संध्या

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संध्या

परंबिकुलम, केरल, भारत में शाम
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संध्या ("शाम") का सामान्य अर्थ सूर्य के अस्त होने और रात्रि के प्रारंभ के काल से है।

संध्या एक संस्कृत शब्द है। सूर्य और तारों से रहित दिन-रात की संधि को तत्त्वदर्शी मुनियों ने संध्याकाल माना है।[1]

संध्या से ही दिन और रात्रि दोनों के संधिकालों के नाम प्रातःकाल ( रात्रि और दिन का मध्य ) और सायंकाल (रात्रि और दिन का मध्य ) नाम हुए। प्रातःकाल की पूजा देवताओं का पोषण करती है तो सायंकाल की पूजा पित्रों का पोषण करती है।

त्रिकाल संध्या प्रातःकाल में तारों के रहते हुए, मध्याह्नकाल में जब सूर्य आकाश के मध्य में हों, सायंकाल में सूर्यास्त के पहले ही - इस तरह तीन प्रकार की संध्या करनी चाहिए।[2]

पौराणिक अर्थ[संपादित करें]

संध्या ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं और पित्रों की माता कही गयी हैं। शिवपुराण के अनुसार पूर्वकाल की तपस्या से संन्ध्या ही कालान्तर में सप्तर्षियों में श्रेष्ठ महर्षि वशिष्ठ की पत्नी अरून्धती के रुप में सर्वश्रेष्ठ सती के रुप में तीनों लोकों में प्रसिद्ध हैं।

उदाहरण[संपादित करें]

संबंधित शब्द[संपादित करें]

अन्य भारतीय भाषाओं में निकटतम शब्द[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. पं लालबिहारी, मिश्र (2012). नित्यकर्म पूजाप्रकाश. गोरखपुर: गीताप्रेस. पृ॰ 49. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-293-0047-8.
  2. पं लालबिहारी, मिश्र (2012). नित्यकर्म पूजाप्रकाश. गोरखपुर: गीताप्रेस. पृ॰ 51. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-293-0047-8.