"सालासर बालाजी": अवतरणों में अंतर

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'''सालासर बालाजी''' भगवान [[हनुमान]] के भक्तों के लिए एक धार्मिक स्थल है। यह [[राजस्थान]] के [[चूरू जिला|चूरू जिले]] में स्थित है। वर्ष भर में असंख्य भारतीय भक्त दर्शन के लिए सालासर धाम जाते हैं। हर वर्ष [[चैत्र]] पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा पर बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। भारत में यह एकमात्र बालाजी का मंदिर है जिसमे बालाजी के दाढ़ी और मूँछ है। बाकि चेहरे पर राम भक्ति में राम आयु बढ़ाने का सिंदूर चढ़ा हुआ है। कहा जाता है इस मंदिर का निर्माण मुस्लिम कारीगरों ने किया था, जिसमे मुख्य थे फतेहपुर से नूर मोहम्मद व दाऊ।
"आओ गांव चले"

"सलासर का इतिहास"

( सालासर _भक्त व भगवान्  के बीच कोई दलाल नहीं)

               _30 वर्ष पहले स्व. विशन सिंह शेखावत "खाचरियावास "का पत्रिका में लिखा आलेख,

सालासर गांव  हनुमान जी मंदिर के कारण प्रसिद्ध है ।सीकर से सुजानगढ़ जाने वाली सड़क पर बसे इस स्थान पर यात्रियों व हनुमान भक्तों से भरी हुई बसें जीपे ,कारें दिनभर दिखाई देती है । मद्रास ,कोलकाता तथा विदेश में रहने वाले हनुमान जी की स्वामनी करने के लिए यहां आकर अपने मन के संकल्प को पूरा हुआ, जानकर आत्म विभोर हो जाते हैं। आसोज पूर्णिमा के मेले में तो हज़ारों व्यक्ति कट्ठे हो जाते हैं ।जिला प्रशासन की तरफ से 200 पुलिस के जवान लगाए जाते हैं ।इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि हनुमानजी के प्रति श्रद्धा और भक्ति भाव रखने वाले लोगों की संख्या में कितनी वृद्धि हुई है ।सालासर में किसी तरह का ढोंग पाखंड नहीं है। हरिजन और मुसलमान भी श्रद्धा से जाते हैं। भगवान और भक्त के बीच कोई दलाल नहीं है ।यही यहां की विशेषता है । कुण आवै, कुन पावे। यह कोई नहीं जानता।

यात्री चूरमा दाल बाटी की स्वामिनी देते हैं। स्वामनी इतनी आती है कि चूरमा को कूटना भी परेशानी का काम हो जाता था ।इसका भी उपाय निकाल लिया है चूरमा कूटने की मशीनें गाजियाबाद से  मंगाई गई है ।यह मशीन  3 मिनट में सवा मण बाटियों का चूरमा तैयार कर देती  है ।

चैत की पूर्णिमा, आसोज की पूर्णिमा के दो विशाल मेलों में यात्रियों के आने के कारण सुविधाओं में निरंतर सुधार होता जा रहा है। सालासर में यात्रियों की सुविधाओं के लिए 2 मंजिली सभी प्रकार की सुविधा से युक्त धर्मशालाएं हैं,  धर्मशाला में यात्री को बड़ी प्रसन्नता पूर्वक ठहराया जाता है। ओढ़ने बिछाने के लिए रजाई गद्दे भी मुफ्त दिए जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यात्री को यहां आने के बाद सिवाय नारियल अथवा प्रसाद के अलावा एक पैसा भी खर्च करना नहीं पड़ता। स्वेच्छा से खाना चाहे तो मुफ्त भोजन भी मिल जाता है।  यहां पर शुद्ध काम है। एक व्यक्ति ने इस संबंध में बताया कि बालाजी जाने और भक्त जाने ।

                सालासर में बालाजी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा सावन सुदी नवमी शनिवार सम्वत 1811 में 237 वर्ष पहले हुई थी l पहले सड़कें बिजली तथा आवागमन की सुविधा नहीं थी। लोग उंटो पर बैठ कर आते थे। 25 से ज्यादा धर्मशालाएं बन गई है । 50 से ज्यादा हनुमान जी के प्रसाद और तस्वीरें आदि की दुकानें खुल गई है। धर्मशालाओं के प्रबंध के कारण सैकड़ों लोगों को रोजगार मिला हुआ है ।सालासर के 500 परिवारों  की आमदनी सालासर के मंदिर के कारण हो जाती है ।

