिशत तक सार्वजनिक मुद्दों की दस्तखत कर सकते हैं। हामीदारी आयोग को प्रमोटरों, निर्देशकों, कर्मचारियों और व्यापार सहयोगियों के योगदान से नहीं लिया लिया जा सकता है। यह व्यवस्था प्रधान लागत का एक मुख्य अंश है। हामीदारों को जारीकर्ता कंपनी मर्चेंट बैंकर के साथ परामर्श करके नियुक्त करता है। कंपनी के सूचीपत्र में हामीदार का नाम और उसके दायितवों का खुलासा होता है। जारीकर्ता कंपनी एक या अनेक हामीदारों को नियुक्त करती है जैसे वित्तीय संस्था, दलाल, बैंकर, निवेश कंपनी और न्यास आदि।

  • कंपनी अधिनियम, 1956 की धारा 76 के अनुसार, कमीशन का दर शेयरों के निर्गम मूल्य की ५ प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए या तो आलेखों द्वारा तैर किया गया अधिकृत दर, जो भी

कम हो।

  • सेबी के दिशानिर्देश के अनुसार, कमीशन का दर :
  1. ईक्विटी शेयर - २.५ %
  2. वरीयता शेयर/परिवर्तनीय या गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर - २.५ % (5 लाख रुपये तक), २ % (5 लाख रुपयों से ज़्यादा)

हामीदारी के लिए सेबी का दिशानिर्देश[संपादित करें]

'सेबी' के दिशानिर्देशों के अनुसार निम्नलिखित कारकों को पूरा करना चाहिए:

  • हर सार्वजनिक मुद्दे में ९०% न्यूनतम सदस्यता की आवश्यकता है, यह खंड दोनों प्रकार के यानी जनता और अधिकार मुद्दे पर लाबू होता है।
  • अगर कंपनी सार्वजनिक सदस्यता और हामीदार से स्वीकृत विकास को प्राप्त करने में सक्षम नहीं रहा तो वो फिर कंपनी राशि को वापस लौटा देती है।
  • हामीदारी समझौते को शेयर बाजार में दायर करना चाहिए।
  • सेबी, सरकारी अधिकारियों और ग्राहकों के पास हामीदार की पंजीकरण संख्या को उद्धृत करना चाहिए।
  • हामीदार के चूक के संबंध में 'सेबी' उनको चेतावनी पत्र दे सकता है या जुर्माना अग्रिम क दंड देता है।
  • कंपनी और हामीदार के बीच कानूनी रिश्ते को प्रमाण के अनुसार निभाने के लिए सेबी ने हामीदारी समझौते क मॉडल तैयार किया है।
  • सम्झौते के तहत कुल हामीदारी दायत्वों की संख्या बीस बार हामीदार के नेटवर्क से अधिक नहीं होना चाहिए।

हामीदारी प्रक्रिया[संपादित करें]

हामीदारी किस कीमत पर, बीमा किस राशि के लिए, नुकसान जोखिम बीमा किया जाएगा निर्धारण क्या रूप में परिभाषित किया है।एक हामीदारी निर्णय लेने के लिए छह चरणों है।

  • नुकसान जोखिम का मूल्यांकन
  • हामीदारी विकल्प निर्धारण
  • एक हामीदारी विकल्प का चयन
  • उचित प्रीमियम निर्धारण
  • हामीदारी निर्णय को लागू
  • नुकसान जोखिम निगरानी


  • नुकसान जोखिम का मूल्यांकन

इस कदम में एक आवेदक के नुकसान जोखिम के बारे में जानकारी इकट्ठा किया जाता है। हामीदारों हर आवेदक की गतिविधियों, संचालन, और चरित्र को समझना चाहिए।हालांकि, हामीदारी खर्च पर नियंत्रण करने के लिए और आवेदनों की एक उचित संख्या को संभालने के लिए अदला - बदलीयो की जरुरी है। उदाहरण:एक हामीदार को अच्छी तरह से एक विनिर्माण सुविधा की जांच करना जिसका कच्चे माल पेट्रोलियम उत्पादों का है। पर एक हामीदार को स्थानीय स्ट्रिप मॉल में खुदरा सुविधा के लिए इतनी जानकारी की आवश्यकता नही है।

