सदस्य:राठौड़ महेंद्र सिंह/प्रयोगपृष्ठ

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1857 क्रांति में अमझेरा के शहीद महाराव बख्तावर सिंह के साथ भीलों का बलिदान

अंग्रेजों और सिन्धिया की अमझेरा हड़पने कि चाल

अमझेरा राव सवाईसिंहजी के देवलोकगमन के बाद उनके पुत्र अजीतसिंह जी अमझेरा गादी पर बैठे,उस समय आमझरा मराठों के हमलों लूट पाट से कमजोर होने लगा था। तब इस लूटमारी छापामारी से बचाने के लिये अंग्रेजों ने अमझेरा की जनता को मराठों से सुरक्षा देने के लिए सिंधियाओ को 22000 रू.वार्षिक टेक्स देने का समझोता करावा दिया,साथ ही इस टेक्स में सालाना 2000 रु.वृद्धि करने का एग्रीमेंट  करवा दिया, टेक्स न दे सकने की दशा में टेक्स  जितना राजस्व देने वाला अमझेरा का कोई गाँव सिंधियाओ को सुपर्द कर देने का एग्रीमेंट भी करवा दिया। इस एग्रीमेंट से सिंधियाओ के लिए धीरे धीरे अमझेरा स्टेट  हडपने का मार्ग खुल गया ।

अमझेरावासी भी यह समझ गए,कि राजासाहेब राव अजीत सिॅंहजी ने अमझेरावासियों को मराठों की लूटपाट से बचाने के लिये यह सन्धि मज़बूरी में करी है,धीरे धीरे टेक्स राशी 35000 हो गई,अमझेरा जनता पर हर साल फिजूल टेक्स बड़ा कर रकम इकट्ठा करके  सिॅंधिॅंयाओं को देना अमझेरा राव अजित सिंह को चिंतित करने लगा अमझेरा की जनता और अमझेरा राज परिवार के सम्बन्ध बहुत प्रेमपूर्ण थे, अमझेरा की जनता जानती थी कि मराठे ही अमझेरा में अव्यवस्था लूटपाट हत्या कराते थे, अमझेरा की प्रजा को आमझरा राव को धोखे में रख कर ग्वालियर को अमझेरा राज्य टेक्स देने और टेक्स न दे पाने कि दशा में अमझेरा राज्य का एक गाँव सिंधियाओं को दे देने का करार अमझेरा के गले कि हड्डी बन गया

      एग्रीमेंट के कारण  कुछ ही वर्षों में ग्वालियर को दी जाने वाली टेक्स कि राशि 35,000 रु. तक हो गई  वार्षिक भुगतान टाकेदारी की संन्धि अथवा गांव  का कब्ज़ा देने कि यह संधि महाराज अजीत सिॅंह के जीवनकाल की भयंकरतम भूल थी, इस संधि ने आमझरा राव अजीत सिॅह को कभी चैन से नही रहने दिया, उन्हे अपने राज्य की जनता की मराठों से सुरक्षा के लिये जनता से 35,000 रु.सालाना वसुल कर ग्वालियर स्टेट को देना  बेहद नागवार लग रहा था,इसी चिन्ता से उनके प्राण चले गये।

इनके बाद जब इनके पुत्र राव बख्तावरसिंहजी मिति फाल्गुन सुदी15संवत्1910 (तदनुसार 21दिसम्बर सन् 1831) में अमझेरा की गद्दी पर बैठे। अंग्रेजों की इस संधि ने अमझेरा राजमाता इन्द्र कुॅंवर व बख्तावर सिॅंह की रातों की निन्द्रा उड़ा दी थी। अफीम का सेवन करने पर भी राजमाता सो नही पाती थी। अपनी माता की निन्द्रा खत्म करने वाली और अपने पिता अजीत सिॅंह को धोखे मे रख अमझेरा को आर्थिक रुप से बर्बाद करने के लिये जो सन्धि अंग्रेजों ने करायी थी, उससे राव बख्तावर सिंह  बेहद खफा थे, इसी नाराजगी में वे मोके बेमोके अंग्रेजों अपमानित करते रहते थे