       दूध अनाज यहां की यहां ही बिक जाता है। पैदावार वृद्धि के कारण भवन निर्माण का कार्य भी चलता रहता है ।

       कहते हैं कि रूल्याणी गांव के दायमा ब्राह्मणों की एक लड़की कानी बाई की सालासर में शादी हुई थी । बहन के विधवा होने पर कानी बाई का भाई मोहनदास सालासर सहायता के लिए आया था।उन दिनों पड़ोस के असोटा गांव के खेत में एक मूर्ति हल चलाते नजर आई थी। आसोटा ठाकुर को स्वप्न में यह आभास हुआ कि इस हनुमान मूर्ति को सालासर में स्थापित किया जाए ।सालासर में मोहन दास की धूनी थी, वहां मूर्ति स्थापित किए जाने के बाद सेवा पूजा का कार्य मोहनदास के दो भांजे सुखराम व उदय राम को सौंपा ।इन दो ब्राह्मणों के परिवार के पास ही बालाजी का पूजापा है। इन दोनों के 200 के करीब दायमा गोत्र के परिवार सालासर में बालाजी की सेवा पर ही निर्भर है । मामा मोहन दास की तपस्या का परिणाम है कि इतने वर्षों के बाद स्थल की प्रतिष्ठा निरंतर बढ़ती जा रही है।

      सालासर नाम भी ठाकुर सालम सिंह के नाम पर है। कहते हैं कि सीकर की सीमा पर लगे हुए इस स्थान का पट्टा सालम सिंह राव जी का शेखावत जाति के राजपूत को बीकानेर के राजा ने दिया था। उन दिनों दक्षिणी मराठों के झुंड के झुंड राजस्थान के गांव को लूटते फिरते थे ।सालम सिंह दिन में एक बार बाबा मोहन दास जी की धूनी पर आया जाया करते थे। एक दिन धूनी पर नहीं आए  तो मोहनदास ही आसोटा चले गए। पूछा तो ठाकुर साहब ने बताया कि मराठे गांव को लूटने आ रहे हैं ।

बाबा मोहन दास के आशीर्वाद से बंदूकों की आवाज के साथ ही मराठे वहां  से भाग  गए। इसके बाद मोहनदास बाबा तथा हनुमान जी की  मूर्ति के चमत्कार की चर्चा दूर-दूर तक फैल गई ।असोटा के ठाकुर पहला व्यक्ति था जिसकी भेंट से मंदिर का निर्माण शुरू हुआ था। आज के दिन भव्य मंदिर है ।धूप की सुगंध, नगाड़ों और यज्ञ धूनी  की अखण्ड  जोत 237 बरस से निरंतर जल रही है।

सालासर में बाबा मोहन दास ने जीवित समाधि ली थी ।वहां छतरी बनी हुई है। बहन कानी बाई के पगले भी हैं। इतने वर्षों बाद भी सालासर का नाम लेते हैं तो सालम सिंह तथा बहन भाई मोहनदास व कानी भाई को अवश्य याद करते हैं। विधवा बहन के लिए भाई ने जो प्रसाद दिया व सैकड़ों वर्षो तक उनके परिवार के लोग पाते रहेंगे।

        सालासर में हाथ करघा उद्योग हैं। यहां पर गमछे बनते हैं।  यात्रियों की सुविधाओं के लिए दो बरतन भंडार खुले हुए हैं ।  भंडारों में इतने बर्तन है कि 15000 यात्रियों के लिए पर्याप्त है ।यात्री चाहे जितना बर्तन ले उसको इसके लिए एक भी पैसा खर्च नहीं करना पड़ता ।हनुमान सेवा समिति की सन 80 में महावीर प्रसाद ने स्थापना की थी। यह समिति यात्रियों की सुख सुविधा का ध्यान रखती है। सालासर का पानी खारा है, पानी पीते ही पता चल जाता है कि सदियों तक खारा पानी पी पीकर इलाके के लोग कैसे मजबूती से डटे थे ।खारा पानी होने के कारण एक ही फसल खासकर होती है। बाजरा ,मोठ मूंग की पैदावार है। पशु खूब पाल रखे हैं। पहले गांव के लोग पैदावार से अनाज की पहली भरण भरकर बालाजी के मंदिर में चढ़ाते थे।

