"इलाचन्द्र जोशी": अवतरणों में अंतर

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जोशी जी बाल्यकाल से ही प्रतिभा के धनी थे। उत्तरांचल में जन्मे होने के कारण, वहाँ के प्राकृतिक वातावरण का इनके चिन्तन पर बहुत प्रभाव पड़ा। अध्ययन में रुचि रखन वाले इलाचन्द्र जोशी ने छोटी उम्र में ही भारतीय महाकाव्यों के साथ-साथ विदेश के प्रमुख कवियों और उपन्यासकारों की रचनाओं का अध्ययन कर लिया था। औपचारिक शिक्षा में रुचि न होने के कारण इनकी स्कूली शिक्षा मैट्रिक के आगे नहीं हो सकी, परन्तु स्वाध्याय से ही इन्होंने अनेक भाषाएँ सीखीं। घर का वातावरण छोड़कर इलाचन्द्र जोशी कोलकाता पहुँचे। वहाँ उनका सम्पर्क शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय से हुआ।
जोशी जी बाल्यकाल से ही प्रतिभा के धनी थे। उत्तरांचल में जन्मे होने के कारण, वहाँ के प्राकृतिक वातावरण का इनके चिन्तन पर बहुत प्रभाव पड़ा। अध्ययन में रुचि रखन वाले इलाचन्द्र जोशी ने छोटी उम्र में ही भारतीय महाकाव्यों के साथ-साथ विदेश के प्रमुख कवियों और उपन्यासकारों की रचनाओं का अध्ययन कर लिया था। औपचारिक शिक्षा में रुचि न होने के कारण इनकी स्कूली शिक्षा मैट्रिक के आगे नहीं हो सकी, परन्तु स्वाध्याय से ही इन्होंने अनेक भाषाएँ सीखीं। घर का वातावरण छोड़कर इलाचन्द्र जोशी कोलकाता पहुँचे। वहाँ उनका सम्पर्क शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय से हुआ।


उपन्यास : मणिमाला, संन्यासी, पर्दे की रानी, प्रेत और छाया, निर्वासित, मुक्तिपथ, सुबह के भूले, जिप्सी, जहाज का पंछी, त्याग का भोग।
==सन्दर्भ==


कहानी : धूपरेखा, दीवाली और होली, रोमांटिक छाया, आहुति, खँडहर की आत्माएँ, डायरी के नीरस पृष्ठ, कटीले फूल लजीले काँटे।
[[श्रेणी:1903 में जन्मे लोग]]

[[श्रेणी:१९८२ में निधन]]
समालोचना तथा निबन्ध : साहित्य सर्जना, विवेचना, विश्लेषण साहित्य चिंतन, शरत्-व्यक्ति और कलाकार, रवीन्द्रनाथ, देखा-परखा।
[[श्रेणी:हिन्दी लेखक]]
Hf

04:47, 5 मार्च 2021 का अवतरण

जोशी जी बाल्यकाल से ही प्रतिभा के धनी थे। उत्तरांचल में जन्मे होने के कारण, वहाँ के प्राकृतिक वातावरण का इनके चिन्तन पर बहुत प्रभाव पड़ा। अध्ययन में रुचि रखन वाले इलाचन्द्र जोशी ने छोटी उम्र में ही भारतीय महाकाव्यों के साथ-साथ विदेश के प्रमुख कवियों और उपन्यासकारों की रचनाओं का अध्ययन कर लिया था। औपचारिक शिक्षा में रुचि न होने के कारण इनकी स्कूली शिक्षा मैट्रिक के आगे नहीं हो सकी, परन्तु स्वाध्याय से ही इन्होंने अनेक भाषाएँ सीखीं। घर का वातावरण छोड़कर इलाचन्द्र जोशी कोलकाता पहुँचे। वहाँ उनका सम्पर्क शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय से हुआ।

उपन्यास : मणिमाला, संन्यासी, पर्दे की रानी, प्रेत और छाया, निर्वासित, मुक्तिपथ, सुबह के भूले, जिप्सी, जहाज का पंछी, त्याग का भोग।

कहानी : धूपरेखा, दीवाली और होली, रोमांटिक छाया, आहुति, खँडहर की आत्माएँ, डायरी के नीरस पृष्ठ, कटीले फूल लजीले काँटे।

समालोचना तथा निबन्ध : साहित्य सर्जना, विवेचना, विश्लेषण साहित्य चिंतन, शरत्-व्यक्ति और कलाकार, रवीन्द्रनाथ, देखा-परखा।