"अंतर्राष्ट्रीय मानक पुस्तक संख्या": अवतरणों में अंतर

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== इतिहास ==
== इतिहास ==
ब्रिटेन के मशहूर किताब विक्रेता [[डब्ल्यू॰ऐच॰ स्मिथ]] ने [[डब्लिन]], [[आयरलैण्ड]] के [[ट्रिनिटी कॉलेज, डबलिन|ट्रिनिटी कॉलेज]] के गॉर्डन फॉस्टर नाम के एक सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर से १९६६ में अपनी किताबों को संख्यांक देने की विधि बनवाई।<ref>{{Cite web |url=http://www.informaticsdevelopmentinstitute.net/isbn.html |title=Informaticsdevelopmentinstitute.net गॉर्डन फॉस्टर की मूल १९६६ रिपोर्ट |access-date=20 मई 2011 |archive-url=https://web.archive.org/web/20110430024722/http://www.informaticsdevelopmentinstitute.net/isbn.html |archive-date=30 अप्रैल 2011 |url-status=live }}</ref> उन्होंने एक ९ अंकों की प्रणाली बनाई जिसका नाम "स्टैन्डर्ड बुक नम्बरिन्ग" (ऍस॰बी॰ऍन॰, यानि "मानक पुस्तक संख्यांक") रखा गया। १९७० में [[अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन]] (जिसे आइसो या ISO भी कहते हैं) ने इस ९ अंकीय विधि पर आधारित एक १० अंक की मानक विधि का घोषणापत्र संख्या ISO २१०८ में ऐलान किया। यही आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ कहलाता है। २००७ में इसका विस्तार करके इसे १३ अंकीय बना दिया गया लेकिन अभी भी १० अंकीय संख्यांक देखने को मिलते हैं।<ref name="history">{{Cite web |url=http://www.isbn.org/standards/home/isbn/international/history.asp |title=आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ का इतिहास, अंग्रेज़ी में |access-date=20 मई 2011 |archive-url=https://web.archive.org/web/20110608025348/http://www.isbn.org/standards/home/isbn/international/history.asp |archive-date=8 जून 2011 |url-status=dead }}</ref><ref>{{Cite web |url=http://www.lac-bac.gc.ca/iso/tc46sc9/isbn.htm |title=नई ISO २१०८ घोषणापत्र में प्रकाशित १३-अंकीय विधि पर प्रश्नोत्तर, अंग्रेज़ी में |access-date=20 मई 2011 |archive-url=https://web.archive.org/web/20070610160919/http://www.lac-bac.gc.ca/iso/tc46sc9/isbn.htm |archive-date=10 जून 2007 |url-status=dead }}</ref>
ब्रिटेन के मशहूर किताब विक्रेता [[डब्ल्यू॰ऐच॰ स्मिथ]] ने [[डब्लिन]], [[आयरलैण्ड]] के [[ट्रिनिटी कॉलेज, डबलिन|ट्रिनिटी कॉलेज]] के गॉर्डन फॉस्टर नाम के एक सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर से [[१९६६|1966]] में अपनी किताबों को संख्यांक देने की विधि बनवाई।<ref>{{Cite web |url=http://www.informaticsdevelopmentinstitute.net/isbn.html |title=Informaticsdevelopmentinstitute.net गॉर्डन फॉस्टर की मूल १९६६ रिपोर्ट |access-date=20 मई 2011 |archive-url=https://web.archive.org/web/20110430024722/http://www.informaticsdevelopmentinstitute.net/isbn.html |archive-date=30 अप्रैल 2011 |url-status=live }}</ref> उन्होंने एक [[|9]] अंकों की प्रणाली बनाई जिसका नाम "स्टैण्डर्ड बुक नम्बरिंग" (एस॰बी॰एन॰, यानि "मानक पुस्तक संख्यांक") रखा गया। [[१९७०|1970]] में [[अन्तरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन]] (जिसे आई॰एस॰ओ॰ या ISO भी कहते हैं) ने इस [[|9]] अंकीय विधि पर आधारित एक [[१०|10]] अंक की मानक विधि का घोषणापत्र संख्या ISO [[२१०८|2108]] में ऐलान किया। यही आई॰एस॰बी॰एन॰ कहलाता है। [[२००७|2007]] में इसका विस्तार करके इसे [[१३|13]] अंकीय बना दिया गया लेकिन अभी भी [[१०|10]] अंकीय संख्यांक देखने को मिलते हैं।<ref name="history">{{Cite web |url=http://www.isbn.org/standards/home/isbn/international/history.asp |title=आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ का इतिहास, अंग्रेज़ी में |access-date=20 मई 2011 |archive-url=https://web.archive.org/web/20110608025348/http://www.isbn.org/standards/home/isbn/international/history.asp |archive-date=8 जून 2011 |url-status=dead }}</ref><ref>{{Cite web |url=http://www.lac-bac.gc.ca/iso/tc46sc9/isbn.htm |title=नई ISO २१०८ घोषणापत्र में प्रकाशित १३-अंकीय विधि पर प्रश्नोत्तर, अंग्रेज़ी में |access-date=20 मई 2011 |archive-url=https://web.archive.org/web/20070610160919/http://www.lac-bac.gc.ca/iso/tc46sc9/isbn.htm |archive-date=10 जून 2007 |url-status=dead }}</ref>


