वेंकटरमण राघवन
वेंकटरमण राघवन | |
---|---|
पेशा | साहित्यकार |
भाषा | संस्कृत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
काल | आधुनिक काल |
उल्लेखनीय कामs | भोज श्रृंगार प्रकाश |
वेङ्कटरमण राघवन (1908–1979) एक संस्कृत विद्वान तथा संगीतज्ञ थे। उन्हें पद्मभूषण, संस्कृत के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई पुरस्कार प्रदान किये गये थे। उन्होने १२० से अधिक पुस्तकों की रचना की तथा १२०० से अधिक लेख लिखे।
इनके द्वारा रचित एक सौन्दर्यशास्त्र भोज श्रृंगार प्रकाश के लिये उन्हें सन् १९६६ में साहित्य अकादमी पुरस्कार (संस्कृत) से सम्मानित किया गया।[1]
जीवनी
[संपादित करें]वेंकटरमण राघवन् का जन्म 22 अगस्त 1908 को तमिलनाडु के तंजौर जिले के तिरुवायुर में हुआ था। इनके पिता का नाम वेंकटराम अय्यर तथा माता का नाम मीनाक्षी था। आपने 1930 में तीन कॉलेज पुरस्कार और पांच विश्वविद्यालय पदक के साथ प्रेसीडेंसी कॉलेज, मद्रास से स्नातक किया। आपने महामहोपाध्याय प्रोफेसर एस कुप्पुस्वामी शास्त्री से संस्कृत भाषा, साहित्य, तुलनात्मक दर्शन और भारतीय दर्शन के साथ में एम. ए किया। 1934-1935 मद्रास विश्वविद्यालय से महामहोपाध्याय कुप्पुस्वामी शास्त्री के अधीन शृंगारप्रकाश पर पीएचडी की उपाधि प्राप्त किया। आपने संस्कृत भाषण और लेखन के लिए भी पदक और पुरस्कार जीते।
सरस्वती महल पांडुलिपि पुस्तकालय में कुछ समय तक पर्यवेक्षण का कार्य करने के बाद, अल्मा मेटर, मद्रास विश्वविद्यालय के अनुसंधान विभाग से जुड़े। वहाँ शोध विद्वान् पर नियुक्त होकर प्रोफेसर के पद तक पहुंचे। मद्रास विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग से आप दिसंबर 1968 में संस्कृत विभाग के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष के रूप में सेवानिवृत्त हुए। । इस प्रकार आप 1935 से 1960 तक मद्रास विश्वविद्यालय से जुड़े रहे।
कृतित्व
[संपादित करें]आपने मुक्तक काव्य, खंडकाव्य, कथा, काव्यशास्त्र, अन्योक्ति, सुभाषित आदि की रचना की जिसमें यूरोप के यात्रा का अनुभव, आधुनिक जीवन की समस्याएं, पश्चिमी काव्य धारा का संपर्क देखने को मिलता है। आपकी कृतियाँ पारम्परिक रचना बंध तथा रसास्वाद की भूमि पर भी अवस्थित हैं। आपके काव्य में देश तथा विश्व में हो रहे परिवर्तनों के प्रति सजगता है। विभिन्न विचारधाराओं का समावेश है। अंग्रेजी की स्वच्छंदतावादी कविता की प्रेरणा भी है। कहीं-कहीं आत्म अनुभूतियों की गहनता और कहीं निसर्ग के सौन्दर्य के प्रति ललक का भाव है। संस्कृत कविता को नए मुहावरे और नई शैली से अलंकृत करने में भी आपका योगदान है। संस्कृत में 1960 से लेकर 1980 तक राघवन् युग माना जाता है जिसमें संस्कृत गद्य का क्रांतिकारी विकास हुआ। आपने 1969 में एक आर्मीनियाई कहानी का संस्कृत में अनुवाद किया। यह संकलन के रूप में भी प्रकाशित हुआ। इसके अतिरिक्त आंध्रदेश्यहास्यकथाः 1964 में भी प्रकाशित हुआ।