इस सन्धि के कारण अमझेरा के राज काज में अंग्रेजों और ग्वालियर स्टेट की दखलन्दाजी बढ़ गयी थी,ग्वालियर स्टेट की इस संधि के पालन के लिये अमझेरा कि जनता पर वार्षिक बडोत्री का आर्थिक भार हटाने का राव बख्तावर सिॅंहजी ने दृड निश्चय कर लिया अमझेरा कि जनता भी राजा बख्तावर सिंह को बहुत चाहती थी, इस लिए अमझेरा कि जनता भी राजा जी के साथ थी , राजा बख्तावर सिॅंह ने धोखे से की गई सन्धि खत्म करने का मन बना लिया था । जब 1856-57 के समय पुरा भारत अंग्रेजों के खिलाफ हो रहा था। तब बख्तावर सिॅंह ने सही वक्त मान कर अंग्रेजो से और उनके पिट्ठुओ से आमझरा की स्वतन्त्रता के लिये अंग्रेजो को जड़मूल से खत्म करने के लिये बगावत करने की ठानी थी जिसके लिये अमझेरा की जनता ने भी कमर कस रखी थी। राजा बख्तावर सिंह जी अपनी जनता से भेट नजराने के रूप में हथियार देने की और रखने के कहने लगे, इसी उद्देश्य को ले कर बख्तावर सिॅह ने मध्य भारत गुजरात,राजपुताना आदि की कई स्टेटों के साथ जावरा रतलाम सैलाना आदि रियासतों से स्वतन्त्रता के लिये आहूत किये जाने वाले यज्ञ में वक्त जरुरत सहायता मांगी थी। सभी स्टेटो ने भी भरसक मदद देने का आश्वासन दिया था।

शहीद बख्तावर सिह का भोपावर पर हमला और बहादुर भीलों का सहयोग

अमझेरा आजादी के यज्ञ को बख्तावरसिंह ने 2 जुलाई 1857 को भोपावर पर हमला करके स्वतंत्रता  यज्ञ आहूत किया। बख्तावर सिॅंह के प्रति भील आदिवासिॅंयों का इतना प्रेम था, कि भोपावर स्थित अंग्रेजों की भील पलटन भी अंग्रजों का साथ छोड़ अपने प्रिय राजा बख्तावर सिॅंह के साथ हो गयी और आमजन भी अंग्रजों के खिलाफ अपने प्रिय राव बख्तावर सिॅंह के साथ खड़े हो गये परन्तु बख्तावर सिॅंह को भरोसा दिलाने वाले गुजरात के कुछ ठिकानों के अलावा मध्य भारत व राजपुताना की कुछ  स्टेटे मूक बनी  रही,पर ज्यादातर स्टेटों ने अंग्रेजों का ही साथ दिया। मध्य भारत के सिर्फ धार के सैनिक अमझेरा के राजा बख्तावरसिंह जी विद्रोह में सम्मिलित हो गए, बगावत की चिन्गारी नीमच,रामपुरा, मुरार, इंदौर, धार, भोपावर,महिदपुर, आगर गुना, शिवपुरी और मंडलेश्वर की छावानियों में भी विद्रोह के रुप में फैल गयी। धार होते हुए विद्रोही सैनिक अमझेरा पहंुचे जहां राजा बख्तावर सिंघजी  द्वारा उनका सत्कार किया गया, और अमझेरा राव सा. बख्तावर सिंघजी ने उन सैनिकों की सहायता से अमझेरा से लगभग दस मील  दूरी पर स्थित अंग्रेजों की  छावनी को एक ही रात में ध्वंस  कर तहस-नहस कर दिया ।अंग्रेजों के अनुसार बख्तावर सिंह ने चटाई तक नहीं छोड़ी , भोपावर के अंगे्रज भाग कर झाबुआ चले गए। विद्रोही सैनिकों ने भोपावर से वापस आकर धार किले पर भी कब्जा लिया,।

      ( इस क्रांति में बख्तावर सिंह को सिर्फ धार राज्य के तत्कालीन दीवान से ही सहायता मिली । परन्तु अन्य स्टेटों के साथ न देने के कारण बख्तावर सिॅंह आर्थिक रुप से कमजोर पड़ने लगे, अपनी भील सेना को वेतने देने के लिये बख्तावर सिंह को अपनी हवेली बेचनी पड़ी। आर्थिक मजबूरी के चलते इकट्ठी हुई सेना को अगले आदेष तक छुट्टी पर भेज दिया गया,जिससे सैनिकों का मनोबल टूट गया। पैसों के अभाव में पूनः सेना भर्ती करना असम्भव हो गया। और बख्तावरसिॅंह का महू पर आक्रमण करने का ख्वाब पुरा नही हो सका।)

      20 अक्टुबर 1857 को महू से अंग्रेजों की सेना धार पहुंच गई , और उसने धार के किले को जिसमें लगभग 2000 विद्रोही सैनिक को चारों ओर से घेर लिया । दक्षिण में पश्चिम में ऊंचे टीले पर तोपें लगा दी गयी। दोनों ओर से भयंकर गोलाबारी हुई। 31 अक्टुबर तक लड़ाई चलती रही। जब किले में घिरे विद्रोही सैनिकों की शक्ति कम होने लगी, तब एक रात को सब विद्रोही सैनिक गुप्त रास्ते से निकल दशपुर(मंदसोर) चले गए जहां पर एक मुगल फिरोजशाह ने बगावत का झण्डा उठा रखा था

