सदस्य:अनिरुद्ध कुमार/प्रयोगपृष्ठ

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८ जुलाई १९७० की शाम थी । मैं अपने थोड़े-से सामान के साथ आर्डिनेंस फैक्टरी ट्रेनिंग संस्थान अंबरनाथ के छात्रावास में पहुँचा था । कल्याण रेलवे स्टेशन पर संस्थान की गाड़ी खड़ी थी । जबलपुर से और भी कई लोग आए थे । छात्रावास अंबरनाथ की पहाड़ी की तलहटी में एक खूबसूरत स्थान पर था । आर्डिनेंस फैक्टरियों में इस संस्थान और इसके छात्रावास की एक विशिष्ट महत्ता थी । यहाँ प्रशिक्षित तकनीशियन ड़ाक्समैन भारत के श्रेष्ठ तकनीशियनों और ड़ाक्समैन में गिने जाते थे । छात्रावास में शाम बेहद जीवंत होती थी । जिमनास्टिक इंडोर गेम्स आदि की सुविधाओं के साथ स्वीमिंग पूल एवं पुस्तकालय वाचनालय भी थे । छात्रावास का पुस्तकालय देखकर मैं रोमांचित हो उठा था । इसी पुस्तकालय में मैंने पास्तरनाक हेमिंग्वे. विक्टर सूगो पियरे लूई टॉलस्टाय पर्ल एस बक तुर्गनेव दॉस्तोएवस्की स्टीवेंसन ऑस्कर वाइल्ड रोम्यांरोला एमिल जोला को पड़ा था । यहीं रहते हुए रवींद्रनाथ टैगोर कालिदास का संपूर्ण वाइन्मय पड़ा । छात्रावास के एक-एक कमरे में दस-दस छात्र थे । मेरे साथ थे सुदामा पाटिल (मराठी. भुसावल) वी. के. उपाध्याय (कानपुर) पीसी. मृधा (बंगाली) केसी. राय (बंगाली). दिलीप कुमार मित्रा (बंगाली) बीके. जॉन (कटनी मप्र. गौर मोहन दास (बंगाली कलकत्ता) और गुलाटी (सिक्ख) । सुदामा पाटिल से जल्दी ही घनिष्ठता बन गई थी । उसे भी साहित्य में रुचि थी । नाटकों के प्रति उसमें गहरा लगाव था ।

प्रत्येक शनिवार रविवार को हम दोनों बंबई नाटक देखने पहुँच जाते थे । कभी-कभी सप्ताह के बीच