सत्यप्रकाश सरस्वती
डॉ सत्यप्रकाश सरस्वती (२४ सितम्बर १९०५ - १८ जनवरी १९९५) भारत के रसायनविद्, आध्यात्मिक-धार्मिक चिन्तक, लेखक और वक्ता थे।[1] स्वमी जी आर्य समाज के प्रसिद्ध वैदिक विद्वानों में अग्रणी थे। उन्होने जीवन का अधिकांश भाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय में रसायन-विभाग के अध्यक्ष के रूप में बिताया। जीवन के उत्तरार्ध को उन्होने रघुवंशी राजाओं की भांति सामाजिक जागरण, लोकोपकार तथा ग्रन्थ-लेखन में व्यतीत किया।
स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती का व्यक्तित्व अनेक अद्भुत विशिष्टताओं से संपन्न था। उन्हें 'विज्ञान, धर्म और साहित्य की त्रिवेणी' ठीक ही कहा गया है। सभी विशेषताएं एक साथ एक ही व्यक्ति में बहुत कम देखने में आती हैं। स्वामी जी विविध विषयों पर प्रभावी ढंग से सारगर्भित व्याख्यान देने में अपने समय में अद्भुत थे। चारों वेदों के अंग्रेजी भाष्य की रचना उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।
परिचय
[संपादित करें]इनके पिताजी पण्डित गंगाप्रसाद उपाध्याय आर्य समाज के प्रसिद्ध लेखक व विद्वान थे।[2]
वेदपरायण स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती उच्चकोटि के विद्वान् एवं महान चिन्तक थे। वे असीमित रचनात्मक ऊर्जा के धनी थे। वेदों की ज्ञान गरिमा को विदेशी भी समझ लें, अतएव अंग्रेजी में विशदरूप से २६ खण्डों में चारों वेदों का अथक परिश्रम से यथातथ्य प्रस्तुत किया गया अनुवाद स्वामी जी का एक स्थायी संपत्ति की भाँति सर्वोपरि अनुदान है। उन्होने वैदिक वाङ्मय संबन्धी अनेक साहित्यों का सृजन भी किया जिनमें 'शतपथ ब्राह्मण की भूमिका', 'उपनिषदों की व्याख्या', योगभाष्य आदि विशेष पठनीय हैं। विज्ञान संबन्धी अनेक पुस्तकें स्वामी जी ने लिखी हैं जो विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में तथा शोधार्थियों के पाथेय बने हुए हैं।
विश्वविद्यालयों में विज्ञान की शिक्षा हेतु ऊँचे स्तर के ग्रन्थ अंग्रेजी में अधिकतर ब्रिटिश विज्ञान विशारदों द्वारा लिखित ही उपलब्ध होते थे। डॉ॰ सत्यप्रकाश, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय में अध्यापक होने के कारण भारतीय विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को भली-भाँति अनुभव करते थे। अतः उन्होंने इसे दृष्टि में रखते हुए अंग्रेजी में विज्ञान से संबद्ध कई उपयोगी ग्रन्थ लिखे जो इस दिशा में उत्कृष्ट उदाहरण उपस्थित करते हैं। भारत ने प्राचीन काल में विज्ञान की विविध विधाओं में अन्वेषण कर विस्मयकारी प्रगति प्राप्त की थी। डॉ॰ सत्यप्रकाश ने समर्पित भाव से अथक परिश्रम कर तत्कालीन साहित्य को नवजीवन दे पूर्णरूपेण प्रमाणित कर दिया कि यह देश विज्ञान के क्षेत्र में अन्य देशों की अपेक्षा सर्वाधिक अग्रणी एवं सर्वोपरि है।
विज्ञान' नामक प्रसिद्ध हिन्दी पत्रिका ने दिसम्बर १९९७ का अंक 'डॉ सत्यप्रकाश विशेषांक' के रूप में निकाला था।
कृतियाँ
[संपादित करें]- प्राचीन भारत में रसायन का विकास[3]
- ऋग्वेद संहिता (तेरह भागों में)
- वैज्ञानिक परिव्राजक[4]
- प्राचीन भारत के वैज्ञानिक कर्णधार[5]
- आर्यसमाज का मौलिक आधार
- A critical study of philosophy of Swami Dayananda
- Geometry in Ancient India[6]
सम्पादन
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' (2009). भारतीय चरित कोश. राजपाल एण्ड सन्स. पृ॰ 915. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8174831002. मूल से 18 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 अप्रैल 2014.
- ↑ आत्मा की सत्ता पर स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती जी के सारगर्भित विचार
- ↑ सत्यप्रकाश सरस्वती (1995). प्रचीन भारत में रसायन का विकास. पुस्तकायन. मूल से 18 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 अप्रैल 2014.
- ↑ सुवास कुमार (1994). हिन्दी: विविध व्यवहारों की भाषा. वाणी प्रकाशन. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8170553342. मूल से 19 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 अप्रैल 2014.
- ↑ सत्यप्रकाश सरस्वती. प्राचीन भारत के वैज्ञानिक कर्णधार. सुबोध पोकेट बुक्स. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 8185134057. मूल से 18 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 अप्रैल 2014.
- ↑ Geometry in Ancient India
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]- विज्ञान परिषद् प्रयाग
- विज्ञान (हिन्दी पत्रिका)
- हिंदू रसायन का इतिहास -- आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र राय का रसशास्त्र के इतिहास सम्बन्धी प्रसिद्ध ग्रन्थ
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- प्राचीन भारत के वैज्ञानिक कर्णधार (गूगल पुस्तक ; लेखक स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती)
- प्राचीन भारत में रसायन का विकास[मृत कड़ियाँ]