"वसुदेव": अवतरणों में अंतर

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[[File:Krishna meets parents.jpg|thumb|कृष्ण और बलराम, वसुदेव और देवकी से मिलते हुए]]
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'''वसुदेव''' यदुवंशी शूर तथा मारिषा के पुत्र, कृष्ण के पिता, कुंती के भाई और मथुरा के राजा उग्रसेन के मंत्री थे। इनका विवाह देवक अथवा आहुक की सात कन्याओं से हुआ था जिनमें [[देवकी]] सर्वप्रमुख थी। वे वृष्णियों के राजा व [[यादव]] राजकुमार थे।<ref>{{cite book |last1=Williams |first1=Joanna Gottfried |title=Kalādarśana: American Studies in the Art of India |date=1981 |publisher=BRILL |isbn=978-90-04-06498-0 |page=129 |url=https://books.google.com/books?id=-qoeAAAAIAAJ&pg=PA129 |language=en |access-date=23 फ़रवरी 2020 |archive-url=https://web.archive.org/web/20170205102943/https://books.google.com/books?id=-qoeAAAAIAAJ |archive-date=5 फ़रवरी 2017 |url-status=live }}</ref> [[हरिवंश पर्व|हरिवंश पुराण]] के मुताबिक, वासुदेव और [[नन्द बाबा]] रिश्ते में भाई थे।<ref>{{Cite web |url=https://books.google.com/books?id=wT-BAAAAMAAJ&dq=krishna+was+abhira&q=yaduvansi |title=Lok Nath Soni, The cattle and the stick: an ethnographic profile of the Raut of Chhattisgarh. Anthropological Survey of India, Govt. of India, Ministry of Tourism and Culture, Dept. of Culture (2000). |access-date=23 फ़रवरी 2020 |archive-url=https://web.archive.org/web/20191228152334/https://books.google.com/books?id=wT-BAAAAMAAJ |archive-date=28 दिसंबर 2019 |url-status=live }}</ref> वसुदेव के नाम पर ही [[कृष्ण]] को 'वासुदेव' (अर्थात् 'वसुदेव के पुत्र') कहते हैं। वसुदेव के जन्म के समय देवताओं ने आनक और दुंदुभि बजाई थी जिससे इनका एक नाम 'आनकदुंदुभि' भी पड़ा। वसुदेव ने स्यमंतपंचक क्षेत्र में [[अश्वमेध यज्ञ]] किया था। कृष्ण की मृत्यु से उद्विग्न होकर इन्होंने प्रभासक्षेत्र में देहत्याग किया।
'''वसुदेव''' यदुवंशी शूर तथा मारिषा के पुत्र, कृष्ण के पिता, कुंती के भाई और मथुरा के राजा उग्रसेन के मंत्री थे। इनका विवाह देवक अथवा आहुक की सात कन्याओं से हुआ था जिनमें [[देवकी]] सर्वप्रमुख थी। वे वृष्णियों के राजा व [[क्षत्रिय]] राजकुमार थे।<ref>{{cite book |last1=Williams |first1=Joanna Gottfried |title=Kalādarśana: American Studies in the Art of India |date=1981 |publisher=BRILL |isbn=978-90-04-06498-0 |page=129 |url=https://books.google.com/books?id=-qoeAAAAIAAJ&pg=PA129 |language=en |access-date=23 फ़रवरी 2020 |archive-url=https://web.archive.org/web/20170205102943/https://books.google.com/books?id=-qoeAAAAIAAJ |archive-date=5 फ़रवरी 2017 |url-status=live }}</ref> [[हरिवंश पर्व|हरिवंश पुराण]] के मुताबिक, वासुदेव और [[नन्द बाबा]] रिश्ते में भाई थे।<ref>{{Cite web |url=https://books.google.com/books?id=wT-BAAAAMAAJ&dq=krishna+was+abhira&q=yaduvansi |title=Lok Nath Soni, The cattle and the stick: an ethnographic profile of the Raut of Chhattisgarh. Anthropological Survey of India, Govt. of India, Ministry of Tourism and Culture, Dept. of Culture (2000). |access-date=23 फ़रवरी 2020 |archive-url=https://web.archive.org/web/20191228152334/https://books.google.com/books?id=wT-BAAAAMAAJ |archive-date=28 दिसंबर 2019 |url-status=live }}</ref> वसुदेव के नाम पर ही [[कृष्ण]] को 'वासुदेव' (अर्थात् 'वसुदेव के पुत्र') कहते हैं। वसुदेव के जन्म के समय देवताओं ने आनक और दुंदुभि बजाई थी जिससे इनका एक नाम 'आनकदुंदुभि' भी पड़ा। वसुदेव ने स्यमंतपंचक क्षेत्र में [[अश्वमेध यज्ञ]] किया था। कृष्ण की मृत्यु से उद्विग्न होकर इन्होंने प्रभासक्षेत्र में देहत्याग किया।


