"वैद्यनाथ मन्दिर, देवघर": अवतरणों में अंतर

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== स्थापना व कथा ==
== स्थापना व कथा ==
इस लिंग की स्थापना का [[इतिहास]] यह है कि एक बार राक्षसराज [[रावण]] ने हिमालय पर जाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिये घोर [[तपस्या]] की और अपने सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने शुरू कर दिये। एक-एक करके नौ सिर चढ़ाने के बाद दसवाँ सिर भी काटने को ही था कि शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हो गये। उन्होंने उसके दसों सिर ज्यों-के-त्यों कर दिये और उससे वरदान माँगने को कहा। रावण ने [[लंका]] में जाकर उस लिंग को स्थापित करने के लिये उसे ले जाने की आज्ञा माँगी। शिवजी ने अनुमति तो दे दी, पर इस चेतावनी के साथ दी कि यदि मार्ग में इसे [[पृथ्वी]] पर रख देगा तो वह वहीं अचल हो जाएगा। अन्ततोगत्वा वही हुआ। रावण शिवलिंग लेकर चला पर मार्ग में एक चिताभूमि आने पर उसे लघुशंका निवृत्ति की आवश्यकता हुई। रावण उस लिंग को एक अहीर जिनका नाम बैजनाथ था , को थमा लघुशंका-निवृत्ति करने चला गया। इधर उन अहीर ने ज्योतिर्लिंग को बहुत अधिक भारी अनुभव कर भूमि पर रख दिया। फिर क्या था, लौटने पर रावण पूरी शक्ति लगाकर भी उसे न उखाड़ सका और निराश होकर मूर्ति पर अपना अँगूठा गड़ाकर लंका को चला गया। इधर [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की। शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की वहीं उसी स्थान पर प्रतिस्थापना कर दी और शिव-स्तुति करते हुए वापस स्वर्ग को चले गये। जनश्रुति व लोक-मान्यता के अनुसार यह वैद्यनाथ-ज्योतिर्लिग मनोवांछित फल देने वाला है।
इस लिंग की स्थापना का [[इतिहास]] यह है कि एक बार राक्षसराज [[रावण]] ने हिमालय पर जाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिये घोर [[तपस्या]] की और अपने सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने शुरू कर दिये। एक-एक करके नौ सिर चढ़ाने के बाद दसवाँ सिर भी काटने को ही था कि शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हो गये। उन्होंने उसके दसों सिर ज्यों-के-त्यों कर दिये और उससे वरदान माँगने को कहा। रावण ने [[लंका]] में जाकर उस लिंग को स्थापित करने के लिये उसे ले जाने की आज्ञा माँगी। शिवजी ने अनुमति तो दे दी, पर इस चेतावनी के साथ दी कि यदि मार्ग में इसे [[पृथ्वी]] पर रख देगा तो वह वहीं अचल हो जाएगा। अन्ततोगत्वा वही हुआ। रावण शिवलिंग लेकर चला पर मार्ग में एक चिताभूमि आने पर उसे लघुशंका निवृत्ति की आवश्यकता हुई। रावण उस लिंग को एक अहीर जिनका नाम बैजनाथ था , को थमा लघुशंका-निवृत्ति करने चला गया। इधर उन अहीर ने ज्योतिर्लिंग को बहुत अधिक भारी अनुभव कर भूमि पर रख दिया। फिर क्या था, लौटने पर रावण पूरी शक्ति लगाकर भी उसे न उखाड़ सका और निराश होकर मूर्ति पर अपना अँगूठा गड़ाकर लंका को चला गया। इधर [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की। शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की वहीं उसी स्थान पर प्रतिस्थापना कर दी और शिव-स्तुति करते हुए वापस स्वर्ग को चले गये। जनश्रुति व लोक-मान्यता के अनुसार यह वैद्यनाथ-ज्योतिर्लिग मनोवांछित फल देने वाला है।

