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पूजा के लिये नवरात्रा स्थापना के दिन ब्राह्मण के द्वारा मन्दिर के मध्य स्थान को गोबर और मिट्टी से लीप कर मिट्टी के एक कलश की स्थापना की जाती है, कलश में पानी भर लिया जाता है और आम के पत्तों से उसे आच्छादित कर दिया जाता है, कलश के ऊपर ढक्कन मिट्टी का जौ या चावल से भर कर रखते हैं, पीले वस्त्र से उसे ढक दिया जाता है, ब्राह्मण मन्त्रों को उच्चारण करने के बाद उसी कलश में कुशों से पानी को छिडकता है और देवी का आवाहन उसी कलश में करता है, देवी चण्डिका के आवाहन की मान्यता देते हुये कलश के चारों तरफ़ लाल रंग का सिन्दूर छिडकता है, मन्त्र आदि के उच्चारण के समय और इस नौ दिन की अवधि में ब्राह्मण केवल फ़ल और मूल खाकर ही रहता है, पूजा का अन्त यज्ञ से होता है, जिसे होम करना कहा जाता है, होम में जौ, चीनी, घी और तिलों का प्रयोग किया जाता है, यह होम कलश के सामने होता है, जिसमे देवी का निवास समझा जाता है, ब्राह्मण नवरात्रा के समाप्त होने के बाद उस कलश के पास बिखरा हुआ सिन्दूर और होम की राख अपने प्रति श्रद्धा रखने वाले लोगों के घर पर लेकर जाता है और और सभी के ललाट पर लगाता है। इस प्रकार से सभी का देवी चामुण्डा के प्रति एकाकार होना माना जाता है, भारत और विश्व के कई देशों के अन्दर देवी का पूजा विधान इसी प्रकार से माना जाता है।
पूजा के लिये नवरात्रा स्थापना के दिन ब्राह्मण के द्वारा मन्दिर के मध्य स्थान को गोबर और मिट्टी से लीप कर मिट्टी के एक कलश की स्थापना की जाती है, कलश में पानी भर लिया जाता है और आम के पत्तों से उसे आच्छादित कर दिया जाता है, कलश के ऊपर ढक्कन मिट्टी का जौ या चावल से भर कर रखते हैं, पीले वस्त्र से उसे ढक दिया जाता है, ब्राह्मण मन्त्रों को उच्चारण करने के बाद उसी कलश में कुशों से पानी को छिडकता है और देवी का आवाहन उसी कलश में करता है, देवी चण्डिका के आवाहन की मान्यता देते हुये कलश के चारों तरफ़ लाल रंग का सिन्दूर छिडकता है, मन्त्र आदि के उच्चारण के समय और इस नौ दिन की अवधि में ब्राह्मण केवल फ़ल और मूल खाकर ही रहता है, पूजा का अन्त यज्ञ से होता है, जिसे होम करना कहा जाता है, होम में जौ, चीनी, घी और तिलों का प्रयोग किया जाता है, यह होम कलश के सामने होता है, जिसमे देवी का निवास समझा जाता है, ब्राह्मण नवरात्रा के समाप्त होने के बाद उस कलश के पास बिखरा हुआ सिन्दूर और होम की राख अपने प्रति श्रद्धा रखने वाले लोगों के घर पर लेकर जाता है और और सभी के ललाट पर लगाता है। इस प्रकार से सभी का देवी चामुण्डा के प्रति एकाकार होना माना जाता है, भारत और विश्व के कई देशों के अन्दर देवी का पूजा विधान इसी प्रकार से माना जाता है।