== वासुदेव पद ==
== वासुदेव पद ==

06:18, 30 जनवरी 2021 का अवतरण

कृष्ण और बलराम, वसुदेव और देवकी से मिलते हुए

वसुदेव यदुवंशी शूर तथा मारिषा के पुत्र, कृष्ण के पिता, कुंती के भाई और मथुरा के राजा उग्रसेन के मंत्री थे। इनका विवाह देवक अथवा आहुक की सात कन्याओं से हुआ था जिनमें देवकी सर्वप्रमुख थी। वे वृष्णियों के राजा व क्षत्रिय राजकुमार थे।[1] हरिवंश पुराण के मुताबिक, वासुदेव और नन्द बाबा रिश्ते में भाई थे।[2] वसुदेव के नाम पर ही कृष्ण को 'वासुदेव' (अर्थात् 'वसुदेव के पुत्र') कहते हैं। वसुदेव के जन्म के समय देवताओं ने आनक और दुंदुभि बजाई थी जिससे इनका एक नाम 'आनकदुंदुभि' भी पड़ा। वसुदेव ने स्यमंतपंचक क्षेत्र में अश्वमेध यज्ञ किया था। कृष्ण की मृत्यु से उद्विग्न होकर इन्होंने प्रभासक्षेत्र में देहत्याग किया।

वासुदेव पद

ये श्रीकृष्ण भगवान वासुदेव हैं, ऋषभदेव भगवान के समय से लेकर आज तक वैसे ही नौ वासुदेव हो चुके हैं। वासुदेव यानी जो नर में से नारायण बनें, उस पद को वासुदेव कहते हैं। वासुदेव यानी जो नर में से नारायण बनें, उस पद को वासुदेव कहते हैं। वासुदेव तो कैसे होते हैं? एक आँख से ही लाखों लोग डर जाएँ ऐसी तो वासुदेव की आँखें होती हैं। उनकी आँखें देखकर ही डर जाएँ। वासुदेव पद का बीज कब पड़ेगा? वासुदेव होनेवाले हों तब कईं अवतार पहले से ऐसा प्रभाव होता है। वासुदेव जब चलते हैं तो धरती धमधमती है! हाँ, धरती के नीचे से आवाज़ आती है। अर्थात् वह बीज ही अलग तरह का होता है। उनकी हाज़िरी से ही लोग इधर-उधर हो जाते हैं। उनकी बात ही अलग है। वासुदेव तो मूलत: जन्म से ही पहचाने जाते हैं कि वासुदेव होनेवाले हैं। कई अवतारों के बाद वासुदेव होनेवाले हों, उसका संकेत आज से ही मिलने लगता है। उनके लक्षण ही अलग तरह के होते हैं।[3]

सन्दर्भ

  1. Williams, Joanna Gottfried (1981). Kalādarśana: American Studies in the Art of India (अंग्रेज़ी में). BRILL. पृ॰ 129. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-90-04-06498-0. मूल से 5 फ़रवरी 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 फ़रवरी 2020.
  2. "Lok Nath Soni, The cattle and the stick: an ethnographic profile of the Raut of Chhattisgarh. Anthropological Survey of India, Govt. of India, Ministry of Tourism and Culture, Dept. of Culture (2000)". मूल से 28 दिसंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 फ़रवरी 2020.
  3. "वासुदेव के गुण क्या होते हैं?". www.dadabhagwan.org. अभिगमन तिथि 2 जनवरी 2021.