"मिहिर भोज": अवतरणों में अंतर

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परंतु उनकी जाती राजपूत थी
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[[File:Statue of Gurjar Samraat Mihir Bhoj Mahaan in Bharat Upvan ofAkshardham Mandir New Delhi.jpg|thumb|हिन्दू सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार ]]
[[File:Statue of Gurjar Samraat Mihir Bhoj Mahaan in Bharat Upvan ofAkshardham Mandir New Delhi.jpg|thumb|हिन्दू सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार ]]
'''मिहिर भोज प्रतिहार''' अथवा '''मिहिर भोज''' अथवा '''भोज प्रथम''' प्रतिहार राजवंश के राजा थे। इन्होंने ४९ वर्ष तक राज्य किया था। इनका साम्राज्य अत्यन्त विशाल था। मिहिर भोज [[विष्णु]] भगवान के भक्त थें तथा कुछ सिक्कों में इन्हे 'आदि वराह' भी माना गया है। सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार [https://en.m.wikipedia.org/wiki/Gurjaradesa गुर्जरात्रा देश] के शाशक थे, जिसके लिए उन्हें गुर्जर नरेश की उपाधि मिली थी । परंतु उनकी जाती राजपूत थी |<ref>{{cite book|title=Medieval India: a textbook for classes XI-XII, Part 1|author=Satish Chandra, National Council of Educational Research and Training (India)|publisher=National Council of Educational Research and Training|year=1978|url=https://books.google.com/books?cd=7&id=tHVDAAAAYAAJ&dq=gurjara+pratihara+adivaraha&q=gurjara#search_anchor|page=9}}</ref>
'''मिहिर भोज प्रतिहार''' अथवा '''मिहिर भोज''' अथवा '''भोज प्रथम''' प्रतिहार राजवंश के राजा थे। इन्होंने ४९ वर्ष तक राज्य किया था। इनका साम्राज्य अत्यन्त विशाल था। मिहिर भोज [[विष्णु]] भगवान के भक्त थें तथा कुछ सिक्कों में इन्हे 'आदि वराह' भी माना गया है। सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार [https://en.m.wikipedia.org/wiki/Gurjaradesa गुर्जरात्रा देश] के शाशक थे, जिसके लिए उन्हें गुर्जर नरेश की उपाधि मिली थी । परंतु उनकी जाती राजपूत थी |<ref>{{cite book|title=Medieval India: a textbook for classes XI-XII, Part 1|author=Satish Chandra, National Council of Educational Research and Training (India)|publisher=National Council of Educational Research and Training|year=1978|url=https://books.google.com/books?cd=7&id=tHVDAAAAYAAJ&dq=gurjara+pratihara+adivaraha&q=gurjara#search_anchor|page=9}}</ref><ref>{{Cite book|url=https://books.google.co.in/books?id=sxhAtCflwOMC&pg=PA17&dq=mihir+bhoj+rajput&hl=en&sa=X&ved=2ahUKEwjAtYyE2pDvAhXexjgGHRyWBXc4FBDoATABegQICRAD#v=onepage&q=mihir%20bhoj%20rajput&f=false|title=A Comprehensive History of Medieval India: Twelfth to the Mid-eighteenth Century|last=Ahmed|first=Farooqui Salma|date=2011|publisher=Pearson Education India|isbn=978-81-317-3202-1|language=en}}</ref>


==राज्यकाल==
==राज्यकाल==

03:51, 2 मार्च 2021 का अवतरण

हिन्दू सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार

मिहिर भोज प्रतिहार अथवा मिहिर भोज अथवा भोज प्रथम प्रतिहार राजवंश के राजा थे। इन्होंने ४९ वर्ष तक राज्य किया था। इनका साम्राज्य अत्यन्त विशाल था। मिहिर भोज विष्णु भगवान के भक्त थें तथा कुछ सिक्कों में इन्हे 'आदि वराह' भी माना गया है। सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार गुर्जरात्रा देश के शाशक थे, जिसके लिए उन्हें गुर्जर नरेश की उपाधि मिली थी । परंतु उनकी जाती राजपूत थी |[1][2]

