वी० ओ० चिदम्बरम पिल्लै

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व उ चिदम्बरम पिल्लै

व उ चिदम्बरम
जन्म 5 सितम्बर 1872
ओट्टपिडारम, तिन्नवेल्लि जिला, तमिलनाडु
मौत 18 नवम्बर 1936(1936-11-18) (उम्र 64)
तुतुकुडि
राष्ट्रीयता भारतीय
उपनाम व वु चि, कप्पल् उट्टिय् तमिळन्, चेक्किळित्त तमिळ्न्
राजनैतिक पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
जीवनसाथी मीनाक्षी
बच्चे 4 पुत, 4 पुत्रियाँ
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वल्लियप्पन उलगनाथन चिदम्बरम पिल्लै (1872–1936) तमिलनाडु के एक राजनेता एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वे बालगंगाधर तिलक के शिष्य थे। वे 'वी. ओ. सी' नाम से विख्यात हैं तथा 'कप्पलोट्टिय तमिलन' नाम से भी जाने जाते हैं। उन्हें भारतीय जलयान उद्योग को सम्मान जनक स्थान दिलवाने के लिए याद किया जाता है, पर वे एक महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। भारतीय जहाज कंपनी शुरू करने के कारण उन्हें अंग्रेज सरकार ने अत्यधिक प्रताड़ित किया। वे लंबे समय तक जेल में भी बंद रहे, जहाँ उन्हें कोल्हू तक में जोता गया। श्री पिल्लै एक प्रखर वकील भी थे। अपने जीवन का अंतिम चरण उन्होंने साहित्य सेवा में व्यतीत किया।

'कप्पलोट्टिय तमिलन' मतलब 'जहाज चलानेवाला तमिल आदमी'।

प्रारंभिक जीवन[संपादित करें]

वी.ओ.चिदम्बरम पिल्लै का जन्म 5 सितंबर 1872 को भारत के तमिलनाडु राज्य के अन्तगर्त तूत्तुक्कुडि जिला स्थित ओट्टपिडारम में हुआ था। वे एड्वोकेट उलगनातन पिल्लै और उनकी पत्नी परमाई अम्माल के सबसे बडे पुत्र थे। 6 वर्ष की आयु में चिदम्बरम अपने गुरु वीरपेरुमाल अण्णावी से तमिल भाषा सीखे। वे अपनी दादी मां से भगवान शिव की और दादाजी से रामायण की कथा सुनी। अल्लिक्कुलम सुब्रमण्य पिल्लै से उन्होनें महाभारत की कहानियां सुनी। बचपन से वे गोली, कबड्डी, घुड़सवारी, तैराकी, सर्प की तरह रेंगना, धनुर्विद्या, कुश्ती और शतरंज खेलना सीखे।

वे शाम को तालुका आफ़िसर कृष्णन से अंग्रेजी सीखे। चितम्बरम के पिताजी ने ग्रामीणों की मदद से स्कूल का निर्माण किया और एट्टैयापुरम में रहनेवाले अरम्वलर्थ्नादन पिल्लै को अंग्रेजी शिक्षक के रूप में नियुक्त किया। वह स्कूल पुधियमुतूर के पाद्री फ़ाद्र एड्म्सन के द्वारा संचालित था। 14 वर्श की आयु में चितम्बरम अपने पढ़ाई चालू रखनेने केलिए तूत्तुक्कुडि गये। वे सेंट जेवियर हाईस्कूल, काल्ड्वेल हाईस्कूल तूत्तुक्कुडि और हिन्दू कालेज हाईस्कूल तिरुनेल्वेली में पढे।