      जब धार से अंग्रेजी फौज अमझेरा और भोपावर की ओर बढ़ी और यह समाचार अमझेरा में पहुंचा राजा साहब और रानीदौलत कुवर अमझेरा छोड़कर लालगढ़ किले में चले गए,और यही से अपनी मुहिम को छापामारी युद्ध नीति से अन्जाम देने लगे इन छापेमारी हमलों में राजा सा. स्वयं वं उनके साथ  बहादुर भील रहते थे। विपरीत परिस्थितियों के कारण रानी दोलत कुंवर ने रतलाम सेलाना सीतामऊ एवं गुजरात की  समीपस्थ स्टेटों को पत्र लिख कर सहायता की गुहार लगाई, राजमाता इंद्र कुंवर, एवं रानी गुलाब कुंवर ने भी  जोधपुर  महाराज को सहायता हेतु पत्र लिखे, पर ......................

महाराजा तख्तसिंह का स्वार्थपूरक प्रस्ताव

 अंगे्रजो ने  भी परेशान हो कर समझोते की बात चलाई, जौधपुर से भी आश्वासन आया कि लड़ाई में भलाई नही है, बख्तावर सिंह जी को प्रस्ताव दिया कि अंग्रेज होल्कर स्टेट समाप्त कर अवध तक का क्षैत्र राजा साहब को देंवेंगे। और किसी पर कोई मुकदमा नही होगा। इस विषयवार्ता के लिए  राजा सा. बख्तावर सिंह जोधपुर बुलाया गया पर ... जोधपुर में महाराजा तख़्त सिंह ने बख्तावर सिंह जी को अमझेरा छोड़ने और मिठडी कि जागीर देने का प्रस्ताव रखा क्योकि जोधपुर महाराज मिठडी ठाकुर से परेशान थे, मिठडी ठाकुर नकली सिक्के बनवाना और इसी प्रकार की  जालसाजी का काम करते थे, इसलिए महाराजाधिराज तख़्त सिंह जी ने  रावजी को अमझेरा छोड़ने और मिठडी जागीर देने प्रस्ताव रखा,

इसके साथ ही जोधपुर महाराज तख़्त सिंह जी का एक स्वार्थ और था, तखतसिंह स्वयं अहमदनगर(इडर) से जोधपुर गोद आये थे,साथ उनके पुत्र जसवंतसिंह भी थे, जोधपुर की गादी  मिलने के बाद तखतसिंह का विवाह मानकुंवर (शहीद राव बख्तावर सिंह कि माता इंद्र कुंवर भटियानी जी की बहिन) ओसिया से हुआ था , जिससे उनको पुत्र जोरावर सिंह हुए, जोरावर सिह अपने आपको जोधपुर का वास्तविक उतराधिकारी मानते थे,और वे अपने बड़े भाई जसवंत सिंह को ईडर का l किन्तु महाराजा तख्तसिंह ने अहमदनगर(इडर) से साथ आये पुत्र जसवंत सिंह को जोधपुर का भी उत्तराधिकारी बना दिया , इससे महाराजा तख़्त सिंह की रानी मानकुंवर ओसिया व उनके पुत्र जोरावर सिंह नाराज रहने लगे थे , जोरावर सिंह की रानी केसर कुंवर गमेरसिंघोत झालमन्डा के द्वीतीय पुत्र मूल सिंह अमझेरा राज की जागीर  दत्तीगांव के ठाकुर बलवंत सिंह के निसंतान होने से गोद गए थे,

तख़्त सिंह जी अपने नाराज पुत्र जोरावर सिंह की नाराजगी दूर करने के लिए बलवंत सिह दत्तीगांव  को गोद गए जोरावर सिंह के पुत्र मूल सिंह को अमझेरा रियासत पर स्थापित करके करना चाहते थे, पर अमझेरा राव सा. बखतावर सिंहजी के अमझेरा छोड़ने से इंकार कर देने से  तखतसिंह चिड गए , और बख्तावर सिंह को उनके हाल पर छोड़ दिया

