सदस्य:अजित चोरडिया/अणुव्रत किसके लिए और क्यों ?

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                                अणुव्रत  एक परिचय 
      
         किसी भी राष्ट्र  की सबसे बड़ी सम्पति है उसके नागरिकों का उज्जवल चरित्र | जनता का चरित्र बल जितना उंचा होता है ,राष्ट्र भी उतना ही सबल होता है | जब जनता का चरित्र बल कमजोर हो जाता है तो राष्ट्र भी कमजोर बन जाता है |
        चरित्र जब व्यक्ति के संदर्भ में देखा जाता है तो धर्म बन जाता है | जब वह परिवार ,समाज ,राष्ट्र और विश्व के सन्दर्भ में देखा जाता है तो नैतिकता बन जाता है | चरित्र व्यक्ति और समाज दोनों को जोड़ता है | दुनिया में जितने धर्म है उन सबका मूलाधार उन्नत आचार ही है|पर आश्चर्य है कि सूर्य उगा प्रकाश देने के लिए और वाही अन्धकार उगलने लगा | धर्म का उदय हुआ अहिंसा  के लिए,किन्तु वाही 

हिंसा को प्रोत्साहन देने लगा | धर्म जीवन का सर्वोपरि तत्व है | वह निचे दब गया | सांप्रदायिक कट्टरता उस पर हावी हो गई | इसी कारण धर्म के नाम पर हिंसा को बढ़ावा मिला | इतिहास में सैंकड़ो -सैकड़ो प्रष्ठ धर्म के नाम पर हुई हिंसा के रक्त से रंजित है |

धर्म और सम्प्रदाय ..........

     नैतिकता शून्य धर्म ने धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा दिया |धर्म गौण हो गया ,सम्प्रदाय मुख्य हो गए | अपेक्षा यह है कि धर्म मुख्य रहे और सम्प्रदाय गौण हों | इस संदर्भ में अणुव्रत ने एक नया द्रष्टिकोण दिया | उसने सम्प्रदाय मुक्त धर्म कि अवधारणा दी | अणुव्रत केवल धर्म है ,वह सम्प्रदाय नहीं | किसी सम्प्रदाय विशेष का प्रतिनिधि भी नहीं है | यह जैन ,बौध ,वैदिक,इस्लाम और इसाई धर्म नहीं है |इस द्रष्टि से इसे एक निर्विशेषण धर्म या मानव धर्म कहा जा सकता है | धर्म हो और नैतिकता न हो ,यह बात बुधिगम्य नहीं होती| किन्तु आज नैतिकता विहीन धर्म को भी मन्यता मिल गई है | इसलिए एक धार्मिक व्यक्ति भी अपने व्यापार या व्यवसाय में अप्रमाणिकता बरतता है | आश्चर्य है कि प्रमाणिक अथवा नैतिक हुए बिना ही धार्मिक बन जाता है | अणुव्रत ने इस भ्रान्ति को तोड़ने का प्रयत्न किया है और एक नया स्वर दिया है कि नैतिक हुए बिना धार्मिक नहीं हो सकता |उपासना धर्माराधना का माध्यम है | केवल उपासना के बल पर ही धार्मिक बनने वालों ने उपासना को प्रधान बना लिया और धर्म गौण कर दिया | उपासना के केंद्र सघर्ष के केंद्र बन गए | अणुव्रत ने घोषणा की कि उपासना का स्थान दूसरा है | प्रथम स्थान धर्म का है |
         हमारी दुनिया में सब कुछ परिवर्तनशील ही नहीं होता ,कुछ शाश्वत भी होता है | प्रकृति शाश्वत है | मनुष्य कि प्रकृति भी शाश्वत है | उसमे अच्छाई या बुराई दोनों है | ये सब चिरकालीन हैं | केवल इनका रूप बदलता है | पदार्थ बदल्तें है ,दुनिया बदलती है ,फिर मनुष्य क्यों नहीं बदलता? अणुव्रत

बदलने का दर्शन है | मनुष्य प्रकृति का निरिक्षण करे ,उसे समझे और परिवर्तन लाने का अभ्यास करे, अणुव्रत इसलिए है |

अहिंसा और जीवन ..........

          हिंसा कोई समस्या  नहीं है | हजारों वर्ष पहले हिंसा होती थी ,आज भी होती है | यह जीवन के साथ जुडी हुई है | इसलिए सब लोग पूर्ण अहिंसा का जीवन जी सकें ,यह संभव नहीं है | दूसरा रास्ता है पूर्ण हिंसा का | पूर्ण हिंसा का जीवन व्यक्ति और समाज -दोनों के लिए श्रेयस्कर नहीं है | इसीलिए अणुव्रत का रूप सामने आया | अणु का अर्थ है छोटा और व्रत का अर्थ है -संस्कार | अणुव्रत कि शाब्दिक परिभाषा इतनी ही है ,पर इसकी भावना व्यापक है | उसके अनुसार किसी छोटे से छोटे प्राणी कि भी अनावश्यक हिंसा न की जाए | स्वस्थ समाज रचना और पर्यावरण की द्रष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है अहिंसा का अणुव्रत |हिंसा व्यक्ति में होती है | उसका प्रस्कोट होता है -सामजिक क्षेत्र में | हिंसा का बीज विधमान है ,इसीलिए कोई निमित मिलता है और हिंसा फूट पड़ती है | उपद्रव ,आंतकवाद और तोड़फोड़ मूलक प्रवार्तियाँ शुरू हो जातीं हैं |हिंसा के नाना रूप हैं | उसका एक भयावह रूप है घ्रणा | उसे पल्लवन देने वाला तत्व है -अहंकार | मनुष्य में घ्रणा और अहंकार के तत्व नहीं होते तो मनुष्य जाति विभक्त नहीं होती | वर्ण और जाति के आधार पर छूआछूत एवं उंच-नीच का भाव नहीं पनपता | अणुव्रत अहिंसा का आन्दोलन है ,नैतिकता का आन्दोलन है | यह मनुष्य के जीने की न्यूनतम आचार मर्यादा है | व्रत के साथ जुड़कर वह संकल्प का रूप लेकर व्यक्ति को बल प्रदान करती है |

'नैतिकता का स्वरुप .................

        नैतिकता का आधार ,परिभाषा और मानदंड ----ये महत्त्वपूर्ण प्रश्न हैं | नैतिकता के मानदंड बदलते रहते हैं | एक समय में एक कार्य को नैतिक माना जाता है और किसी समय उसी कार्य को अनैतिक मान लिया जाता है | किसी देश में एक कार्य को नैतिक माना जाता है ,दूसरे देश में उसे अनैतिक मान लिया जाता है | देश और समय के साथ नैतिकता के मानदंड बदलते रहते हैं |अणुव्रत के आधार पर नैतिकता का मानदंड है ---संयम | जहाँ -जहाँ संयम है वहां -वहां नैतिकता है | संयम आत्ममुखी भी है तथा समाजाभिमुखी भी है | अपनी इन्द्रियों पर संयम करना आत्मभिमुखी कार्य भी है ,वह नैतिकता भी हो सकता है | अणुव्रत आन्दोलन नैतिक आन्दोलन है ,इसलिए इसका मूल मन्त्र है 'संयमः खलु जीवनम' संयम ही जीवन है | इसका अर्थ है नैतिक कार्य वाही है जहाँ संयम है | जिस कार्य में साथ संयम नहीं है ,उस कार्य को कभी नैतिक नहीं कहा जा सकता |
    अणुव्रत  की जीवन शैली  .......
        नैतिकता के अनुभव के पश्चात् जीवन की शैली बदलती है | आचार को आत्माभिमुख और समजिभिमुख मान ने वाला व्यक्ति वैसा जीवन नहीं जी सकता जैसा एक मिथ्या द्रष्टिकोण वाला व्यक्ति जीता है |उसकी जीवन शैली का पहला सूत्र होगा--मैत्री भाव का विकास | मैत्री अहिंसा का सकारात्मक पक्ष है | मैत्री भाव के कारण ही अनुवर्ती  न केवल निरपराध प्राणी की हिंसा से बचेगा अपितु उसमे मानवीय द्रष्टि का विकास होगा | उसके मन में जाती,रंग ,सम्प्रदाय ,देश और भाषा आदि की सभी दीवारें ढह जाएगी | उसमे मानवता का वह भाव जागेगा कि किसी को भी घ्रणित या उंच-नीच भी नहीं मानेगा| वे निदेशक तत्व इस प्रकार है...........
       १.दूसरों के अस्तित्व के प्रति संवेदनशीलता  |
       २.मानवीय एकता | 
       ३.सह अस्तित्व कि भावना का विकास | 
       ४.सांप्रदायिक सदभाव |
       ५.अहिंसात्मक प्रतिरोध | 
       ६.व्यक्तिगत संग्रह और भोगोपयोग कि सीमा |
       ७.व्यवहार में प्रमाणिकता | 
       ८.साधन-शुधि कि आस्था | 
       ९.अभय,तटस्थ ता और सत्य - निष्ठां |
    
