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खतरनाक है यह उदासीनता


प्रश्न सिर्फ विरोध की राजनीति का नही है प्रश्न है सत्यनिष्ठा का, प्रश्न है कि हम किस चीज के लिए क्या दांव पर लगाने जा रहे है उसे देखनासमझना अब जरूरी हो गया है । सत्य को नजरंदाज करके उसका विरोध करने से र्जोर््र भी निहीतार्थ हल हो रहे हो या अहंकारवश बांधा गया द्वेष इसमें अपनी भूमिका निभा रहा हो वहां तक तो ठीक है परन्तु इसके प्रतिकारस्चरूप क्या प्रस्थापित करने जा रहे है यह अवश्य विचार करने वाली बात है और अगर इस प्रस्थापना से उन सिद्घान्तो और मूल्यो को गहरा आघात लगता है र्जोर््र राष्ट््र के हित से जुड़े है तो यह मामला बेहद गम्भीर रूप से चिन्ताजनक और विचारणीय बन जाता है । आज अधिकांशतः लोग ऐसा सब करते हुए इस सच्चाई के प्रति अति उदासीन रूख अपनाते हुए प्रायः ही पाये जाते है हमारा मीडिया इसका शानदार उदाहरण है क्योकि आज प्रायः समूचा मीडिया इसी तरह का व्यवहार करते हुए पाया जा रहा है इसमे अहंकार वश बांधे गये द्वेष के अलावा टी.आर.पी की चाहत और ठेठ व्यवसायिकता के घुस जाने से उसका यह आम व्यवहार हो गया है एक दिन कोई गंभीर आरोप या स्टोरी को उछाला जाता है या छद्म धर्म निरपेक्षता की आड़ में निशाने साधे जाते है जिसके सच या झूठ होने का अपना राष्ट््रहित में महत्व भी होता है जिससे सामाजिक और नैतिक सरोकार जुड़े रहते है ,परन्तु अगले एक दो दिनो में मामला आश्चर्यजनक ़ंग से सिरे से ही गायब हो जाता है ,और सारे अनुतरित प्रश्न अनुतरित ही धरे रह जाते है पूछो तो दो टूक सच सामने आता है कि खेल हो चुका है । अधिक कुरेदो तो पूरी बेशर्मी से बताया जाता है कि धंधा है जनाब शुद्ध धांधा और सारे सरोकार केवल दिखावटी मुखोटे है । करोड़ो रूपयो की ये जो लागत है यह, धन ,सुख ,सम्पन्नता पाने के लिए ही है । अब चाहे वह अगले दरवाजे से आये या फिर पिछले दरवाजे से ,उसका स्वागत तो हमको करना ही है देशसेवा आदि तो सब बाते है सबसे ब़ा सच तो रूपया है । ऐसी मान्यता वाले सभी से यही कहना है कि भैया रूपये का सच भी तब तक ही है जब तक यह राष्ट है जब अगर राष्ट की अस्मिता ही खतरे मे आ गई है तो क्या यह राष्ट जीवित रह पायेगा और अगर राष्ट जीवित नही रहेगा तो क्या तुम्हारा यह रूपया रह पायेगा ,क्या कोई स्वार्थ हल हो पायेगा ?

 आज शहरी कालोनियो के स्तर तक तो अब यह बात देखने में आ रही है कि अपनी कालोनी के हित में जागरूक सि्रक्रय्र लोग इतना समझने लगे है कि पडोसी को बाहरी शक्तियो से तकलीफ हुई है और हम नही बोले तो कल हमारे साथ भी यह तकलीफ आ सकती है अब यही बात राष्ट के साथ भी इसी तरह से सच है 

बस इसी सच को जानने समझने की आज आवश्यकता है । जब जंगल में आग लगी हो तो आपका घोंसला चाहे जितना मजबूत हो ,चाहे जितने उंचे वृक्ष की उंची और मजबूत शाख पर हो और वृक्ष भी चाहे जितना मजबूत हो वह सुरक्षित नही है आज नही तो कल उसे भी सभी के साथ जलनाही होगा । उसे जलने से बचना है तो एक ही उपाय है कि वह निजी स्वार्थों व अंहकार से स्चयं को उपर उठाये और सभी से समरसता पूर्वक सांमजस्य बैठाये मिल जुल कर जंगल के खिलाफ खतरो पर,शत्रुओ की रणनीति पर विचार करे उनको समय से पूर्व पहचाने । इसी प्रकार से हमें भी झूठ को प्रस्थापित कर सच्चाई को पदच्युत करने वालो को आज पहचानने की आवश्यकता है । रामराज्य अभियान एक जागरूकता अभियान है । इसके माध्यम से ंमेरा राष्टीय चरित्रकी चेतना जगाने का प्रयास रहेगा । ंमै जानता हूं कि हम भक्त नही है हम हद दर्जे के स्वार्थी है हमारे अन्दर राष्टीयता की भावना मर चुकी है और उसका स्थानशुद्ध व्यवसायिकता ने ले लिया है ।आजकल एक जुमला खूब प्रचलन मे ंहै कि हमारे यहां हर चीज विक्रय के लिए उपलब्ध है बशतेंर सही तरीके से सही कीमत लगाई जाये ,परन्तु एक चीज है जिसकी बोली से हर कोई इन्कार कर देगा और वह बोली उसके अपने अस्तीत्व की होगी । आज प्रकारान्तर से अस्तीत्व की बोली तो सीधे सीधे नही लगाई जा रही है परन्तु झूठ को प्रस्थापित करने वाले लोगो द्वारा जाने या अनजाने में वही कार्य किया जा रहा है । हम चीजो को र्जोर््रडकर नही देख पा रहे है तमाम तरह के दांवपेंच कोलाहल निज स्वार्थो ने ऐसा धुंधलका फैला रखा है कि आम आदमी आपस में अनावश्यक रूप से उन प्रश्नो के लिए एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो रहा है जिनका वास्तव में अस्तीत्व ही नही है या,र्जोर््र प्रश्न क्रत्रिम रूप से चारे के रूपा में हमारे सामने फेके गये है ताकि हम इनमें ही उलझे रहे और सत्य के बाबत कोई भी विचार ही न करे ।इन्ही प्रश्नो ने आम आदमी को घेर रखा है यह प्रश्न दाल रोटी के है ,िशक्षा के है ,स्वास्थ्य के है ,बस इन्ही से आमआदमी लड़ रहा है और टूट रहा है ।आमआदमी को इसी टूटन से बचाना है और उन प्रश्नो से ,खतरो से अवगत करवाना है जो हमारे सर पर लटक रहे है ,जो वास्तव में अपना ठोस अस्तीत्व रखते है ये वे खतरे है जो लगातार देश की और ब रहे है या योजनाबद्ध तरीके से बाये जा रहे है और राष्ट्र कें रूप मे या अपने अस्तीत्व के संकट के रूप में हम उनसे उदासीन बने हुए है । इन पर आगे आने वाले दिनो में चर्चा करेगें ।.... गिरीश नागड़ा