सदस्य:Anmol Kamath K/चश्मदीद गवाह का बयान

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पृष्ठ भूमिका[संपादित करें]

चश्मदीद गवाह का बयान या प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य, अदालत में एक पीड़ित या दर्शक के द्वारा दिये हुए बयान को कहा जाता है जिसमे यह वर्णन हो कि उस व्यक्ति ने क्या देखा जो जांच के तहत विशिष्ट घटना के दौरान हुआ था। आदर्श रूप से घटनाओं की अनुस्मरण विस्तृत होते है; हालांकि, यह मामला हमेशा नहीं होता है। गवाह के दृष्टिकोण से क्या हुआ, यह दिखाने के लिए यह अनुस्मरण सबूत के रूप में प्रयोग किया जाता है।

अतीत में किसी घटना की यादों का एक विश्वसनीय स्रोत माना गया था, लेकिन हाल ही में इसकी कड़ी निंदा हुई है क्योंकि फोरेंसिक भी अब मनोवैज्ञानिकों को अपने दावे में समर्थन कर सकते हैं कि यादें और व्यक्तिगत धारणा अविश्वसनीय हैं, उनका छेड़छाड़ हो सकता है और वे पक्षपाती हो सकतीं हैं। इसके कारण, कई देश और राज्य अब अदालत में प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य प्रस्तुत करने में बदलाव करने का प्रयास कर रहे हैं।

गलत स्रोत का गुणारोपण[संपादित करें]

किसी व्यक्ति की स्मृति अपराध के बाद देखी गई या सुनाई गई चीज़ों से प्रभावित हो सकती है। इस विकृति को घटना के बाद गलत सूचना का प्रभाव के रूप में जाना जाता है। [1] एक अपराध होने के बाद जब एक प्रत्यक्षदर्शी आगे आता है, विधि-प्रवर्तन पर्यावरण (जैसे मीडिया) से आने वाले प्रभाव से बचने के लिए अधिक से अधिक जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश करता है। कई बार जब अपराध बहुत प्रचार से घिरा होता है, चश्मदीद गवाह गलत स्रोत के गुणारोपण या गलतफहमी का अनुभव कर सकते हैं जब गवाह यादों को स्मरण करने मै भूल करता है कि वह कहां की या कब की स्मृति है। यदि कोई गवाह अपनी पुनर्प्राप्त स्मृति के स्रोत की सही ढंग से पहचान नहीं सकता है, तो उस गवाह को विश्वसनीय नहीं माना जाता है।

पुष्टि पूर्वाग्रह[संपादित करें]

जहां कुछ गवाह किसी अपराध का शुरूवात से अंत तक साक्षी होते हैं, वहीं कुछ गवाह केवल अपराध के किसी हिस्से का साक्षी होते हैं। इन गवाहों की पुष्टि पूर्वाग्रह का अनुभव करने की अधिक संभावना है। पुष्टि पूर्वाग्रह से आने वाले विरूपण का कारण साक्षी अपेक्षाएं हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, लिंडहोल्म और क्रिश्चियसन ने १९९८[2] में पाया कि एक नकली अपराध के गवाह, जिन्होंने पूरे अपराध को नहीं देखा, फिर भी जो कुछ होने की उम्मीद की थी, उन्होंने उसे प्रमाणित किया। आम तौर पर पर्यावरण की जानकारी के कारण ये अपेक्षाएं व्यक्तियों में समान होती हैं। अमेरिका के परीक्षणों मे जब इस तरह के सबूत को गवाही के रूप में पेश किया जाता है, प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य की विश्वसनीयता का मूल्यांकन सभी जूरी-सदस्यों पर पड़ता है। शोध से पता चला है कि नकली जूरी अक्सर झूठी और सटीक प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य के बीच अंतर करने में असमर्थ होते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जूरी के सदस्य अक्सर गवाह के आत्मविश्वास के स्तर को उनकी गवाही की सटीकता से सहसंबंधित करते हैं। लाब और बोर्नस्टीन द्वारा इस शोध के सिंहावलोकन दिखाता है कि यह सटीकता का एक गलत नाप है। [3]

विधि-प्रवर्तन, कानूनी व्यवसाय, और मनोवैज्ञानिकों ने प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य को अधिक विश्वसनीय और सटीक बनाने के प्रयासों में एक साथ काम किया है।

संदर्भ[संपादित करें]

  1. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  2. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  3. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर