सदस्य:जय कृष्ण सहनी

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बिशौल[संपादित करें]

गाम की तार रामायण काल से जूड़ी हैं। त्रेतायुग में एक विकराल वन था जिनका नाम सुंदरवन था जहां महर्षि विश्वामित्र की कुटिया थी जिसमें महर्षि ऋषि-मुनियों के संग भगवान की अराधना करते हुए जीवन व्यतीत करते थे। उन दिनों सुंदरवन में ताड़का नाम की राक्षसी की खौफ़ थी। वो ऋषि-मुनियों के यज्ञ के अनुष्ठान को विध्वंस कर देती थी, तपस्या में लीन मुनियों का आहार कर लेती थी।इससे महर्षि विश्वामित्र चिंतित थे।एक दिन महर्षि आयोध्या के नरेश महाराज दशरथ से सहयोग माँगी,सहयोग के रूप में महाराज से उनके बड़े पुत्र राम को उनके साथ जाने देने की कहि,परन्तु महाराज ने अपने पुत्र के बदले स्वयं सैनिकों सहित महर्षि के साथ चलने की इच्छा प्रकट की परन्तु महर्षि केवल राम को उनके साथ भेजने की जिद्द पर अडिग थे।जब महाराज ने अपने पुत्र को महर्षि को सौंपने से मना कर दिए तो ,महर्षि क्रोधित मन से अपने कुटिया को प्रस्थान करने का निर्णय लिया तभी इनकी भनक राम को लगी उन्होंने पिताश्री से महर्षि के साथ जाने के लिये अनुमति माँगी ।महाराज राजी हो गए । राम के साथ लक्ष्मण भी जाने की अनुमति ली।महर्षि विश्वामित्र के साथ राम लक्ष्मण दोनों बंधु महर्षि के आश्रम की तरफ प्रस्थान किये ।रास्ते में महर्षि ने राक्षसी तड़का के उपद्रवों की जानकारी दी।राम मन ही मन तड़का के वध का निश्चय कर लिया।कुछ दिनों की यात्रा के पश्चात सभी कुटिया को पहुँच गए । महर्षि ने यज्ञ का अनुष्ठान किया, ताड़का भी पहुँची यज्ञ विध्वंस करने की कोशिश की इसी बीच तड़का का सामना राम से हुआ दोनों के बीच घमासान युद्ध हुआ अंततः राम ने अपनी तरकश से एक तेजस्वी बाण निकाली और धनुष से छोड़ दिये जो ताड़का को लगी इस प्रकार ताड़का का वध राम के हाथों हुआ । और ताड़का का खौफ़ धरती से मिट गया।अधर्म पर धर्म की जीत हुई। राम -लक्ष्मण महर्षि के साथ रहने लगे और महर्षि से धनुर्विद्या की ज्ञान लेने लगे।और एडिटिंग बाँकी हैं जल्द ही पूरा किया जाएगा