सदस्य:रोहित चौधरी/प्रयोगपृष्ठ

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                            डॉ साहब आंबेडकर जी भारतीय सविंधान से असंतुष्ट[1]

                            
  मित्रो, और मेरे प्यारे भाइयों और बहनों, आप सभी को मेरा प्यार भरा नमस्कार  !
         भारतवर्ष में एक समय ऐसा भी आया, भारतीय संविधान लागू हुए तीन वर्ष भी पूर्ण नही हुए थे की, विश्व के सबसे बड़े संविधान निर्माता, ‘डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर जी’ ने स्वम संविधान जला देने की बात कर दी !
        2 सितम्बर,1953, को राज्यसभा में चर्चा के दौरान डॉ साहब ने कहाँ था, ”श्रीमान, मेरे मित्र कहते है कि मैंने संविधान बनाया है, परंतु मै ये कहने के लिए पूरी तरह तैयार हूँ कि संविधान को जलाने वाला मै पहला व्यक्ति होऊंगा ! मुझे इसकी ज़रूरत नही ! यह किसी के लिए अच्छा नही है ! 
      बाबा साहब को 3 वर्षो में ही आभास हो गया था कि, देश का 5% से भी कम आबादी वाला सम्भ्रांत तबका संविधान ही नही देश के लोकतंत्र को भी हाइजैक कर लेगा, बाकि के 95% लोग इसके लाभ से दूर रहेंगे ! आजादी के बाद जिस तरह भारत में पोलिटिकल फैमिलीज पैदा हो गई और पूरी सत्ता उनके आस-पास घूम रही है, एक परिवार को जैसे लाभ हो रहा था, उससे ऐसी आशंका पैदा होना स्वभाविक था !
     2 साल बाद’ 19 मार्च,1955, को पंजाब से राज्यसभा सदस्य ‘डॉ अनूप सिंह, ने सदन में चर्चा के दौरान डॉ अम्बेडकर को याद दिलाते हुए कहाँ था, “पिछली बार आपने संविधान जलाने की कहिं थी !”  अम्बेडकर ने कहाँ, ”मेरे मित्र अनूप जी ने कहा था कि मै संविधान को जलाना चाहता हूँ, पिछली बार जल्दी मे इसका कारण नही बता पाया था ! अब मौका मिला है तो बताता हूँ ! हमने भगवान के रहने के लिए संविधान रूपी मंदिर बनाया है, परंतु भगवान् आकर उसमे रहते, उससे पहले राक्षस आकर उसमे रहने लगा ! ऐसे में मंदिर को तोड़ देने के अलावा चारा ही क्या है ?   हमने इसे आसुरो के लिए तो नही, देवताओ के लिए बनाया है ! मै नही चाहता इस पर आसुरो का आधिपत्य हो ! हम चाहते है इस पर देवो का अधिकार हो ! यही कारण है कि मैंने कहा था कि, मै संविधान को जलाना पसंद करूँगा !” इस पर दूसरे सदस्य ‘वीकेपी सिन्हा’ ने कहा, “ मंदिर को क्यों ध्वंस करते है, आप आसुरो को क्यों नही निकालते ?” इस पर शतपथ से देवासुर संग्राम कि घटना का ज़िक्र करते हुए बाबा साहब ने कहा, “ आप ऐसा नही कर सकते, हमारे में वह शक्ति नही आई है, कि हम असुरो को भगा सके !

संविधान पर पिछले 70 वर्षो में हजारो ‘लेख, समाचार व् विचार’ प्रकाशित हुए, लेकिन किसी ने ये जानने कि आवशकता नही समझी कि संविधान निर्माता को ऐसा क्यों कहना पड़ा ! इसके लिए हमे बाबा साहब के जीवनकाल पर नजर डालनी पड़ेगी !


* 14 अप्रैल, 1891, केंद्रीय प्रांत ( अब मध्यप्रदेश ) के एक छोटे से गाव अछूत म्हार परिवार में ‘रामजी मालोजी सकपाल’ और ‘भीमाबाई’ कि 14वीं सन्तान !


