सदस्य:Anshupal101/प्रयोगपृष्ठ/लेडी मेरी वर्ट्ली मॉन्टैज्ञू

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लेडी मेरी वर्ट्ली मॉन्टैज्ञू का चित्र (१६८९- १७६२)

लेडी मेरी वर्ट्ली मॉन्टैज्ञू (बपतिस्मा मई २६ १६८९- २१ अगस्त १७६२) एक अंग्रेज़ी रईस महिला, कवयित्री, पत्रों की लेखिका और एक तुर्की में रहनेवाले अंग्रेज़ी राजदूत की पत्नी थीं। वे खास तौर से एक पत्रों की लेखिका के रूप में मश्हूर हैं, जहाँ उनके तुर्की पर जानकारी देने वाली पत्रों बिली मेल्मन नामक प्रसिद्ध इतिहासकार से 'पहली महिला से लिखित मुस्लिम एशिया पर जानकारी देने वाली ऐहिक रचनाएँ' बुलाए गये हैं। इसके अलावा, वे समाज के महिलाओं के प्रति सोच, उनकी बुद्धि और सामाजिक विकास एवं महिलाओं के सामाजिक अड़चनों पर लिखती थीं और उन्होंने पश्चिम समाज में तुर्की से लाया चेचक से सुरक्षा पाने का टीका देने का पहला तरीका भी लाया।


प्रारंभिक जीवन और शिक्षा[संपादित करें]

लेडी मेरी वर्ट्ली मॉन्टैज्ञू का जन्म और बपतिस्मा विलायत में सन् १६७९ में हुआ था और तब, उनका नाम मेरी पीयरपॉन्ट नाम रखा गया था। वे एवलिन पीयरपॉन्ट और उनकी पहली पत्नी, मेरी पीयरपॉन्ट, की बेटी थी, जहां उनके पिता एवलिन एक ड्यूक और रईस थे। बाद में, उनकी माँ ने १६९२ में मृत होने के पहले तीन और बच्चों को जन्म दिया। पहले, वे अपने भाई- बहन के साथ अपनी दादी से पाली गयीं थीं और बाद में, अपनी दादी की मृत्यु के बाद, अपने पिता की देखरेख में रहती थीं। उन्होंने अपने पिता के घर पे छोटी से पढ़ाई करना शुरू किया, जहाँ उनके पिता के पास नॉटिंघम शहर में थोरेस्बी हॉल और होल्म पीयरपॉन्ट हॉल एवं विल्टशर जैसे बडे़ जायदाद थे। लेडी मॉन्टैज्ञू के अनुसार, उन्होंने अपनी घृणास्पद दाई माँ से पायी गयी शिक्षण को और मज़बूत बनाने के लिये अपने पिता के थोरस्बी हॉल की हवेली के पुस्तकालय लैटिन भाषा की सीख 'चुराया' क्योंकि उस समय, लैटिन सिखाना सिर्फ पुरुषों के लिये रखा जाता था। सन् १७०५ में, जब वे चौदा या पंद्रा साल की थीं, उन्होंने दो कविता- संग्रह, एक छोटी पत्रोचित कहानी एवं ऐफ्रा बेन की 'वॉयेज टू द आयल' नामक प्रेम कहानी पर आधारित एक रचना लिखा। साथ- ही- साथ, उन्होंने दो बिशप- थॉमस टेनिसन और गिल्बर्ट बर्नेट- के साथ पत्रों से वार्तालाप किया।


विवाह और तुर्की में दूतावास[संपादित करें]

सन् १९१० में, लेडी मेरी को दो विवाह- प्रस्तावक में से किसी एक के साथ विवाह करने का अवसर मिला। वे थे एडवर्ड वर्ट्ली मॉन्टैज्ञू और क्लॉटवर्दी स्केफिंटन। पहले से ही, उन्हें एडवर्ड वर्ट्ली मॉन्टैज्ञू से प्रेम हुआ और एक साल के लिये, दोनों ने एक- दूसरे को अनेक चिट्ठियाँ भेजे। इसके बाद, चिट्ठियाँ लिखना बंद हो गया क्योंकि लेडी मेरी के पिता, जो डौरचेस्टर के मारकेस बन गये, ने मॉन्टैज्ञू से विवाह करने से मना कर दिया, जहाँ मॉन्टैज्ञू ने अपनी संपत्ति की विरासत के लिये लेडी मेरी का नाम नहीं देना चाहा। साथ- ही- साथ, लेडी मेरी के पिता ने उनको स्केफिंटन से विवाह करने का दबाव देने लगा। स्केफिंटन से विवाह न करने के लिये, लेडी मेरी ने मॉन्टैज्ञू के साथ सहपलायन किया और अनुज्ञप्ति के आधार पर, उन दोनों का मेल अगस्त १७, १७१२ में हुआ था- ऐसा सोचा जाता है कि उनकी असली विवाह शायद २३ अगस्त, १७१२ में हुई थी।

