सदस्य:Anuj Hirawat

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मेरा नाम अनुज हिरावत है। मैं क्राइश्ट विश्वविधालय में बि-काम(होनर्स) की पढाई पढ रहा हूं।
  मेरा जन्म कोलकाता के लोहिया मात्री सेवा सदन में २३ सितम्बर १९९७ को हुआ था। जब मैं एक साल आठ महीने का था, तब आर्थिक स्थिति अस्थीर होने के कारण मेरे पूरे परिवार को बैंगलोर आना पडा। ढाई साल की उम्र में मैने फ्लोरेंस प्रौढ शाला में दाखिला लिया। १५ साल की उम्र में मैनें अपना मैट्रिक दिया। दसवीं कक्षा मैं मैनें ९५% प्रतिशत अंक लाकर डिस्टींक्शन से पास हुआ। इतने अच्छे अंक आने के बाद मैं बेंगलूर के सबसे अच्छे विधालय में दाखिला लिया जिसका नाम संत जोसेफ पदवि पूर्व कालेज है। उस कालेज में २ साल की पढाई के बाद २०१५ में पदवी पूर्व परीक्षा देकर ९२% अंक से पास हुआ। इसके बाद क्राइस्त कालेज में मैने दाखिला लिया। 
  
  मेरा घर बेंगलूर में है। मैं उत्तर बेंगलूर के बसवेसवरनगर, पवित्रा पैरेडाइस के पास रेहता हूँ। मेरे पिताजी का नाम कमल हिरावत है। वे रामचन्द्रपुरम मे टेप का कारोबार करते हैं। मेरी माता का नाम सरिता हिरावत है। वह भी हिरवात इम्पेक्स की माल्किन है। मेरे माता पिता दोनों साथ में काम करते हैं। मेरे भैय्या भी मेरे पिताजी के साथ टेप का व्यापार करते हैं। मेरी दादी घ्रर में रेह्ती है और घर की एक तरह से रखवाली भी करती है।
  मेरा सबसे पसंदीदा खेल क्रिकेट और चेस है। मैं बिलियाड्स और बोव्लि का भी खिलाडी हूँ। मेरे पिताजी एन सी सी में थे। उन्होने मुझे अनुशासित तरीके से पाला है। इसिलिये आज मैं भी अनुशासित हूँ और हर काम अनुशासन से करता हूँ। मैं भी अपने पिताजी की तरह एन सी सी में हूँ। एन सी सी में मेरा पद लेन्स नायक का है।

  इसके अलावा मुझे किताबें पढ्नें का शौक है। मैने चेतन भगत की सारी किताबें पढी हैं। एस हुस्सैइन ज़ैदी की किताबें जो आतंकी हमलों पर आधारित है, जैसे डोंग्री टु दुबाइ, मुंबई अवेंजर्स आदी भी पढी हैं। इसके अलावा मैने भारतीय थल सेना की कई किताबें पढी हैं। मैं दूरदर्शन का शौकीन हूं। आये गये दिन नये नये फिल्में देखता रेहता हूं। मैं अक्शय कुमार का प्रशन्सक हूं। ज्यादातर उसीके चलनचित्र देखता हूं। इसके अलावा मैं सुबह सुबह व्यायाम भी करता हूं जिससे मैं तरो ताज़ा हो जाता हूं। कभी कभी मैं करतब का भी प्रदर्शन करता हूं। मुझ में आलस्य बिलकुल भी नहीं है, हर काम पलक झपकते कर लेता हूं। कुल मिलाकर इन सारी चीज़ों का शौकीन हूं मैं। भाग दौड में मैं कमज़ोर हूं, और ज़्यादा देर तक मैं अकेला नहीं बैठ सकता। ये मेरी कमियाँ हैं।        
  मैं एक सकरात्मक इन्सान हूँँ। हमेशा सकरात्मक सोचता हूँ। मेरे पिताजी ने अपने आशावादी विचारों से मेरे मुघ्द मन को भर दिया है। मैने कभी भी हार नहीं माना। हमेशा दूसरों का भला चाहा। किसी से दुशमनी भी नहीं की। हमेशा ईमानदारी से काम किया।
  आगे जाकर मेरा लक्ष्य यही है कि मैं एक बहुत बडा व्यापारी बनूँ। अपने पिताजी का कारखाना को और बढाऊँ और उनका नाम रोशन करूँ। अपने माता पिता का सेवा करना मैं अपना परमोधर्म मानता हूं। अपने परिवार को बिना किसी कठिनाई के रख्नना मेरे जीवन का उद्देश्य है।