विष्णु कृष्ण चिपलूणकर

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विष्णु कृष्ण चिपलूणकर

चिपलूणकर का एक आरेख-चित्र
जन्म १ जनवरी, १८५०
पुणे, महाराष्ट्र
मौत १८८२
राष्ट्रीयता भारतीय
उपनाम मराठी भाषा के शिवाजी
जाति मराठी
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विष्णु कृष्ण चिपलूणकर (१८५०-१८८२) आधुनिक मराठी गद्य के युगप्रवर्तक साहित्यिकार और संपादक थे।

श्री विष्णु शास्त्री चिपलूणकर का जन्म पूना के एक विद्वान् परिवार में हुआ। इनके पिता श्री कृष्ण शास्त्री अपनी स्वाभाविक बुद्धिमत्ता, रसिकता, काव्यप्रतिभा, अनुवाद करने की अपनी अनूठी शैली इत्यादि के लिये लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार के रूप में प्रसिद्ध थे।

इन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी और प्राचीन मराठी का गहरा अध्ययन किया और बी.ए. की औपचारिक शिक्षा प्राप्त की। बाद में वे शासकीय हाई स्कूल में अध्यापक हुए पर ईसाई मिशनरियों के भारतीय संस्कृति के विरोध में किए जानेवाले प्रचार से इनका स्वधर्म, स्वसंस्कृति, स्वदेश और स्वभाषा संबंधी अभिमान जाग्रत हुआ। नवशिक्षितों की अकर्मण्यता पर भी इनको दु:ख हुआ। अत: इन्होंने लोकजागरण और लोकशिक्षा की दृष्टि से "निबंधमाला" नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इनके लेख ओजस्वी, स्वाभिमानपूर्ण, स्वधर्म और स्वभाषा के प्रति प्रेम से ओतप्रोत होते थे। जिस प्रकार अनुभूति और विषय की दृष्टि से इनके निबंध श्रेष्ठ हैं उसी प्रकार मौलिकता, प्रतिपादन की प्रभावकारी शैली और कलाविकास की दृष्टि से भी वे रमणीय हैं। इनमें राष्ट्रीयता, ओज, लोकमंगल की कामना और रमणीयता ओतप्रोत हैं। निबंधमाला में भाषाशुद्धि, भाषाभिवृद्धि, अंग्रेजी शैली की समीक्षा, शास्त्रीय ढंग से इतिहासलेखन, कलापूर्ण जीवनी की रचना, साहित्य और समाज का अन्योन्य संबंध और सामाजिक रूढ़ियों के गुण दोष इत्यादि के विषयों में विचारप्रवर्तक लेख हैं। इनकी निबंधशैली में मैकाले, एडीसन, स्टील, जॉन्सन इत्यादि की लेखनशैलियों के गुणों का समन्वय है। इनकी शैली में ओज, विनोद और व्यंग्य तथा सजीवता हैं। इसी प्रकार इन्होंने अंग्रेजी समीक्षा के अनुसार संस्कृत के पाँच प्रसिद्ध कवियों की उत्कृष्ट कृतियों की सरस समीक्षा कर मराठी में नई समीक्षा शैली की उद्भावना की। इनके "आमच्या देशाचीं सद्यस्थिति" (हमारे देश की वर्तमान स्थिति) नामक विस्तृत एवं ओजस्वितापूर्ण निबंध लिखने पर अंग्रेजी शासन इनपर रुष्ट हुआ। पर इन्होंने स्वयं शासकीय सेवा की स्वर्णशृंखला तोड़ डाली। इन्होंने चित्रशाला नामक एक प्रेस की भी स्थापना की जो भारत में रंगीन चित्रों को प्रकाशित करनेवाले सबसे पहले छापेखानों में से एक थी।[1]

पूना में आकर इन्होंने श्री जी. जी. अगरकर और श्री बाल गंगाधर तिलक ने मिलकर १ जनवरी, १८८१ से मराठी में "केसरी" और अंग्रेजी में "मराठा" नामक दो समाचारपत्र प्रकाशित करना प्रारंभ किया। इसी प्रकार नई पीढ़ी में स्वदेशप्रेम जागृत करने के उद्देश्य से इन्होंने न्यू इंग्लिश स्कूल नामक पाठशाला स्थापित की। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और श्री आगरकर से चिपलूणकर को बड़ी सहायता मिली। ३२ वर्ष की अल्पायु में युगप्रवर्तक साहित्यिक सेवा कर इनकी असामयिक मृत्यु हुई। ये मराठी भाषा के "शिवाजी" कहलाते हैं। इन्होंने डॉ॰ जॉन्सन के "रासेलस" उपन्यास का मराठी में सरस एवं कलापूर्ण अनुवाद किया।

विष्णूशास्त्री चिपळूणकर का प्रकाशित साहित्य[संपादित करें]

  • अरबी भाषेतील सुरस व चमत्कारिक गोष्टी (६ भाग ; सहलेखक कृष्णशास्त्री चिपळूणकर, हरि कृष्ण दामले)
  • आमच्या देशाची स्थिती
  • इतिहास
  • संस्कृत कविपंचक (सन १८९१)
  • किरकोळ लेख
  • केसरीतील लेख
  • बाणभट्ट कृत 'कादम्बरी' का मराठी अनुवाद (सह-अनुवादक : कृष्णशास्त्री चिपळूणकर)
  • कालिदासावरील निबंध
  • विष्णूशास्त्र्यांनी लिहिलेले निबंध निबंधमाला
  • निबंधमालेतील तीन निबंध
  • पद्य रत्नावली
  • मराठी व्याकरणातील निबंध
  • लेखसंग्रह
  • वक्तृत्व
  • वाङ्मय विषयक निबंध
  • विनोद आणि महदाख्यायिका (सन १९०१)
  • विद्वत्त्व आणि कवित्व व वक्तृत्व
  • विष्णूपदी (३ खंड)
  • सॅम्युएल जॉन्सन के द हिस्टरी ऑफ रासेलस(The History of Rasselas) का मराठी अनुवाद (सह-अनुवादक : कृष्णशास्त्री चिपळूणकर)
  • संस्कृत कविता
  • साक्रेतिसाचे चरित्र
  • सुभाषिते
  • हरिदास गोविंद

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. जैन, कजरी (२००७). Gods in the bazaar: the economies of Indian calendar art. कैनेडा: ड्यूक्स यूनिवर्सिटी प्रेस. पृ॰ ९६. |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)

इन्हें भी देखें[संपादित करें]