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विश्वकर्मा (जाति)

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विश्वकर्मा भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली एक पारंपरिक समुदाय है, जिसे सामान्यतः शिल्पकला और निर्माण कार्यों से जोड़ा जाता है। ये समुदाय पारंपरिक रूप से बढ़ई, लोहार, स्वर्णकार, कसेरा/ठठेरा और शिल्पकार(कुम्हार, मूर्तिकार या पत्थर काटने वाले) जैसे कार्यों में संलग्न रहे हैं। भारत के विभिन्न भागों में इन्हें अलग-अलग नामों और उपसमूहों के रूप में जाना जाता है, जैसे कि पांचाल, शिल्पकार, जांगिड़, सूत्रधार, शर्मा आदि।[1] विश्वकर्मा समुदाय के लोग विश्वकर्मा को अपना आराध्य देव मानते हैं, जिन्हें 'देव शिल्पी' के रूप में जाना जाता है। पुराणों और वैदिक ग्रंथों में विश्वकर्मा को देवताओं के वास्तुकार के रूप में वर्णित किया गया है।

इतिहास और सामाजिक स्थिति

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इतिहासकार विजया रामास्वामी का मत है कि मध्यकालीन भारत में विश्वकर्मा समुदाय मुख्य रूप से मंदिर निर्माण और शिल्प कार्यों से जुड़ा हुआ था। उन्होंने यह भी कहा कि इस समुदाय की सामाजिक-आर्थिक स्थिति उन कारीगरों से भिन्न थी जो स्थानीय कृषि अर्थव्यवस्था में स्थायी रूप से शामिल थे।[1]

कुछ धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में विश्वकर्मा को ब्रह्मा के वंशज के रूप में चित्रित किया गया है, किन्तु आधुनिक जाति व्यवस्था में यह समुदाय आमतौर पर 'शिल्पकार' श्रेणी में रखा गया है।[2]

सन्दर्भ

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  1. 1 2 रामास्वामी, विजय (2004). "Vishwakarma Craftsmen in Early Medieval Peninsular India" [प्रारंभिक मध्यकालीन प्रायद्वीपीय भारत में विश्वकर्मा शिल्पकार] (PDF). जर्नल ऑफ द इकनॉमिक ऐंड सोशल हिस्ट्री ऑफ द ओरियेंट (अंग्रेज़ी भाषा में). 47 (4): 548–582. डीओआई:10.1163/1568520042467154. जेस्टोर 25165073.
  2. भगत, राम बी॰ (अप्रैल–जून 2006). "Census and caste enumeration: British legacy and contemporary practice in India" [जनगणना और जाति गणना: ब्रिटिश विरासत और भारत में समकालीन प्रथा]. जीनस (अंग्रेज़ी भाषा में). 62 (2): 119–134. जेस्टोर 29789312.