वैदिक राष्ट्रगान

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

वैदिक राष्ट्रगान (संस्कृत:राष्ट्राभिवर्द्धन मन्त्र) शुक्ल यजुर्वेद के २२वें अध्याय में मन्त्र संख्या २२ में वर्णित एक प्रार्थना है जिसे वैदिक कालीन राष्ट्रगान कहा जाता है।

यह प्रार्थना यज्ञों में स्वस्ति मंगल के रूप में गाई जाती है। इसमें राष्ट्र के विभिन्न घटकों के सुख-समृद्धि की कामना की गयी है। वेदों में राष्ट्र के कल्याण सम्बन्धी अनेक प्रार्थनायें हैं। वैदिक राष्ट्र चिन्तन का यह एक उदाहरण मात्र है। यह प्रार्थना राष्ट्र के लिये आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी उस समय थी।

वैदिक राष्ट्रगान का मन्त्र द्रष्टव्य है:-

आ ब्रह्यन्‌ ब्राह्मणो बह्मवर्चसी जायताम्‌

आ राष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्यः अति
व्याधी महारथो जायताम्‌
दोग्ध्री धेनुर्वोढानड्वानाशुः सप्तिः
पुरंध्रिर्योषा जिष्णू रथेष्ठाः सभेयो
युवाअस्य यजमानस्य वीरो जायतां
निकामे निकामे नः पर्जन्यो वर्षतु
फलवत्यो न ओषधयः पच्यन्ताम्‌

योगक्षेमो नः कल्पताम्

-- शुक्ल यजुर्वेद ; अध्याय २२, मन्त्र २२

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]