व्यक्तित्व पूजा
व्यक्तित्व का पंथ (अंग्रेज़ी: Cult of Personality) एक सामाजिक-राजनीतिक प्रक्रिया है जिसमें किसी नेता या व्यक्ति की छवि को अत्यधिक आदर्श, पूज्य और नायक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह प्रक्रिया अक्सर सरकारी तंत्र, मीडिया, प्रचार और सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से की जाती है, ताकि जनता में उस नेता के प्रति अटूट श्रद्धा और विश्वास उत्पन्न किया जा सके। व्यक्तित्व का पंथ, या नेता का पंथ,[1] उस प्रयास का परिणाम होता है जिसमें किसी प्रशंसनीय नेता की आदर्श और नायक जैसी छवि बनाने की कोशिश की जाती है। यह अक्सर बिना सवाल किए तारीफ और प्रशंसा के माध्यम से किया जाता है।[2]
पृष्ठभूमि
[संपादित करें]व्यक्तित्व का पंथ की शुरुआत प्राचीन काल से मानी जा सकती है, जब शासकों को देवताओं के रूप में पूजा जाता था। आधुनिक काल में, विशेषकर २०वीं सदी में, यह अवधारणा मजबूत हुई। सोवियत संघ के जोसेफ स्टालिन, उत्तर कोरिया के किम इल-संग, और चीन के माओ ज़ेडॉन्ग जैसे नेताओं ने अपनी सत्ता को स्थिर करने और विरोध को दबाने के लिए व्यक्तित्व का पंथ का सहारा लिया। इन नेताओं ने अपने चित्रों, उद्धरणों और अनुष्ठानों के माध्यम से अपनी छवि को महान और अडिग नेता के रूप में प्रस्तुत किया।
१८वीं और १९वीं शताब्दी में यूरोप और उत्तरी अमेरिका में लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष विचारों के फैलने से शासकों के लिए अपनी महान और आदर्श छवि बनाए रखना मुश्किल हो गया। फिर भी, नेपोलियन तृतीय (Napoleon III)[3] और क्वीन विक्टोरिया (Queen Victoria)[4] ने अपनी इस छवि को बनाए रखने की कोशिश की। उन्होंने कार्ट-डे-विजिट (carte-de-visite) पोर्ट्रेट्स बनवाए, जो उस समय बहुत लोकप्रिय हुए, लोगों में फैले और संग्रहित किए गए।[5][6][7]
लक्षण
[संपादित करें]व्यक्तित्व का पंथ की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- मीडिया का नियंत्रण: नेता की छवि को सकारात्मक रूप में प्रस्तुत करने के लिए मीडिया का व्यापक उपयोग।
- प्रचार और विज्ञापन: नेता के कार्यों और विचारों को महिमामंडित करने के लिए प्रचार अभियानों का संचालन।
- सांस्कृतिक गतिविधियाँ: गीत, नृत्य, चित्रकला आदि के माध्यम से नेता की महिमा का प्रचार।
- राजनीतिक संस्थाओं का उपयोग: सरकारी संस्थाओं और संगठनों के माध्यम से नेता की पूजा का आयोजन।
जनसंचार का भूमिका
[संपादित करें]व्यक्तित्व का पंथ में जनसंचार का महत्वपूर्ण योगदान होता है। सरकारी मीडिया, समाचार पत्र, रेडियो, टेलीविजन और इंटरनेट के माध्यम से नेता की छवि को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया जाता है। विशेषकर तानाशाही प्रणालियों में, मीडिया का स्वतंत्रता से अभाव होता है, जिससे केवल नेता के पक्ष में ही समाचार और जानकारी प्रसारित होती है।
उद्देश्य
[संपादित करें]व्यक्तित्व का पंथ का मुख्य उद्देश्य नेता की सत्ता को स्थिर करना और विरोध को दबाना होता है। इसके माध्यम से जनता में नेता के प्रति अटूट विश्वास और श्रद्धा उत्पन्न की जाती है, ताकि वह किसी भी आलोचना या विरोध से बच सके। इसके अलावा, यह प्रक्रिया राष्ट्रीय एकता और समर्पण की भावना को भी बढ़ावा देती है।
व्यक्तित्व पूजा वाले राज्य और प्रणालियाँ
[संपादित करें]व्यक्तित्व का पंथ का प्रयोग इतिहास और वर्तमान में कई देशों में देखा गया है। यह प्रायः तानाशाही या केंद्रीकृत सत्ता वाले शासन में अधिक होता है, जहां नेता की छवि को महान और अडिग प्रस्तुत किया जाता है। प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं:
- सोवियत संघ: जोसेफ स्टालिन के शासनकाल (१९२४–१९५३) में व्यक्तित्व पूजा का व्यापक प्रयोग हुआ। स्टालिन की छवि को एक अद्वितीय नायक और पार्टी के सर्वोच्च नेता के रूप में प्रचारित किया गया। उनके चित्र, मूर्तियाँ और प्रेरक उद्धरण हर सार्वजनिक स्थान पर लगाए गए थे।
- चीन: माओ ज़ेडॉन्ग के नेतृत्व में (१९४९–१९७६) व्यक्तित्व पूजा ने अत्यधिक रूप ले लिया। "महान नेता" के रूप में माओ की छवि को स्कूलों, मीडिया, और जनसभा में प्रस्तुत किया गया। उनका लाल पुस्तक (“लिटिल रेड़ बुक”) हर नागरिक तक पहुँचाई गई।
- उत्तर कोरिया: किम इल-संग और उनके उत्तराधिकारी किम जोंग-इल तथा किम जोंग-उन के शासन में व्यक्तित्व पूजा चरम पर है। किम परिवार के सदस्यों की छवि हर जगह दिखती है, और उनके प्रति अटूट श्रद्धा को सरकारी प्रचार, शिक्षा और मीडिया के माध्यम से बढ़ावा दिया जाता है।