         नैतिकता का दूसरा सूत्र है--इच्छा --परिणाम | इच्छा एक जटिल समस्या है | यह प्रश्न उलझन भरा है कि इच्छा को बढ़ाएं या कम करें | सामजिक एवं अर्थशास्त्रीय द्रष्टिकोण वाला व्यक्ति कहेगा ---इच्छा बढाओ | इच्छा बढ़ेगी तो उत्पादन बढेगा ,विकास को गति मिलेगी | किन्तु मानवीय द्रष्टि से इच्छा बढ़ाना अच्छा नहीं है | क्योंकि इच्छाएं अनंत होती है | अनंत इच्छाएं न केवल दूसरों के अधिकार का हनन करती हैं अपितु व्यक्ति को क्रूर भी बना देती है | इसीलिए अणुव्रत का लक्ष्य इच्छाओं का विस्तार नहीं अपितु उनका संयम रहेगा |
       नैतिकता का तीसरा सूत्र बनता है ----प्रमाणिकता | यह नैतिकता का मूल स्वरुप है | ईमानदार होना समाज कि पवित्रता के लिए प्राथमिक अपेक्षा है | जब तक इच्छा परिमाण नहीं होगा तब तक प्रमाणिकता फलित नहीं होगी | इच्छा के आधार पर तीन वर्गीकरण बनते हैं ---महेछा ,अल्पेछा और अनिच्छा |कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनमे महा इच्छा होती है | वे सब कुछ को अपने अंदर समेटने के इच्छुक बन जाते हैं | कुछ लोग इसे होते हैं जिनकी इच्छा सिमित होती है | वह वर्ग ही अणुव्रत का उपासक बन सकता है | अनिच्छा वाला वर्ग तो महाव्रतियों का वर्ग है | उसी से आर्थिक संतुलन बिगड़ता है | एक और अर्थ का अम्बार लग जाता है और दूसरी ओर रोटी के भी सांसे पद जाते हैं | जहाँ अल्पेछा होगी ,वहां अल्प परिग्रह होगा और जहाँ अनिच्छा है वहां तो अपने आप अपरिग्रह कि प्रतिष्ठा बन जाती है | अल्पेछा और अपरिग्रह ---ये दोनों संयम से जुड़े हुए हैं | अनुवर्ती की प्रामाणिकता अर्थार्जन के साधनों को भी शुद्ध बना देती है |
       अणुव्रत का तीसरा आधार है --करुणा | जिस व्यक्ति में करुणा होगी उसके लिए दूसरों के दुःख असह्य हो जायेगे | वह अपने आचरणों के द्वारा किसी के प्रति क्रूर नहीं बनेगा ,अपितु अपने आपको भी इस तरह से ढालेगा कि किसी अन्य को कोई कष्ट नहीं हो | उसके सामने सदा यह लक्ष रहेगा--
                                         सर्वे    भवन्तु    सुखिनः  सर्वे सन्तु  निरामयाः |
                                         सर्वे भद्राणि पश्यन्तु माँ कश्चिद् दुःखभाग भवेत् ||
       कोई भी व्यक्ति दुखी न बने ,सब सुखी और निरामय बनें | सबका कल्याण हो | ऐसा व्यक्ति किसी के साथ छलना नहीं कर सकता |
       नैतिकता का चौथा आधार है----भोगोपभोग का संयम | धनार्जन करने वाले व्यक्ति के सामने प्रश्न होगा -उसका उपयोग कैसे हो ? धन के उपयोग के दो तरीके हैं | पहला है-व्यक्तिगत भोगों में अधिक से अधिक उपयोग करना | दूसरा है ----मैं तो सम्पति का ट्रस्टी हूँ | अपनी आवश्यकता से अधिक सम्पति का उपयोग करना सामजिक दायित्व का उल्लंघन तो है ही पर अपने आप को भी कष्टों में ढकेलने जैसा है |जो लोग सम्पति का प्रदर्शन करते हैं ,वे आंतकवाद को आमन्त्रण देते हैं | भोगोपभोग कि समस्या ने आर्थिक समस्या को जटिल बनाया है | गरीबी और भूखमरी कि समस्या जटिल नहीं है ,जितना जटिल समस्या है भोगोपभोग की | इसी से समाज और राष्ट्र में विघटन पैदा होता है | संयम से ही आदमी में साधन शुद्धी की आस्था का जागरण होता है |
                              अणुव्रत   का   इतिहास .........
        अणुव्रत का प्रारंभ आज से ६२ वर्ष पूर्व आचार्य श्री तुलसी (तेरापंथ धर्म संघ के नोवें आचार्य ) द्वारा १ मार्च १९४९ में राजस्थान के सरदारशहर कस्बे में हुआ | यह वह समय था जब देश आजाद हुआ ही था | उस समय एक और देश सांप्रदायिक ज्वाला में जल रहा था,वहां दूसरी और सभी प्रमुख लोग देश के भौतिक निर्माण में विशेष अभिरूचि ले रहे थे | अणुव्रत आन्दोलन ने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए सभी धर्म-सम्प्रदाय के प्रमुख -पुरुषों को एक मंच पर लाकर यह समझाने की कौशिश की गयी कि धर्म के मौलिक सिधांत तो एक ही हैं | जो भिन्नता दिखाई देरही है वह या तो एकांत आग्रह कि देन है या फिर सांप्रदायिक स्वार्थों के कारण उसे उभरा जा रहा है | इस द्रष्टि से विशाल सर्व धर्म सदभाव सम्मलेन आयोजित किये गए और अणुव्रत का मंच एक सर्वधर्म सदभाव का प्रतिक बन गया | भारतीय धर्म सम्प्रदायों के अतिरिक्त इसाई तथा मुसलमान सम्प्रदायों के साथ भी एक सार्थक संवाद बना और अनेक ईसाई तथा मुसलमान लोगों ने भी अणुव्रत के प्रचार-प्रसार में रूचि दिखाई | जगद्गुरु शंकराचार्य ,दलाई लामा ,ईसाई पादरी ,मुसलमान संतो ने भी इसमें भाग लिया |
अणुव्रत  का कार्य क्षेत्र .......
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प्रेक्षा -ध्यान ..........

