"ब्रजभाषा": अवतरणों में अंतर

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== ब्रजभाषा की बोलियाँ ==
== ब्रजभाषा की बोलियाँ ==
ब्रजभाषा एक साहित्यिक एवं स्वतंत्र भाषा है और इसकी अपनी कई बोलियाँ हैं।
ब्रजभाषा एक साहित्यिक एवं स्वतंत्र भाषा है और इसकी अपनी कई बोलियाँ हैं।

== ब्रजभाषा के कुछ सरल वाज्य ==
{| class="wikitable"
|-

! ब्रजभाषा
! अर्थ
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| कहाँ जाए रयो हे रे लल्लू ? (पुरुष से) ; कहाँ जाए रई है रे लल्ली/मौड़ी ? (महिला से)
| तुम कहाँ जा रहे हो/रही हो?
|-
| का कर रओ हे? ( पुरुष से) ; कहा कर रई है? (महिला से)
| क्या कर रहे हो/रही हो?
|-
| तेरो नाम का है?
| तुम्हारा नाम क्या है?
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| का खायो?
| तुमने क्या खाया?
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| का हो रयो है?
| क्या हो रहा है?
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| मोये ना पतो।
| मुझे नहीं पता।
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| toye kaa dikkat hai ?
| What is your problem?
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| kaha koye re tu?
| What's the name of your place?
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| Ghar kon- kon hai re?
| Who's at home?
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| tero ghar kahan hain?
| Where is your home?
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| Roti khaay layi kaa?
| Had your meal?
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| kaah haal-chal hai?
| How are you?
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| batayo toh
| I told you.
|-
| je lali meri hai .
| She's my daughter.
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| je humaro lalla hai
| He's my son.
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|tu kab awego ?
|When you will be coming?
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| Tero hi baat dekharo.
| I was waiting for you.
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| Tero byah hai go kaah?
| Are you married?
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| Kahan koon/ kit koon jaro hai?
| Which place you are going to?
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| yahah / nyah aa .
| Come here.
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| ''humbe'' hanji
|Yes/no both with expression
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|chalo chalo
|lets move
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|chup hai ja
|silent
|-
|Non diyo nek so
|Give me little salt
|-
|mere jore nai
|I don't have
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|-
|je bus kitau ja rai hai?
|Where will this bus go?
|-
|jyada mat bol
|don't speak too much
|-
|itaku aa
|come here
|-
|pallanku haija
|go that side
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|khano khay le
|have food
|-
|nek moye diyo
|give me a little bit
|-
|jame namak zyada hai
|there is too much salt in this
|}


==सन्दर्भ==
==सन्दर्भ==

17:32, 17 जनवरी 2021 का अवतरण

ब्रजभाषा
बृज भाषा
बोलने का  स्थान भारत
क्षेत्र बृज
मातृभाषी वक्ता 20000000
भाषा परिवार
  • ब्रजभाषा
लिपि देवनागरी
भाषा कोड
आइएसओ 639-3 braj
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ब्रजभाषा एक धार्मिक भाषा है, जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड में बोली जाती है। इसके अलावा यह भाषा हरियाणा, राजस्थान और मध्यप्रदेश के कुछ जनपदों में भी बोली जाती है। अन्य भारतीय भाषाओं की तरह ये भी संस्कृत से जन्मी है। इस भाषा में प्रचुर मात्रा में साहित्य उपलब्ध है। भारतीय भक्ति काल में यह भाषा प्रमुख रही।

ब्रजभाषा में ही प्रारम्भ में काव्य की रचना हुई। सभी भक्त कवियों ने अपनी रचनाएं इसी भाषा में लिखी हैं जिनमें प्रमुख हैं सूरदास, रहीम, रसखान, केशव, घनानंद, बिहारी, इत्यादि।

