श्री कालहस्ती मंदिर
श्रीकालहस्ती | |
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धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
देवता | भगवान शिव |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | कालहस्ती, आंध्र प्रदेश, भारत |
भौगोलिक निर्देशांक | 13°46′N 79°42′E / 13.76°N 79.70°Eनिर्देशांक: 13°46′N 79°42′E / 13.76°N 79.70°E |
वास्तु विवरण | |
शैली | दक्षिण भारतीय मंदिर वास्तुकला |
स्थापित | ५वीं शताब्दी |
वेबसाइट | |
www.srikalahasti.org |
श्रीकालाहस्ती आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति शहर के पास स्थित श्रीकालहस्ती नामक कस्बे में एक शिव मंदिर है। ये मंदिर पेन्नार नदी की शाखा स्वर्णामुखी नदी के तट पर बसा है और कालहस्ती के नाम से भी जाना जाता है।[1] दक्षिण भारत में स्थित भगवान शिव के तीर्थस्थानों में इस स्थान का विशेष महत्व है।[2] ये तीर्थ नदी के तट से पर्वत की तलहटी तक फैला हुआ है और लगभग २००० वर्षों से इसे दक्षिण कैलाश या दक्षिण काशी के नाम से भी जाना जाता है।[3] मंदिर के पार्श्व में तिरुमलय की पहाड़ी दिखाई देती हैं और मंदिर का शिखर विमान दक्षिण भारतीय शैली का सफ़ेद रंग में बना है। इस मंदिर के तीन विशाल गोपुरम हैं जो स्थापत्य की दृष्टि से अनुपम हैं। मंदिर में सौ स्तंभों वाला मंडप है, जो अपने आप में अनोखा है।[4] अंदर सस्त्रशिवलिंग भी स्थापित है, जो यदा कदा ही दिखाई देता है।[1] यहां भगवान कालहस्तीश्वर के संग देवी ज्ञानप्रसूनअंबा भी स्थापित हैं। देवी की मूर्ति परिसर में दुकानों के बाद, मुख्य मंदिर के बाहर ही स्थापित है। मंदिर का अंदरूनी भाग ५वीं शताब्दी का बना है और बाहरी भाग बाद में १२वीं शताब्दी में निर्मित है।[3]
किंबदन्ती
[संपादित करें]मान्यता अनुसार इस स्थान का नाम तीन पशुओं - श्री यानी मकड़ी, काल यानी सर्प तथा हस्ती यानी हाथी के नाम पर किया गया है। ये तीनों ही यहां शिव की आराधना करके मुक्त हुए थे। एक जनुश्रुति के अनुसार मकड़ी ने शिवलिंग पर तपस्या करते हुए जाल बनाया था और सांप ने लिंग से लिपटकर आराधना की और हाथी ने शिवलिंग को जल से स्नान करवाया था। यहाँ पर इन तीनों पशुओं की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। श्रीकालहस्ती का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। स्कंद पुराण के अनुसार एक बार इस स्थान पर अर्जुन ने प्रभु कालहस्तीवर का दर्शन किया था। तत्पश्चात पर्वत के शीर्ष पर भारद्वाज मुनि के भी दर्शन किए थे। कहते हैं कणप्पा नामक एक आदिवासी ने यहाँ पर भगवान शिव की आराधना की थी। यह मंदिर राहुकाल पूजा के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
आस पास के तीर्थस्थल
[संपादित करें]इस स्थान के आसपास बहुत से धार्मिक स्थल हैं। विश्वनाथ मंदिर, कणप्पा मंदिर, मणिकणिका मंदिर, सूर्यनारायण मंदिर, भरद्वाज तीर्थम, कृष्णदेवार्या मंडप, श्री सुकब्रह्माश्रमम, वैय्यालिंगाकोण (सहस्त्र लिंगों की घाटी), पर्वत पर स्थित दुर्गम मंदिर और दक्षिण काली मंदिर इनमें से प्रमुख हैं।[4] यहां का समीपस्थ हवाई अड्डा तिरुपति विमानक्षेत्र है, जो यहाँ से बीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मद्रास-विजयवाड़ा रेलवे लाइन पर स्थित गुंटूर व चेन्नई से भी इस स्थान पर आसानी से पहुँचा जा सकता है। विजयवाड़ा से तिरुपति जाने वाली लगभग सभी रेलगाड़ियां कालहस्ती पर अवश्य रुकती हैं। आंध्र प्रदेश परिवहन की बस सेवा तिरुपति से छोटे अंतराल पर इस स्थान के लिए उपलब्ध है।
दुर्घटना
[संपादित करें]२६ मई, २०१० को इस मंदिर का १३५ फीट ऊंचा गालि गोपुरम ढह गया। इस गोपुरम स्तंभ में काफी पहले से ही दरारें आ गयीं थीं और मरम्मत हेतु कई दशकों से प्रयोग में नहीं था। इसके स्थान पर नया निर्माण होना भी तय हो चुका था।[5][6]
चित्र दीर्घा
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ अ आ [https://web.archive.org/web/20131114223723/http://kalptaru.blogspot.com/2010/02/hilarious-moment-of-deity-darshan-at_16.html Archived 2013-11-14 at the वेबैक मशीन तिरुपति बालाजी के दर्शन और यात्रा के रोमांचक अनुभव – १० [श्रीकालाहस्ती शिवजी के दर्शन..]। कल्पतरु। १६ फ़रवरी २०१०।
- ↑ शिव के पौराणिक शिवालय[मृत कड़ियाँ]। सहरसा। १९ नवम्बर २००९
- ↑ अ आ मंदिर का आधिकारिक जालस्थल Archived 2010-05-28 at the वेबैक मशीन मंदिर की जानकारी
- ↑ अ आ दक्षिण कैलाश के शिव-शंभु... Archived 2009-11-28 at the वेबैक मशीन| वेबदुनिया। आई. वेंकटेश्वर राव
- ↑ प्राचीन मंदिर का गुंबद ढहा Archived 2010-05-28 at the वेबैक मशीन। भाषा-पीटीआई-समाचार। २६ मई २०१०। पीटीआई-भाषा संवाददाता
- ↑ जमींदोज हुआ प्रचीन काला हस्ती मंदिर Archived 2010-05-29 at the वेबैक मशीन। दैनिक भास्कर। २६ मई २०१०। एजेंसी
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]विकिमीडिया कॉमन्स पर श्रीकालहस्ती से सम्बन्धित मीडिया है। |
- श्रीकालाहस्ती आधिकारिक जालस्थल
- श्रीकालाहस्ती मंदिर की जानकारी
- टेम्पलनेट पर कालाहस्ती
- सर्प, हाथी और मकड़ी की कथा