सदस्य:Acharya Shastri T. Shastri

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🕯"पत्रकारिता और 🗞पत्रकारों एवं चौथे स्तंभ का तो भगवान ही मालिक है"🕯

    हमारा भारतीय लोकतंत्र चौथा स्तम्भो पर खड़ा है न्याय पालिका कार्य पालिका व्यवस्थापिका और पत्रकारिता लेकिन लोकतंत्र के चार खम्बो में से एक खम्बा जिसे पत्रकारिता कहा जाता है इसे गिराने प्रताड़ित करने और इसे कमज़ोर करने एवं बदनाम करने का कुचक्र पिछले कई वर्षो से किया जा रहा है।
                         🇮🇳 भारतीय लोकतंत्र के तीन स्तम्भ सम्मानित एवं सुरक्षित व सुविधा भी उन्हें प्राप्त है लेकिन चौथे स्तम्भ यानी पत्रकारों को न सम्मान मिल रहा है न सुविधाएं और न ही सुरक्षा की कोई गारंटी ही है। तीन स्तम्भो के लिये टोल टैक्स फ्री, प्लेट फार्म टिकट फ्री, गाडी (कार) फ्री पार्किंग फ्री, इलाज फ्री और न जाने क्या-क्या फ्री, लेकिन चौथे स्तम्भ के प्रहरी कलमकारों /पत्रकारों के लिये न पार्किंग फ्री, न टोल टैक्स फ्री, न इलाज फ्री ना हीं उनके लिए कोई रिम्बर्समेन्ट की व्यवस्था है कुल मिला कर पत्रकारो के पास ऐसी कोई सुविधा नही जो तीन स्तम्भ से जुड़े लोगो को मिलती है। 
                             सुविधाएं तो छोड़ दीजिये श्रीमान पत्रकारों को तो सिर्फ वही लोग मान एवं सम्मान अपने  कार्य व मतलब से देते है जिसको अपनी बात को समाचार/ अखबार के माध्यम से जनमानस तक पहुंचानी होती है।              "सुरक्षा के मामलो में तो पत्रकार बिल्कुल दीन-हीन एवं गरीब है"      इसीलिए पत्रकारों के ऊपर हमला लाठीचार्ज एवं उनकी हत्याएं भी हो रही है। चौथे स्तम्भ को मौजूदा समय में तो अपने अस्तित्व एवं मान-सम्मान का ही खतरा पैदा हो गया है। देश के एवं प्रदेश के नेता व अधिकारी अपनी सुविधा अनुसार समय-समय पर अपने सुविधा के लिए नियम कानून बना लेते है लेकिन पत्रकारिता के लिये जितने भी नियम बन रहे है उससे तीन स्तम्भो को भले ही लाभ हो, लेकिन पत्रकारिता के अस्तित्व एवं गरिमा पर संकट के बादल मडराते एवं घने होते ही जा रहे है। सचमुच में अगर पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है तो इसकी मज़बूती एवं गरिमा के लिये सरकारों द्वारा सही से एवं अपने लोगों की तरह से योजनाएं बनाई जाती, लेकिन यहाँ तो इसे कमज़ोर एवं पंगु करने के लिए वो लोग एकजुट होकर कार्य कर रहे है जिनके लिये पत्रकार एवं पत्रकारिता खतरे की घण्टी साबित होता दिखाई दे रही है।
                 थोड़े एवं जीरो( शून्य) संसाधनों के माध्यम से पत्रकार देश और समाज के प्रति अपना दायित्व निभाने वाले पत्रकारों की दशा एवं दुर्दशा को  न तो किसी को नज़र आ रही है और न ही किसी को दिखाई पड़ रही है आज के समय में तीन स्तम्भो के मुकाबले चौथा स्तम्भ सबसे नरम चारा बन गया है। जिसे चारा समझकर ऊंची  पहुंचे वाले हर समय चबाने प्रयास कर रहे है।
              चारो स्तंभों को रचने वाले महापुरुष यदि आज रहे होते तो उन्हें आज पत्रकारिता और पत्रकारों की दशा एवं दुर्दशा को देखकर बहुत दुखी ज़रूर होते लेकिन आज के संविधान के रखवालो को न दुःख है और न ही पत्रकारों के इस दशा एवं दुर्दशा की कोई चिंता है।

🕯"पत्रकारिता और पत्रकारों एवं चौथे स्तंभ का तो भगवान ही मालिक है" ✏️लेखक✏️

       आचार्य श्रीकान्त T. शास्त्री   
    स्वतंत्र पत्रकार ,मान्यता प्राप्त       
           🇮🇳 राष्ट्रीय अध्यक्ष 🇮🇳      
✏️"आल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन"🗞   
  📲Mo.9415030710, 📱W.N.9336427821