==सरदार पंडा की सूची==
1. मुकुंद झा
2. जूडन झा
3 मुकुंद झा दूसरी बार
4. चिक्कू झा
5. रघुनाथ झा 1586 में
6. चिक्कू झा दूसरी बार
7. मल्लू
8. सेमकरण झा सरेवार
9. सदानंद
10. चंद्रपाणी
11. रत्नपाणी
12. जय नाथ झा
13. वामदेव
14. यदुनंदन
15. टीकाराम 1762 तक
16. देवकी नंदन 1782 तक
17. नारायण दत्त 1791 तक
18. रामदत्त 1810 तक
19. आनंद दत्त ओझा 1810 तक
20. परमानंद 1810 से 1823 तक
21. सर्वानंद 1823 से 1836 तक
22. ईश्वरी नंद ओझा 1876 तक
23. शैलजानंद ओझा 1906 तक
24. उमेशा नंद ओझा 1921 तक
25. भवप्रीतानंद ओझा 1928 से 70 तक
26. अजीता नंद ओझा 06 जुलाई 2017 से 22 मई 2018 तक
27. गुलाब नंद ओझा 22 मई 2018 से


== मन्दिर के मुख्य आकर्षण ==
== मन्दिर के मुख्य आकर्षण ==

05:08, 27 नवम्बर 2021 का अवतरण

वैद्यनाथ मन्दिर, देवघर
बैद्यनाथ शिव मंदिर और पार्वती माता का मंदिर के साथ एक पवित्र लाल रस्सी से बंधा हुआ है
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
देवताभगवान वैद्यनाथ (भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग अवतार), जया दुर्गा (शिवलिंग पर स्थित शक्ति पीठ)
शासी निकायबाबाबैद्यनाथ मन्दिर प्रबन्ध परिषद
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिदेवघर,झारखंड
ज़िलादेवघर
राज्यझारखण्ड
देशभारत
वैद्यनाथ मन्दिर, देवघर is located in पृथ्वी
वैद्यनाथ मन्दिर, देवघर
लुआ त्रुटि Module:Location_map में पंक्ति 42 पर: The name of the location map definition to use must be specified। के मानचित्र पर अवस्थिति
वास्तु विवरण
निर्माताराजा पूरनमल (वर्तमान में उपस्थित मंदिर के निर्माता), विश्वकर्मा (प्राचीन मंदिर निर्माता)
वेबसाइट
babadham.org
बैद्यनाथ
चिकित्सा, उपचार, प्रकृति और स्वास्थ्य के देवता, ज्योतिर्लिंग स्वरूप जिसे रावण ने स्थापित किया था
Member of द्वादश ज्योतिर्लिंग

ऊपर से नीचे की ओर चित्र: (1). भगवान वैद्यनाथ महादेव के ज्योतिर्लिंग की पूजा करते पुजारी, (2). प्राचीन बैद्यनाथ मंदिर जिसे आक्रमणकारियों ने विध्वंश कर दिया था (3). बाबा वैद्यनाथ धाम की वर्तमान मनमोहक कायाकल्प का दृश्य
अन्य नाम रावणेश्वर, वैद्येश्वर, बैजुनाथ, बैजनाथ और बाबा बैद्यनाथ
संबंध द्वादश ज्योतिर्लिंग
मंत्र ॐ नमः शिवाय
त्यौहार महाशिवरात्रि

वैद्यनाथ मन्दिर, देवघर (अंग्रेजी:Baidyanath Temple) [भारतवर्ष]] के राज्य झारखंड में अतिप्रसिद्ध देवघर नामक स्‍थान पर अवस्थित है।[1][2] पवित्र तीर्थ होने के कारण लोग इसे वैद्यनाथ धाम भी कहते हैं। जहाँ पर यह मन्दिर स्थित है उस स्थान को "देवघर" अर्थात् देवताओं का घर कहते हैं। बैद्यनाथ स्थित होने के कारण इस स्‍थान को देवघर नाम मिला है। यह एक सिद्धपीठ है। कहा जाता है कि यहाँ पर आने वालों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस कारण इस लिंग को "कामना लिंग" भी कहा जाता हैं। बैजनाथ अहिर ने सर्वप्रथम . बाबा धाम की पूजा के बाद सिंहेश्वर बाबा की पूजा अति आवश्यक है ।

