सत्यश्रयप्रतीच्य चालुक्य साम्राज्य के राजा थे[1] जिन्हें सत्तिगा अथवा इरिवाबेडांगा के नाम से भी जाना जाता है। 11वीं सदी के आरम्भ में साम्राज्य के सुदृढ़ीकरण के समय सत्यश्रय ने तंजावूर के चोल राजवंश, मध्य भारत के चेदी राजवंश व परमार राजवंश तथा गुजरात के चौलुक्या के साथ कई युद्धों में शामिल थे। इन युद्धों में जीत और हार के मिश्रित परिणाम थे।[2] अपने पिता तैलप द्वितीय के शासनकाल के समय एक राजकुमार के समय से ही सत्यश्रय एक महत्त्वकांक्षी योद्धा थे।[3] सत्यश्रय ने महान कन्नड़ कवि रन्न (शास्त्रीय कन्नड़ साहित्य के "तीन रत्नों" या रत्नत्रय में से एक) को संरक्षण दिया जिन्होंने अपने महाकाव्य सहसभिमविजय (शाब्दिक रूप से "साहसी भीम", महाकाव्य को गदायुद्ध के रूप में भी जाना जाता है) में उनकी ताकत और वीरता के लिए अपने संरक्षक की तुलना पाण्डव राजकुमार भीम (महाकाव्य महाभारत के पात्र) से की थी।[4][5][6] सत्यश्रय के पास अकालवर्ष, अकालंकचरित और सहसभिम जैसी उपाधियाँ थीं।
Chopra, P.N.; Ravindran, T.K.; Subrahmanian, N (2003) [2003]. History of South India (Ancient, Medieval and Modern) Part 1. New Delhi: Chand Publications. ISBN81-219-0153-7.
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Sastri, Nilakanta K.A. (2002) [1955]. A history of South India from prehistoric times to the fall of Vijayanagar. New Delhi: Indian Branch, Oxford University Press. ISBN0-19-560686-8.
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