"झाँसी की रानी (उपन्यास)": अवतरणों में अंतर

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* [https://web.archive.org/web/20170424193631/https://books.google.com/books?id=_-HVBdF_YLsC&pg=PA11 अंग्रेजी अनुवाद], गूगल पुस्तक पर।
* [https://web.archive.org/web/20170424193631/https://books.google.com/books?id=_-HVBdF_YLsC&pg=PA11 अंग्रेजी अनुवाद], गूगल पुस्तक पर।
* [https://web.archive.org/web/20170424180131/https://www.worldwidejournals.com/indian-journal-of-applied-research-(IJAR)/file.php?val=June_2012_1356958088_aaddd_File%2046.pdf झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई - सरल सहज समीक्षा], ऍस॰ ऍच॰ शर्मा, ''इंडियन जर्नल ऑफ़ अप्लाइड रिसर्च''. भाग-1, अंक-9, जून 2012. पृष्ठ सं॰ 127-128.
* [https://web.archive.org/web/20170424180131/https://www.worldwidejournals.com/indian-journal-of-applied-research-(IJAR)/file.php?val=June_2012_1356958088_aaddd_File%2046.pdf झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई - सरल सहज समीक्षा], ऍस॰ ऍच॰ शर्मा, ''इंडियन जर्नल ऑफ़ अप्लाइड रिसर्च''. भाग-1, अंक-9, जून 2012. पृष्ठ सं॰ 127-128.
*'''[https://abletricks.com/2016/06/blog-pos-7.html/ मनु उर्फ़ रानी लक्ष्मीबाई की जीवनी]'''


[[श्रेणी:हिन्दी उपन्यास]]
[[श्रेणी:हिन्दी उपन्यास]]

12:01, 10 मार्च 2021 का अवतरण

झाँसी की रानी  
लेखक वृंदावनलाल वर्मा
देश भारत
भाषा हिन्दी
विषय रानी लक्ष्मीबाई
प्रकार ऐतिहासिक उपन्यास
प्रकाशन तिथि 1946[1]

झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हिंदी लेखक वृंदावनलाल वर्मा द्वारा लिखित एक ऐतिहासिक उपन्यास है। इसका प्रथम प्रकाशन सन् 1946 में हुआ।[2][3] 1946 से 1948 के बीच लेखक ने इसी शीर्षक से एक नाटक भी लिखा जिसे 1955 में मंचित किया गया[4] हालाँकि, उपन्यास अधिक प्रसिद्ध हुआ और इसे हिंदी भाषा में ऐतिहासिक उपन्यासों की श्रेणी में एक मील का पत्थर माना जाता है।[5] 1951 में इस उपन्यास का पुनर्प्रकाशन हुआ।[6]

उपन्यास का कथानक भारत में ब्रिटिश राज के काल में मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर आधारित है। साथ ही यह 1857 के विद्रोह की आधुनिक व्याख्या भी प्रस्तुत करता है।[7]

मूल्यांकन

उपन्यास के लेखक वृन्दावनलाल वर्मा उपन्यास की भूमिका में विस्तार से लिखते हैं कि उपन्यास की रचना दरअसल इस खोज से भी सम्बंधित थी कि रानी वास्तव में स्वराज के लिए लड़ीं अथवा केवल आपने शासन को बचाने के लिए, और लेखक का कथन है कि उन्हें जो भी लिखित दस्तावेज प्राप्त हो पाए वे काफ़ी अपर्याप्त थे, हालाँकि, कई लोगों से मिलकर साक्षात्कार द्वारा और उन्हें जो कहानियाँ सुनने को मिलीं उनसे लेखक को प्रगाढ़ विश्वास हो जाता है कि रानी ने अंग्रेजों से स्वराज के लिए युद्ध किया था।[8] इस प्रकार उपन्यास पर इतिहास के व्यक्तिगत अनुस्मरण होने का आरोप भी लगता है।[9]

उपन्यास का प्रकाशन 1949 में और पुनर्प्रकाशन 1951 में हुआ।[6] इससे पहले वर्मा ने कई कहानियाँ और कुछ उपन्यास प्रकाशित कराये थे लेकिन इस उपन्यास ने उन्हें हिन्दी साहित्य के अग्रगण्य रचनाकारों के रूप में स्थापित कर दिया और उन्हें ख़ास तौर से इस उपन्यास के लिए 1954 में भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया।[9]

उपन्यास की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी रचना वर्मा ने उस काल में की जब हिंदी में ऐतिहासिक उपन्यासों की भारी कमी थी। ऐसे में उनके इस तरह के उपन्यासों की रचना से न केवल हिंदी साहित्य इस विधा में भी समृद्ध हुआ बल्कि परवर्ती अंग्रेज विद्वानों ने भी इन रचनाओं को मील का पत्थर घोषित किया।[5]

गणेश शंकर विद्यार्थी ने वृंदावनलाल वर्मा के उपन्यास गढ़ कुंडार को अंग्रेजी लेखक वाल्टर स्काट के टक्कर का बताया था और आगे चलकर झाँसी की रानी और मृगनयनी जैसे उपन्यासों की रचना करने वाले वर्मा अपने इन्ही ऐतिहासिक उपन्यासों के बदौलत "हिंदी के वाल्टर स्काट" कहलाये।[10] झाँसी की रानी को हिंदी का सबसे प्रसिद्ध ऐतिहासिक उपन्यास भी माना जाता है। [11]

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

स्रोत ग्रन्थ

बाहरी कड़ियाँ