सत

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

सत सत्य का रूप है, इस शब्द का अर्थ अधिकतर सत्यता के लिये प्रयोग किया जाता है, तत्व के परिणाम को भी सत कहा जाता है,फ़ल के रस को भी सत के नाम से जाना जाता है।

भारतीय दर्शन में जीवों के गुण तीन प्रकार होते हैं - सत रज और तम। सत वो है जो उचित-अनुचित, अच्छा-बुरा और सुख-दुख में भेद और परिमाण हर स्थिति में बता सके। सतोगुण के लोग इस ज्ञान से भरे होते हैं कि किस स्थिति में क्या करना चाहिए और इस तरह उन्हें घबराहट नहीं होती क्योंकि वे तत्वदर्शी होते हैं। रजोगुणी को ये ज्ञान थोड़ा कम और तमोगुणी को अत्यंत कम होता है। गीता में इसका उल्लेख सातवें अध्याय में हुआ है (अन्यत्र भी)।

ये गुण है और किसी मनुष्य की प्रकृति अलग समयों पर अलग हो सकती है। इस गुण के प्रधान होने के समय सतोगुणी मनुष्य सुख में अहंकार से और दुःख में मोह और क्रोध जैसे भावों से बचता है। जिसको यह ज्ञान होता है वो ब्रह्म के निकट माना जाता है और ब्राह्मण कहलाता है। वंशानुगत ब्राह्मण बनने की परंपरा बाद में शुरु हुई।