अमझेरा राव साहेब बख्तावर सिंहजी की गिरफ्तारी और भील अंगरक्षकों का बलिदान

जोधपुर में वार्ता सफल न होने के कारण बख्तावर सिंहजी अपने भील अंगरक्षकों के साथ वापस अमझीरा लोटे आये , रावजी को पता चला के पोश सुदी 7 बुधवार को ए.जी.जी. ड्यूरेण्ड विलायत से वापस आ गया है, तो राव जी ने उससे मिल कर सुलह की सोची, और इन्दुर से एक कोस दुर ठहर कर रतलाम वकील कालूराम को सुलह वार्ता के लिए भेजा, भोपवर वकील नाराण राव कालूराम को भाई के समान मानते थे,रतलाम वकील कालूराम ने जाकर वकील नाराण राव से कहा कि सा.(ए.जी.जी. डूरंड) को रावजी(बख्तावर सिंह) का  सलाम अर्ज करें, और डेरा कहा पर करना है, रावजी का(बख्तावर सिंह) का  सा. (ए.जी.जी. डूरंड) से मिलना किस तरह हो, ऐसा सा. से निवेदन करों। वकील नाराणराव ने जा कर सा. से कहा के ठाकुर बख्तावर आप से मिलना चाहता है, साहब ने ठाकुर के हाल चाल पुछे, और ठाकुर को नवाब के हाथा में हजीसन साहब के डेरे के पास का आदेश दिया, और कहा के रतलाम वकील का  हमे बहुत विश्वास है, सो ठाकुर दो दो तलवार बाॅंधे, और तोड़ा बन्दुके सब साथ में ले कर खुशी से आवे हम ठाकुर से बहुत खुश है,कालूराम वकील को  नाराण वकील ने ये आदेश बताया और कहा के ए.जी.जी. सा. राव जी से खुश है, उन्हे रतलाम का और आप का भी बहुत विश्वास है।  रतलाम वकील कालूराम  वापस आ कर ड्युरण्ड की नेक नीयत की बात रावजी से कही फिर भी सभी को शंका हुई के राव जी को कुछ नही होगा पर हम कुंवर भवानीसींघ, गुलाबराय सलुकराय, कामदार मोहनलाल की तरह न मारे जावें तय यह हुआ कि पहले रावजी के साथसिर्फ कालूराम जावे , वहा सब ठीक ठाक होने पर बाकि लोग भी आ जावेंगे। इस पर रावजी के अंगरक्षक भील अड गये के हम भी रावजी के साथ जावेंगे। नवाब के हाथा में पहुचने पर  राव जी ड्युरण्ड को मिलने तम्बू में अन्दर गये और रतलाम वकील कालूराम भोपावर  वकील नाराण राव के पास चला गया, कुछ देर बाद ब्रितानी सिपाहियों ने बाहर सभी भीलों को घेर लिया, उनसे उनके तीर कमान हथियार छिन लिये और बन्दुक के कुन्दो से मारते हुऐ पास के नाले की तरफ ले गये,और सभी भील अंगरक्षकों को गोली मार दी l  नाराण राव ड्यरेण्ड के डेरे की तरफ गया वहां उसे  पता चला के रावजी को भी गिरफ्तार कर लिया। नाराण राव ने आ कर रतलाम वकील कालूराम से  कहा के राव जी को कैद कर लिया है, रावजी ने सन्देश दिया  के कालूराम को कहो के कैसे भी यहा से निकल कर चावड़ी जी को और बाकी लोगों को बचाओ। कालूराम वकील भोपावर वकील नराणराव की मदद से वहां से निकल गया,रतलाम वकील कालूराम ने भोपावर वकील नाराण राव से कहा के कोई भी पुछे तो कहना के मेरा(कालूराम का ) लड़का मर गया है, इसलिये कालूराम चला गया। कालूराम जंगलों में छुपता हुआ चला गया ग्वालियर सेना इन्दुर सेना की  मदद ले कर अंग्रेजों ने अमझेरा की बगावत को कुचल दिया की बड़ी रियासतों  ने अंगे्रजों का ही साथ दिया। अंगे्रजों ने जनता में भय आतंक स्थपित करने के लिये बागियों के साथ निर्देाष जनता को भी मात्र शक  होने पर फांसी चढ़ा दिया। अमझेरा के बागियों की हत्या के बाद उनकी सारी सम्पति नीलाम करी और जप्त कर ली, अमझेरा राजपरिवार के लोगों की गुप्त रुप से हत्याऐं की जाने लगी। शहीद  बागियों के परिवार बेसहारा हो कर अपनी जान बचाने के लिये जहां तहां छिपने लगे,जिसमें अमझेरा की जनता ने अंग्रजों के आतंक होने के बावजूद शहीदों बागियों के परिवार को छुपात रहे,बचाते रहे। इसलिये अंग्रेजो के अथक प्रयास के बावजूद भी अमझेरा का पूरा राजवंश खत्म नही हो सका।