प्राचीन हिन्दु और बौद्ध मन्दिरों को [[इंडोनेशिया]] में '''चण्डी''' कहा जाता है। इसके पीछे तथ्य यह है कि इनमे से कई देवी (अथवा चण्डी) उपासना के लिये स्थापित किये गये थे। इनमे से सबसे विख्यात [[प्रमबनन]] चण्डी है।{{cn}}
प्राचीन हिन्दु और बौद्ध मन्दिरों को [[इंडोनेशिया]] में '''चण्डी''' कहा जाता है। इसके पीछे तथ्य यह है कि इनमे से कई देवी (अथवा चण्डी) उपासना के लिये स्थापित किये गये थे। इनमे से सबसे विख्यात [[प्रमबनन]] चण्डी है।{{cn}}Rawatji is history


== चण्डी माता मंदिर ==
== '''चण्डी माता मंदिर''' ==
चण्डी माता का मंदिर दिव्य और अलौकिक है। चण्डी माता (जिन्हे माचेल माता के नाम से भी जाना जाता है) पोद्दार की खूबसूरत घाटी में स्थित है जो [[जम्मू और कश्मीर]] के [[किश्तवाड़ ज़िला|किश्तवाड़]] क्षेत्र में मौजूद है। विश्वासियों द्वारा चण्डी माता मंदिर में असीम श्रद्धा है। यह हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है। चण्डी माता के मंदिर का रास्ता गुलाबगढ़ से शुरू होता है। यह एक कठिन पहाड़ी पगडंडी है, क्योंकि रास्ता लंबाई में 30 किमी का है। वाहन केवल गुलाबगढ़ तक ही उपलब्ध हैं, और बाकी मार्ग को तीर्थयात्रियों को पहाड़ी पगडंडी मार्ग से सफर करना पड़ता है। लकिन सफर की लम्बाई श्रद्धालुओं को नहीं थकती।, क्योंकि हर साल बहुत सारे श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं। चण्डी माता मंदिर की यात्रा हर साल अगस्त में होती है। मंदिर का मार्ग भद्रवाह में चिनोटी से शुरू होता है। रास्ता दर्शनीय है और श्रद्धालुओं के साथ-साथ साहसी लोगों के लिए भी उपयुक्त है।
चण्डी माता का मंदिर दिव्य और [http://www.blackmagicspecialist1.com अलौकिक] है। चण्डी माता (जिन्हे माचेल माता के नाम से भी जाना जाता है) पोद्दार की खूबसूरत घाटी में स्थित है जो [[जम्मू और कश्मीर]] के [[किश्तवाड़ ज़िला|किश्तवाड़]] क्षेत्र में मौजूद है। विश्वासियों द्वारा चण्डी माता मंदिर में असीम [https://online-sbi.net/black-magic-specialist-in-uttarakhand श्रद्धा] है। यह हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है। चण्डी माता के मंदिर का रास्ता गुलाबगढ़ से शुरू होता है। यह एक कठिन पहाड़ी पगडंडी है, क्योंकि रास्ता लंबाई में 30 किमी का है। वाहन केवल गुलाबगढ़ तक ही उपलब्ध हैं, और बाकी मार्ग को तीर्थयात्रियों को पहाड़ी पगडंडी मार्ग से सफर करना पड़ता है। लकिन सफर की लम्बाई श्रद्धालुओं को नहीं थकती।, क्योंकि हर साल बहुत सारे श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं। चण्डी माता मंदिर की यात्रा हर साल अगस्त में होती है। मंदिर का मार्ग भद्रवाह में चिनोटी से शुरू होता है। रास्ता दर्शनीय है और श्रद्धालुओं के साथ-साथ साहसी लोगों के लिए भी उपयुक्त है।
[[श्रेणी:हिन्दू देवियाँ]]
[[श्रेणी:हिन्दू देवियाँ]]

10:18, 10 मार्च 2021 का अवतरण

श्री चण्डी देवी का म्ंदिर हरिद्वार मे स्थित।

काली देवी के समान ही चण्डी देवी को माना जाता है, ये कभी कभी दयालु रूप में और प्राय: उग्र रूप में पूजी जाती है, दयालु रूप में वे उमा, गौरी, पार्वती, अथवा हैमवती,शताक्षी,शाकम्भरी देवी,अन्नपूर्णा, जगन्माता और भवानी कहलाती है, भयावने रूप में दुर्गा, काली और श्यामा, चण्डी अथवा चण्डिका, भैरवी, छिन्नमस्ता आदि के नाम से जाना जाता है, अश्विन और चैत्र मास की की शुक्ल प्रतिपदा से नवरात्रा में चण्डी पूजा विशेष समारोह के द्वारा मनायी जाती है।