भौगोलिक विस्तार

अपने विशुद्ध रूप में ब्रजभाषा आज भी भरतपुर,आगरा, धौलपुर, हिण्डौन सिटी, मथुरा, अलीगढ़, हाथरस, मैनपुरी, एटा, और मुरैना जिलों में बोली जाती है। इसे हम "केंद्रीय ब्रजभाषा" के नाम से भी पुकार सकते हैं। केंद्रीय ब्रजभाषा क्षेत्र के उत्तर पश्चिम की ओर बुलंदशहर जिले की उत्तरी पट्टी से इसमें खड़ी बोली की लटक आने लगती है। उत्तरी-पूर्वी जिलों अर्थात् बदायूँ और एटा जिलों में इसपर कन्नौजी का प्रभाव प्रारंभ हो जाता है। डॉ॰ धीरेंद्र वर्मा, "कन्नौजी" को ब्रजभाषा का ही एक रूप मानते हैं। दक्षिण की ओर ग्वालियर में पहुँचकर इसमें बुंदेली की झलक आने लगती है। पश्चिम की ओर गुड़गाँव तथा भरतपुर का क्षेत्र राजस्थानी से प्रभावित है।

ब्रज भाषा आज के समय में प्राथमिक तौर पर एक ग्रामीण भाषा है, जो कि मथुरा-भरतपुर केन्द्रित ब्रज क्षेत्र में बोली जाती है। यह मध्य दोआब के इन जिलों की प्रधान भाषा है:


गंगा के पार इसका प्रचार बदायूँ, बरेली होते हुए नैनीताल की तराई, उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले तक चला गया है। उत्तर प्रदेश के अलावा इस भाषा का प्रचार राजस्थान के इन जिलों में भी है:

और करौली जिले के कुछ भाग ( हिण्डौन सिटी)| जिसके पश्चिम से यह राजस्थानी की उप-भाषाओं में जाकर मिल जाती है।

हरियाणा में यह दिल्ली के दक्षिणी इलाकों में बोली जाती है- फ़रीदाबाद जिला और गुड़गाँव और मेवात जिलों के पूर्वी भाग।

विकास यात्रा

इसका विकास मुख्यत: पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उससे लगते राजस्थान ,मध्य प्रदेशहरियाणा में हुआ। मथुरा, अलीगढ़, हाथरस,आगरा, मैनपुरी, एटा, भरतपुर, हिण्डौन सिटी, धौलपुर, ग्वालियर, मुरैना, पलवल आदि इलाकों में आज भी यह मुख्य संवाद की भाषा है। इस एक पूरे इलाके में बृजभाषा या तो मूल रूप में या हल्के से परिवर्तन के साथ विद्यमान है। इसीलिये इस इलाके के एक बड़े भाग को बृजांचल या बृजभूमि भी कहा जाता है।

भारतीय आर्यभाषाओं की परंपरा में विकसित होनेवाली "ब्रजभाषा" शौरसेनी अपभ्रंश की कोख से जन्मी है। जब से गोकुल वल्लभ संप्रदाय का केंद्र बना, ब्रजभाषा में कृष्ण विषयक साहित्य लिखा जाने लगा। इसी के प्रभाव से ब्रज की बोली साहित्यिक भाषा बन गई। भक्तिकाल के प्रसिद्ध महाकवि महात्मा सूरदास से लेकर आधुनिक काल के विख्यात कवि श्री वियोगी हरि तक ब्रजभाषा में प्रबंध काव्य तथा मुक्तक काव्य समय समय पर रचे जाते रहे।

स्वरूप

जनपदीय जीवन के प्रभाव से ब्रजभाषा के कई रूप हमें दृष्टिगोचर होते हैं। किंतु थोड़े से अंतर के साथ उनमें एकरूपता की स्पष्ट झलक हमें देखने को मिलती है।

ब्रजभाषा की अपनी रूपगत प्रकृति कारांत है अर्थात् इसकी एकवचनीय पुंलिंग संज्ञाएँ तथा विशेषण प्राय: औकारांत होते हैं; जैसे खुरपौ, यामरौ, माँझौ आदि संज्ञा शब्द औकारांत हैं। इसी प्रकार कारौ, गोरौ, साँवरौ आदि विशेषण पद औकारांत है। क्रिया का सामान्य भूतकालिक एकवचन पुंलिंग रूप भी ब्रजभाषा में प्रमुखरूपेण औकारांत ही रहता है। यह बात अलग है कि उसके कुछ क्षेत्रों में "य्" श्रुति का आगम भी पाया जाता है। जिला अलीगढ़ की तहसील कोल की बोली में सामान्य भूतकालीन रूप "य्" श्रुति से रहित मिलता है, लेकिन जिला मथुरा तथा दक्षिणी बुलंदशहर की तहसीलों में "य्" श्रुति अवश्य पाई जाती है। जैसे :