साँचा:Https://www.youtube.com/dashboard?o=U</Ref>।

स्थापना व कथा

इस लिंग की स्थापना का इतिहास यह है कि एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय पर जाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिये घोर तपस्या की और अपने सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने शुरू कर दिये। एक-एक करके नौ सिर चढ़ाने के बाद दसवाँ सिर भी काटने को ही था कि शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हो गये। उन्होंने उसके दसों सिर ज्यों-के-त्यों कर दिये और उससे वरदान माँगने को कहा। रावण ने लंका में जाकर उस लिंग को स्थापित करने के लिये उसे ले जाने की आज्ञा माँगी। शिवजी ने अनुमति तो दे दी, पर इस चेतावनी के साथ दी कि यदि मार्ग में इसे पृथ्वी पर रख देगा तो वह वहीं अचल हो जाएगा। अन्ततोगत्वा वही हुआ। रावण शिवलिंग लेकर चला पर मार्ग में एक चिताभूमि आने पर उसे लघुशंका निवृत्ति की आवश्यकता हुई। रावण उस लिंग को एक अहीर जिनका नाम बैजनाथ था , को थमा लघुशंका-निवृत्ति करने चला गया। इधर उन अहीर ने ज्योतिर्लिंग को बहुत अधिक भारी अनुभव कर भूमि पर रख दिया। फिर क्या था, लौटने पर रावण पूरी शक्ति लगाकर भी उसे न उखाड़ सका और निराश होकर मूर्ति पर अपना अँगूठा गड़ाकर लंका को चला गया। इधर ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की। शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की वहीं उसी स्थान पर प्रतिस्थापना कर दी और शिव-स्तुति करते हुए वापस स्वर्ग को चले गये। जनश्रुति व लोक-मान्यता के अनुसार यह वैद्यनाथ-ज्योतिर्लिग मनोवांछित फल देने वाला है।

सरदार पंडा की सूची

1. मुकुंद झा 2. जूडन झा 3 मुकुंद झा दूसरी बार 4. चिक्कू झा 5. रघुनाथ झा 1586 में 6. चिक्कू झा दूसरी बार 7. मल्लू 8. सेमकरण झा सरेवार 9. सदानंद 10. चंद्रपाणी 11. रत्नपाणी 12. जय नाथ झा 13. वामदेव 14. यदुनंदन 15. टीकाराम 1762 तक 16. देवकी नंदन 1782 तक 17. नारायण दत्त 1791 तक 18. रामदत्त 1810 तक 19. आनंद दत्त ओझा 1810 तक 20. परमानंद 1810 से 1823 तक 21. सर्वानंद 1823 से 1836 तक 22. ईश्वरी नंद ओझा 1876 तक 23. शैलजानंद ओझा 1906 तक 24. उमेशा नंद ओझा 1921 तक 25. भवप्रीतानंद ओझा 1928 से 70 तक 26. अजीता नंद ओझा 06 जुलाई 2017 से 22 मई 2018 तक 27. गुलाब नंद ओझा 22 मई 2018 से

मन्दिर के मुख्य आकर्षण

वैद्यनाथधाम (देवघर) के मुख्य मन्दिर का चित्र

देवघर का शाब्दिक अर्थ है देवी-देवताओं का निवास स्थान। देवघर में बाबा भोलेनाथ का अत्यन्त पवित्र और भव्य मन्दिर स्थित है। हर साल सावन के महीने में स्रावण मेला लगता है जिसमें लाखों श्रद्धालु "बोल-बम!" "बोल-बम!" का जयकारा लगाते हुए बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने आते है। ये सभी श्रद्धालु सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल लेकर लगभग सौ किलोमीटर की अत्यन्त कठिन पैदल यात्रा कर बाबा को जल चढाते हैं।

