विस्थापित परिवार का समाजशास्त्र अध्ययन

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विस्थापित परिवारों का समाजशास्त्रीय अध्ययन  
लेखक डॉ. अंकुर पारे
देश भारत
भाषा हिंदी
विषय विस्थापित परिवारों का समाजशास्त्रीय अध्ययन
प्रकाशक सनराइज़ पब्लिकेशन, नई दिल्ली
प्रकाशन तिथि २०१७
मीडिया प्रकार प्रिंट किया (हार्डकवर )
पृष्ठ १८३
आई॰एस॰बी॰एन॰ 978-93-80966-70-0

परिचय[संपादित करें]

विस्थापित परिवारों का समाजशास्त्रीय अध्ययन के लेखक डॉ. अंकुर पारे है। डॉ. अंकुर पारे प्रसिद्द युवा समाजशास्त्री एवं लेखक है। इनके अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में कई महत्वपूर्ण शोध पेपर प्रकाशित हो चुकें है। इनका प्रमुख शोध कार्य विस्थापन, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन पर रहा है।

समीक्षा[संपादित करें]

लेखक डॉ. अंकुर पारे ने अपनी पुस्तक “ विस्थापित परिवारों का समाजशास्त्रीय अध्ययन ” में विस्थापन की समस्या का शोधपरक वैज्ञानिक अध्ययन किया है। विस्थापन एक वैश्विक भयावह समस्या है। आर्थिक विकास सभी देशों के लिए अत्यंत आवश्यक है लेकिन विकास परियोजनाओं के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव भी उभर कर सामने आतें है। विकास के कारण विस्थापन अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय समस्या के रूप में उभरा है। वैश्विक स्तर पर जहाँ लैबनान, सीरिया, सुडान, घाना, इंडोनेशिया एवं भारत में टिहरी परियोजना उत्तराखंड, बिसलपुर परियोजना हिमाचल प्रदेश, सरदार सरोवर परियोजना गुजरात, कुडनकुलम परियोजना तमिलनाडु, नर्मदा परियोजना मध्यप्रदेश आदि के कारण जो विस्थापन की पीड़ा सामने आई है उसको दूर करने एवं विकास परियोजनाओं का सही क्रियान्वयन हो सके, इस पुस्तक में व्यवहारिक शोधपरक व्याख्या की गई है।

संस्करण[संपादित करें]

भारत के प्रमुख सनराइज़ प्रकाशन, नई दिल्ली (भारत) ISBN 978-93-80966-70-0 द्वारा लेखक डॉ. अंकुर पारे की पुस्तक “ विस्थापित परिवारों का समाजशास्त्रीय अध्ययन ” वर्ष 2017 में प्रकाशित की गई।

निष्कर्ष[संपादित करें]

समाजशास्त्री डॉ. अंकुर पारे ने विस्थापन के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं राजनीतिक प्रभावों का विस्तृत वैज्ञानिक अध्ययन किया है। देश के विकास के लिए जल विद्युत् परियोजनाओं का निर्माण अत्यन्त आवश्यक है। अतः विकास के लिए परियोजनाओं का निर्माण आवश्यक है। परियोजनाओं के निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहित करना पड़ता है जिससे लोगों को विस्थापित होना पड़ता है। विस्थापन के कारण लोगों को जहाँ वो पीढ़ियों से रह रहें है उस स्थान को छोड़ना पड़ता है जिससे सामाजिक संरचना एवं सामाजिक संगठन विघटित हो जाते हैं। विस्थापन से प्रभावित लोग कृषि पर निर्भर है, विस्थापित लोगों की कृषि भूमि छिन जाने से उनके आजीविका का साधन ख़त्म हो जाता है और विस्थापित लोगों को नई जगह पर जीवनयापन करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। विस्थापन के कारण विस्थापितों की खाद्य असुरक्षा बढ़ जाती है, पहले वह कृषि से खाद्य सामाग्री प्राप्त कर लेते थे परन्तु विस्थापन के बाद नई जगह में उन्हें खाद्य सामाग्री बाजार से खरीदनी पड़ती है। विस्थापन से विस्थापितों के मानव अधिकारों के उलंघन की समस्या उभरी है। किसी को उसके निवास स्थान से विस्थापित करना और उसकी संपत्ति का उचित मुआवज़ा ना प्रदान करना उसके मानव अधिकारों का उलंघन है। विस्थापन से विस्थापितों के सामाजिक एवं आर्थिक अधिकारों का भी उलंघन होता है। विस्थापन के कारण लोगों में सामाजिक और मानसिक तनाव उत्पन्न होता है जिससे उनका स्वास्थ्य प्रभावित होता है। विस्थापन से लोगों के सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक जीवन में परिवर्तन होता है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

[1] [2] [3] [4]

5. http://www.m24news.com/sociological-study-displaced-families-dr-ankur-pare.html

  1. "Official Website". मूल से 6 अगस्त 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  2. "विस्थापित परिवारों का समाजशास्त्रीय अध्ययन". मूल से 5 जून 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 मई 2017.
  3. Sunrise Publication, New Delhi. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-80966-70-0. मूल से 5 जून 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 मई 2017.
  4. "Book Review". मूल से 28 जुलाई 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 मई 2017.