      अमझेरा राजवंश को मिटाने के लिये अनेक षड़यन्त्र किये जाते रहे। परन्तु जनता के मन से आमझरा राज और अमझेरा चिराग लक्ष्मण सिॅह हमेशा रोशन रहा। जोकि कालान्तर तक अंग्रजों का सिरदर्द बना रहा।

      अमझेरा राव बख्तावर सिॅंह के साथ उनकी रानी दौलत कुवर माणसा भी ब्रिटीशराज को उखाड़ने का अलख जगाते थे। बख्तावर सिॅंह व रानी दोलत कुंवर क्षैत्र के आदिवासी भीलों के चहेत थे। राज प्रशासन के समय भी उनका रुख भील आदिवासियों के प्रति स्नेहपूर्ण रहता था, अपने अंगरक्षको के रुप में भी उन्हे सबसे अधिक भीलो पर ही विश्वास था,और भील आदिवासियों ने ही बख्तावर की शहादत के बाद उनके वंश की रक्षा की थी। जबकि रसुखदारों ने महाराजा बख्तावर के बाद उनके परिवार के विषय में अनर्लगल अफवाहे प्रचारित की मसलन दोलत कुवर का विवाह उनके ही पुत्र लक्ष्मण सिॅंह के साथ। राजमाता भटियाणी इन्द्र कुवर को उनके ही पौत्र किशन सिॅंह की ब्याहता बताया आदि..आदि...जब इस प्रकार की अफवाहें राज परिवार लोगों के कानों में पड़ती तो बहुत दुःखी होते थे, पर हारे लाचार होने के कारण कुछ कर नही पाते थे, जिससे ऐसी बाते करने वाले और खुश होते थे।

      आस पास के कुछ रसुखदार और ठिकानेदार राव बख्तावरसिॅंह के आदिवासिॅंयो भीलों को उनसे (रसुखदारा और ठिकानेदारो) अधिक महत्व देने के कारण ईष्र्या रखते थे। बख्तावरसिॅह का मानना था, कि भील आदिवासी कभी भी अंग्रजो से सम्पर्क नही करेंगे,परन्तु उन्हे ऐसा विश्वास अपने सभी ठिकानेदार रसुखदारों पर नही था। रसुखदार और ठिकानेदार अंग्रेजों व ग्वालियर के कोपभाजन के डर से स्वतन्त्रता आन्दोलन में इनकी मदद से कतराते थे। बुरे वक्त  अपनी भील सेना को वेतन देने के लिये बख्तावर सिह ने अपनी इन्दौर स्थित हवेली बैच दी।

      जब बख्तावरसिॅंह की बगावत कुचली गई, बख्तावर गिरफ्तार हुए, अमझेरा महल जला दिया गया, रतलाम वकील कालूराम व भीलो अंगरक्षको की मदद से बड़ी मुश्किल से गर्भवती रानी दोलत कुवर बच कर निकल भागी।

अमझेरा राव बख्तावर सिंहजी की शहादत के बाद उनके पुत्र लक्ष्मण सिंह का जन्म  

      10 फरवरी 1858 को बख्तावरसिहजी को अचानक फाॅसी दे दी गयी। अमझेरा रियासत के सभी सरदार आक्रोषित हुए, परन्तु जो हो गया उसे लोटाया नही जा सकता था, इसलिये बडे़ कुंवर रघूनाथसिंह का राजतिलक कर दिया गया। ग्वालियर,व अंग्रेजो, द्वारा अमझेरा को बर्बाद करने के बावजूद भी अमझेरा प्रजा के मन से शहीद आमझरा राव बख्तावर सिॅंह की लोकप्रियता खत्म नही हो रही थी।

      अमझेरा रियासत खालसा(जप्त) कर ग्वालियर स्टेट के जयाजीराव सिंधिया को दे दी , अमझेरा के ठिकानेदारों को ठिकाने जप्त नही किये थे, उन्हे ठिकाने जप्ती का भय दिखा कर बगावत के मुकदमें का भय दिखाया गया,जिसके कारण अमझेरा राजपरिवार अकेला हो गया। युवराज रघुनाथ सिंह अचानक लापता हो गये। उनकी हत्या की खबरें आने लगी। बख्तावर सिंह की गर्भवती रानी दोलत कुवर माणसा ने 27अप्रेल 1858 को पुत्र(लक्ष्मण सिंह)को जन्म दिया।