राज्यकाल

मिहिर भोज ने 836 ईस्वीं से 885 ईस्वीं तक 49 साल तक राज किया। मिहिरभोज के साम्राज्य का विस्तार आज के मुलतान से पश्चिम बंगाल तक और कश्मीर से कर्नाटक तक फैला हुआ था। ये धर्म रक्षक सम्राट शिव के परम भक्त थे। स्कंध पुराण के प्रभास खंड में सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार के जीवन के बारे में विवरण मिलता है। ५० वर्ष तक राज्य करने के पश्चात वे अपने बेटे महेंद्रपाल को राज सिंहासन सौंपकर सन्यासवृति के लिए वन में चले गए थे। अरब यात्री सुलेमान ने भारत भ्रमण के दौरान लिखी पुस्तक सिलसिलीउत तवारीख 851 ईस्वीं में सम्राट मिहिरभोज को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु बताया है, साथ ही मिहिरभोज की महान सेना की तारीफ भी की है, साथ ही मिहिर भोज के राज्य की सीमाएं दक्षिण में राजकूटों के राज्य, पूर्व में बंगाल के पाल शासक और पश्चिम में मुलतान के शासकों की सीमाओं को छूती हुई बतायी है। प्रतिहार यानी रक्षक या द्वारपाल से है।[3]

सैन्य वृत्ति

915 ईस्वीं में भारत आए बगदाद के इतिहासकार अल-मसूदी ने अपनी किताब मरूजुल जुहाब मेें भी मिहिर भोज की 36 लाख सेनिको की पराक्रमी सेना के बारे में लिखा है। इनकी राजशाही का निशान “वराह” था और मुस्लिम आक्रमणकारियों के मन में इतनी भय थी कि वे वराह यानि सूअर से नफरत करते थे। मिहिर भोज की सेना में सभी वर्ग एवं जातियों के लोगो ने राष्ट्र की रक्षा के लिए हथियार उठाये और इस्लामिक आक्रान्ताओं से लड़ाईयाँ लड़ी। मुस्लिम आक्रमणकारी मिहिर भोज के केवल नाम लेने मात्र से थर-थर कांपा करते थे |

मिहिर भोज के मित्र काबुल का ललिया शाही राजा कश्मीर का उत्पल वंशी राजा अवन्ति वर्मन तथा नैपाल का राजा राघवदेव और आसाम के राजा थे। सम्राट मिहिरभोज के उस समय शत्रु, पालवंशी राजा देवपाल, दक्षिण का राष्ट्र कटू महाराज आमोधवर्ष और अरब के खलीफा मौतसिम वासिक, मुत्वक्कल, मुन्तशिर, मौतमिदादी थे। अरब के खलीफा ने इमरान बिन मूसा को सिन्ध के उस इलाके पर शासक नियुक्त किया था। जिस पर अरबों का अधिकार रह गया था। सम्राट मिहिर भोज ने बंगाल के राजा देवपाल के पुत्र नारायणलाल को युद्ध में परास्त करके उत्तरी बंगाल को अपने क्षत्रिय साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था। दक्षिण के राष्ट्र कूट राजा अमोधवर्ष को पराजित करके उनके क्षेत्र अपने साम्राज्य में मिला लिये थे। सिन्ध के अरब शासक इमरान बिन मूसा को पूरी तरह पराजित करके समस्त सिन्ध प्रतिहार साम्राज्य का अभिन्न अंग बना लिया था। केवल मंसूरा और मुलतान दो स्थान अरबों के पास सिन्ध में इसलिए रह गए थे कि अरबों ने क्षत्रिय सम्राट मिहिर भोज प्रतिहार के तूफानी भयंकर आक्रमणों से बचने के लिए अनमहफूज नामक गुफाए बनवाई हुई थी जिनमें छिप कर अरब अपनी जान बचाते थे।