आप संस्कृत के कई हस्तलिखित ग्रंथों का प्रकाशन किया है। ऑल इंडिया ओरियन्टल कॉन्फ्रेंस के श्रीनगर अधिवेशन तथा विश्व संस्कृत सम्मेलन के नई दिल्ली अधिवेशन के अध्यक्ष रहे । आप कवि कोकिल, सकल कला कलाप, विद्वत्कविन्द्र तथा पद्म भूषण की उपाधियों से विभूषित हुए ।
आपने 1953-58 में यूरोप के 13 देशों का दौरा किया, जिसमें संस्कृत और संबद्ध अध्ययनों के विश्वविद्यालय केंद्रों, संस्थानों, संग्रहालय, पुस्तकालयों का दौरा किया। यूरोप में स्थित २० हजार संस्कृत की अप्रकाशित पांडुलिपियों की एक सूची तैयार की । अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लेने के अलावा, आपने 1962-63 में दो बार पाण्डुलिपि की खोज में नेपाल के काठमांडू की यात्रा की। आपने पूर्व एशिया के देशों, ऑस्ट्रेलिया, मॉरीशस, कनाडा और मैक्सिको आदि देशों की भी यात्रा की।
आपकी कविता परंपरा में आधुनिकता का समागम है। आपने लगभग 120 से अधिक पुस्तकों और 1200 लेखों को लिखा, जिसमें अलंकार शास्त्र विषय पर 25 ग्रंथ हैं। १९५४ में SANSKRIT and ALLIED INDO-LOGICAL STUDIES नामक एक पुस्तक प्रकाशित की।
- खण्डकाव्य/ गीतिकाव्य/ लघुकाव्य
गोपहम्पनः(1947), देववन्दीवरदराजः(1948),महात्मा (1948), उच्छ्वसितानि (1978), प्रमैव योगः (1978), प्रतीक्षा (1976), वाग्वादिनी सहस्रतन्त्री (1969), पुलकितमेति कश्चित्कविः, सर्वधारी, महीपो मनुनीतिचोलः, फाल्गुनषोडशी स्तुतिः, किं प्रियं कालिदासस्य, नरेन्द्रो विवेकानन्दः, श्लिष्टप्रकीर्णक, किमिदं तव कार्मणम्, कालः कविः, संक्रान्तिमहः, कविर्ज्ञानी ऋषिः, विश्वभिक्षुस्तवः, कामकोटिकार्मण,गृहीतमिवान्तरंगम्, कावेरी,शब्दः (नृत्यगीत) वैवर्तपुराणम्, ब्रह्मपत्र, दम्मविभूतिः, स्वराज्यकेतु, अभ्रमभ्रमभ्रविलायम् (यात्रावृत्तांत)।
- स्तोत्रकाव्य
श्रीकामाक्षीमातृकास्तवः 1979, श्रीमीनाक्षीसुप्रभातम् 1979,
- महाकाव्य
मुत्तुस्वामी दीक्षितचरितम्, 1955
- रूपक
विमुक्ति, रासलीला, कामशुद्धि, पुनरुन्मेष, लक्ष्मीस्वयंवर, आषाढस्य प्रथमदिवसे, महाश्वेता, प्रतापरुद्रविजय, अनारकली
- प्रेक्षणक (ओपेरा)
विकटनितम्बा, अवन्तिसुन्दरी, विज्जिका
- संस्कृत विषयों पर अंग्रेजी में लिखित पुस्तकें
The Number Of Rasas (1975)
Rtu In Sanskrit Literature (1972)
Some concepts of Alankara Sastra
Sanskrit and Allied Indological Studies in Europe
Sanskrit and Allied Indian Studies in U.S.