      अमझेरा की प्रजा को विश्वास था कि शहीद बख्तावरसिॅंह के जीवित वारिस लक्ष्मण सिॅंह को अमझेरा की गादी मिलेगी, जनता के मन से राव बख्तावर सिॅंह के बचे हुए राजवंश के प्रति सहानुभूति व लगाव था, अमझेरा की प्रजा शहीद बख्तावर सिॅंह के असहाय राजवंश की मदद करने में गौरव का अनुभव करती थी अमझेरा का हर बाशिन्दा  अपने को अमझेरा और शहीद बख्तावरसिहं की प्रजा कहने में गर्व महसूस करता था और आज भी करता है। परन्तु उस समय अमझेरावासियों को लुटेरा डकेत बागी समझा जाता था।  अंग्रेज व उनके पिट्ठू अमझेरा के रास्ते से आने जाने में घबराते थे, इस लिए अंग्रेज अमझेरा के नाम से ही चिड़ते थे ।

      ग्वालियर स्टेट के अथक प्रयास करने के बावजूद भी अमझेरावासियों के मन में ग्वालियर स्टेट के नये टांकेदारों  के प्रति  विश्वास सम्मान नही बन पाया।  जिसके लिये सभी अंग्रेज और सिंधिया परस्त  अमझेरा के चिराग (राव लक्ष्मण सिॅंह) के जीवित होने को जिम्मेदार मानते थे। अमझेरा वासिंयो की चाहत थी कि उनके प्रिय शहीद बख्तावरसिॅंह के पुत्र लक्ष्मणसिंह ही गादी पर विराजे। इसी कारण से  अंग्रेज सरकार और उनके पिट्ठू शहीद बख्तावर सिॅंह के पुत्र राव लक्ष्मण सिॅंह को जीवित देखना नही चाहता था।अंग्रेज और अंगे्रजपरस्त अमझेरा कुवर रघुनाथसिॅह की तरह ही अमझेरा के एक मात्र जीवित बचे राव लक्ष्मण सिॅंह की भी गुप्त हत्या कराना चाहते थे।

      जबकि अमझेरा की प्रजा में शहीद अमझेरा राव बख्तावर सिॅंह की शहादत के कारण जनता में उनके पुत्र राव लक्ष्मण सिॅंह के प्रति अपार लगाव था। जोकि अंगे्रजो व अंग्रेज परस्त राजाओं को आशंकित करता था, कि कही भविष्य में राव लक्ष्मणसिॅंह या इसके वंशजों के नेतृत्व में भारी बगावत न हो जावे ।

      अंग्रेजांे और अंग्रेजपरस्तों को यह डर था, कि बख्तावर सिॅंह का पुत्र लक्ष्मण सिंघ और उनके विश्वसनीय बख्तावर सिंहकी शहादत का बदला लेने के लिए का बदला लेने के लिये अमझेरा के कब्जाधरियों की मौत का कारण न बने। इस लिये अंग्रेज बख्तावर के अन्तीम चिराग राव लक्ष्मणसिॅंह को भी रघुनाथ सिंह की तरह रास्ते से हटाना चाहते थे।

पराजित  बख्तावर का पुत्र व परिवार  इनसे और इनक षड़यन्त्रों से बचते हुए, अपने दूर्दिन काट रहे थे, जब भी सामने आने की कोशिश की तब तब तात्कालिक सत्ताधारियों पहले तो  उन्हे स्वीकारने से इन्कार करते फिर लक्ष्मणसिॅंह को रास्ते से हटाने को षड़यन्त्र किया जाने लगता था। इसी लिये लक्ष्मण सिॅह बेटमा के किनारे  साधू वेश में रहतें थे।

      राव.लछमनसींघ अमझेरा राव बख्तावरसींघ और चावड़ीरानी दोलत कुंवर माणसा के आखरी और एक मात्र जीवित पुत्र थे। और अमझेरा राज्य के एक मात्र जीवित राजकुमार थे जो जान जोखम के कारण भूमिगत थे। इस आड़े वक्त में जंगलवासी, आदिवासी, और अंग्रेज शासन में अपराध करने के कारण छुपे रहने वाले लुटेरों से शहीद राजा बख्तावर सिॅह की रानी दोलत कुंवर और राजकुंवर लक्ष्मण सिॅंह को मदद मिलती रहती थी। आर्थिक तंगी कारण लछमनसींघ राज्य के विरोधियों के मददगार थे, साधु बैरागी के  वेश रखते थे,

      राव लक्ष्मण सिॅंह ने अपनी दादी मां राजमाता इन्द्रकुंवर के कहने पर लूटे पिटे खण्डहर हो चुके आमझरागढ़ महल गुप्त रखी सम्पति को लूट मारी से बचाने के लिये अभिमन्त्रित किया था। इसके कारण राजमहल को लूटने वालो पर और कब्जा करनेवालो पर विपदा आती रहती है। मानसिक अशाति  विक्षप्तता बनी रहती है, राव लक्ष्मणसिॅंह चमत्कारी तरीके से लोगों का इलाज करते थे। उनके नाम से बेटमा में समाधी भी थी, जहा 1920 तक मेला लगता था।

