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वहीं यह 47 सरकार छोटे-छोटे जिलों में तब्दील कर दी गई, जिसे परगना कहा गया। हर सरकार, के दो अलग-अलग प्रतिनिधि एक सेना अध्यक्ष और दूसरा कानून का रक्षक होता था, जो सरकार से जुड़े सभी विकास कामों के लिए जिम्मेदार होते थे।
== द्वितीय अफ़ग़ान साम्राज्य ==
अभी तक शेरशाह अपने आप को मुगल सम्राटों का प्रतिनिधि ही बताता था पर उनकी चाहत अब अपना [[साम्राज्य]] स्थापित करने की थी। शेरशाह की बढ़ती हुई ताकत को देख आखिरकार मुगल और अफ़ग़ान सेनाओं की जून 1539 में बक्सर के मैदानों पर भिड़ंत हुई। मुगल सेनाओं को भारी हार का सामना करना पड़ा। इस जीत ने शेरशाह का सम्राज्य पूर्व में [[असम]] की पहाड़ियों से लेकर पश्चिम में [[कन्नौज]] तक बढ़ा दिया। अब अपने साम्राज्य को वैध बनाने के लिये उन्होंने अपने नाम के सिक्कों को चलाने का आदेश दिया। यह मुगल सम्राट हुमायूँ को खुली चुनौती थी।<ref>{{cite web|title=Mughal Coinage|trans-title=मुगल सिक्का|url=http://www.rbi.org.in/currency/museum/c-mogul.html|publisher=भारतीय रिजर्व बैंक|accessdate=१६ मई २०१४|language=अंग्रेज़ी|archive-url=https://web.archive.org/web/20021005231609/http://www.rbi.org.in/currency/museum/c-mogul.html|archive-date=5 अक्तूबर 2002|url-status=live}}</ref>
अगले साल [[हुमायूँ]] ने खोये हुये क्षेत्रो पर कब्ज़ा वापिस पाने के लिये शेरशाह की सेना पर फिर हमला किया, इस बार कन्नौज पर। हतोत्साहित और बुरी तरह से प्रशिक्षित हुमायूँ की सेना 17 मई 1540 शेरशाह की सेना से हार गयी। इस हार ने बाबर द्वारा बनाये गये [[मुगल साम्राज्य]] का अंत कर दिया और उत्तर भारत पर [[सूरी साम्राज्य]] की शुरुआत की जो भारत में दूसरा पठान साम्राज्य था [[लोदी वंश|लोधी साम्राज्य]] के
== सरकार और प्रशासन ==
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