"मेरठ जिला": अवतरणों में अंतर

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09:26, 31 मई 2010 का अवतरण

मेरठ भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश का एक जिला है ।

जिले का मुख्यालय मेरठ है ।

क्षेत्रफल - वर्ग कि.मी.

जनसंख्या - (2001 जनगणना)

साक्षरता -

एस. टी. डी (STD) कोड - 0121

जिलाधिकारी -श्री मति कामनी रतन चौहान, आईजी मेरठ श्री गुरूदर्शन सिंह,०९४५४४०१४४, डीआईजी मेरठ श्री आदित्य मिश्रा,०९४५४४००२१४

समुद्र तल से उचाई -२२५ मीटर

अक्षांश - उत्तर

देशांतर - पूर्व

औसत वर्षा - मि.मी.

बाहरी कड़ियां

यहां कि कैची,रेवडी,मेरठ कैन्ट का १८५७मे यहां से जगें आजादी कि लडाई बाबा औघडंनाथ का मन्द‍िर से हि लडी गई और कैन्ट के सदर क्षेत्र का भ्रगुज्योतिष अनुसन्धान केन्द्र है प० श्री राजेश कुमार शर्मा इस के अध्यक्ष है मो न० ०9808668008 हैं,भारत का ५०० सालपूराना एक मात्र वामनभगवान मन्दिर हैं।

मेरठ रावण के ससुर मैयदानव की नगरी मेरठ यूं तो शुरू से ही ऐतिहासिक रही है, लेकिन यहां से स्वतंत्रता आन्दोलन की नींव भी रखी गई, इसलिए इसका महत्व और भी बढ़ जाता है। मेरठ में श्री औघड़नाथ शिव मन्दिर एक ऐतिहासिक सिद्धपीठ है, इससे करोड़ो श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है। श्रावण मास में बाबा औघड़नाथ शिव मन्दिर जगत के संहारक अर्थात भगवान शिव की अराधना के लिए लाखों कांवडि़यें जलार्पण करते हैं तो भादों में इसी मंदिर में जगत के पालक के लिए अनेक आयोजन किए जाते हैं। श्री औघड़नाथ शिव मन्दिर में स्थापित लघुकाय शिवलिंग स्वयंभू है जो सफलदाता है। भगवान शिव के औघड़दानी स्वरूप के कारण इस मंदिर का नाम श्री औघड़नाथ शिव मन्दिर पड़ा। स्वतंत्रता पूर्व अंग्रेज भारतीयों को काले लोग कहते थे, भारतीय सेना को अंग्रेज काली पल्टन कहते थे, काली पल्टन क्षेत्र में होने के कारण यह काली पल्टन मन्दिर के नाम से भी विख्यात है। इस मन्दिर की स्थापना कब हुई इसका कोई सटीक प्रमाण तो नहीं मिलता किंतु इतना निश्चित है कि 1857 में यह मंदिर श्रद्धा का केंद्र अवश्य था। मराठा काल में अनेक प्रमुख पेशवा विजय यात्रा से पूर्व इस ऐतिहासिक औघड़नाथ मन्दिर में बड़ी श्रद्धा से पूजा अर्चना किया करते थे। स्वतंत्रता की नींव भी धर्म से ही रखी गई थी। अंग्रेजी सरकार ने सुरक्षा की दृष्टि से इस क्षेत्र में सेना का प्रशिक्षण केंद्र बनाया था, काली पल्टन यानि भारतीयों की सैन्य टुकड़ी के निकट स्थित इस मंदिर में अनेक स्वतंत्रता सेनानी आते, ठहरते और ब्रिटिश सेना के भारतीय सैनिकों से गुप्त मंत्रणा किया करते थे। इनमें एक हाथी वाले बाबा अपना विशेष स्थान रखते थे, कहा जाता है कि वह धूंधूंपंत नाना साहब थे। मन्दिर के आंगन में बने कुएं का शीतल और मीठा पानी पीने सेना के जवान प्राय: यहां आया करते थे। अंग्रेज शासकों ने 1856 में बंदूकों के लिए नए कारतूस बनाये जिसका उद्देश्य धर्म को क्षति पहुंचाना था। इन कारतूसों को प्रयोग करने से पूर्व मुंह से खोला जाता था जिसमें गाय तथा सूअर की चर्बी लगी होती थी। बताते है कि मंदिर के तत्कालीन पुजारी ने इसलिए सेना के जवानों को पानी पिलाने से मना कर दिया कि वे पथभ्रष्ट हो रहे हैं। सेना के भारतीय जवानों की आत्मा जाग गई और इसी श्री औघड़नाथ शिव मन्दिर के प्रांगण से हर हर महादेव का नारा गूंज उठा। इस नारे से ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन समय से पूर्व ही शुरू हो गया। 31 मई को शुरू होने वाला स्वतंत्रता आन्दोलन 10 मई 1857 को ही शुरू हो गया था। इतिहास इस बात का भी साक्षी है कि इस मंदिर के प्रांगण में हिंदू ही नहीं अपितु मुस्लिमों ने भी बराबर क्रांति अभियान में योगदान दिया। औघड़नाथ मंदिर में स्वतंत्रता आन्दोलन के साक्ष्य आज भी उपलब्ध है, मंदिर परिसर में वही पुराना कुआं है, वहीं प्याऊ और शिवलिंग है। सन् 1944 तक श्री औघड़नाथ मंदिर का स्वरूप वही रहा बाद में इस मंदिर को भव्य रूप दिया गया। शांति के पुजारी महात्मा गांधी के जन्म दिन दो अक्टूबर 1968 को मंदिर को भव्य रूप देने की योजना तैयार की गई, ज्योतिषपीठाधीश्र्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी कृष्णबोधाश्रम ने वेद मंत्रों के बीच इस मंदिर के विस्तार का शिलान्यास किया। 13 फरवरी 1972 को नई देव प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा की गई। 14 फरवरी 1982 को मंदिर के विशाल गुम्बदों पर स्वर्ण कलश स्थापित किये गये। 13 फरवरी 1995 को मंदिर में श्री राधा गोविन्द जी का भव्य श्री विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की गई तथा 4 मई 2001 को इस मंदिर के शिखर पर भी स्वर्ण कलश स्थापित किए गये। इस मंदिर का संचालन निर्वाचित समिति द्वारा किया जाता है। प्रत्येक वर्ष श्रावण की महाशिवरात्रि पर इस मंदिर में लाखों श्रद्धालु भगवान आशुतोष को जलार्पण कर मनौती मांगते है और भगवान औघड़नाथ सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।