         अणुव्रत एक बहुमुखी अभियान है | अणुव्रत कि व्रत - निष्ठां को संस्कारगत बनाने के लिए अणुव्रत के अंतर्गत प्रेक्षाध्यान का एक आध्याय शुरू हुआ | संस्कारों को सुद्रढ़ बनाने तथा मानसिक शांति को पुष्ट करने में इस प्रयोग कि असंदिग्घता आज अंत्यंत स्पष्ट है | देश में ही नहीं विदेशों में भी चेतना को निर्मल बनाने के इस अभियान की मांग बढ़ रही है |

जीवन - विज्ञानं ........

         इसी प्रकार शिक्षा में सुसंस्कारों के आरोपण तथा भावात्मक परिवर्तन के लिए अणुव्रत की और से जीवन-विज्ञानं का एक आयाम प्रस्तुत हुआ | इस अभियान को भी इतनी लोकप्रियता प्राप्त हुई कि शिक्षा के क्षेत्र में आज जीवन-विज्ञानं को जबरदस्त अभिप्रेरणा मिल रही है |केन्द्रीय सरकार से लेकर दिल्ली,गुजरात ,मध्य भारत,राजस्थान आदि अनेक प्रदेश सरकारें भी इस दिशा में सचेष्ट हुई प्रतीत हो रही हैं |
                             अणुव्रत :  आचार  संहिता
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१. क .मैं किसी भी निरपराध प्राणी का संकल्पुर्वक वध नहीं करूँगा |

   ख .आत्म हत्या नहीं करूँगा |
   ग .भ्रूण हत्या नहीं करूँगा |

२. क.मैं आक्रमण नहीं करूँगा |

   ख.आक्रामक नीति का समर्थन नहीं करूँगा |
   ग .विश्व शांति तथा निःशस्त्रीकरण के लिए प्रयत्न करूँगा |

३. मैं हिंसात्मक एवं तोड़-फोड़ -मूलक परवर्तियों में भाग नहीं लूँगा | ४. क. मैं मानवीय एकता में विश्वास करूँगा |

  ख. जाती,रंग आदि के आधार पर किसी को उंच-नीच नहीं मानूंगा  |
  ग. अस्पर्श्यता नहीं मानूंगा |

५.क .मैं धार्मिक सहिष्णुता रखूँगा |

  ख.सांप्रदायिक उतेजना नहीं फेलाऊंगा|

६.क.मैं व्यवसाय और व्यवहार में प्रमाणिक रहूँगा|

  ख.अपने लाभ के लिए दूसरों को हानि नहीं पहुंचाउंगा |
  ग.छलनापूर्ण व्यवहार नहीं करूँगा |

७.मैं ब्रह्मचर्य की साधना और संग्रह की सीमा का निर्धारण करूँगा | ८.मैं चुनाव के संबध में अनैतिक आचरण नहीं करूँगा | ९.मैं सामजिक कुरुढीयों को प्रश्रय नहीं दूंगा | १०.क.मैं व्यसन मुक्त जीवन जिवुंगा |

   ख.मादक पदार्थों का ---शराब,गंजा,चरस ,हेरोइन ,भांग,तंबाकू  आदि का सेवन नहीं करूँगा |

११.क.मैं पर्यावरण की समस्या के प्रति जागरूक रहूँगा|

   ख.हरे-भरे वृक्ष नहीं काटूँगा|
   ग.पानी ,बिजली ,आदि का अपव्यय नहीं करूँगा |
     ( अणुव्रती के लिए सम्बंधित वर्गीय अणु व्रतों  का पालन अनिवार्य है )

अजित चोरडिया (वार्ता) 13:04, 25 अक्टूबर 2011 (UTC)