वीर लोरिक

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वीर लोरिक, पूर्वी उत्तर प्रदेश की अहीर जाति का एक दिव्य चरित्र है।[1][2][3] एस॰एम॰ पांडे ने इसे भारत के अहीर कृषक वर्ग का राष्ट्रीय महाकाव्य कहा है।[4]

लोरिकायन, या लोरिक की कथा, भोजपुरी भाषा की एक नीति कथा है। इसे अहीर जाति की रामायण का दर्जा दिया जाता है।[5]

वीर लोरिक का प्रेम सम्बंध[संपादित करें]

"" जिस वक्त उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के गौरा के रहने वाले वीर लोरिक ने 200 किमी दूर सोनभद्र के अगोरी स्टेट की रहने वाली मंजरी को अपना प्रेम प्रस्ताव दिया, तो मंजरी कई रातों तक सो नहीं सकी थी। मगर मंजरी को देखने के बाद लोरिक ने सोच लिया था कि वो मंजरी के अलावा किसी से ब्याह नहीं करेगा, उधर मंजरी के ख्यालों में भी दिन रात केवल लोरिक का मासूम चेहरा और बलशाली भुजाएं थी। लोरिक और मंजरी की दसवीं सदी की यह प्रेम कहानी आज भी समूचे उत्तर भारत के आदिवासी समाज के जीवन का हिस्सा है। वो इस प्रेम कहानी से न सिर्फ प्रेम करना सीख रहा है बल्कि अपनी संस्कृति और विरासत के प्रति जवाबदेह भी बना हुआ है। राजा की मंजरी पर बुरी निगाह थी। अहीर नायक लोरिक[6] की कथा से सोनभद्र के ही एक अगोरी किले का गहरा सम्बन्ध है, यह किला आज भी मौजूद तो है मगर बहुत ही जीर्ण शीर्ण अवस्था में है। ईसा पूर्व निर्मित इस किले का दसवीं शती के आस पास खरवार और चन्देल राजाओं ने पुनर्निर्माण कराया था। दरअसल मंजरी अगोरी के रहने वाले मेहर नाम के ही एक अहीर की बेटी थी, जिस पर अगोरी के राजा मोलाभागत की निगाह थी जिसके बारे में कहा जाता है कि वो बेहद अत्याचारी थी। जब मेहर को बेटी के प्यार का पता चला तो वो भयभीत हो गया क्यूंकि उसे मोलाभागत के मंसूबों का पता था। मेहर ने लोरिक से तुरंत संपर्क किया और मंजरी से जिसका घर का नाम चंदा था तत्काल ब्याह करने को कहा। रक्त की नदी पार करके पहुंची लोरिक की बारातमाँ काली के भक्त लोरिक की शक्ति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी तलवार 85 मन की थी। युद्ध में वे अकेले हज़ारो के बराबर थे। लोरिक को पता था कि बिना मोलागत को पराजित किये वह मंजरी को विदा नहीं करा पायेगा। युद्ध की तैयारी के साथ बलिया से बारात सोन नदी तट के तक आ गयी । राजा मोलागत ने तमाम उपाय किये कि बारात सोन को न पार कर सके, किन्तु बारात नदी पार कर अगोरी किले तक जा पहुँची, भीषण युद्ध और रक्तपात हुआ। इतना खून बहा कि अगोरी से निलकने वाले नाले का नाम ही रुधिरा नाला पड़ गया और आज भी इसी नाम से जाना जाता है। तलवार से काट डाला चट्टानमोलागत और उसकी सारी सेना और उसका अपार बलशाली इंद्रावत नामक हाथी भी इस युद्ध में मारा गया आज भी हाथी का एक प्रतीक प्रस्तर किले के सामने सोंन नदी में दिखता है। लोरिक के साथ मोलागत और उसके कई मित्र राजाओं से हुए युद्ध के प्रतीक चिह्न किले के आस पास मौजूद है।मंजरी की विदाई के बाद डोली मौजूदा वाराणसी शक्तिनगर मार्ग के मारकुंडी पहाडी पर पहुंची। जहाँ पर नवविवाहिता मंजरी लोरिक के अपार बल को एक बार और देखने के लिए चुनौती दी और कहा कि कि कुछ ऐसा करो जिससे यहां के लोग याद रखें कि लोरिक और मंजरी कभी किस हद तक प्यार करते थे। लोरिक ने पूछा कि बोलो मंजरी क्या करूँ ?मंजरी ने लोरिक को एक विशाल चट्टान दिखाते हुए कहा कि वो अपने तलवार से इस चट्टान को एक ही वार में दो भागो में विभक्त कर दें - लोरिक ने ऐसा ही किया और अपनी प्रेम -परीक्षा में पास हो गएउस अद्भुत प्रेम का प्रतीक वो खंडित शिलाखंड आज भी मौजूद हैं जो उस प्रेम की कहानी कहानी कहता हुई बताते हैं कि मंजरी ने खंडित शिला से अपने मांग में सिन्दूर लगाया था।

