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कोर्ज़ोक् गुस्तोर्


कोर्ज़ोक् एक छोटा सा गांव है । कोर्ज़ोक् के निवासियों के अधिकांश चनगपा खानाबदोश हैं । 4572 मीटर की ऊंचाई पर, कोर्ज़ोक् भारत के सर्वोच्च स्थायी गांवों में से एक है । गर्मियों के समय , वे अप्ने रोबोस् (छोटे मकान् ) में विभिन्न स्थानों पर रेह्ते है अप्नि भेद कि देख्भाल कर्ने । अपनी भेड़ों प्रसिद्ध पश्मीना ऊन देति हे । कश्मीर और हिमाचल से पारंपरिक बुनकरों इस ऊन को खरीदते हैं। कोर्ज़ोक का अर्थ हे " पहाड़ के मध्य " ,और यह झील की ओर आनंद लेने के लिए एक शानदार स्थान है । कोर्ज़ोक् में एक मठ है, जो लगभग 500 साल पुराना माना जाता हे । कोर्ज़ोक् मठ स्पीति और लद्दाख के बीच परंपरागत व्यापारिक मार्ग पर खदा हुआ हे । कोर्ज़ोक का इतिहास बहुत पुराना हे। उन्हे युद्ध में कई असफलताओं का सामना करना पड़ा और अलगाव में एक खानाबदोश जीवन व्यतीत करना पड़ा। इस खानाबदोश वंश के राजाओं में से एक राजा ने 300 साल पहले कोर्ज़ोक् में एक मठ की स्थापना की। तब से खानाबदोश अपने धर्म का परिवर्तन किया और बौद्ध धर्म को अपनालिया। खानाबदोश राज्य शासनकाल क अन्त राजा त्सेवङ युर्ग्यल के साथ हुअ। जब भारत को आजदि मिलि ।

कोर्ज़ोक् गुस्तोर् का उत्सव, जुलाई या अगस्त के महीने में हर साल जगह लेता है। यह इस प्रमुख त्योहार है, जिनमे चनगपा,घुमंतू चरवाहों तिब्बती पठार पर आते हे । दो दिवसीय त्योहार काले तोपी नर्तकियों के नेता द्वारा स्तोर्मा (बलि का केक) का प्रतीकात्मक बहिष्कार और प्रसार के साथ समाप्त होता है। नर्तकियों द्वारा पहना मुखौटा बौद्ध देवताओं का मंदिर के संरक्षक देवत्व (धर्मापलस्) का अभिवेदन करता है,। इस समारोह में अर्घम (हत्या) के रूप में जाना जाता है और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। तिब्बती धर्म भ्रष्ट राजा लैंग-दार-मा क हत्या एक बौद्ध भिक्षु के हातो हुआ था। इस्को दोहराया जाता हे।