चिदम्बरम के पिताजी ने उन्हें कानून की पढाई करने के लिए तिरुचिरापल्ली भेजा। इस्के पहले वे तालुका आफ़िस में क्लर्क के पद पर कुछ समय तक काम किए। वे 1894 में वकालत की परीक्षा पास की। 1895 में ओट्ट्पिडारम लौट आए और वकालत शुरू कर दी। चेन्नई में उन्की मुलाकात संत रामकृष्णान्तर से हुई जो स्वामी विवेकानन्द आश्रम से संबंधित थे, जिन्होंने उन्हें देश के हित में कुछ करने की प्रेरणा दी। यह चिदम्बरम को राजनीति की तरफ मोड़ा। सन 1900 के बाद चेन्नई में वे तमिल कवि भारतीयार से मिले और दोनों लोग एक दूसरे के अभिन्न मित्र बन गए।

राजनीतिक जीवन[संपादित करें]

सन 1890 और 1900 के दशक में भारतीय स्वतंत्र्ता और स्वदेशी आंदोलन की मांग उठ रही थी जिस्का नेतृत्व भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बालगंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय कर रहें थे। सन 1892 से चिदम्बरम तिलक महराज के व्यक्तित्व से बडे प्रभावित होकर उन्के शिष्य बन गए। सुब्रमण्य सिवा और सुब्रमण्य भारती के साथ-साथ चिदम्बरम मद्रास प्रेसिडेंसी के मुख्य प्रवक्ता बन गए। चिदम्बरम ने स्वदेशी प्रचार सभा, धर्म संघ नेसवु सालै, नेशनल गोडौन, मद्रास अग्रो इन्ड्स्ट्रियल लिमिटेड और देशाभिमान संगम जैसी संस्थाओं का निर्माण किया।

स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कम्पनी[संपादित करें]

ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेविगेशन कम्पनी ने एकाधिकार व्यापार किया। चिदम्बरम ने स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कम्पनी शुरु किया। अक्टूबर 1906 में उन्होंने स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कम्पनी का पंजीकरण कराया। उस समय कंपनी की पूंजी 10 लाख रुपये थी। शेयरों संख्या 40,000 थी। प्रत्येक शेयर का मूल्य 25 रु था। कोई भी आशिया निवासी शेयर खरीद सकता था। कंपनी का निर्देशक श्रि पाण्डि तुरै तेवर थे। वे एक जमीनदार और मदुरै तमिल संगम के अध्यक्ष थे। जनाब हाजी मोहम्मद बकीर सेठ 8,000 शेयर ख्रीद कर कम्पनी को 2 लाख रुप्या सहायता दिए। यही कम्पनी की प्रारंभिक पूंजी थी।

प्रारम्भ में कंपनी के पास कोई पानी का जहाज नहीं था। शालयन स्टीमर कम्पनी से किराये में जहाज लाये। ब्रिटिश इंडिया स्टीम नेविगेशन कम्पनी ने शालयन स्टीमर कम्पनी को पट्टा रद्द करने के लिए दबाब डाला। फलस्वरूप चिदम्बरम ने श्रीलंका से एक बड़ा जहाज को माल लादनेवाला पट्टे पर लिया। अब उनहोंने स्वदेशी शिपिंग कम्पनी के लिए स्वयम का जहाज की अवश्यक्ता को समझकर लिया। कम्पनी की पूंजी में वृद्धि करने के लिये चिदम्बरम पूरा भारत भ्रमण किए। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि "मैं जहाज के साथ लौटूंगा नहीं तो समुद्र में दूब मरूंगा।" कम्पनी का पहला पानी का जहाज एस. एस. गालिया खरीदने के लिए पर्याप्त धन संग्रह करने में वे सफल रहे। शीघ्र ही इस्के बाद फ़्रांस से एस. एस. लाओ को प्राप्त करने में भी वे सफल रहे।