यहां पर सीनियर हायर सेकेंडरी, संस्कृत की पाठशाला, मातृ शिशु केंद्र हैं। अस्पताल को सीकर के सेकसरिया व सुजानगढ़ के कनोई सेठ ने बनाया है। हनुमान सेवा समिति ने पानी निकासी की व्यवस्था की है । लोहिया परिवार बस स्टैंड बनवा रहा है। मंदिर में एक ही संकेत है "जात पात पूछे नहीं कोई ,हरि को भजे सो हरि का होई! चुन्नीलाल मेघवाल जनता पार्टी से एमएलए रहे हैं।    60 परिवार जाटों के 40 राजपूतों के परिवारों के पास खेती का काम है। बस व जीपे आदि बहुत है ।ऑटोमोबाइल्स की दुकानें खुल गई है। सालासर तक सड़क महाराजा गंगा सिंह के जमाने में बन गई थी ।

सालासर में स्वामी करपात्री जी, जगद्गुरु शंकराचार्य, राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा आदि  आए।   मोहन दास जी की तिथि पर यहां भोग होता है, 25 हजार लोग मंदिर की तरफ से हलवे का प्रसाद पाते हैं। पानी की 3 योजनाएं चलती है ।नौरंगसर की योजना भीखाभाई के समय हुई थी । मंगलूना  से 10 किलोमीटर पाइप लाइन लगाकर मीठे पानी को लाया गया है ।सालासर में पंचायत भी है। सालासर में 30 पार्टियों ने नावा के पास नमक बनाने का नया धंधा शुरू किया है ।ज्यादातर लोगों का गांव में ही निजी व्यवसाय है। यहां पर चढ़ाए हुए सौ बरस के नारियल सुरक्षित है। हरियाणा पंजाब की भी काफी धर्मशालाएं बनी हुई है। इन दिनों 60% यात्री हरियाणा पंजाब से आते हैं । खीर जलेबी की रसोई खूब होती हैं।

_ संकलन कर्ता: जितेंद्र सिंह शेखावत व पूजा सिंह'''सालासर बालाजी''' भगवान [[हनुमान]] के भक्तों के लिए एक धार्मिक स्थल है। यह [[राजस्थान]] के [[चूरू जिला|चूरू जिले]] में स्थित है। वर्ष भर में असंख्य भारतीय भक्त दर्शन के लिए सालासर धाम जाते हैं। हर वर्ष [[चैत्र]] पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा पर बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। भारत में यह एकमात्र बालाजी का मंदिर है जिसमे बालाजी के दाढ़ी और मूँछ है। बाकि चेहरे पर राम भक्ति में राम आयु बढ़ाने का सिंदूर चढ़ा हुआ है। कहा जाता है इस मंदिर का निर्माण मुस्लिम कारीगरों ने किया था, जिसमे मुख्य थे फतेहपुर से नूर मोहम्मद व दाऊ।
हनुमान सेवा समिति, मंदिर और मेलों के प्रबन्धन का काम करती है। यहाँ रहने के लिए कई धर्मशालाएँ और खाने-पीने के लिए कई जलपान-गृह (रेस्तराँ) हैं। श्री हनुमान मंदिर सालासर कस्बे के ठीक मध्य में स्थित है। वर्त्तमान में सालासर हनुमान सेवा समिति ने भक्तों की तादाद बढ़ते देखकर दर्शन के लिए अच्छी व्यवस्था की है।
हनुमान सेवा समिति, मंदिर और मेलों के प्रबन्धन का काम करती है। यहाँ रहने के लिए कई धर्मशालाएँ और खाने-पीने के लिए कई जलपान-गृह (रेस्तराँ) हैं। श्री हनुमान मंदिर सालासर कस्बे के ठीक मध्य में स्थित है। वर्त्तमान में सालासर हनुमान सेवा समिति ने भक्तों की तादाद बढ़ते देखकर दर्शन के लिए अच्छी व्यवस्था की है।



