वैज्ञानिक लेखन

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वैज्ञानिक लेखन (Scientific writing) से अभिप्राय 'विज्ञान के लिये लिखना' है। विज्ञान लेखन का अर्थ है, विज्ञान, आयुर्विज्ञान, प्रौद्योगिकी के बारे में सामान्य जनता के पढ़ने के लिये लिखना। वैज्ञानिक लेखन पत्रिकाओं, समाचारपत्रों, लोकप्रिय पुस्तकों, संग्रहालय की दीवारों, टीवी और रेडियो कार्यक्रमों तथा इन्टरनेट आदि माध्यमों पर प्रकाशित हो सकता है।

प्राचीन भारतीय वैज्ञानिक साहित्य में वैज्ञानिक लेखन[संपादित करें]

भारत में वैज्ञानिक विषयों पर लेखन की बहुत प्राचीन परम्परा रही है। गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, स्थापत्य, व्याकरण आदि पर अनेकानेक ग्रन्थ रचे गये। इन ग्रन्थों में पुराने ग्रन्थों या उनके रचनाकारों का नामोल्लेख करने की परम्परा थी। ग्रन्थों के भाष्य भी लिखे जाते थे क्योंकि मूल ग्रन्थ संक्षिप्त या सूत्ररूप में होते थे। इसके साथ ही ग्रन्थों को लिखते समय विषय को वैज्ञानिक ढंग से अभिव्यत करने की विधियों पर भी गहन चिन्तन हुआ है।

तन्त्रयुक्ति, ताच्छील्य, कल्पना आदि का वर्णन प्राचीन ग्रन्थों में हुआ है। इनका उपयोग वैज्ञानिक साहित्य की गुणवत्ता को स्तरीय बनाये रखने के लिये किया जाता था। इन सुस्थापित लेखन-पद्धतियों के कारण ही संहिताएँ, संग्रह-ग्रन्थ, और निघण्टु आदि की रचना इतनी एकरूपता लिये हुए हो सकी और अच्छे स्तर का साहित्य निर्मित हुआ। न्यायशास्त्र अन्य सभी शास्त्रों के लिये तर्कशास्त्र का मूलग्रन्थ है। इसमें पांच अवयवों (पञ्चावयव) का विधान बताया गया है-

प्रतिज्ञाहेतूदाहरणोपनयनिगमनानि अवयवाः॥ (न्यायसूत्र 1.३२)

पञ्चावयव के अन्तर्गत (१) प्रतिज्ञा (hypothesis) (२) हेतु (३) उदाहरण (४) उपनय और (५) निगमन आते हैं। [1]

चरकसंहिता के विमानस्थान में 'शास्त्रपरीक्षा' नाम से वैज्ञानिक लेखन के लिये आवश्यक तत्त्वों का वर्णन किया गया है। इनको वहाँ 'तन्त्रगुण' कहा गया है। तन्त्रगुण के अन्तर्गत लेखन की भाषा, क्रम, मात्रा (विस्तार), विधि आदि आते हैं।[2]

यद्यपि ये गुण, आयुर्वेद के ग्रन्थों के लिये बताये गये हैं, किन्तु ये अन्य शास्त्रों की संहिताओं के लिये भी सत्य हैं।

बुद्धिमानात्मनःकार्यगुरुलाघवंकर्मफलमनुबन्धंदेशकालौचविदित्वायुक्तिदर्शनाद्भिषग्बुभूषुःशास्त्रमेवादितःपरीक्षेत। (चरकसंहिता 8.3)

ये गुण निम्नलिखित हैं-

सुमहत् , यशस्विधीरपुरुषासेवितम् , अर्थबहुलम् , आप्तजनपूजितम् , त्रिविधशिष्यबुद्धिहितम् , अपगतपुनरुक्तदोषम् , आर्षम् , सुप्रणीतसूत्रभाष्यसङ्ग्रहक्रम् , स्वाधारम्, अनवपतितशब्दम्, अकष्टशब्दम् , पुष्कलाभिधानम् , क्रमागतार्थम् , अतत्त्वविनिश्चयप्रधानम्, असङ्गतार्थम् , असङ्कुलप्रकरणम् , आशुप्रबोधकम् , क्षणवच्चोदाहरणवच्च ।[3]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]