बचपन-

  • बचपन से अपने परिवार के साथ भेदभाव देखा !

• अम्बेडकर के पूर्वज लम्बे समय तक ‘ईस्ट इण्डिया कंपनी’ कि सेना में रहे !

• पिता मऊ कैंप में पोस्टेड सदा बच्चो कि शिक्षा पर जोर देते थे,

• 1894 में रिटायर्ड होने के 2 वर्ष बाद माँ का निधन हो गया !

• बच्चो कि परवरिश चाची ने कठिन हालात में कि !

• 14 में से केवल 5 ( दो भाई ‘बलराम और आंनद’, दो बहनें ‘मंजुला व् तुलासा’ ) ही जीवित बचे!


शिक्षा-

  • पांच भाई-बहनों में केवल अम्बेडकर ही शिक्षा ले सके !

• शुरु में ‘मराठी फिर अंग्रेजी’ शिक्षा लेने वाले अम्बेडकर, अछूत बच्चो के साथ, सतारा स्कूल में अलग बिठाये जाते थे !

• प्यास लगने पर ऊँची जाति का व्यक्ति, ऊँचाई से पानी उनके हाथो पर डालता था

• पानी और पात्र छूने कि अनुमति नही थी !

• भेदभाव के चलते ‘ब्राह्मण शिक्षक’ के आग्रह पर, उन्होंने अपना सरनेम सकपाल से अम्बेडकर कर लिया जो, उनके गाँव अंबावडे के नाम पर था !

• सपरिवार बम्बई आ गये !

• एल्फीस्टन रोड में ‘गवर्मेन्ट हाईस्कूल’ के पहले ‘अछूत छात्र’ बने !

• 1907 में ‘मैट्रिक परीक्षा’ पास की !

• बम्बई विश्वविद्यालय में प्रवेश लेकर कालिज के पहले ‘अछूत छात्र’ बने थे !

• इस सफलता से ‘महार समाज’ में ख़ुशी की लहर दौड़ गई, सार्वजनिक तौर पर उनका सम्मान किया गया इसी बीच् उनकी सगाई हिन्दूरीति से दापोली की ‘9 वर्षीय रमाबाई’ से हुई !

• प्रतिभाशाली छात्र होने की वजह से “बडौदा के गायकवाड़ राजा सहयाजी राव” से स्कोलरशिप मिलने लगी !

• 1912 में Political Science & Economics कि डिग्री हासिल कर, ‘बडौदा सरकार’ में नौकरी स्वीकार कर ली और सपरिवार बडौदा चले गये !

• पिता के निधन के कारण फरवरी 1913 में वापस लौटना पड़ा

• 1915 में Sociology के साथ Economics, ‘History Philosophy & Anthropology’ और political Science से M.A. किया !

• बडौदा महाराज से मिलने वाली 25 रूपये की स्कॉलरशिप से पढाई के लिए न्यूयार्क ( अमेरिका ) गये

• 1917 में कोलम्बिया विश्वविद्यालय ने उनके शोध ‘इवोल्यूशन आफ प्रोविन्शियल फाइनान्स इन ब्रिटिश इंडिया’ ( ब्रिटिश भारत में क्षेत्रीय वित्त का उदर ) के लिए पीएचडी (Phd.) की डिग्री दी !

• Doctrate कि Digree हासिल करने के बाद वित्तीय मदद कि बदौलत पढाई के लिए London चले गये ,

• ‘London School Of Economics’ में ‘Study Of Law’ और ‘Economics’ में ‘Doctrate शोध’ के लिए नाम लिखवा लिया !

• 1920 में ‘बैरिस्टर’ की ‘Digree’ मिली !

• 1922-23, में कुछ समय वह जर्मनी कि “University Of Boun” में अर्थशास्त्र का अध्यन करते रहे

• 1923 में, ‘London School Of Economics’ ने Thesis-“ The problem of the Rupee ; Its Origin and its Solution” ‘DSC’ की ‘degree’ दी !

