शाहजी

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शाहजी
शिशोदिया वंश के राजपुत्र
शाहजी का एक चित्र
बीजापुर सल्तनत में पुणे के जागीरदार
पूर्ववर्तीमालोजी
उत्तरवर्तीशिवाजी
बीजापुर सल्तनत में बंगलुरु के जागीरदार
उत्तरवर्तीएकोजी
जन्म1602 ई. [1]
निधन1664
Hodigere near Channagiri, Davanagere district[उद्धरण चाहिए]
जीवनसंगीजीजाबाई
तुकाबाई
Narsabai[उद्धरण चाहिए]
संतानसंभाजी (शम्भूजी)
शिवाजी
एकोजी
कोयाजी
सन्ताजी[उद्धरण चाहिए]
घरानाभोंसले (मराठा कुनबी कुर्मी राजा)
पितामालेजी
धर्महिन्दू
पेशासैना नायक

शाहजीराजे भोसले (१५९४-१६६४) १७वीं शताब्दी के एक सेनानायक छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता थे। उन्होने मराठा साम्राज्य की स्थापना की, जिनके वंशजों को मराठा या मट्ठा गोत्र दिया गया, शाहजी ने अलग-अलग समय पर अहमदनगर सल्तनत, बीजापुर सल्तनत, और मुगल साम्राज्य में सैन्य सेवाएँ की।

शाहजी छापामार युद्ध के आरम्भिक प्रतिपादकों में से हैं। उन्होंने भोंसले परिवार को विशिष्टता प्रदान की। तंजोर, कोल्हापुर, सतारा के देशी राज्य भी भोंसले परिवार की देन हैं।

परिचय[संपादित करें]

मालोजीराजे भोसले के पुत्र शाहजीराजे का जन्म 18 मार्च १५९४ ई॰ को हुआ था। जो कि मूलत: मराठा समुदाय से थे। हालांकि इनके पूर्वज राजस्थान मूल के भोंसले कुर्मी कुर्मी ही थे जो महाराष्ट्र में आकर बस गए थे और वहीं राजकाज देखते थे। शाहजी के परमप्रतापी पुत्र छत्रपति शिवाजी ने अपनी वंशावली में स्वयं इस बात का उल्लेख भी करवाया है। शाहजी प्रकृति से साहसी चतुर, साधन सम्पन्न तथा दृढ़निश्चयी थे। व्यक्तिगत स्वार्थ से प्रेरित होते हुए भी, पृष्ठभूमि के रूप में, इन्हें महाराष्ट्र के राजनीतिक अभ्युत्थान का प्रथम चरण माना जा सकता है। इनकी प्रथम पत्नी जिजाबाई से महाराष्ट्र के निर्माता शिवाजीराजे का जन्म हुआ तथा दूसरी पत्नी तुकाबाई से तंजोर राज्य के संस्थापक एकोजी का।

शाहजी का वास्तविक उत्कर्ष निजामशाही वज़ीर फतहखाँ के समय से प्रारम्भ हुआ। निजामशाह की हत्या के बाद, राज्य की संकटाकीर्ण परिस्थिति में, मुगलों की नौकरी छोड़ शाहजी ने दस वर्षीय बालक मुर्तजाशाह द्वितीय को सिंहासनासीन कर (१६३२) मुगलों से तीव्र संघर्ष किया। निजामशाही राज्य की समाप्ति पर इन्होंने बीजापुर राज्य का आश्रय लिया (१६३६)। १६३८ में हिंदू राजाओं का दमन करने के लिए शाहजी भी कर्नाटक भेजे गए; किन्तु १६४८ में उनसे संपर्क स्थापित करने के संदेह में सेनानायक मुस्तफाखाँ ने इन्हें बंदी बना लिया। १६४९ में आदिलशाह ने इन्हें विमुक्त कर पुनः कर्नाटक भेजा जहाँ इन्होंने गोलकुंडा के सेनानायक मीरजुमला को परास्त किया (१६५१)। शिवाजी की बढ़ती शक्ति से आतंकित हो, बीजापुर पर शिवजी के आक्रमणों को शाहजी द्वारा स्थगित कराने का प्रयत्न किया गया (१६६२)। तभी, प्रायः बारह वर्ष बाद, पिता-पुत्र की भेंट हुई; तथा शाहजी और जीजाबाई के टूटे सम्पर्क पुनः स्थापित हुए। २३ जनवरी १६६४, को शिकार खेलते समय घोड़े पर से गिरने से शाहजी की मृत्यु हो गई।

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]