मन्दिर के समीप में स्थित पवित्र तालाब का चित्र

मन्दिर के समीप ही एक विशाल तालाब भी स्थित है। बाबा बैद्यनाथ का मुख्य मन्दिर सबसे पुराना है जिसके आसपास अनेक अन्य मन्दिर भी बने हुए हैं। बाबा भोलेनाथ का मन्दिर माँ पार्वती जी के मन्दिर से जुड़ा हुआ है।

पवित्र यात्रा

बैद्यनाथ धाम की पवित्र यात्रा श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) में शुरू होती है। सबसे पहले तीर्थ यात्री सुल्तानगंज में एकत्र होते हैं जहाँ वे अपने-अपने पात्रों में पवित्र गंगाजल भरते हैं। इसके बाद वे गंगाजल को अपनी-अपनी काँवर में रखकर बैद्यनाथ धाम और बासुकीनाथ की ओर बढ़ते हैं। पवित्र जल लेकर जाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह पात्र जिसमें जल है, वह कहीं भी भूमि से न सटे।

वासुकिनाथ मन्दिर

वासुकिनाथ अपने शिव मन्दिर के लिये जाना जाता है। वैद्यनाथ मन्दिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक वासुकिनाथ में दर्शन नहीं किये जाते। (यह मान्यता हाल फ़िलहाल में प्रचलित हुई है। पहले ऐसी मान्यता का प्रचलन नहीं था। न ही पुराणों में ऐसा वर्णन है।) यह मन्दिर देवघर से 42 किलोमीटर दूर जरमुण्डी गाँव के पास स्थित है। यहाँ पर स्थानीय कला के विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है। इसके इतिहास का सम्बन्ध नोनीहाट के घाटवाल से जोड़ा जाता है। वासुकिनाथ मन्दिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मन्दिर भी हैं।

बैजू मन्दिर

बाबा बैद्यनाथ मन्दिर परिसर के पश्चिम में देवघर के मुख्य बाजार में तीन और मन्दिर भी हैं। इन्हें बैजू मन्दिर के नाम से जाना जाता है। इन मन्दिरों का निर्माण बाबा बैद्यनाथ मन्दिर के मुख्य पुजारी के वंशजों ने किसी जमाने में करवाया था। प्रत्येक मन्दिर में भगवान शिव का लिंग स्थापित है।

वैद्यनाथधाम में महाशिवरात्रि व पंचशूल की पूजा

भारत में झारखण्ड के देवघर जिले में स्थित वैद्यनाथ ज् का मंदीर है। विश्व के सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा दीखता है मगर वैद्यनाथधाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं।

यहाँ प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि से 2 दिनों पूर्व बाबा मंदिर, माँ पार्वती व लक्ष्मी-नारायण के मंदिरों से पंचशूल उतारे जाते हैं। इस दौरान पंचशूल को स्पर्श करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। जैसा कि नीचे के चित्रों में आपको दिखाई पड़ेगा। वैद्यनाथधाम परिसर में स्थित अन्य मंदिरों के शीर्ष पर स्थित पंचशूलों को महाशिवरात्रि के कुछ दिनों पूर्व ही उतार लिया जाता है। सभी पंचशूलों को नीचे लाकर महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व विशेष रूप से उनकी पूजा की जाती है और तब सभी पंचशूलों को मंदिरों पर यथा स्थान स्थापित कर दिया जाता है। इस दौरान बाबा व पार्वती मंदिरों के गठबंधन को हटा दिया जाता है। महाशिवरात्रि के दिन नया गठबंधन किया जाता है। गठबंधन के लाल पवित्र कपड़े को प्राप्त करने के लिए भी भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है। महाशिवरात्रि के दौरान बहुत-से श्रद्धालु सुल्तानगंज से कांवर में गंगाजल भरकर 105 किलोमीटर पैदल चलकर और ‘बोल बम’ का जयघोष करते हुए वैद्यनाथधाम पहुंचते हैं। (शीतांशु कुमार सहाय)

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 17 फ़रवरी 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 दिसंबर 2015.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 16 अप्रैल 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 दिसंबर 2015.

बाहरी कड़ियाँ