लोक-कथा[संपादित करें]

लोरिकी में कई छोटे छोटे राज्यो जो कि- अहीर के है और इन लोगो में प्रायः पशुधन, भूमिधन, स्त्रीधन तथा शक्ति प्रदर्शन के लिए युद्ध होते हैं। इसमे अहीर द्विजात योद्धाओ के रूप में वर्णित है, जिनके लिए शादी के लिए अपहरण एक प्रथा है तथा शक्ति प्रदर्शन, वीरता, वफादारी, आदर्श व मान-सम्मान को मूल्यवान समझा जाता है। दूसरे लोक महाकाव्यों में दर्शित रीति के अनुरूप ही, यह काव्य के महानायक लोरिक के जीवन पर केन्द्रित है। लोरिकी के प्रसंगो पर क्षेत्रीय आधार पर कई स्थानीय संस्करण है, जिन्हे ग्रामीण अहीर अपनी जाति के इतिहास के रूप में देखते है क्योकि इसमे उनकी जाति में प्रचलित कई रीति रिवाज समाहित है। लोरिक को एतिहासिक महानायक व अहीरो के महान पूर्वज के रूप में देखा जाता है।[7]

यह कथा चंदा व एक अहीर लोरिक के प्रेम संबंधो के कारण पारिवारिक विरोध, सामाजिक तिरस्कार व लोरिक द्वारा उनका सामना करते हुये बच निकालने की घटनाओं के चारों तरफ घूमती है।[8]

इतिहास व साहित्य में लोरिकी की महत्ता[संपादित करें]

हिन्दी के लोक साहित्य में लोरिक व चंदा की कथाओ का महत्वपूर्ण स्थान है। 14वी शताब्दी के पूर्व से ही लोरिक व चंदा की कथाए हिन्दी साहित्य में दर्ज है।[9] 'चंदायन' नामक प्रथम हिंदवी प्रेम काव्य लिखने के लिए, सूफी कवि मौलाना दाऊद ने 1379 में लोरिक और चंदा के लोक महाग्रंथ को चुना था।[10] मौलाना का मानना था कि 'चंदायन' एक दिव्य सत्य है तथा इसकी श्रुतियाँ, कुरान की आयतों के समतुल्य है।.[11]

लोरिक-कथा का उल्लेख इलियट ने भी किया है तथा उन्होने इस संदर्भ में अहीर जाति का प्रामाणिक इतिहास भी दिया है।[12]

लोरिक की कथा मात्र लोक कथा ही नहीं है, अपितु इस पर आधारित साहित्यिक कृतियाँ भी विद्यमान हैं।[13]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. William Crooke. Introduction to the Popular Religion and Folklore of Northern India. पृ॰ 291. AVPlMYbWi5UC. अभिगमन तिथि 2014-02-27.[मृत कड़ियाँ]
  2. Bihar : Ek Sanstkritik Vaibhav, from..._Shankar Dayal Singh – Google Books. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-7182-294-0. मूल से 9 अक्तूबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 June 2020.
  3. Kala ka Saundrya-1– Google Books. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-8143-888-1. अभिगमन तिथि 22 June 2020.
  4. Traditions of heroic and epic poetry. 1969-12-04. अभिगमन तिथि 2014-02-27.
  5. Manorma Sharma. Folk India: A Comprehenseive Study of Indian Folk Music and Culture. अभिगमन तिथि 2014-02-27.
  6. "जब एक योद्धा ने प्यार को पाने के लिए तलवार से चट्टान के दो टुकड़े कर दिए". वन इंडिया. मूल से 6 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 जून 2020.
  7. "Culture and Power in Banaras". Publishing.cdlib.org. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2014-02-27.
  8. J. C. Heesterman. India and Indonesia: General Perspectives. अभिगमन तिथि 2014-02-27.
  9. Ronald Stuart McGregor (1984). Hindi Literature from Its Beginnings to the Nineteenth Century. Otto Harrassowitz Verlag. पृ॰ 14. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9783447024136. मूल से 1 जुलाई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अगस्त 2015.
  10. Meenakshi Khanna (2007). "Cultural History of Medieval India". Berghahn Books,. पृ॰ 176. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788187358305. मूल से 6 अक्तूबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 October 2014.सीएस1 रखरखाव: फालतू चिह्न (link)
  11. J. C. Heesterman (1989). India and Indonesia: General Perspectives Volume 4 of Comparative history of India and Indonesia. BRILL. पृ॰ 39. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789004083653. मूल से 4 जुलाई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 अगस्त 2015.
  12. अर्जुनदास केसरी (1982). लोरिकायान एक अध्ययन. लोरिकी प्रकाशन मूल- मिचिगन विश्वविद्यालय. पृ॰ 169. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 अगस्त 2015.
  13. लोरिकायान (1979). लोंक महाकाव्य लोरिकी. साहित्य भवन. अभिगमन तिथि 19 April 2018.