शहीद राव साहेब बख्तावर सिंहजी के पौत्र  ठाकुर अमर  सिंघजी का महू में आजादी संघर्ष

      शहीद बख्तावर सिंघ के पौत्र का नाम अमरसींघ लक्ष्मण सिंघ था, इन्होने भी महू में अंग्रजो के समान्तर सेना खड़ी की थी,जिसके कारण इन्हे अंग्रेज फांसी पर चढ़ाना चाहते थे, परन्तु भारी रकम का जुर्माना अदा करने पर इन्हे महू निकाले की सजा दी थी। यह रकम अमर सिंघ जी ने रिंगनोद में रहने वाली अपनी माता भटियानी जी, दादी, परदादी से प्राप्त की थी,

      शहीद बख्तावरसिॅघ के पौत्र अमरसिॅंघ ब्रिटीश सरकार से अमझेरा हासिल करने के लिये और अंग्रेज सत्ता को जड़ मूल से उखाड़ने के लिये महू में गुप्त रुप से प्रयासरत थे।

      शहीद बख्तावरसींघ के सपनों( महू पर अधिकार करना) को साकार करने के लिये बख्तावर सिॅंह के पोत्र अमरसींघजी ने वर्ष 1900-1910 के लगभग भगवानदास अग्रवाल के साथ महू क्षैत्र में रह कर  सेवा समिति के नाम से एक गुप्त सैन्य संगठन खड़ा कर लिया था। जिसके सदस्यों के यूनिफार्म बेज और पद थे। (पृष्ठ 31-32 कन्टोलमण्ट एडव्होकेट 5-6नवम्बर 1920) इस सेवा समिति नामक संगठन ने जनता के बीच आपसी लड़ाई में समझोते कराके,महामारी बीमारी में लोगों की मदद करने जैसे सेवा कार्य करके के जनता में गहरी पेठ बना ली थी।

आशाकित अंग्रेजों ने इस संगठन के लोगों पर अत्याचार करना शुरु कर दिया। इस अत्याचार के खिलाफ महू में  पहला द्रोह हुआ लगभग 2000 लोंगों ने अंग्रेजों के  अत्याचार के खिलाफ ज्ञापन दिया  अंग्रज अत्याचार के खिलाफ आवाज उठा कर उनके विरुद्ध सबूत जुटा कर नेतृत्व के कारण ठा.अमर सिॅंह लक्ष्मण सिॅंह पर सेना में बगावत का इल्जाम लगाया। ठा.अमरसिह राठौड़ भुमिगत हो गेये भगवानदास गिरफतार होगये।

गाधीजी से सम्पर्क किया, गांधीजी ने छूटने के लिये माफी मांग लेने की सलाह दी। भगवानदास अग्रवाल  ने माफी मांग ली। पर ठा.अमरसिह राठौड़ का मन यह गवारा नहीं कर सका

      अंग्रेज पुलिस फरार ठा.अमरसिह राठौड़ विषय में पुछताछ के लिये इनके पुत्र हरि सिॅंह को उठा कर ले गई, और दुसरे दिन अधमरी हालात में छोड़ गये। कुछ ही घन्टों में ये भी शहीद हो गये। परिवार पर मुसीबत देख ठा.अमरसिह राठौड़ ने आत्म समर्पण कर दिया। पर माफी मांगना रास नही आया

      अमरसिॅंघ के इसी प्रकार के प्रभाव को अंगे्रज सरकार के लिये  खतरनाक माना महू कन्टोलमण्ट ने उनकी सेवा समिति पर बेन लगाया। (पृष्ठ 31-32 कन्टोलमण्ट एडव्होकेट पृष्ठ 5-6 नवम्बर 1920)

अमरसिॅंघ की गिरफ्तारी पर कोहराम मच गया। उस समय इनकी गिरफ्तारी के खिलाफ हजारों लोग एकत्र हुए, और अग्रंेज अत्याचार के खिलाफ 1210 लोगों  ने 20 शीट पर हस्ताक्षर करके कन्टोलमेण्ट महू में दिये। इतना हजूम देख अंग्रेजो को महू में 1857 जेसी बगावत भड़कने का अन्देशा होने लगा। 23 जून 1914 को कन्टेालमेण्ट मजिस्ट्रेट ने सेक्शन 216(1) के अधीन महू कन्टोलमेण्ट की भलाई के लिये अमझीरा ठा.अमरसिघं पिता लक्ष्मण सिॅंघ को खतरनाक मानते हुऐ 48 घन्टे में  महू छोड़ने का आदेश  दिया। (पृष्ठ 29 कन्टोलमण्ट एडव्होकेट पृष्ठ 28-29 अक्टोबर 1921)

