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शाह अब्दुल लतीफ़

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शाह अब्दुल लतीफ़ भटाई18 नवम्बर,1 जनवरी (1689-1752) सिंध के प्रसिद्ध सूफ़ी कवि थे, जिन्होंने सिन्धी भाषा को विश्व के मंच पर स्थापित किया। शाह लतीफ़ का कालजयी काव्य-संकलन 'शाह जो रसालो' सिन्धी समुदाय के हृदयकी धड़कन सा है। सिन्ध का सन्दर्भ विश्व में शाह लतीफ़ की भूमि के रूप में भी दिया जाता है, जिस की सात नायिकाओं मारुई, मूमल, सस्सी, नूरी, सोहनी, हीर तथा लीला को सात रानियाँ भी कहा जाता है। ये सातों रानियाँ पवित्रता, वफादारी और सतीत्व के प्रतीक रूप में शाश्वत रूप से प्रसिद्ध हैं। इन सब की जीत प्रेम और वीरता की जीत है।

शाह अब्दुल लतीफ़ एक सूफी संत थे जिन के बारे में राजमोहन गाँधी ने अपनी पुस्तक 'अण्डरस्टैण्डिंग द मुस्लिम माइण्ड' में लिखा है कि जब उनसे कोई पूछता था कि आप का मज़हब क्या है, तो कहते थे कोई नहीं। फिर क्षण भर बाद कहते थे कि सभी मज़हब मेरे मज़हब हैं। सूफी दर्शन कहता है कि जिस प्रकार किसी वृत्त के केंद्र तक असंख्य अर्द्ध- व्यास पहुँच सकते हैं, वैसे ही सत्य तक पहुँचने के असंख्य रास्ते हैं। हिन्दू या मुस्लिम रास्तों में से कोई एक आदर्श रास्ता हो, ऐसा नहीं है। कबीर की तरह शाह भी प्रेम को उत्सर्ग से जोड़ते हैं। प्रेम तो सरफरोशी चाहता है। इसीलिए शाह अपने एक पद में कहते हैं:

सूली से आमंत्रण है मित्रो,
क्या तुम में से कोई जाएगा?
जो प्यार की बात करते हैं,
उन्हें जानना चाहिए,
कि सूली की तरफ ही उन्हें शीघ्र जाना चाहिए!

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