नई स्पर्धा के फलस्वरूप बी. ऐ. एस. एन. सी. ने प्रति व्यक्ति एक रुपया भाड़ा कम कर दिया। इसके फलस्वरूप स्वदेशी कम्पनी ने आधा रुपया अर्थात 8 आना भाड़ा कर दिया। अंग्रेजी कम्पनी ने आगे चलकर यात्रियों को निःशुल्क सेवा के साथ एक मुफ़्त का छाता भी देना शुरू कर दिया। परन्तु राष्ट्रीय सद्भावना के चलते मुफ़्त की सेवा का कोई लाभ नहीं उठा था। बी. ऐ. एस. एन. सी. ने चिदम्बरम को खरीदने का बहुत प्रयत्न किया। परन्तु उन्होंने इस सौदे को ठुकरा दिया। स्वदेशी जहाज ब्रिटिश व्यापारियों और राजशाही सत्ता के विरोध के बावजूद नियमित तूत्तुक्कुडि और श्री लंका के बीच चलता रहा।

कोरल मिल हड़ताल[संपादित करें]

23 फरवरी 1908 को चिदम्बरम ने तूत्तुक्कुडि में कोरल मिल में कम वेतन और मजदूरों के सात सख्त काम की शर्त के प्रति मजदूरों को जागरूक करने के लिए ज्वलन्त भाषण दिया। चार दिन के बात कोरल मिल के मजदूर हड़ताल पर चले गये। चिदम्बरम और सुब्रमन्य सिवा हड़ताल का नेतृत्व किए। मजदूरों मांग में उन्के वेतन में वृद्धि, उनको सप्ताहिक अवकाश अन्य सुविधाएं शामिल थी। चिदम्बरम ने हड्ताल की व्यापकता का भरपूर प्रचार-प्रसार किया। इसमें लोगों का अपार सहयोग प्राप्त हुआ। 6 मार्च को प्रमुख लीपिक सुब्रमन्यम पिल्लै चिदम्बरम से मिले और कहे कि व्यवस्थापक मंडल उनकी बातें मानने के लिए तैयार है।

चिदम्बरम 50 मजदूरों के साथ मैनेजर से मिलने गए। मैनेजर ने वेतन बढाने, काम के घंटों को कम करने और रविवार छ्ट्टी देने की मांग मान ली। 9 दिन हड़ताल के बाद मजदूर काम पर लौट आए। हड़ल की सफलता ने दूसरी यूरोपियन कंपनियों के मजदूरों को अपने अधिकार की मांग के प्रति भी सचेत कर दिया। उनके वेतन में भी वृद्धि की गई और अच्छी सुख-सुविधा प्राप्त हुई।

गिरफ्तारी और कारावास[संपादित करें]

चिदम्बरम को कोल्हू में बैल की जगह जोता गया और कठिन धूप में वे कोल्हू खींच कर तेल निकाले।

सन 1908 के आसपास चिदम्बरम की राजनीतिक गतिविधियों की ओर अंग्रेजों की दृष्टि गई। बंगाली नेता विपिन्चंद्र पाल की जेल से मुक्तता का समारोह मना जा रहा था। उस में चिदम्बरम ने भाषण दिया। इस भाषण के बारें में सुन्कर अंग्रेज आफ़िसर श्रि विंच ने उन्हें अपने सहपाठी सुब्रमण्य सिवा के साथ तिरुनेल्वेली में बुलाया। बातचीत के समय विंच ने चिदम्बरम की राजनितिक गतिविधियों की तरह उनका ध्यान कींचा और सलाह दिया कि भविष्य में वे किसी भी राजनितिक आंदोलन में भाग न लें। चिदम्बरम ने उन्की सलाह मानने से इन्कार कर दिया। फ़लस्वरूप चिदम्बरम और उनके सहपाठी सुब्रमण्य सिवा को 12 मार्च 1908 को गिरफ़्तार कर लिया गया। उनकी गिरफ़्तारी का व्यापक विरिध हुआ। इस विरोध में तिरुनेल्वेली में दूकान, स्कूल और कालेज बंद रहे। शहर में दंगा भडक उठा। तिरुनेल्वेली नगरपालिका आफ़िस, पोस्ट आफ़िस, पुलीस स्टेशन और कोर्ट पर पथराव किया गया। तूत्तुक्कुडी में आम हश्ताल की घोषणा की गई, जो भारत की पहली राजनीतिक हड्तालच्के नाम से जानी जाती है। लोगों की आम सभा और जुलूस पर प्रतिबंध लगाया गया। पुलीस ने चार लोगों को जान से मार डाला।