20:35, 10 जनवरी 2021 का अवतरण

सालासर बालाजी
सालासर बालाजी
सालासर बालाजी के मंदिर में स्थापित बालाजी की मूर्ति
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
देवताहनुमान
अवस्थिति जानकारी
ज़िलाचूरू
राज्यराजस्थान
देशभारत
सालासर बालाजी is located in राजस्थान
सालासर बालाजी
राजस्थान में सालासर बालाजी मंदिर की स्थिति
भौगोलिक निर्देशांक27°43′N 74°43′E / 27.72°N 74.71°E / 27.72; 74.71निर्देशांक: 27°43′N 74°43′E / 27.72°N 74.71°E / 27.72; 74.71

सालासर बालाजी भगवान हनुमान के भक्तों के लिए एक धार्मिक स्थल है। यह राजस्थान के चूरू जिले में स्थित है। वर्ष भर में असंख्य भारतीय भक्त दर्शन के लिए सालासर धाम जाते हैं। हर वर्ष चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा पर बड़े मेलों का आयोजन किया जाता है। भारत में यह एकमात्र बालाजी का मंदिर है जिसमे बालाजी के दाढ़ी और मूँछ है। बाकि चेहरे पर राम भक्ति में राम आयु बढ़ाने का सिंदूर चढ़ा हुआ है। कहा जाता है इस मंदिर का निर्माण मुस्लिम कारीगरों ने किया था, जिसमे मुख्य थे फतेहपुर से नूर मोहम्मद व दाऊ। हनुमान सेवा समिति, मंदिर और मेलों के प्रबन्धन का काम करती है। यहाँ रहने के लिए कई धर्मशालाएँ और खाने-पीने के लिए कई जलपान-गृह (रेस्तराँ) हैं। श्री हनुमान मंदिर सालासर कस्बे के ठीक मध्य में स्थित है। वर्त्तमान में सालासर हनुमान सेवा समिति ने भक्तों की तादाद बढ़ते देखकर दर्शन के लिए अच्छी व्यवस्था की है।

स्थान

सालासर कस्बा, राजस्थान में चूरू जिले का एक हिस्सा है और यह जयपुर - बीकानेर राजमार्ग पर स्थित है। यह सीकर से 57 किलोमीटर, सुजानगढ़ से 24 किलोमीटर और लक्ष्मणगढ़ से 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सालासर कस्बा सुजानगढ़ पंचायत समिति के अधिकार क्षेत्र में आता है और राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की नियमित बस सेवा के द्वारा दिल्ली, जयपुर और बीकानेर से भली प्रकार से जुड़ा है। इंडियन एयरलाइंस और जेट एयर सेवा जो जयपुर तक उड़ान भरती हैं, यहाँ से बस या टैक्सी के द्वारा सालासर पहुँचने में 3.5 घंटे का समय लगता है। सुजानगढ़, सीकर, डीडवाना, जयपुर और रतनगढ़ सालासर बालाजी के नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं।

यह शहर पिलानी शहर से लगभग 140 किलोमीटर की दूरी पर है, जहाँ (बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान, पिलानी/बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान) स्थित है।


