"मुद्रा (विनिमय माध्यम)": अवतरणों में अंतर

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'''मुद्रा''' (Money) ऐसी वस्तु या आधिकारिक प्रमाण होता है जो [[माल और सेवाओं]] को खरीदने के लिए और ऋणों व [[कर|करों]] के भुगतान के लिए स्वीकार्य होता है। मुद्रा का मुख्य कार्य विनिमय का माध्यम (medium of exchange) होना और मूल्य का कोश (store of value) होना है। मुद्रा की श्रेणी में ऐसी कोई भी चीज़ आती है जो इन कार्यों को सम्पन्न करती हो। विश्व का लगभग हर आधुनिक देश मुद्रा का मानकीकरण कर के उसकी ईकाईयाँ जारी करता है, जिसे [[करंसी]] (currency) कहा जाता है।<ref>{{cite book |title=The Economics of Money, Banking, and Financial Markets |last=Mishkin |first=Frederic S. |author-link=Frederic Mishkin |year=2007 |publisher=Addison Wesley |location=Boston |isbn=978-0-321-42177-7 |page=8|edition=Alternate }}</ref><ref>[https://books.google.com/books?id=MDU-NTEJziMC&pg=PA47 ''What Is Money?''] By John N. Smithin. Retrieved July-17-09.</ref><ref>{{cite web |url=http://www.dictionaryofeconomics.com/article?id=pde2008_M000217&edition=current&q=money&topicid=&result_number=5 |title=money : The New Palgrave Dictionary of Economics |website=The New Palgrave Dictionary of Economics |access-date=18 December 2010}}</ref>
'''मुद्रा''' (Money) ऐसी वस्तु या आधिकारिक प्रमाण होता है जो [[माल और सेवाओं]] को खरीदने के लिए और ऋणों व [[कर|करों]] के भुगतान के लिए स्वीकार्य होता है। मुद्रा का मुख्य कार्य विनिमय का माध्यम (medium of exchange) होना और मूल्य का कोश (store of value) होना है। मुद्रा की श्रेणी में ऐसी कोई भी चीज़ आती है जो इन कार्यों को सम्पन्न करती हो। विश्व का लगभग हर आधुनिक देश मुद्रा का मानकीकरण कर के उसकी ईकाईयाँ जारी करता है, जिसे [[करंसी]] (currency) कहा जाता है।<ref>{{cite book |title=The Economics of Money, Banking, and Financial Markets |last=Mishkin |first=Frederic S. |author-link=Frederic Mishkin |year=2007 |publisher=Addison Wesley |location=Boston |isbn=978-0-321-42177-7 |page=8|edition=Alternate }}</ref><ref>[https://books.google.com/books?id=MDU-NTEJziMC&pg=PA47 ''What Is Money?''] By John N. Smithin. Retrieved July-17-09.</ref><ref>{{cite web |url=http://www.dictionaryofeconomics.com/article?id=pde2008_M000217&edition=current&q=money&topicid=&result_number=5 |title=money : The New Palgrave Dictionary of Economics |website=The New Palgrave Dictionary of Economics |access-date=18 December 2010}}</ref>


