सदस्य:Aditi kandlur/प्रयोगपृष्ठ

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बंनेर्घट्टा राष्ट्रीय उद्यान के परिधि में जन-जानवर के बीच संघर्ष[संपादित करें]

परिचय[संपादित करें]

बेंगलूरु भारत के विशिष्ट महानगरों में से एक है, जहाँ अलग-अलग अनिवासिक और विदेशी लोग भी पाए जाते हैं। २०१४ के जनगणना के अनुसार, इस महानगर की जन-संख्या लग-भग १०,१७८,१४६ है[1]। इस महानगर में बहुत विशेषताएँ हैं, उन में से बढ़ती सुविधाएँ, व्यवसायिक एवं शैक्षिक अवसरों, ऋतु तथा भौगोलिक स्थितियों के कारण भारत के अनेक राज्यों और विदेशों से बहुजनों इस शेहर में अपना डेरा जमा लिया है।
आवासीय आवश्यकताओं की बढ़ती समस्याओं को ध्यान में रखते हुए नगर पालिका के अधिकारियों ने शेहर की सीमा बढ़ाया है। कईं वर्ष पहले जो जगह सरहद के पार थे, वे वर्तमान शेहर के सीमा के अंदर पाए जाते हैं। इसके परिणाम स्वरूप कईं परिदृश्यों का शोधन किया गया है।

महानगर बेंगलूरु का अद्भुत राष्ट्रीय उद्यान[संपादित करें]

बंनेर्घट्टा राष्ट्रीय उद्यान, एक अद्भुत प्राणिउद्यान है जिसे पर्यावरणविदों ने एक वर्दान माना है। यह उद्यान महानगर केंद्र से लग-भग ३० किलोमीटर की दूरी पर है।
बंनेर्घट्टा राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्र करीबन १०२ वर्ग किलोमीटर है। रामनगर के आसपास के झाड़दार जंगलों की प्राप्ति के बाद कर्नाटक सरकार ने अनुदान स्वरूप २००+ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को राष्ट्रीय उद्यान से जोड़कर बढ़ाया है।

इस उद्यान में कई पशुवर्ग पाए जाते हैं, जिनमें-

बंनेर्घट्टा राष्ट्रीय उद्यान में सिंह[2]
  • स्तनधारियाँ जैसे हाथी, भारतीय तेंदुआ, जंगली सांड, चीता, साम्भर, आलस भालू, बार्किंग डीयर, जंगली सूअर, जंगली कुत्ता, गोल्डन सियार, चूहा, छोटा कस्तूरी मृग, बोनट मकाक, धारीदार लकड़बग्घा, भारतीय कलगीदार साही, आदि।
  • पक्षियाँ जैसे मयूर-पक्षी, धूसर जंगली पक्षी, आइबिस, बटेर, गौर, धब्बेदार हिरण, लोमड़ी, शशक, तीतर, सारस, सनबर्ड, गरुड़, कोयल, वेग्टेल, मिनिवेट, ड्रोंगो, फ्लाईकैचर, कठफोड़वा, थ्रश, पैराकेट, ओरियल, आदि।
  • रेंगनेवाला जन्तु जैसे वारन, मगरमच्छ, कछुआ, अजगर, चूहा सर्प, नाग, क्रेट, वैपर आदि जन्तु घने पेड़-पौधों, दलदलों और जल निकायों में पाए जाते हैं।
  • जलथलचर जैसे मेंढक, भेक, सालामैंडर, आदि दलदल में पाए जाते है।
  • कीड़ा-मकोड़े जैसे विविध प्रकार की तितलियाँ, मधुमक्खियाँ, चींटियाँ, आदि।
  • सिंह, शेर और तेंदुआ रिज़र्व में पाए जाते हैं।

उद्यान का प्रभाव[संपादित करें]

जंगल के अखंडता के कारण, पशुवर्ग के संख्या की वृध्दि हुई है। इसके अतिरिक्त, बंनेर्घट्टा राष्ट्रीय उद्यान तमिलनाडु के कावेरी वन्यजीव अभयारण्य से जुड़ा हुआ है।
उद्यान के विशाल पशुवर्ग में से कुछ प्राणियाँ मानव बस्ती में प्रवेश करने के कारण खबरों में आते हैं जैसे हाथी, तेंदुए, भालू, लोमड़ी, आदि।

हाथी-मानव के बीच संघर्ष[संपादित करें]

बंनेर्घट्टा राष्ट्रीय उद्यान में हाथी[3]

शेहर के क्षेत्र के विस्तार के कारण, हाथियाँ खेतों के अंदर आकर उपद्रव मचाते है, जो उद्यान के परिधि में उपस्थित हैं।
इस जंगल में २ प्रकार के नर हाथी[4] पाए जाते हैं-

  1. वेंकटैयन कुँटे
  2. सुवर्णमुखी

मादा हाथियों में भी दो प्रकार[5] में पाए जाते हैं-

  1. बि.वि.एच १
  2. बि.सी.एच १

अनुसंधान से पता चलता है कि मानवों पर किए जाने वाले हाथी द्वारा आक्रमण, जंगल तथा प्राणिउद्यान को जोड़ने वाली गलियारे में ज़्यादातर होती आई हैं। उस गलियारे के पास कुछ गांव हैं जहाँ पे अकेले हाथियों ने या हाथियों के झुंड ने खेतों में आकर चलते चराते हुए एक ही समय में उस खेत को नाश कर ड़ाला है और मानव के निवास-स्थान में भी आकर उपद्रव मचाया है। इस प्रकार के अधिकतर दुर्घटनाएँ सिर्फ अकेले मृगमद स्रावित नर हाथी ने ही मचाया है।
उद्यान के गलियारे में लग-भग आठ(८) ग्राम हैं(जो तीन श्रेणियों में पाए जाते है) जहाँ हाथियों ने हंगामा मचाई हैं -