""कारौ छोरा बोलौ"" -(कोल, जिला अलीगढ़)।

""कारौ छोरा बोल्यौ"" -(माट जिला मथुरा)।

""कारौ छोरा बोल्यौ"" -(डीग जिला भरतपुर)।

""कारौ लौंडा बोल्यौ"" -(बरन, जिला बुलंदशहर)।

कन्नौजी की अपनी प्रकृति ओकारांत है। संज्ञा, विशेषण तथा क्रिया के रूपों में ब्रजभाषा जहाँ औकारांतता लेकर चलती है वहाँ कन्नौजी ओकारांतता का अनुसरण करती है। जिला अलीगढ़ की जलपदीय ब्रजभाषा में यदि हम कहें कि- ""कारौ छोरा बोलौ"" (= काला लड़का बोला) तो इसे ही कन्नौजी में कहेंगे कि-""कारो लरिका बोलो। भविष्यत्कालीन क्रिया कन्नौजी में तिङं्तरूपिणी होती है, लेकिन ब्रजभाषा में वह कृदंतरूपिणी पाई जाती है। यदि हम "लड़का जाएगा" और "लड़की जाएगी" वाक्यों को कन्नौजी तथा ब्रजभाषा में रूपांतरित करके बोलें तो निम्नांकित रूप प्रदान करेंगे :

कन्नौजी में - (1) लरिका जइहै। (2) बिटिया जइहै।

ब्रजभाषा में - (1) छोरा जाइगौ। (2) छोरी जाइगी।

उपर्युक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि ब्रजभाषा के सामान्य भविष्यत् काल रूप में क्रिया कर्ता के लिंग के अनुसार परिवर्तित होती है, जब कि कन्नौजी में एक रूप रहती है।

इसके अतिरिक्त कन्नौजी में अवधी की भाँति विवृति (Hiatus) की प्रवृत्ति भी पाई जाती है जिसका ब्रजभाषा में अभाव है। कन्नौजी के संज्ञा, सर्वनाम आदि वाक्यपदों में संधिराहित्य प्राय: मिलता है, किंतु ब्रजभाषा में वे पद संधिगत अवस्था में मिलते हैं। उदाहरण :

(1) कन्नौजी -""बउ गओ"" (= वह गया)।

(2) ब्रजभाषा -""बो गयौ"" (= वह गया)।

उपर्युक्त वाक्यों के सर्वनाम पद "बउ" तथा "बो" में संधिराहित्य तथा संधि की अवस्थाएँ दोनों भाषाओं की प्रकृतियों को स्पष्ट करती हैं।

क्षेत्र विभाजन

ब्रजभाषा क्षेत्र की भाषागत विभिन्नता को दृष्टि में रखते हुए हम उसका विभाजन निम्नांकित रूप में कर सकते हैं :

(1) केंद्रीय ब्रज अर्थात् आदर्श ब्रजभाषा - अलीगढ़, मथुरा तथा पश्चिमी आगरे की ब्रजभाषा को "आदर्श ब्रजभाषा" नाम दिया जा सकता है।

(2) बुदेली प्रभावित ब्रजभाषा - ग्वालियर के उत्तर पश्चिम में बोली जानेवाली भाषा को यह नाम प्रदान किया जा सकता है।

(3) राजस्थान की जयपुरी से प्रभावित ब्रजभाषा - यह भरतपुर तथा उसके दक्षिणी भाग में बोली जाती है।

(4) सिकरवाड़ी ब्रजभाषा - ब्रजभाषा का यह रूप ग्वालियर के उत्तर पूर्व के अंचल में प्रचलित है जहाँ सिकरवाड़ राजपूतों की बस्तियाँ पाई जाती हैं।

