"लघुकथा": अवतरणों में अंतर
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[[हिंदी साहित्य]] में लघुकथा नवीनतम् विधा है। इसका श्रीगणेश छत्तीसगढ़ के प्रथम पत्रकार और कथाकार माधव राव सप्रे के ''एक टोकरी भर मिट्टी'' से होता है। हिंदी के अन्य सभी विधाओं की तुलना में अधिक लघुआकार होने के कारण यह समकालीन पाठकों के ज्यादा करीब है। और सिर्फ़ इतना ही नहीं यह अपनी विधागत सरोकार की दृष्टि से भी एक पूर्ण विधा के रूप में हिदीं जगत् में समादृत हो रही है। इसे स्थापित करने में जितना हाथ [[रमेश बतरा]], [[जगदीश कश्यप]], [[कृष्ण कमलेश]], [[भगीरथ]], [[सतीश दुबे]], [[बलराम अग्रवाल]], [[विक्रम सोनी]], [[सुकेश साहनी]], [[विष्णु प्रभाकर]], [[हरिशंकर परसाई]] आदि समकालीन लघुकथाकारों का रहा है उतना ही [[कमलेश्वर]], [[राजेन्द्र यादव]], [[बलराम]], [[कमल चोपड़ा]], [[सतीशराज पुष्करणा]] आदि संपादकों का भी रहा है। इस संबंध में ''तारिका'', ''अतिरिक्त'', ''समग्र'', ''मिनीयुग'', ''लघु आघात'', ''वर्तमान जनगाथा'' आदि लघुपत्रिकाओं के संपादकों का योगदान अविस्मरणीय है। |
[[हिंदी साहित्य]] में लघुकथा नवीनतम् विधा है। इसका श्रीगणेश छत्तीसगढ़ के प्रथम पत्रकार और कथाकार माधव राव सप्रे के ''एक टोकरी भर मिट्टी'' से होता है। हिंदी के अन्य सभी विधाओं की तुलना में अधिक लघुआकार होने के कारण यह समकालीन पाठकों के ज्यादा करीब है। और सिर्फ़ इतना ही नहीं यह अपनी विधागत सरोकार की दृष्टि से भी एक पूर्ण विधा के रूप में हिदीं जगत् में समादृत हो रही है। इसे स्थापित करने में जितना हाथ [[रमेश बतरा]], [[जगदीश कश्यप]], [[कृष्ण कमलेश]], [[भगीरथ]], [[सतीश दुबे]], [[बलराम अग्रवाल]],[[चन्द्रेश कुमार छतलानी]], [[विक्रम सोनी]], [[सुकेश साहनी]], [[विष्णु प्रभाकर]], [[हरिशंकर परसाई]] आदि समकालीन लघुकथाकारों का रहा है उतना ही [[कमलेश्वर]], [[राजेन्द्र यादव]], [[बलराम]], [[कमल चोपड़ा]], [[सतीशराज पुष्करणा]] आदि संपादकों का भी रहा है। इस संबंध में ''तारिका'', ''अतिरिक्त'', ''समग्र'', ''मिनीयुग'', ''लघु आघात'', ''वर्तमान जनगाथा'' आदि लघुपत्रिकाओं के संपादकों का योगदान अविस्मरणीय है। |
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17:47, 19 नवम्बर 2021 का अवतरण
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लघुकथा का मतलब है एक छोटी कहानी जिसका विषय पूरी तरह से विकसित हो, पर जो किसी उपन्यास से कम विस्तृत हो।
हिंदी साहित्य
हिंदी साहित्य में लघुकथा नवीनतम् विधा है। इसका श्रीगणेश छत्तीसगढ़ के प्रथम पत्रकार और कथाकार माधव राव सप्रे के एक टोकरी भर मिट्टी से होता है। हिंदी के अन्य सभी विधाओं की तुलना में अधिक लघुआकार होने के कारण यह समकालीन पाठकों के ज्यादा करीब है। और सिर्फ़ इतना ही नहीं यह अपनी विधागत सरोकार की दृष्टि से भी एक पूर्ण विधा के रूप में हिदीं जगत् में समादृत हो रही है। इसे स्थापित करने में जितना हाथ रमेश बतरा, जगदीश कश्यप, कृष्ण कमलेश, भगीरथ, सतीश दुबे, बलराम अग्रवाल,चन्द्रेश कुमार छतलानी, विक्रम सोनी, सुकेश साहनी, विष्णु प्रभाकर, हरिशंकर परसाई आदि समकालीन लघुकथाकारों का रहा है उतना ही कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव, बलराम, कमल चोपड़ा, सतीशराज पुष्करणा आदि संपादकों का भी रहा है। इस संबंध में तारिका, अतिरिक्त, समग्र, मिनीयुग, लघु आघात, वर्तमान जनगाथा आदि लघुपत्रिकाओं के संपादकों का योगदान अविस्मरणीय है।