  • बंनेर्घट्टा श्रेणी
  1. रागिहळ्ळि
  2. संपिगेहळ्ळि
  3. बुथनहळ्ळि
  • हारोहळ्ळि श्रेणी
  1. गोट्टिगेहळ्ळि
  2. काडुजक्कसंद्रा
  3. बालेगनगुप्पे
  4. मरलवाड़ि
  • आनेकल श्रेणी
  1. तम्मनायकनहळ्ळि

थट्टिगुप्पे में एक मुख्य कारण से अभी तक आक्रमण हुए हैं- गैरकानूनी सुराकर्मशाला। हाथियाँ इस उध्योग-धन्धे से आकर्षित होकर गाँव में प्रवेश करते आए हैं।
२००९ के अनुसंधान के अनुसार यह मालुम पड़ता है कि-

  • फसलों के ऋतुजैविकी के अनुसार, हाथियों ने उन खेतों में प्रवेश किया जहाँ फसल प्रजनक अवस्था में थे- वह इस लिए क्योंकि वे उस अवस्था में अल्प रूप में रेशेदार, अधिक मात्रा में रसदार, पौष्टिक बीज इस के सिवा स्वादिष्ट भी होते हैं।[6]

अपवाद- मंडुआ/"रागि", सौरगम, धान जैसे फसल के खेतों में हाथियों ने उनके कटाई अवस्था में ही चराने के लिए आए हैं।(कटाई अवस्था में फसल के कण बहुत पौष्टिक होतें हैं।)

  • अक्तूबर से जनवरी के समय में झुंड में आकर आक्रमण करते हैं- इसी समय वे गलियारे में प्रवास करते है और इसी समय, फसल समाकर्तित्र काल के शिखर पहुँचते हैं।
  • हाथियों ने इस प्राथमिकता के अनुक्रम के अनुसार खेतों में प्रवेश किया हैं-
  1. मंडुआ/"रागि"
  2. सौरगम
  3. धान
  4. मक्का
  5. कुलथी

संघर्ष के कुछ मूलकारण[संपादित करें]

  • जंगल के सीमा में मानव के निरंतर रूप में बढ़ते हुए कार्यकलाप
  • मानवीय अतिक्रमण के कारण, हाथियों के सिकुड़ते हुए निवासस्थान
  • निवासस्थान अवक्रमित होते जा रहे हैं, जैविक दबाव के कारण - जैसे कि लकड़ी वसूली, गायों के चराना, पैड़ों के शिकार-चोरी आदि
  • प्राणिउद्यान के सीमा पे तथा उसके भीतर कभी-कभी अनियंत्रित मात्रा में पत्थर उत्खनन और अवैध बालू खनिकर्म होती हैं[7]

आदि।

अन्य जानवरों के साथ मानव का संघर्ष[संपादित करें]

गायों, बकरियों, आदि चराई पशुओं को जंगल में चराने के लिए गाँव के लोग भेजते है, इसी कारण से वे तेंदुए का शिकार बन जाते है। गाँव में पाले हुए मुरगी भी लोमड़ी और तेंदुआ का शिकार बन जाते हैं।

हाथी-मानव संघर्ष : शमन के उपाय[संपादित करें]

प्रस्तुत योजनाओं से हाथी-मानव के संघर्ष के दुर्घटनाओं को अब तक न्यूनीकरण करते आए है -

  • बिजली का बाड़
  • हाथी सबूत खाई(एलिफेंट प्रूफ ट्रेन्च[ई.पि.टि])
  • मलबे की दीवार
  • कांटेदार डालियों के, पत्थर के, लकड़ी का बाड़ आदि।

अनुसंधान से पता चला कि चिल्लि टोबाको बारियर(सी.टी.बी)[मिर्च तंबाकू बाधा- जो मिर्च और तंबाकू का निश्चित अनुपात इंजन तेल में मिश्रण तैयार किया गया है] भी एक ऐसा कार्य-कुशल परियोजना[8] है। यह सिर्फ एक नई अवधारणा है जो अभी तक कुछ चुने गए खेतों में कार्य-कुशल रहा है।
कुछ और सुझाव, इस प्रकार हैं-

  • फसल का पैटर्न बदल देना,
  • आवृत्तबीजी फसल जैसे चंन्द्र मल्लिका,
  • मधुमक्षिकालयों को खेतों के सीमा पर रखते है- जिस से हाथियाँ, मधु मक्खी की गूंज को सुनते ही डर के मारे लोट जाते हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. http://www.indiaonlinepages.com/population/bangalore-population.html
  2. https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Lion_from_Bannerghatta_National_Park_8476.JPG
  3. https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Elephant_from_Bannerghatta_National_Park_8651.JPG
  4. Ecology, Conservation and Management of the Asian Elephant in Bannerghatta National Park, southern India, p.72
  5. Ecology, Conservation and Management of the Asian Elephant in Bannerghatta National Park, southern India, p.73
  6. Ecology, Conservation and Management of the Asian Elephant in Bannerghatta National Park, southern India, p.217
  7. Ecology, Conservation and Management of the Asian Elephant in Bannerghatta National Park, southern India, p.21
  8. Ecology, Conservation and Management of the Asian Elephant in Bannerghatta National Park, southern India, p.226