पूजा के लिये नवरात्रा स्थापना के दिन ब्राह्मण के द्वारा मन्दिर के मध्य स्थान को गोबर और मिट्टी से लीप कर मिट्टी के एक कलश की स्थापना की जाती है, कलश में पानी भर लिया जाता है और आम के पत्तों से उसे आच्छादित कर दिया जाता है, कलश के ऊपर ढक्कन मिट्टी का जौ या चावल से भर कर रखते हैं, पीले वस्त्र से उसे ढक दिया जाता है, ब्राह्मण मन्त्रों को उच्चारण करने के बाद उसी कलश में कुशों से पानी को छिडकता है और देवी का आवाहन उसी कलश में करता है, देवी चण्डिका के आवाहन की मान्यता देते हुये कलश के चारों तरफ़ लाल रंग का सिन्दूर छिडकता है, मन्त्र आदि के उच्चारण के समय और इस नौ दिन की अवधि में ब्राह्मण केवल फ़ल और मूल खाकर ही रहता है, पूजा का अन्त यज्ञ से होता है, जिसे होम करना कहा जाता है, होम में जौ, चीनी, घी और तिलों का प्रयोग किया जाता है, यह होम कलश के सामने होता है, जिसमे देवी का निवास समझा जाता है, ब्राह्मण नवरात्रा के समाप्त होने के बाद उस कलश के पास बिखरा हुआ सिन्दूर और होम की राख अपने प्रति श्रद्धा रखने वाले लोगों के घर पर लेकर जाता है और और सभी के ललाट पर लगाता है। इस प्रकार से सभी का देवी चामुण्डा के प्रति एकाकार होना माना जाता है, भारत और विश्व के कई देशों के अन्दर देवी का पूजा विधान इसी प्रकार से माना जाता है।

प्राचीन हिन्दु और बौद्ध मन्दिरों को इंडोनेशिया में चण्डी कहा जाता है। इसके पीछे तथ्य यह है कि इनमे से कई देवी (अथवा चण्डी) उपासना के लिये स्थापित किये गये थे। इनमे से सबसे विख्यात प्रमबनन चण्डी है।[उद्धरण चाहिए]Rawatji is history

चण्डी माता मंदिर

चण्डी माता का मंदिर दिव्य और अलौकिक है। चण्डी माता (जिन्हे माचेल माता के नाम से भी जाना जाता है) पोद्दार की खूबसूरत घाटी में स्थित है जो जम्मू और कश्मीर के किश्तवाड़ क्षेत्र में मौजूद है। विश्वासियों द्वारा चण्डी माता मंदिर में असीम श्रद्धा है। यह हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल माना जाता है। चण्डी माता के मंदिर का रास्ता गुलाबगढ़ से शुरू होता है। यह एक कठिन पहाड़ी पगडंडी है, क्योंकि रास्ता लंबाई में 30 किमी का है। वाहन केवल गुलाबगढ़ तक ही उपलब्ध हैं, और बाकी मार्ग को तीर्थयात्रियों को पहाड़ी पगडंडी मार्ग से सफर करना पड़ता है। लकिन सफर की लम्बाई श्रद्धालुओं को नहीं थकती।, क्योंकि हर साल बहुत सारे श्रद्धालु मंदिर पहुंचते हैं। चण्डी माता मंदिर की यात्रा हर साल अगस्त में होती है। मंदिर का मार्ग भद्रवाह में चिनोटी से शुरू होता है। रास्ता दर्शनीय है और श्रद्धालुओं के साथ-साथ साहसी लोगों के लिए भी उपयुक्त है।