• स्कॉलरशिप समाप्त होने के कारण घर लौटना पड़ा !


सामाजिक जीवन-

  • लौटकर बडौदा सेना में सचिव पद पर काम करते हुए, फिर से भेदभाव का सामना करना पड़ा, नौकरी छोड, निजी ‘’ट्यूटर और Accountant’ का काम करने लगे !

• बाद में ‘सिड्नेम कॉलेज ऑफ़ कॉमर्स एंड इकोनोमिकस’ में ‘राजनीति अर्थव्यवस्था’ के प्रोफेसर की नौकरी मिल गयी !

• घनघौर पक्षपात और उपेक्षा से दुखी अम्बेडकर 1920 के अंत तक ‘दलितों व् अन्य धार्मिक समुदायों’ के लिए ‘अलग निर्वाचिका और आरक्षण’ की पैरवी करने लगे !

• 1920 में ‘साप्ताहिक मूकनायक’ शुरु किया जो बहुत लोकप्रिय हुआ जिसका प्रयोग ‘रुढ़िवादी हिन्दू नेताओ’ और ‘जातीय भेदभाव’ से लड़ने के लिए किया !

• ‘दलितों के एक महासम्मेलन में अम्बेडकरजी के भाषण से प्रभावित होकर ‘कोल्हापुर के राजा शाहू चतुर्थ’ ने उनके साथ भोजन किया, जिससे रुढ़िवादी समाज में हलचल मच गई!

• इसी बीच वकालत ने जम गये!

• ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ कि स्थापना. ‘दलितों कि शिक्षा का प्रसार और सामाजिक आर्थिक उत्थान’ के उद्देश्य से की !


राजनीतिक जीवन-

  • 1926 में बम्बई विधान परिषद सदस्य मनोनीत किये गये !

• 1926 महाड व् 1930 के नासिक के कालाराम मंदिर को सभी को खौलने के लिए सफल,

• 1927 में छुआछुत के खिलाफ बड़ा आन्दोलन शुरु किया गया,

• दलितों के लिए अलग से मंदिर बनवाने का कठोर विरोधी हूँ, हाँ सभी मंदिरों में अछूतो का प्रवेश ‘न्यायोचित और नैतिक’ मानता हूँ !

• पेयजल सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगो के लिए खोलने कि मांग की !

• ‘कांग्रेस और गाँधी’ की आलोचना करने वाले सबसे बड़े दलित नेता बन गये !

• गाँधी पर ‘दलितों कि दया कि वस्तु’ के रूप में पेश करने का आरोप लगाया !

• “What the congress and Gandhi have done to the Untouchables” title से एक पुस्तक लिखी जिसके अनुसार, “शोषित वर्ग की सुरक्षा’ उसके ‘सरकार और कांग्रेस’ दोनों से आज़ाद होने में ही है, हमे अपना रास्ता खुद बनाना होगा, क्योकि मौजूदा लीडरशिप शोषितो कि समस्याए हल नही कर सकती, उनका उद्धार समाज में उचित स्थान पाने में ही है ! उनको अपने रहने का तरीका बदलना होगा और शिक्षित होना पड़ेगा !”इसी कारण रुढ़िवादी हिन्दूओ व् कांग्रेस में ‘अम्बेडकर की छवि खलनायक’ की बन गई !

• अछूत समाज में बढती लोकप्रियता के कारण, 1931में, लन्दन में दुसरे गोलमेज़ सम्मेलनमें भाग लेने के लिए बुलाया गया, तीनो सम्मेलनों में अछूतो के मुद्दे उठाये !

• अंग्रजो को चेतावनी देते हुए कहा भी था कि देश कि कुल आबादी का 20% अछूत है, परंतु 150 साल के सासन में अंग्रेजो ने भी दलित के लिए कुछ नही किया

• इस मंच से अम्बेडकर ने अलग निर्वाचिका देने पर तीखी बहस की !