  • हामीदारी विकल्प निर्धारण

प्रत्येक विकल्प सावधानी से मूल्यांकन किया जाता है।हामीदार परिस्थितियों में एक लागू विकल्प का चयन करना चाहिए। तीन हामीदारी विकल्प निम्नलिखित नुसार है:- प्रस्तुत को उसी प्रकार स्वीकार करे जैसे दिया है। प्रस्तुत को अस्वीकार करे। कुछ संशोधनों प्रस्तुत को स्वीकार करे। संशोधनों के चार प्रमुख प्रकार यह है:-

  1. खतरों को कम करने के लिए हानि नियंत्रण उपायों की आवश्यकता है।
  2. बीमा दरों और नीति सीमा को बदले।
  3. नीति नियम और शर्तों में संशोधन करना चाहिए।
  4. ऐच्छिक पुनर्बीमा का प्रयोग करना चाहिए।
  • एक हामीदारी विकल्प का चयन करना चाहिए

हामीदार को यह निर्णय लेना पडता है कि वह प्रस्तुत को स्वीकार करे,या संशोधनों के साथ प्रस्तुत को स्वीकार करे, अस्वीकार करे। अस्वीकृति कभी कभी अपरिहार्य है।हामीदारों को प्रस्तुत स्वीकार्य बनाने की कोशिश करना कयोकि,बीमा कंपनी के लक्ष्यों में से एक लाभदायक व्यवसाय का उत्पादन करने का है।

  • उचित प्रीमियम निर्धारण

हामीदारों यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रत्येक नुकसान जोखिम ठीक से वर्गीकृत किया गया है ताकि वह ठीक से मूल्यांकन किया जाता है।गलत वर्गीकरण प्रतिकूल परिणामों को उत्पादन कर सकते हैं जिस्से घाटे और खर्च को कवर करने के लिए प्रीमियम अपर्याप्त हो जाता है।

  • हामीदारी निर्णय को लागू

हामीदारी फैसलों को लागू करने में आम तौर पर तीन चरण होते हैं:-

  1. निर्माता से संपर्क करें कि निर्णय अच्छा या बुरा है।
  2. कवरेज को प्रभाव मे रखो।
  3. आवेदक जानकारी और नीति को रिकॉर्ड करना चाहिए ताकि वह सांख्यिकीय, और निगरानी उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जा सकता है।
  • मॉनिटरिंग लोस्स जोखिम

हामीदार अलग-अलग नीतियों पर गतिविधि नजर जारी रखना चाहिए ताकि संतोषजनक परिणाम प्राप्त कर सकते है।

हामीदारी के फायदे[संपादित करें]

हामीदारी शेयर या डिबेंचरों की जारी करने के कार्य में अत्यंत प्रमुख है। इसके अनेक फायदे है, जैसे:

  1. हामीदारी के द्वारा एक कंपनी सुनिश्चित रह सकता है कि अगर सारवजनिक की प्रतिक्रिया अच्छा नहीं रहा तो फिर भी वे आवश्यक पूंजी की व्यवास्था कर सकते है।
  2. शेयर या डिबेंचरों में सदस्यता के तहत से होनेवाली जोखिम से बचने के लिए हामीदारी, बीमा की तरह होता है।
  3. हामीदारी से एक नई कंपनी अपने व्यापार को प्रारंभ करने के लिए ज़रूरी मात्र की पूंजी को जमा कर सकती है।
  4. प्रतिभूतियों की विक्रय ना होने पर भी, हामीदार से कंपनी को एक ही बार में बडी मात्रा की निकदी मिलता है, अर्थात एक कंपनी प्रतिभूतियों की बिक्री का इन्तेज़ार किए बिना, अपने व्यापार

को आगे बढ़ा सकती है।

  1. निश्चित अवधि में कंपनी आवश्यक पूंजी को प्राप्त कर सकता है।
  2. हामीदारी से कंपनी को आवश्यक पूंजी जुटाने की परेशानी से राहत मिलता है।
  3. सदस्यता रद्द प्रतिभूतियों को हामीदारी द्वारा पूंजी पाने के कारण से किसी कंपनी के बदनामी होने का जोखिम कम किया जा सकता है।
  4. अनेक हामीदार को एक अनुबंध में रहने के कारण से, विविध क्षेत्रों के दलाल और हामीदार रह्ते है जिससे अनेक भौगोलिक सीमाओं में प्रतिभूतियों की बिक्री का व्यापक प्रसार होगा।