यद्यपि उन्के सहयोगियों ने उनकी जमानत के लिए पर्याप्त रकम इकट्ठा कर लिया था, परंतु चिदम्बरम तब तक जेल से बाहर आने के लिए तैयार नहिं थे जब तक सिवा और उन्के अन्य दूस्रे सहयोगी जेल से बाहर नहीं निकल जाते। जिस केस में चिदम्बरम को फ़ंसाया गया था उस केस में सुब्रमण्य भारती और सुब्रमण्य सिवा भी सवाल-जवाब के लिए उपस्थित हुए थे। उनके ऊपर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 123A और 153A के अंतर्गत ब्रितिश के खिलाफ़ बोलने और सिवा को संरक्षण देने का मुकदमा दर्ज था। चिदम्बरम ने सुनवाई में भाग लेने से मना कर दिया।

उनके ऊपर देश्द्रोह का अभियोग लगा और उन्हें दो जन्मों का आजीवन (40 वर्षों) कारावास की सजा सुनाई गई। वे सेन्ट्रल जेल कोयम्बटूर में 9 जुलाई 1908 से बंदी बनाकर रखे गये। चिदम्बरम इस्की अपील हाई कोर्ट में किए। वहां उनकी सजा कम करके 4 वर्ष का कारावास और 6 वर्ष की नजरबंदी की सजा सुनाई गई प्रवी कौंसिल में अपील करने के बाद सजा कम कर दी गई। चिदम्बरम कोयम्बटूर (9 जुलाई 1908 से 1 दिसम्बर 1910 तक) और कन्ननूर (1 दिसम्बर 1910 से 24 दिसम्बर 1912 तक) की जेल में सजा को पूरा किए। उनके साथ राजनीतिक कैदी की तरह व्यवहार नहीं किया गया और न तो साधारण सजा दी गई, बल्कि उनके साथ आजीवन कारावास प्राप्त कैदी के जैसा व्यवहार किया गया। जेल में उनसे कठिन काम लिया गया। जिस्से उनका स्वास्थ्य खराब हो गया। इतिहासकार और तमिल विद्वान आर. ए. पदमनाभन ने लिखा है कि " चिदम्बरम को कोल्हू में बैल की जगह जोता गया और कठिन धूप में वे कोल्हू खींच कर तेल निकाले। अंत में उन्हें 24 दिसम्बर 1912 को जेल से मुक्त कर दिया जया।

उनको यह जान्कर आघात लगा कि स्वदेशी स्टीम नेविगेशन कम्पनी का 1911 में दिवाला निकल गया और कम्पनी ने अपनी पहला पानी की जहाज जिस्का नाम एस.एस. गालिया था उसे ब्रिटिश कंपनी को बेज दिया।

जिस कोल्हू को चिदम्बरम ने बैल की तरह खींचा था उसे चेन्नई में गिण्डी स्थित गांधी मण्डपम में प्रदर्शनी के लिए रखा गया है।

जीवन संध्या[संपादित करें]

जेल से मुख्त होने के बाद चिदम्बरम को उनके जनपद तिरुनेल्वेली जाने की अनुमति नहीं दी गई। उनकी वकालत का लाइसेंस रद्द कर दिया गया। इसलिए वे अपनी पत्नी और दो नौजवान लड्कों के साथ चेन्नई आ गए। वहां वे किराने की दुकान और केरोसिन स्टोर चलाने लगे।