• धर्म जाति के आधार पर अलग निर्वाचिका देने के प्रबल विरोधी गाँधी ने आशंका जताई कि यह हिन्दू समाज की, भावी पीढ़ी को हमेसा के लिए विभाजित कर देगी, इससे देश में खलबली मच गई, क्योकि मोहमंद अली जिन्ना पहले ही अलग रास्ता अख्तियार कर चूका था !

• 1932 में , जब ब्रिटिशो ने अम्बेडकर से सहमती जताते हुए, अछुतो के लिए अलग निर्वाचिका कि घोषणा की, गाँधी इसके विरोध में पुणे की यरवदा जेल में आमरण अनशन पर बैठ गया, जिससे उच्च वर्ग के हिन्दुओ का भारी समर्थन मिला ! गाँधी ने रुढ़िवादी हिन्दू समाज से सामाजिक भेदभाव खत्म करने को कहा, अनशन से गाँधी कि हालत ख़राब हो गई !

• गाँधी कि मृत्यु होने से संभावित सामाजिक प्रतिशोध और कि हत्याओ के डर से अम्बेडकर ने बिना इच्छा के अपनी मांग वापस ले ली, इसके बदले ‘अछुतो को आरक्षण’, ‘मंदिरों में प्रवेश’ और ‘छुआछूत ख़त्म’ करने का आश्वासन मिला, जिसे इतिहास में ‘पूना पैक्ट’ कहा गया !

• 1948 में , भारत में अंतरिम सरकार का गठन होने के बाद ‘संविधान निर्माण परिषद’ बनी, नेहरु और सरोजनी नायडू गाँधी से मिलने गये, नेहरु के चिंतित नज़र आने पर गाँधी ने वजह पूछी, तो नेहरु ने बताया की संविधान बनाने के लिए एशियाई देशो के विशेषज्ञ “आयुस जेनिस” को बुलाने को सोच रहे है ! तब गाँधी ने कहा, कि आपके पास सविंधान विशेषज्ञ अम्बेडकर है !

• 29 अगस्त,1947, को “सविंधान मसौदा समिति” के अध्यक्ष बनाये गये !

• सविंधान बनाने में पूर्ण रूप से आज़ाद नही थे, ‘नेहरु और पटेल’ का दबाव रहता था !

• अम्बेडकर जी, कई कानूनों के बिल्कुल पक्ष में नही थे, लेकिन मानना पड़ा !

• अलग विषयों पर अलग कमेटियां पहले ही बना दी गई थी

• मौलिक अधिकारों की कमेटी के अध्यक्ष खुद नेहरु थे उसमें अम्बेडकर को सदस्य भी नही बनाया गया था,हर जगह वही हुआ जो ‘नेहरु पटेल’ चाहते थे !

• इसी तरह सविंधान समझोते का एक दस्तावेज भर है, आजादी के बाद गाँधी ने भी कहा था, मेरी कहा चलती है, कौन बात मानता है ! इसी कारण अम्बेडकर जी को जलाने कि बात कहनी पड़ी !

• 26 नवम्बर,1949, सविंधान सभा ने अपना सविंधान स्वीकार कर लिया, अम्बेडकरजी के शब्दों में, ”सविंधान मूल दस्तावेज होता है, जिसमे तीनो अंगो कार्यपालिका, न्यायपालिका, तथा विधायिका की शक्तियों एवं अधिकारों का स्पष्ट रूप से उल्लेख रहता है”

• सविंधान सभा में उन्होंने भाषण समाप्त करते हुए कहा, “26 जनवरी,1950, को हम अंतर्विरोधों के जीवन में प्रवेश करेंगे, राजनीति में समानता होगी परंतु सामाजिक और आर्थिक जीवन में असमानता होगी !

• राजनीति में “एक व्यक्ति एक मत” और “एक मत एक आदर्श” के सिद्दांत को मानेंगे !

• सामाजिक आर्थिक संरचना के कारण हम सामाजिक आर्थिक जीवन में “एक व्यक्ति एक आदर्श” के सिद्धांत को नही मानेंगे ! “आखिर कब तक हम अंतर्विरोधों के साथ जियेंगे ?