श्रावण शुक्लपक्ष नवमी, संवत् 1811 - शनिवार को एक चमत्कार हुआ। नागौर जिले में असोटा गाँव का एक गिन्थाला-जाट किसान अपने खेत को जोत रहा था। अचानक उसके हल से कोई पथरीली चीज़ टकरायी और एक गूँजती हुई आवाज पैदा हुई। उसने उस जगह की मिट्टी को खोदा और उसे मिट्टी में सनी हुई दो मूर्त्तियाँ मिलीं। उसकी पत्नी उसके लिए भोजन लेकर वहाँ पहुँची। किसान ने अपनी पत्नी को मूर्त्ति दिखायी। उन्होंने अपनी साड़ी (पोशाक) से मूर्त्ति को साफ़ की। यह मूर्त्ति बालाजी भगवान श्री हनुमान की थी। उन्होंने समर्पण के साथ अपने सिर झुकाये और भगवान बालाजी की पूजा की। भगवान बालाजी के प्रकट होने का यह समाचार तुरन्त असोटा गाँव में फ़ैल गया। असोटा के ठाकुर ने भी यह खबर सुनी। बालाजी ने उसके सपने में आकर उसे आदेश दिया कि इस मूर्त्ति को चूरू जिले में सालासर भेज दिया जाए। उसी रात भगवान हनुमान के एक भक्त, सालासर के मोहन दासजी महाराज ने भी अपने सपने में भगवान हनुमान यानि बालाजी को देखा। भगवान बालाजी ने उसे असोटा की मूर्त्ति के बारे में बताया। उन्होंने तुरन्त आसोटा के ठाकुर के लिए एक सन्देश भेजा। जब ठाकुर को यह पता चला कि आसोटा आये बिना ही मोहन दासजी को इस बारे में थोड़ा-बहुत ज्ञान है, तो वे चकित हो गये। निश्चित रूप से, यह सब सर्वशक्तिमान भगवान बालाजी की कृपा से ही हो रहा था। मूर्त्ति को सालासर भेज दिया गया और इसी जगह को आज सालासर धाम के रूप में जाना जाता है। दूसरी मूर्त्ति को इस स्थान से 25 किलोमीटर दूर पाबोलाम (जसवंतगढ़) में स्थापित कर दिया गया। पाबोलाव में सुबह के समय समारोह का आयोजन किया गया और उसी दिन शाम को सालासर में समारोह का आयोजन किया गया।

मार्ग मानचित्र (दिल्ली - सालासर बालाजी)

दिल्ली से: 1.) नयी दिल्ली -> गुरुग्राम (गुड़गाँव) -> रेवाड़ी -> नारनौल -> चिडावा -> झुंझुनू -> मुकुंदगढ़ -> लक्ष्मणगढ़ -> सालासर बालाजी (318 किलोमीटर)

(आपको रेवाड़ी रोड़ से राष्ट्रीय राजमार्ग-8 को छोड़कर रेवाड़ी से झुंझुनू जाने वाला रास्ता लेना होगा) (सबसे छोटा रास्ता)


2.) नयी दिल्ली -> गुरुग्राम -> बहरोड़ -> नारनौल -> चिडावा -> झुंझुनू -> मुकुंदगढ़ -> लक्ष्मणगढ़ -> सालासरबालाजी (335 किलोमीटर)

(ऊपर बताये गये रास्ते से यह मार्ग बेहतर है, आपको बहरोड़ से राष्ट्रीय राजमार्ग-8 छोड़ना होगा, लेकिन बहरोड़-चिडावा-झुंझुनू वाला रास्ता बहुत खराब है)


3.) नयी दिल्ली -> गुरुग्राम -> बहरोड़ -> कोटपुतली -> नीमकाथाना -> उदयपुरवाटी -> सीकर -> सालासर बालाजी (335 किलोमीटर) (आपको कोटपुतली से राष्ट्रीय राजमार्ग-8 छोड़ना होगा)

4.) नयी दिल्ली -> गुरुग्राम -> बहरोड़ -> कोटपुतली-> शाहपुरा-> अजीतगढ़ -> सामोद -> चोमूँ -> सीकर -> सालासर बालाजी (392 किलोमीटर) (आपको शाहपुरा से राष्ट्रीय राजमार्ग-8 छोड़ना होगा) इसे सामोद मार्ग के रूप में भी जाना जाता है।

5.) नयी दिल्ली -> गुरुग्राम -> बहरोड़ -> कोटपुतली-> शाहपुरा -> चंदवाजी -> चोमूँ -> सीकर -> सालासर बालाजी (399 किलोमीटर) (आपको शाहपुरा से राष्ट्रीय राजमार्ग-8 छोड़ना होगा) इसे चंदवाजी मार्ग भी कहा जाता है। हालाँकि यह मार्ग लम्बा है, इसकी लम्बाई लगभग 225 किलोमीटर है, परन्तु राष्ट्रीय राजमार्ग-8 एक्सप्रेसवे पर गाड़ी चलाकर आराम से जा सकते हैं।