1920 में गांधी के साथ सैद्धान्तिक मतभेद के चल्ते चिदम्बरम ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया। वे मदरास में रहकर मजदूर यूनियन पर ध्यान देने और लेख लिखने लगे। कोयम्बटूर आने के बाद चिदम्बरम बैंक मैनेजर के पद पर कार्य किये। परंतु इससे होने वाली आय से असंतुष्ट होकर उन्होंने कोर्ट से अपील की कि उन्हें फ़िर से वकालत शुरू करने की अनुमति दी जाए। न्यायमूर्ति इ.एच. वालेस ने चिदम्बरम की रद्द की गई वकालत की लाइसेंस को वापस लौटा दिया। फलस्वरूप वे पुन: वकालत करने लगे। इस घटना की यादगार में चिदम्बरम ने अपने सबसे छोटे लड़के का नाम वालेस्वरन रखा।

चिदम्बरम कोविल्पट्टी गए और वकालत करने लगे। उन्होंने पुन: 1927 में कांग्रेस में प्रवेश किया और सेलम आयोजित तीसरे राजनीतिक सम्मेलन की अध्यक्षता की। उनहोंने कहा कि कांग्रेस में उल्लेखनीय बदलाव के कारण उन्हें प्रसन्नता हुई और वे पुन: कांग्रेस में लौट आये है। मगर सेलम अधिवेशन के बाद चिदम्बरम ने कांग्रेस से फ़िर सम्बन्ध तोड़ लिया। सन 1932 में वे तूत्तुक्कुडि गए और वहां रहकर वे अपना समय लेखन कार्य में और तमिल पुस्तक प्रकाशन में व्यतीत करने लगे।

लेखन कार्य[संपादित करें]

  • मेय्यरम 1914
  • मेय्यरिवु 1915
  • कवितायें 1915
  • आटोबायोग्राफ़ी 1946
  • विभिन्न पत्रिकाओं में बहुत से लेख
  • अनुवाद कार्य

प्रकाशन कार्य:

  • तिरुक्कुरल के मनक्क्डवर का साहित्यक नोट्स 1917
  • तोल्काप्पियम के इलमपूरनार का साहित्यक नोट्स 1928

स्वतंत्रता के बाद मिला सम्मान[संपादित करें]

मरने के बाद चिदम्बरम कप्पलोट्टिय तमिलन और सेक्किलुत्त सेम्मल के नाम से विख्यात हुए।

डाक टिकट: भारतीय डाक मंत्रालय ने उनके जन्म शजाब्दी वर्ष (5 सितंबर 1972) पर डाक टिकट चालू किया।

चिदम्बरम का पुतला: जगह-जगह पर चिदम्बरम का पुतला खडा कर उनके प्रति लोगों की श्रद्धा व्यक्त की गई।

  • चेन्नै में रायपेट्टै स्थित कांग्रेस आफ़िस के मुख्य द्वार पर (1939)
  • चेन्नै के मरीना बीच पर
  • तिरुनेल्वेलि में पालयंकोट्टै पर
  • तूत्तुक्कुडि पोर्ट पर (भू. पू. प्रधान मंत्री श्रीमती. इंदिरा गांधी द्वारा)
  • मदुरै के सिम्मक्कल में (भू. पू. मुख्य मंत्री श्री. एम. जी. रामचंद्रन द्वारा)
  • तिरुनेल्वेलि में वी. ओ. सी. के स्मारक में भवन का निर्माण (मुख्य मंत्री सेलवी. जयललिता द्वारा)

फ़िल्म के द्वारा जानकारी:

सन 1961 में श्री. बी. आर. पन्तलू द्वारा " कप्पलोट्टिय तमिलन" नाम से चिदम्बरम के जीवन पर आधारत सिनेमा बनी। शिवाजी गणेशन ने चिदम्बरम, एस. वी. सुब्बैया ने सुब्रमण्य भारती और टी. के. शण्मुगम ने सुब्रमण्य सिवा का पार्ट सिनेमा में अदा किया।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]