संकेतन सिद्धान्त
![]() | इस लेख में भ्रामक शब्दों का प्रयोग है, जो आम तौर पर ऐसा कथनों में प्रयोग होते हैं जो या तो पक्ष लेते हैं या सत्यापित नहीं किये जा सकते। ऐसे कथनों का स्पष्टीकरण किया जाना चाहिये अथवा उन्हें हटाया जाना चाहिये। (मार्च 2025) |

संकेतन सिद्धान्त (coding theory) संकेत के गुणों और विशिष्ट अनुप्रयोगों का विश्लेषणात्मक अध्ययन है। इसका उपयोग स्रोत संकेतन, रेखीय संकेतन, त्रुटि नियंत्रण संबंधित विषयों का पता लगाने और लिए किया जाता है। संकेतन सिद्धान्त विभिन्न वैज्ञानिक विषयों का मिश्रण है। इसका अध्ययन सूचना सिद्धांत, विद्युत अभियान्त्रिकी, गणित, भाषा विज्ञान विधियों की बनावट उद्देश्य से किया जाता है। इसका प्रयोग आम तौर पर प्रेषित आंकड़ों में त्रुटियों का पता लगाने के लिए किया जाता है ताकि इसे अधिक कुशलता से प्रसारित किया जा सके।
इतिहास
[संपादित करें]जुलाई 1948 ई॰ में क्लाउड ई॰ शैनन ने अपनी पत्रिका संचार का गणितीय सिद्धांत (ए मैथमेटिकल थ्योरी ऑफ कम्युनिकेशन) में "संकेतन सिद्धांत की नींव रखी और इसे वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय बनाया। इस पत्रिका मे स्रोत संकेतन, संचार और सूचना को समझने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया और आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी के विकास की दिशा निर्धारित की। शैनन के इस योगदान ने आज के डिजिटल युग की आधारशिला रखी।
प्रकार
[संपादित करें]संकेतन के चार प्रकार हैं:—[1] स्रोत संकेतन, त्रुटि नियंत्रण, रेखीय संकेतन बीज संकेतन।[2]
संकेतन सिद्धांत के अन्य अनुप्रयोग
[संपादित करें]संकेतों की बनावट इस प्रकार किया जाता है कि इसका प्रयोग सरल तरीके से किये बदलाव को पहचानाजा सके और बची हुई थी त्रुटियों को ठीक किया जा सके। इस प्रक्रिया में, एक ही तंत्र पर कई संकेत भेजने की क्षमता भी होती है, जिससे संचार की दक्षता और विश्वसनीयता बढ़ती है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ जेम्स इरविन; डेविड हार्ले (2002). "2.4.संकेतन के चार प्रकार". आंकड़ा संचार तंत्र. जॉन विली एंड संस. पृ॰ 18. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780471808725.
संकेतन चार प्रकार की होती है
- ↑ रिवेस्ट, रोनाल्ड एल॰ (1990). "Cryptology" [कूटलिपि शास्त्र]. प्रकाशित जे॰ वान लीउवेन (संपा॰). Handbook of Theoretical Computer Science [सैद्धांतिक कंप्यूटर विज्ञान की पुस्तिका] (अंग्रेज़ी में). 1. एल्सेवियर.