(5) जादोबाटी ब्रजभाषा - करौली के क्षेत्र तथा चंबल नदी के मैदान में बोली जानेवाली ब्रजभाषा को "जादौबारी" नाम से पुकारा गया है। यहाँ जादौ (यादव) राजपूतों की बस्तियाँ हैं।

(6) कन्नौजी से प्रभावित ब्रजभाषा - जिला एटा तथा तहसील अनूपशहर एवं अतरौली की भाषा कन्नौजी से प्रभावित है।

ब्रजभाषी क्षेत्र की जनपदीय ब्रजभाषा का रूप पश्चिम से पूर्व की ओर कैसा होता चला गया है, इसके लिए निम्नांकित उदाहरण द्रष्टव्य हैं :

जिला गुडगाँव में - ""तमासो देख्ने कू गए। आपस् मैं झग्रो हो रह्यौ हो। तब गानो बंद हो गयो।""

जिला बुलंदशहर में -""लौंडा गॉम् कू आयौ और बहू सू बोल्यौ कै मैं नौक्री कू जांगौ।""

जिला अलीगढ़ में - ""छोरा गाँम् कूँ आयौ औरु बऊ ते बोलौ (बोल्यौ) कै मैं नौक्री कूँ जांगो।""

जिला एटा में - ""छोरा गॉम् कूँ आओ और बऊ ते बोलो कै मैं नौक्री कूँ जाउँगो।""

इसी प्रकार उत्तर से दक्षिण की ओर का परिवर्तन द्रष्टव्य है-

जिला अलीगढ़ में -""गु छोरा मेरे घर् ते चलौ गयौ।""

जिला मथुरा में -""बु छोरा मेरे घर् तैं चल्यौ गयौ।""

जिला भरतपुर में -""ओ छोरा तू कहा कररौय।""

जिला आगरा में -""मुक्तौ रुपइया अप्नी बइयरि कूँ भेजि दयौ।""

ग्वालियर (पश्चिमी भाग) में - "बानैं एक् बोकरा पाल लओ। तब बौ आनंद सै रैबे लगो।""

ब्रजभाषा की बोलियाँ

ब्रजभाषा एक साहित्यिक एवं स्वतंत्र भाषा है और इसकी अपनी कई बोलियाँ हैं।

ब्रजभाषा के कुछ सरल वाज्य

ब्रजभाषा अर्थ
कहाँ जाए रयो हे रे लल्लू ? (पुरुष से) ; कहाँ जाए रई है रे लल्ली/मौड़ी ? (महिला से) तुम कहाँ जा रहे हो/रही हो?
का कर रओ हे? ( पुरुष से) ; कहा कर रई है? (महिला से) क्या कर रहे हो/रही हो?
तेरो नाम का है? तुम्हारा नाम क्या है?
का खायो? तुमने क्या खाया?
का हो रयो है? क्या हो रहा है?
मोये ना पतो। मुझे नहीं पता।
toye kaa dikkat hai ? What is your problem?
kaha koye re tu? What's the name of your place?
Ghar kon- kon hai re? Who's at home?
tero ghar kahan hain? Where is your home?
Roti khaay layi kaa? Had your meal?
kaah haal-chal hai? How are you?
batayo toh I told you.
je lali meri hai . She's my daughter.
je humaro lalla hai He's my son.
tu kab awego ? When you will be coming?
Tero hi baat dekharo. I was waiting for you.
Tero byah hai go kaah? Are you married?
Kahan koon/ kit koon jaro hai? Which place you are going to?
yahah / nyah aa . Come here.
humbe hanji Yes/no both with expression
chalo chalo lets move
chup hai ja silent
Non diyo nek so Give me little salt
mere jore nai I don't have
je bus kitau ja rai hai? Where will this bus go?
jyada mat bol don't speak too much
itaku aa come here
pallanku haija go that side
khano khay le have food
nek moye diyo give me a little bit
jame namak zyada hai there is too much salt in this

सन्दर्भ

इन्हें भी देखें