       कब तक सामाजिक आर्थिक समानता को नकारते रहेंगे? अगर लम्बे समय तक ऐसा किया तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जायेगा इसीलिए हमे यथाशीघ्र यह अंतर्विरोध खत्म करना होगा वरना असमानता से पीड़ित लोग उस राजनैतिक लोकतंत्र कि संरचना को ध्वस्त कर देंगे, जिसे बड़ी मुस्किल से तैयार किया गया है“ 


  • विवादास्पद विचारो के बावजूद अम्बेडकर जी की प्रतिष्ठा असाधारण विद्वान् व् कानून विशेषज्ञ की थी, इसीलिए आज़ाद भारत की पहली सरकार में कानून मंत्री बनाना पड़ा !
अर्थशास्त्री होने के कारण उन्होंने “बिजली पैदा करने” और “सिचाई करने कि नदी घाटी परियोजना” तैयार की थी !
  • सविंधान में उन्होंने महिलाओं को बड़ी संख्या में स्वाधीन बनाने के लिए हिन्दू संहिता विधेयक भी तैयार किया था जब संसद में यह बिल पास नही किया गया उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया !
  • नेहरु की कश्मीर निति, तिब्बत निति, चीन निति कि कटु आलोचना की थी !
         उन्होंने ‘चीन के भविष्य के रवैये’ पर भी प्रश्न उठाये थे, जो भविष्य में हमारे सामने भी है 
      अम्बेडकर जी ने अपनी पुस्तक “Thought Of Pakistaan” & “Pakistaan Are, Partition Of India” में मुसलमानों के बारे में अपने विचार व्यक्त किये, उन्होंने मुसलमान समस्या को भौतिक समस्या नही बल्कि आध्यात्मिक बताते हुए – मुसलमानों के तीन लक्षणों के सन्दर्भ में लिखा है – 

1. मुसलमान, मानववाद या मानवता को नही मानता है, वह केवल भाईचारे तक सीमित है !

2. वह राष्ट्रवाद को नही मानता, वह देशभक्त, लोकतंत्र, या धर्मनिरपेक्ष नही है !

3. वह बुद्धिवाद नही मानता, किसी प्रकार के सुधार – खासकर महिलाओ की हालत, निकाह के नियम, तलाक , सम्पति के हक़ के सम्बन्ध में बेहद पिछड़ा हुआ है !

       अंत में उन्हें आभास हो गया था कि कुछ मठाधीशो के चलते हिन्दू धर्म में उनके लिए कोई गुंजाईश नही है  
   
       14 अक्टूबर,1956, को नागपुर में औपचारिक समारोह में अपने समर्थको के साथ खुद बौद्धधर्म ग्रहण कर लिया ! 
       लम्बे समय से डायबिटीज़ से पीड़ित रहने के कारण बहुत बीमार रहे और नजर भी कमजोर हो गई थी, 
       6 दिसम्बर,1956, उनकी मृत्यु हो गयी !

अम्बेडकर जी का जीवन एक ऐसे राष्ट्रपुरुष की खुली किताब कि तरह है, जो राष्ट्रीय एकात्मता, सामाजिक समरसता एवं भावी राष्ट्र निर्माण के प्रश्ठो से भरी है वह अपने युग के सर्वश्रेष्ठ शिक्षाविद, विचारक और लेखक थे, 6 भारतीय ( हिंदी, मराठी, पालि, संस्कृत, गुजराती, बंगाली ), 4 विदेशी ( जर्मन, फारसी, फ्रेंच, अंग्रेजी ) भाषाओ का ज्ञान रखने वाले थे, डॉ साहब !

इस लेख के विचार पूर्णत; निजी है, आप लेख पर, अपनी प्रतिक्रिया rohitchaudhary7788@gmail.com पर अपना संक्षिप्त परिचय के साथ भेज सकते है, ह्रदय से धन्यवाद !

रोहित चौधरी[संपादित करें]

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