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वृक्कीय खराबी

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वृक्कीय खराबी/ सिरोसिस
वर्गीकरण व बाहरी संसाधन
्सिरोसिस के ट्राइक्रोम स्टेन का माइक्रोग्राफ़
आईसीडी-१० K70.3, K71.7, K74.
आईसीडी- 571
रोग डाटाबेस 2729
ई-मेडिसिन med/3183  radio/175
एमईएसएच D008103
Cirrhosis leading to hepatocellular carcinoma (autopsy specimen).
Liver cirrhosis as seen on an axial CT of the abdomen.

वृक्कीय खराबी (अंग्रेज़ी:सिरोसिस) में वृक्क की इलेक्ट्रोलाइटस को संरक्षित करने, मूत्र को जमा करने, मैल को उत्सर्जित करने की क्षमता धीरे-धीरे निरंतर रूप से कम होती जाती है। इसे गुर्दे की खराबी-दीर्घकालिक, वृक्कीय खराबी-दीर्घकालिक, दीर्घकालिक वृक्कीय अक्षमता, सी आर एफ, दीर्घकालिक गुर्दे की खराबी आदि नामों से भी जाना जाता है। तेजी से होने वाले वृक्कीय रोग जिसमें गुर्दे एकाएक खराब हो जाते है, लेकिन वह फिर से कार्य करने लगते हैं जबकि दीर्घकालिक वृक्कीय रोग धीरे-धीरे गंभीर रूप धारण करने लगते हैं। ऐसा अक्सर किसी भी अन्य रोग के परिणामस्वरूप हो सकते हैं, जिसमें गुर्दे धीरे धीरे कार्य करना बंद कर देते है। गुर्दे के, मामूली से लेकर गंभीर रोग हो सकते हैं। दीर्घकालिक वृक्कीय रोग सामान्यतः कई वर्षों में पनपता है क्योंकि गुर्दे की आंतरिक संरचना धीरे धीरे क्षतिग्रस्त होती जाती है। रोग की आरंभिक स्थिति में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। जब तक गुर्दे का दसवां भाग भी सामान्य रूप से कार्य करता रहता है तब तक कोई लक्षण दिखाई नहीं देता। मधुमेह और उच्च रक्तचाप इन दो कारणों से सामान्यतः दीर्घकालिक वृक्कीय रोग होता है। दीर्घकालिक वृक्कीय रोग की वजह से शरीर में व्यर्थ पदार्थ और द्रव जमा होने लगता है जिससे एझोटेमिया और यूरेमिया होता है। रक्त में व्यर्थ पदार्थ नाइट्रोजन के जमा होने से एझोटेमिया होता है। इसमें ऐसा आवश्यक नहीं कि लक्षण दिखाई दें। वृक्कीय रोग की वजह से स्वास्थ्य पर पड़ने वाला दुष्प्रभाव ही यूरेमिया है। दीर्घकालिक वृक्कीय रोग से अधिकांश शारीरिक तंत्र प्रभावित होता है। द्रव के जमा होने और यूरेमिया से कई जटिलताएं उत्पन्न होती हैं।

आरंभिक लक्षणों में बिना किसी वजह के वजन कम होना, जी मिचलाना, उल्टियां, स्वास्थ्य ठीक न लगना, थकान, सिरदर्द, अक्सर हिचकियां आना, स्थान विशेष पर खुजली आना, हो सकते हैं। कुछ समय बाद बहुत ज्यादा या बहुत कम पेशाब आना, रात में पेशाब करना पड़े, आसानी से खरोंच लगना और खून निकलना, खून की उल्टियां होना या मल में से खून निकलना, सुस्ती आना, उनींदापन, नींद में चलना, निष्चेष्ट, असमंजसता सन्निपात, कोमा, मांसपेशियों में जकड़न या ऐंठन मरोड़, जकड़न, यूरेमिक फ्रोस्ट-त्वचा पर सफेद चमकदार धब्बे पड़ना, हाथ, पैर या अन्य भागों में संवेदना में कमी आदि हो सकते हैं।

इनके अलावा इसके कुछ और लक्षण भी हो सकते हैं, जिनमें रात में अधिक पेशाब आना, अधिक प्यास लगना, असामान्य रूप से काली या उजली त्वचा, पीलापन, नाखून असामान्य होना, सांस में दुर्गंध, उच्च रक्तचाप, भूख में कमी और उग्र होना हो सकते हैं।

यदि दो हफ्तों से ज्यादा अवधि से मिचली आ रही हो या उल्टी हो रही हो या कम पेशाब आ रहा हो या दीर्घकालिक वृक्क रोग के अन्य लक्षण दिखाई दे रहे हों तब चिकित्सक से परामर्श लें।

इस रोग के इलाज से इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है या इसे बढ़ने से रोका जा सकता है। रोगी को ब्लड शुगर और रक्तचाप पर नियंत्रण रखना चाहिए और धूम्रपान से बचना चाहिए।