सदस्य:Akhileah bajpai

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से


मध्यप्रदेश में मार्च २०२० से जिलों कि कुल संख्या ५५ हो चुकी है।

इतिहास:-

•१९५६ में गठन के समय कुल जिले ४३ थे।

•१९७२ में २ जिले बनाए गए ४३+२=४५

 -भोपाल
 -राजनांदगांव

•१९९८ में बड़े जिलों से १६ नए जिले बनाए गए जिनसे मध्यप्रदेश में कुल जिलों की संख्या ६१ हो गई। ४५+१६=६१ जिनमें से १६ जो नए जिले बनाए थे उनमें से ७ जिले वर्तमान में मध्यप्रदेश में है।

•२००० में मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बनाया गया और १६ जिले इस राज्य में दिए गए इस प्रकार मध्यप्रदेश में जिलों कि संख्या पुनः ४५ हो गई।

•छत्तीसगढ़ विभाजन के समय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह थे।

•२००३ में पुनः ३ नए जिले बनाए गए इस समय मुख्यमंत्री सुश्री उमा भारती जी थे जो कि मध्यप्रदेश की प्रथम महिला सीएम है। तीन नए जिले इस प्रकार है -

- अनूपपुर
- बुरहानपुर
- अशोकनगर

इस प्रकार जिलों कि कुल संख्या ४५+३=४८ हो गई।

•२००८ में २ नए जिले बनाए गए इस समय सीएम श्री शिवराज सिंह चौहान थे। - अलीराजपुर(झाबुआ से) - सिंगरोली(सीधी से) जिलों की संख्या ४८+२=५०

•१६ अगस्त २०१३ में एक नया जिला बनाया गया। - आगर मालवा(शाजापुर से) कुल जिले ५०+१=५१

•१ अक्टूबर २०१८ में एक ओर नया जिला बनाया गया।

- निवाड़ी(टीकमगढ़ से) कुल जिले ५१+१=५२

•१८ मार्च २०२० को ३ नए जिलों को मंजूरी प्रदान की गई। सीएम - श्री कमलनाथ

- जावरा(रतलाम से) - नागदा(उज्जैन से) - चाचौड़ा(गुना से) इस प्रकार मध्यप्रदेश में कुल जिले ५२+३=५५

इसी प्रकार मध्यप्रदेश में वर्तमान में कुल ५५ जिले और १० संभाग है।।

सन्दर्भकालिंजर दुर्ग, भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में स्थित एक दुर्ग है। बुन्देलखण्ड क्षेत्र में विंध्य पर्वत पर स्थित यह दुर्ग विश्व धरोहर स्थल खजुराहो से ९७.७(97.7) किमी दूर है। इसे भारत के सबसे विशाल और अपराजेय दुर्गों में गिना जाता रहा है। इस दुर्ग में कई प्राचीन मन्दिर हैं। इनमें कई मन्दिर तीसरी से पाँचवीं सदी गुप्तकाल के हैं। यहाँ के शिव मन्दिर के बारे में मान्यता है कि सागर-मन्थन से निकले कालकूट विष को पीने के बाद भगवान शिव ने यहीं तपस्याकर उसकी ज्वाला शान्त की थी। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला कार्तिक मेला यहाँ का प्रसिद्ध सांस्कृतिक उत्सव है।[संपादित करें]

कालिंजर दुर्ग
बांदा जिला का हिस्सा
उत्तर प्रदेश, भारत
कालिंजर दुर्ग के महल
कालिंजर दुर्ग
निर्देशांक 24°59′59″N80°29′07″E / 24.9997°N 80.4852°E
प्रकार दुर्ग, गुफाएं एवं मन्दिर
निर्माण जानकारी
नियंत्रक उत्तर प्रदेश सरकार
जनता हेतु

खुला

हाँ, सार्वजनिक
दशा ध्वस्त किले के अवशेष
इतिहास
निर्मित १०वीं शताब्दी
निर्माणकर्ता चन्देल शासक
प्रयोगाधीन १८५७(1857)
सामग्री ग्रेनाइट पाषाण
युद्ध/लड़ाइयाँ महमूद गज़नवी१०२३(1023)ई॰, शेर शाह सूरी १५४५(1545) ई॰, ब्रिटिश राज १८१२(1812) ई॰ & १८५७(1857)का स्वाधीनता संग्राम
गैरिसन जानकारी
पूर्व

कमांडर

चन्देल राजवंश के राजपूतएवं रीवा के सोलंकी
गैरिसन ब्रिटिश सेना, १९४७(1947)
हवाई क्षेत्र सम्बन्धित जानकारी
ऊँचाई 375 AMSL

प्राचीन काल में यह दुर्ग जेजाकभुक्ति (जयशक्ति चन्देल) साम्राज्य के अधीन था। बाद में यह १०(10)वीं शताब्दी तक चन्देल राजपूतों के अधीन और फिर रीवा के सोलंकियों के अधीन रहा। इन राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक, शेर शाह सूरी और हुमांयूआदि ने आक्रमण किए लेकिन इस पर विजय पाने में असफल रहे। कालिंजर विजय अभियान में ही तोप के गोला लगने से शेरशाह की मृत्यु हो गई थी। मुगल शासनकाल में बादशाह अकबर ने इस पर अधिकार किया। इसके बाद जब छत्रसाल बुन्देला ने मुगलों से बुन्देलखण्ड को आजाद कराया तब से यह किला बुन्देलों के अधीन आ गया व छत्रसाल बुन्देला ने अधिकार कर लिया। बाद में यह अंग्रेज़़ों के नियंत्रण में आ गया। भारत के स्वतंत्रता के पश्चात इसकी पहचान एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहर के रूप में की गयी है। वर्तमान में यह दुर्ग भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकार एवं अनुरक्षण में है। यह बहुत ही बेहतरीन तरीके से निर्मित किला है। हालाकि इसने सिर्फ अपने आस पास के इलाकों में ही अच्छी छाप छोड़ी है।

भौगोलिक स्थिति[संपादित करें]

इतिहास[संपादित करें]

पौराणिक-साहित्यिक सन्दर्भ[संपादित करें]

ऐतिहासिक धरोहर[संपादित करें]

स्थापत्य[संपादित करें]

नीलकण्ठ मन्दिर[संपादित करें]

अनुरक्षण एवं रख-रखाव[संपादित करें]

व्यावसायिक महत्त्व[संपादित करें]

उत्सव व मेला[संपादित करें]

आवागमन[संपादित करें]

ग्रन्थों में वर्णन[संपादित करें]

चित्र दीर्घा[संपादित करें]

सन्दर्भ ग्रन्थ व टीका[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]