== इन्हें भी देखें ==
== इन्हें भी देखें ==

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१० और १३ अंकों वाले आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ संख्यांक के अलग-अलग अंशों से पुस्तक के बारे में अलग-अलग जानकारी मिलती है

अन्तरराष्ट्रीय मानक पुस्तक संख्यांक, जिसे आम तौर पर आई॰एस॰बी॰एन॰ ("इण्टरनेशनल स्टैण्डर्ड बुक नम्बर" या ISBN) संख्यांक कहा जाता है प्रत्येक पुस्तक को उसका अपना अनूठा संख्यांक (सीरियल नम्बर) देने की विधि है। इस संख्यांक द्वारा विश्व में छपे किसी भी पुस्तक को खोजा जा सकता है और उसके बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। पहले यह केवल उत्तर अमेरिका, यूरोप और जापान में प्रचलित था, परन्तु अब धीरे-धीरे पूरे विश्व में फैल गया है। आई॰एस॰बी॰एन॰ संख्यांक में 10 अंक हुआ करते थे, परन्तु 2007 के बाद से 13 अंक होते हैं।

इतिहास

ब्रिटेन के मशहूर किताब विक्रेता डब्ल्यू॰ऐच॰ स्मिथ ने डब्लिन, आयरलैण्ड के ट्रिनिटी कॉलेज के गॉर्डन फॉस्टर नाम के एक सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर से 1966 में अपनी किताबों को संख्यांक देने की विधि बनवाई।[1] उन्होंने एक 9 अंकों की प्रणाली बनाई जिसका नाम "स्टैण्डर्ड बुक नम्बरिंग" (एस॰बी॰एन॰, यानि "मानक पुस्तक संख्यांक") रखा गया। 1970 में अन्तरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (जिसे आई॰एस॰ओ॰ या ISO भी कहते हैं) ने इस 9 अंकीय विधि पर आधारित एक 10 अंक की मानक विधि का घोषणापत्र संख्या ISO 2108 में ऐलान किया। यही आई॰एस॰बी॰एन॰ कहलाता है। 2007 में इसका विस्तार करके इसे 13 अंकीय बना दिया गया लेकिन अभी भी 10 अंकीय संख्यांक देखने को मिलते हैं।[2][3]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. "Informaticsdevelopmentinstitute.net गॉर्डन फॉस्टर की मूल १९६६ रिपोर्ट". मूल से 30 अप्रैल 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 मई 2011.
  2. "आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ का इतिहास, अंग्रेज़ी में". मूल से 8 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 मई 2011.
  3. "नई ISO २१०८ घोषणापत्र में प्रकाशित १३-अंकीय विधि पर प्रश्नोत्तर, अंग्रेज़ी में". मूल से 10 जून 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 मई 2011.