सम्राट मिहिर भोज नही चाहते थे कि अरब इन दो स्थानों पर भी सुरक्षित रहें और आगे संकट का कारण बने, इसलिए उसने कई बड़े सैनिक अभियान भेज कर इमरान बिन मूसा के अनमहफूज नामक जगह को जीत कर अपने प्रतिहार साम्राज्य की पश्चिमी सीमाएं सिन्ध नदी से सैंकड़ों मील पश्चिम तक पहुंचा दी, और इसी प्रकार भारत को अगली शताब्दियों तक अरबों के बर्बर, धर्मान्ध तथा अत्याचारी आक्रमणों से सुरक्षित कर दिया था। इस तरह सम्राट मिहिरभोज के राज्य की सीमाएं काबुल से राँचीअसम तक, हिमालय से नर्मदा नदीआन्ध्र तक, काठियावाड़ से बंगाल तक, सुदृढ़ तथा सुरक्षित थी।[4]

स्रोत

  1. Romila Thapar, A History of India, Vol. I., U.K. 1966
  2. B.N. Puri, History of the Gurjara Pratiharas, Bombay, 1957
  3. P C Bagchi, India and Central Asia, Calcutta, 1965
  4. K. M. Munshi, The Glory That Was Gurjara Desha (A.D. 550-1300), Bombay, 1955
  5. V. A. Smith, The Pratihars of Rajputana and Kanauj, Journal of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland, (Jan., 1909), pp.53-75
  6. V A Smith, The Oford History of India, IV Edition, Delhi, 1990
  7. एपिक इण्डिया खण्ड १२, पेज १९७ से
  8. इलियट और डाउसन, हिस्ट्री ऑफ इण्डिया पृ० १ से १२६
  9. Dirk H A Kolff, Rajput and Sepoy, CUP, Cambridge, 1990
  10. एपिक इण्डिया खण्ड ६, पेज २४८
  11. एपिक इण्डिया खण्ड ६, पेज १२१, १२६
  12. राधनपुर अभिलेख, श्लोक ८
  13. एपिक इण्डिया खण्ड १८, पेज १०८-११२, श्लोक ८ से ११
  14. बही० जिल्द २, पृ० १२१-२६
  15. चन्द्रपभसूरि कृत प्रभावकचरित्र, पृ० १७७, ७२५वाँ श्लोक
  16. एपिक इण्डिया खण्ड़ १९, पृ० १७६ पं० ११-१२
  17. गुर्जर-प्रतिहाराज पृ० १२५-१२८
  18. ए. एम. टी. जैक्सन, भिनमाल (लेख), बोम्बे गजेटियर खण्ड 1 भाग 1, बोम्बे, 1896
  19. https://दैनिक[मृत कड़ियाँ] भास्कर | www.bhaskar.com/amp/news/GUJ-AHM-OMC-this-style-of-architecture-is-not-available-anywhere-except-the-ambaji-temple-5684022-PH.html
  1. Satish Chandra, National Council of Educational Research and Training (India) (1978). Medieval India: a textbook for classes XI-XII, Part 1. National Council of Educational Research and Training. पृ॰ 9.
  2. Ahmed, Farooqui Salma (2011). A Comprehensive History of Medieval India: Twelfth to the Mid-eighteenth Century (अंग्रेज़ी में). Pearson Education India. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-317-3202-1.
  3. Radhey Shyam Chaurasia (2002). History of Ancient India: Earliest Times to 1000 A. D. Atlantic Publishers & Distributors. पृ॰ 207. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-269-0027-5. Reign of Mihir bhoj.
  4. "हिन्दू सम्राट मिहिर भोज की गौरवशाली दास्तान, इस्लामी आक्रांताओं को नहीं रखने दिया भारत में कदम". May 12, 2020.

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