      ठा.अमरसींघ को महू में ब्रिटीश विरोधी गतिविधियों के कारण गिरफ्तार किया गया था, और जब ठा.अमरसींघ के समर्थन में और अंग्रेज अत्याचार के विरोध में 1210 लोगों ने हस्ताक्षर कर ज्ञापन सौपा (पृष्ठ 25-26कन्टोलमण्ट एडव्होकेट पृष्ठ 23-24 अक्टोबर 1921)तो महू कन्टोलमेण्ट बोर्ड ने मानाकि इन्हे फांसी देने से हालात् बेकाबू हो जावेगें। इस लिये इन्हे महू से निष्काशित कर दिया,(पृष्ठ 29 कन्टोलमण्ट एडव्होकेट पृष्ठ 28-29अक्टोबर 1921)कहते है इनकी जान के बदले अमझेरा का खजाना हासिल किया गया था, जो रिंगनोद महल  में रहनेवाली अमझेरा राजपरिवार रानियों से प्राप्त किया

      ठाकुर अमरसिंघ राठौड़ का विवाह पीथापुर  वाघेलाजी से हुआ, जिससे इनके तीन पुत्र रामसिंह, ठाकुर  हरि सिंह,तेज सिंह हुए ठाकुर अमरसिंघ राठौड़ के बड़े पुत्र  महू कन्टोलमेंट में आक्ट्राय सुपरिडेंट बन गए इनके पास  महू सर्कल इस्पेक्टर का भी चार्ज था

            ठा.अमर सिॅह वृद्धावस्था के कारण महू नही आये। उनका देहान्त देश की आजादी के पहले ही 1946 में लोधी पुर इन्दौर में हो गया। जब 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। तब आजादी के कुछ वर्षो बाद शहीद बख्तावर सिॅंह  के पौत्र होने से महू में स्थित शहीद बख्तावर गली के पास के रास्ते के नाम से ठाकुर अमर सिॅह मार्ग रखा गया था। और इनके सहयोगी भगवानदास के नाम से भी एक मार्ग का नाम लाला भगवानदास मार्ग रखा गया था। तथा वर्ष 1956  तक रेडियो आकाशवाणी से इनकी संर्घर्ष गाथा प्रसारित हुई थी

      अंग्रेजों की नौकरी करते हुए जब ब्रितानी सरकार को पता चला कि ठा.राम सिॅह के पिता दादा परदादा सभी अंग्रजो के बागी रहे है, तो अंग्रेज अधिकारी हरफोर्ड जोन्स ने महू कन्टोलमेण्ट की सुरक्षा के लिये घातक मानते हुए, उन्हे नौकरी से निकाल दिया और ठा. रामसिॅह के नौकरी से निकाल जाने का कारण पुछने वह शिकायतपत्र थमा दिया जिसका जवाब ठा.रामसिंह ने नही दिया और नौकरी पर भी नही गये। बागी खानदान का होने के कारण  ब्रिटीश शासको के पिट्ठूओ के तानों के कारण इस अमझेरा राजवंश अपनी वास्तविक पहचान बताने से बचता रहा।

      जब ठा.रामसींघ के पुत्र ठा.अजितसींघ की नौकरी कालेज में अध्यापन पर लगने वाली थी। तब ठा.अजीतसींघजी को यह डर था,कि कही उन्हे भी अपने पिता ठा.रामसींघजी की तरह नौकरी से  हाथ न धोना पड़े, इस लिये वे भी अमझेरा के विषय में ज्यादा बातचीत करने से कतराते  थे। ब्रिटीश विरोधी बागी पराजित राठौड़ राजवंश का होने के कारण आस पास के अंगे्रज परस्तों द्वारा इस राजवंश की अनदेखी की जाती थी। वर्तमान में अमझेरा के शहीद बख्तावर सिॅंह के पौत्र स्व.ठा.अमर सिॅंहजी के पौत्र  ठाकुर अजीतसिॅहजी राठौड़ का भी नीमच में स्वर्गवास हो गया । नीमच में  इनके चार पुत्र ठा.राजेन्द्र सिॅंह, ठा.देवेन्द्र सिॅंह, ठा.महेन्द्र सिॅंह ठा.विजय सिॅंह एवं एक पौत्र भॅंवर आदित्य सिंह राठौड़ है।