The Social Play in Sanskrit
Love in the Poems and Plays of Kalidasa
Modern Sanskrit Writings
Srngaramajari of Akbarshah
Agamadambara of Jayanta
- सम्पादन
- न्यू कैटलस कैटलोरम (एनसीसी) के 5 भाग का सम्पादन, प्रकाशन
- जर्नल ऑफ़ ओरिएंटल रिसर्च, जर्नल ऑफ़ द म्यूज़िक एकेडमी, मद्रास, एवं साहित्य अकादमी की पत्रिका संस्कृत प्रतिभा के सम्पादक।
- भोज कृत शृंगारप्रकाश का अनुवाद ,1963 ( काव्य और नाटक से संबंधित। यह ग्रन्थ 36 अध्यायों में विभक्त है।)
इसके अतिरिक्त आपने संस्कृत में अनेक मूल एवं आलोचनात्मक ग्रन्थों को लिखा। आपने तमिल में भी कहानियां तथा संस्कृतिक लेख लिखे।
सम्मान एवं पुरस्कार
[संपादित करें]- 1962 में साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में पद्मभूषण पुरस्कार मिला।
- 1966 में संस्कृत के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
- 1969 में जवाहरलाल नेहरू फाउन्डेशन, नई दिल्ली ने शृंगार प्रकाश की पाण्डुलिपियों के सम्पादन के लिए फैलोशिप दिया।
- 1971 में कैनबरा, ऑस्ट्रेलिया में ओरिएंटलिस्टों की 28 वीं अंतर्राष्ट्रीय कांग्रेस में भाग लिया।
- 1998 में हार्वर्ड ओरिएंटल सीरीज के वॉल्यूम 53 के रूप में प्रकाशित किया गया था।
- श्री कांची शंकराचार्य द्वारा उनकी काव्य रचनाओं के लिए कवि-कोकिल की उपाधि और शाला-कला-कल्प को उनकी बहुमुखी उपलब्धि के लिए सम्मानित किया गया।
- विशिष्ट शोध के लिए एशियाटिक सोसायटी, बॉम्बे द्वारा 1953 केन गोल्ड मेडल से सम्मानित।
- संगीत
एक संगीतज्ञ के रूप में, उन्होंने कर्नाटक संगीत में विशेषज्ञता प्राप्त की। सन 1944 से अपनी मृत्यु तक वे संगीत अकादमी, मद्रास के सचिव थे। आप ने सन् 1958 में मद्रास में संस्कृत रंगमंच की स्थापना की। संस्कृत भाषा, भारतीय संस्कृति के विविध पहलुओं के पोषण और प्रचार के लिए आपकी पत्नी पत्नी श्रीमती शारदा राघवन द्वारा डॉ वी राघवन सेन्टर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स' की स्थापना 1974 में की। यह केंद्र 1998 में पंजीकृत किया गया। यह एक गैर-लाभकारी संगठन है। । ट्रस्ट की गतिविधियों को परिवार के संसाधनों, संस्कृति मंत्रालय, भारत के शासन और कुछ निजी स्रोतों तथा से संरक्षण दिया जाता है।
उनकी जन्मशताब्दी पर अगस्त 2008 में समारोह आयोजित किए गए थे। इस अवसर पर स्मृति कुसुमंजलि पुस्तक का विमोचन किया गया।
धारित पद
[संपादित करें]संस्कृत आयोग के सदस्य
केंद्रीय संस्कृत बोर्ड और इंडोलॉजी समिति के सदस्य
राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, शिक्षा मंत्रालय के केंद्रीय प्रकाशन समिति के अध्यक्ष
साहित्य अकादमी के संयोजक
संस्कृत सलाहकार बोर्ड,नेशनल बुक ट्रस्ट के सदस्य
संगीत नाटक अकादमी कार्यकारी समिति के सदस्य
कुछ समय के लिए संस्कृत, ऑल इंडिया रेडियो के विशेष सलाहकार
कई पांडुलिपियों के पुस्तकालयों के लिए सलाहकार
न्यू संस्कृत डिक्शनरी बोर्ड और पुराण संपादकीय बोर्ड के सदस्य
निदेशक / सचिव, कुप्पुस्वामी शास्त्री अनुसंधान संस्थान और सचिव, संगीत अकादमी, मद्रास
1951-59 तक अखिल भारतीय प्राच्य सम्मेलन के सचिव रहे।
1961 में आयोजित अखिल भारतीय प्राच्य सम्मेलन के 21 वें सत्र के दो बार अनुभाग अध्यक्ष और सामान्य अध्यक्ष
सरकार द्वारा केंद्रीय संस्कृत संस्थान के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त।
प्रथम विश्व संस्कृत सम्मेलन, शिक्षा मंत्रालय (1972) के अध्यक्ष (अकादमिक)
अध्यक्ष, संस्कृत अध्ययन के अंतर्राष्ट्रीय संघ; एस।
संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा विद्या वाचस्पति (डी. लिट) की उपाधि
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "अकादेमी पुरस्कार". साहित्य अकादमी. Archived from the original on 15 सितंबर 2016. Retrieved 4 सितंबर 2016.