हामीदारी प्रणाली की कठिनाइयाँ[संपादित करें]

हामीदारी प्रणाली का विकास भारत में नहीं है।यहाँ, हमे हामीदारी व्यापारो को बाहर ले जाने के लिए कोई विशेष संस्था नहीं है। गतिविधियों को प्रभुत्व विकास बैंकों ने किया हे जोकि प्राथमिक अग्रणी संस्थानों मे से एक है। आस्थगित भुगतान की गारंटी कॉर्पोरेट प्रतिभूतियों के लिए प्रत्यक्ष सदस्यता बनाने और उद्यमशीलता का काम आदि एक हामीदारी का काम होत्ता है।छोटे उद्यमों को हामीदारी की सेवाओं का उपयोग नही कर पा रहे है।छोटे उद्यमों के बीच विश्वास का निर्माण करने के लिए इस क्षेत्र को विकसित करने के लिए एक मजबूत की जरूरत है।लघु उद्यमों को बड़ी संख्या मे अधिक रोजगार के अवसर पैदा होता है। यह प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाता है।भारतीय प्राथमिक बाजार में इन सेवाओं की सुविधा के संगठित मशीनरी नही है।छोटी बचत के प्रति निवेशकों का पीछा करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। यह प्रतिभूतियों के विपणन करने का एक बहुत महंगा तरीका है। हामीदारी के द्वारा कंपनी को अपने मामलों के गुप्त सूचनाओं को प्रदान करने की ज़रूरत पडती है और इन सूचनाओं का दुरूपयोग हो सकता है।


हामीदारी प्रणाली को सुधारने का उपाय[संपादित करें]

  • हामीदारी संघठन की वर्तमान संरचना का विकास करने के लिए अधिक प्रयास करना चाहिए।
  • हामीदारी गतिविधियों मे वित्तीय सिंडिकेशन बनाने की जरूरत है।यह सह-व्यवस्था सामाजिक ग्राहकों के बीच आत्मविश्वास पैदा करता है।
  • परियोजना मूल्यांकन औद्योगिक वित्त प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण कामो मे एक है।एक विस्तृत जांच परियोजना की व्यवहार्यता के बारे में तकनीकी और वित्तीय विशेषज्ञों द्वारा किया जाना चाहिए, इस

उद्देश्य के लिए एक स्थायी निकाय को विपणन, वित्त, तकनीकी के प्रख्यात हस्तियों को इन सभी खेतों से तैयार करना है।

  • परियोजना मूल्यांकन बोर्ड यह छोटी चिंताओं के बीच विश्वास पैदा करता है।
  • छोटे चिंताओं को प्रोत्साहित करने के लिए, शेयर दलालों द्वारा हामीदारी पर्याप्त वित्तीय और अन्य प्रोत्साहन के साथ आमंत्रित किया जाना चाहिए।
  • परियोजना मूल्यांकन बोर्ड की सेवाओं का एक मामूली शुल्क के साथ शेयर दलालों के लिए उपलब्ध कराया जा सकता है।
  • हामीदारी सिंडिकेट को खुदरा विक्रेताओं और डीलरों के बीच एक बड़े नेटवर्क बनाना चाहिए।
  • मर्चेंट बैंकिंग के मामले में हामीदारी एक पेशा बन जाना चाहिए।
  • हामीदारी पेशे की नेतृत्व के लिए शेयर दलालों और वाणिज्यिक बैंकों को प्रोत्साहन करना आवश्यक है।एक अलग निकाय चार्टर्ड एकाउंटेंट्स द्वारा गठित किया जाना चाहिए; और एक विशेष

पाठ्यक्रम इस विशेष कुशल संचालन के लिए एक स्नातकोत्तर स्तर पर पेश किया जाना चाहिए।

  • सरकार हामीदारी कमीशन और दलाली के पैमाने के बारे में सोचना चाहिए।