- इटली: बेंतो मुसोलिनी के शासन (१९२२–१९४३) में फासीवादी शासन ने व्यक्तित्व पूजा को बढ़ावा दिया। मुसोलिनी की छवि को नायक और राष्ट्र निर्माता के रूप में प्रस्तुत किया गया।
- जर्मनी: एडॉल्फ हिटलर के नेतृत्व में (१९३३–१९४५) नाजी जर्मनी में व्यक्तित्व पूजा ने अत्यधिक महत्व प्राप्त किया। हिटलर को देशभक्त और महान नेता के रूप में प्रचारित किया गया, और उनके विचारों को हर माध्यम से जनता तक पहुँचाया गया।
- भारत: स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक व्यवस्था में भी व्यक्तित्व पूजा के उदाहरण पाए जाते हैं। महात्मा गांधी, पंडित नेहरू और कुछ आधुनिक राजनीतिक नेताओं के इर्द-गिर्द समर्थकों द्वारा उन्हें आदर्श और नायक के रूप में देखा गया। हालांकि, यह लोकतांत्रिक परिवेश में है और यहाँ आलोचना और विरोध की स्वतंत्रता बनी रहती है।
- फिलिपीन्स: फर्डिनेंड मार्कोस के शासनकाल (१९६५–१९८६) में उनके प्रति अत्यधिक भक्ति और समर्थन को बढ़ावा देने के लिए प्रचार का इस्तेमाल किया गया। उनका चित्र हर सरकारी कार्यालय और स्कूल में लगा रहता था।
- रोमानिया: निकोलाए चौसेस्कु और उनकी पत्नी एलिना चौसेस्कु के शासन (१९६५–१९८९) में व्यक्तित्व पूजा का चरम देखा गया। उनकी छवि को महान नेता और राष्ट्र निर्माता के रूप में प्रस्तुत किया गया।
- चेकोस्लोवाकिया: कोम्युनिस्ट शासन में क्लाउड ब्रेज़्नेव और अन्य नेताओं की छवि को आदर्श और स्थायी नेता के रूप में प्रस्तुत किया गया।
- एथियोपिया: मेनेलिक और हायले सेल्लासिए जैसे नेताओं के शासनकाल में भी व्यक्तित्व पूजा के उदाहरण देखे गए। विशेष रूप से हायले सेल्लासिए की छवि को महान शासक और धार्मिक प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया गया।
- कंबोडिया: पोल पॉट और खमेर रूज के शासन में, स्वयं को महान नेता और क्रांतिकारी के रूप में प्रस्तुत किया गया।
- लेबनान: हिज़बुल्लाह और अन्य राजनीतिक गुटों के नेताओं के प्रति समर्थकों में व्यक्तित्व पूजा के लक्षण देखे गए, विशेषकर युद्ध और संघर्ष के समय।
- सीरिया और इरान: हाफ़ेज़ अल-असद और उसके बाद बशर अल-असद के शासन में, और इरान में अयातुल्लाह खुमैनी के शासन में नेता की छवि को अत्यधिक आदर्श और दिव्य रूप में प्रचारित किया गया।
- अन्य देश: दुनिया के अन्य हिस्सों में भी व्यक्तित्व पूजा के उदाहरण मिलते हैं। ज़ैमर (युगांडा) के ईदी अमीन, इराक के सद्दाम हुसैन, और क्यूबा के फिदेल कास्त्रो ने भी अपने शासनकाल में व्यक्तित्व पूजा का प्रयोग किया। इन सभी उदाहरणों में नेता की छवि को जनता के बीच महान और अपरिवर्तनीय दर्शाने का प्रयास किया गया।
व्यक्तित्व का पंथ वाले ये राज्य और प्रणालियाँ दिखाते हैं कि कैसे सत्ता और प्रचार के माध्यम से नेताओं को जनता में अविस्मरणीय और आदर्श रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह प्रक्रिया लोकतंत्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकती है, विशेषकर तब जब आलोचना और विरोध की स्वतंत्रता सीमित हो।
संदर्भ
[संपादित करें]- ↑ Mudde, Cas and Kaltwasser, Cristóbal Rovira (2017) Populism: A Very Short Introduction. New York: Oxford University Press. p. 63. ISBN 978-0190234874
- ↑ Hunter, Sarah. "Love and Exploitation: Personality Cults, Their Characteristics, Their Creation, and Modern Examples" (PDF). p. 22.
- ↑ Plunkett, John (2013). "Carte-de-visite". In Hannavy, John (ed.). Encyclopedia of Nineteenth-Century Photography (अंग्रेज़ी भाषा में). Routledge. pp. 276–277. डीओआई:10.4324/9780203941782. ISBN 978-0203941782.
- ↑ "Fine Arts: Mr Mayall's Photographic Exhibition". Morning Herald. London. 16 August 1860. p. 6.
- ↑ Darrah, William C. (1981). Cartes de Visite in Nineteenth Century Photography (अंग्रेज़ी भाषा में). Gettysburg, PA: W. C. Darrah Publishing. p. 43. ISBN 978-0913116050. ओसीएलसी 8012190.
- ↑ Di Bello, Patrizia (19 March 2013). "Carte-de-visite: the photographic portrait as ʻsocial mediaʼ" (PDF). Understanding British Portraits: Copy, Version and Multiple: the replication and distribution of portrait imagery. – via Seminar: M Shed, Bristol.
- ↑ Rudd, Annie (2016). "Victorians Living in Public: Cartes de Visite as 19th-Century Social Media". Photography and Culture. 9 (3): 195–217. डीओआई:10.1080/17514517.2016.1265370. एस2सीआईडी 193760648.