विवाह के बाद, लेडी मेरी ने पहले विलायत में १७१२ से १७१६ तक वास किया। उस समय में, उन्होंने मई १६, १७१३ में अपने बेटे, एडवर्ड वर्ट्ली मॉन्टैज्ञू द यंगर, को जन्म दिया, उनके भाई की मृत्यु उसी साल के जुलई १ तारीख में हुई, उन्हें १७१५ में चेचक हुआ। साथ- ही- साथ, उनके पति को राजकोष का कनिष्ठ आयुक्त बनाया गया और उनके साथ लंदन शहर जाकर, उन्हें राजदरबार में अपनी सुंदरता और बुद्धि के लिये बहुत सम्मान और मान्यता मिला। वहाँ, वे जॉर्ज़ १, ग्रेट ब्रिटेन का महाराजा के सामाजिक बंधनों में शामिल हो गईं और उनके कई मित्र थे, जैसे मॉली स्केरिट, लेडी वॉलपोल, लॉर्ड हेवी, मेरी एस्टेल, सैरा चर्चिल, डचेस ऑफ़ मार्लबोरो, अलेक्ज़ंडर पोप, जॉन गे, और अब्बे ऐंटोनियो शिनेला कॉन्टी।

सन् १७१६ में, उनके पति को तुर्की के लिये विलायत के दूत का पद मिला और दोनों नें १७१६ से १७१८ तक तुर्की के इस्तानबुल शहर में वास किया। उसी समय में, उन्होंने अपनी बेटी मेरी को १७१८ में जन्म दिया और अपने मश्हूर तुर्की पर पत्रों लिखा। इन पत्रों की यह खासियत है कि इनमें तुर्की समाज में महिलाओं के जीवन, आज़ादी, बाधाएँ और रीति- रिवाज़ों पर नयी जानकारी दिया एवं अन्य मुसाफिर और लेखकों के लेखन के पक्षपातों से एक नया नज़ारा से तुर्की जीवन क प्रदर्शन दिया। उनमें चेचक से सुरक्षा पाने के लिये टीके लगाने की बात भी लिखी हुई है। १७१८ में, विलायत और तुर्की के बीच बातों की असफलता होने के कारण, लेडी मेरी अपनी परिवार के साथ विलायत वापस चली गयी।


तुर्की चेचक- टीकाकरण[संपादित करें]

विलायत लौटने के बाद, लेडी मेरी ने चेचक से सुरक्षा देने वाली तुर्की टीका देने का तरीका को पश्चिमी आयुर्विज्ञान और तरीकों में अपनाने पर बहुत मूल्य दिया और इसपर बहुत सारी निबंध भी लिखीं। तुर्की में रहते समय, उन्होंने महिलाओं के ज़नानों में यह देखा कि बहुत समय, चेचक से बचने के लिये, महिलाओं एक चेचक से बीमार आदमी की छालों से पीप लेकर एक स्वस्थ आदमी के हाथ पर दरार बनाकर वही पीप दरार पर लगा देतीं थीं। इससे,स्वस्थ आदमी को चेचक पाने का खतरा नहीं होता था।

लेडी मेरी के भाई की मृत्यु चेचक से हुई और उनको खुद चेचक पाने के कारण अपनी सुंदरता को खोना पड़ा। इसलिये, उन्होंने तुर्की में अपने बेटे को १७१८ में टीका लगवाया और बाद में, विलायत में, १७२१ में अपनी बेटी को टीका लगवाया। पहले, विलायत में इस टीका देने का तरीका का सीख फैलाने में अनेक बाधाएँ थीं क्योंकि वह एक पूर्वी चीज़ थी और लोगों को उस समय पूर्वी वैद्य और शिक्षाके प्रति नफरत थी, लेकिन सन् १७२१ में विलायत में चेचक का स्ंक्रमण होने एवं देश की राजकुमारियों के टीका अपनाने के कारण, चेचक से बचने के लिये यह टीका लगाने की सीख को प्रशंसा और लोकप्रियता होने लगा।


अगले वर्षों[संपादित करें]

बाद में, अपने जीवन में, लेडी मेरी को राजदरबार से संबंधित मामलों और क्रियाओं में शामिल होने में कम दिलचस्पी होने लगीं और वे अपने परिवार एवं बच्चों का देखभाल पर ज़्यादा ध्यान देने लगीं। कुछ समय विलायत में रहके, वे फ्रांस और यूरोप के दक्षिण देशों में ज़्यादा रहने लगीं। उनमें रहते समय, उन्हें एक इटालियन दार्शनिक और मश्हूर बहुश्रुत फ्रांचेस्को ऐलगारोट्टी से प्यार हुआ और वे दोनों प्रायः मिलने लगे। अनेक वर्षों बाद, जब उनके पति विलायत में १७६१ में मर गये, वे १७६२ के जनवरी महीनी में विलायत लौट आयीं और खुद उसी वर्ष के अगस्त वर्ष में मर गयीं।

संदर्भ[संपादित करें]

[1] [2] [3]

  1. https://en.wikipedia.org/wiki/Lady_Mary_Wortley_Montagu
  2. https://www.britannica.com/biography/Lady-Mary-Wortley-Montagu
  3. http://www.telegraph.co.uk/news/science/science-news/4761718/Lady-Marys-daring-cure-it-only-killed-one-in-eight.html