6.) नयी दिल्ली -> बहादुरगढ़ -> झज्झर -> चरखीदादरी -> लोहारू -> चिडावा -> झुंझुनू -> मुकुंदगढ़ -> लक्ष्मणगढ़ -> सालासर बालाजी (302 किलोमीटर) यह नया रास्ता है जिसे कम भक्त जानते हैं।


7.) नयी दिल्ली -> रोहतक -> हिसार -> राजगढ़ -> चुरू -> फतेहपुर -> सालासर बालाजी (382 किलोमीटर)

प्रबंधन (सालासर बालाजी का ट्रस्ट)

सालासर बालाजी[1] का प्रबंधन मोहनदासजी सालासर बालाजी ट्रस्ट के द्वारा किया जाता है।

मंदिर का सम्पर्क विवरण सालासर बालाजी ट्रस्ट सालासर, राजस्थान

दर्शनीय स्थल

मोहनदास जी की धुनिया वह जगह है, जहाँ महान भगवान हनुमान के भक्त मोहनदास जी के द्वारा पवित्र अग्नि जलायी गयी, जो आज भी जल रही है। हिंदू श्रद्धालु और तीर्थयात्री यहाँ से पवित्र राख ले जाते हैं। श्री मोहन मंदिर, बालाजी मंदिर के बहुत ही पास स्थित है, यह इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि मोहनदास जी और कनिदादी के पैरों के निशान यहाँ आज भी मौजूद हैं। इस स्थान को इन दोनों पवित्र भक्तों का समाधि स्थल माना जाता है। पिछले आठ सालों से यहाँ निरंतर रामायण का पाठ किया जा रहा है। भगवान बालाजी के मंदिर परिसर में, पिछले 20 सालों से लगातार अखण्ड हरी कीर्तन या राम के नाम का निरंतर जाप किया जा रहा है। अंजनी माता का मंदिर लक्ष्मणगढ़ की ओर सालासर धाम से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अंजनी माता भगवान हनुमान या बालाजी की माँ थी। गुदावादी श्याम मंदिर भी सालासर धाम से एक किलोमीटर के भीतर स्थित है। मोहनदास जी के समय से दो बैलगाड़ियों को यहाँ बालाजी मंदिर परिसर में रखा गया है। शयनन माता मंदिर, जो यहाँ से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर रेगिस्तान में एक अद्वितीय पहाड़ी पर स्थित है, माना जाता है कि यह 1100 साल पुराना मंदिर है, यह भी दर्शन के योग्य है।


श्री हनुमान जयन्ती का उत्सव हर साल चैत्र शुक्ल चतुर्दशी और पूर्णिमा को मनाया जाता है। श्री हनुमान जयन्ती के इस अवसर पर भारत के हर कोने से लाखों श्रद्धालु यहाँ पहुँचते हैं।

आश्विन शुक्लपक्ष चतुर्दशी और पूर्णिमा को मेलों का आयोजन किया जाता है और बड़ी संख्या में भक्त इन मेलों में भी पहुँचते हैं। भाद्रपद शुक्लपक्ष चतुर्दशी और पूर्णिमा पर आयोजित किये जाने वाले मेले भी बाकी मेलों की तरह आकर्षक होते हैं। इन अवसरों पर नि:शुल्क भोजन, मिठाईयों और पेय पदार्थों का वितरण किया जाता है।

सालासर बालाजी मंदिर का रखरखाव मोहनदास जी ट्रस्ट के द्वारा किया जाता है। सालासर ट्रस्ट सालासर कस्बे के लिए काफी सुविधाएँ उपलब्ध कराती है, जैसे मंदिर के जेनरेटर से कस्बे में बिजली उपलब्ध करायी जाती है, फ़िल्टर किया हुआ साफ़ पानी कस्बे के लोगों के लिए उपलब्ध कराया जाता है।

संदर्भ

  1. शर्मा, पंडित ओमप्रकाश. "सालासर बालाजी मंदिर व् इतिहास". hindi.panditbooking.com. पंडित ओमप्रकाश शर्मा सालासर. मूल से 1 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 1 जुलाई 2018.

बाहरी कड़ियाँ