== मुद्रा की उत्पत्ति ==
== इतिहास ==
अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक मानते हैं कि मुद्रा एक [[उदगमित]] [[परिघटना]] (emergent market phenomenon) है, यानि जब मानव ऐसी स्थिति में होते हैं कि आपस से बड़े स्तर पर विभिन्न माल और सेवाओं का लेनदेन करें तो इस लेनेदेन को सरल बनाने के लिए वे जल्दी ही किसी न किसी प्रकार की मुद्रा का आविष्कार कर लेते हैं। मुद्रा के बिना लेनदेन के लिए केवल [[वस्तु विनिमय]] ही चारा है, यानि किसी भी व्यापार में दोनों पक्षों के पास कुछ ऐसा होना चाहिए जो दूसरे को चाहिए। पर्याप्त मुद्रा होने से कोई भी खरीददार किसी भी विक्रेता से चीज़े खरीद सकता है चाहे उसके पास विक्रेता द्वारा वांछित कोई वस्तु हो या न हो।<ref name="mankiw">{{cite book |title=Macroeconomics |last=Mankiw |first=N. Gregory |author-link=N. Gregory Mankiw |year=2007 |edition=6th |pages=[https://archive.org/details/macroeconomics0000mank/page/22 22–32] |chapter=2 |publisher=Worth Publishers |location=New York |isbn=978-0-7167-6213-3 |chapter-url=https://archive.org/details/macroeconomics0000mank/page/22 }}</ref><ref name="greco">Thomas H. Greco. ''Money: Understanding and Creating Alternatives to Legal Tender'', White River Junction, Vt: Chelsea Green Publishing (2001). {{ISBN|1-890132-37-3}}</ref>
अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक मानते हैं कि मुद्रा एक [[उदगमित]] [[परिघटना]] (emergent market phenomenon) है, यानि जब मानव ऐसी स्थिति में होते हैं कि आपस से बड़े स्तर पर विभिन्न माल और सेवाओं का लेनदेन करें तो इस लेनेदेन को सरल बनाने के लिए वे जल्दी ही किसी न किसी प्रकार की मुद्रा का आविष्कार कर लेते हैं। मुद्रा के बिना लेनदेन के लिए केवल [[वस्तु विनिमय]] ही चारा है, यानि किसी भी व्यापार में दोनों पक्षों के पास कुछ ऐसा होना चाहिए जो दूसरे को चाहिए। पर्याप्त मुद्रा होने से कोई भी खरीददार किसी भी विक्रेता से चीज़े खरीद सकता है चाहे उसके पास विक्रेता द्वारा वांछित कोई वस्तु हो या न हो।<ref name="mankiw">{{cite book |title=Macroeconomics |last=Mankiw |first=N. Gregory |author-link=N. Gregory Mankiw |year=2007 |edition=6th |pages=[https://archive.org/details/macroeconomics0000mank/page/22 22–32] |chapter=2 |publisher=Worth Publishers |location=New York |isbn=978-0-7167-6213-3 |chapter-url=https://archive.org/details/macroeconomics0000mank/page/22 }}</ref><ref name="greco">Thomas H. Greco. ''Money: Understanding and Creating Alternatives to Legal Tender'', White River Junction, Vt: Chelsea Green Publishing (2001). {{ISBN|1-890132-37-3}}</ref>



01:08, 5 जनवरी 2021 का अवतरण

कई स्थानों पर दुर्लभ प्रकार के शंखों को मुद्रा माना जाता था। इस शंख का नाम "कौड़ी" (Cowry) है और यह अमेरिका और भारत में कभी मुद्रा थी, जिसे से हिन्दी में "फूटी कौड़ी भी न देना" एक लोकोक्ति बन गई।

मुद्रा (Money) ऐसी वस्तु या आधिकारिक प्रमाण होता है जो माल और सेवाओं को खरीदने के लिए और ऋणों व करों के भुगतान के लिए स्वीकार्य होता है। मुद्रा का मुख्य कार्य विनिमय का माध्यम (medium of exchange) होना और मूल्य का कोश (store of value) होना है। मुद्रा की श्रेणी में ऐसी कोई भी चीज़ आती है जो इन कार्यों को सम्पन्न करती हो। विश्व का लगभग हर आधुनिक देश मुद्रा का मानकीकरण कर के उसकी ईकाईयाँ जारी करता है, जिसे करंसी (currency) कहा जाता है।[1][2][3]

मुद्रा की उत्पत्ति

अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक मानते हैं कि मुद्रा एक उदगमित परिघटना (emergent market phenomenon) है, यानि जब मानव ऐसी स्थिति में होते हैं कि आपस से बड़े स्तर पर विभिन्न माल और सेवाओं का लेनदेन करें तो इस लेनेदेन को सरल बनाने के लिए वे जल्दी ही किसी न किसी प्रकार की मुद्रा का आविष्कार कर लेते हैं। मुद्रा के बिना लेनदेन के लिए केवल वस्तु विनिमय ही चारा है, यानि किसी भी व्यापार में दोनों पक्षों के पास कुछ ऐसा होना चाहिए जो दूसरे को चाहिए। पर्याप्त मुद्रा होने से कोई भी खरीददार किसी भी विक्रेता से चीज़े खरीद सकता है चाहे उसके पास विक्रेता द्वारा वांछित कोई वस्तु हो या न हो।[4][5]

मानव ने कई वस्तुओं का प्रयोग मुद्रा के लिए करा है। इसमें विशेष प्रकार के शंख (जैसे की कौड़ी), पंख, पत्थर और धातु के टुकड़े शामिल हैं। मुद्रा बनने के लिए किसी वस्तु में कुछ लक्षण होने की आवश्यकता है:

  • दुर्लभता (scarcity): वस्तु दुर्लभ होनी चाहिए। यानि उसकी मात्रा किसी कारणवश नियंत्रित होनी चाहिए। मसल कोई भी वृक्ष का पत्ता मुद्रा नहीं बन सकता क्योंकि उसकी आपूर्ति लगभग अनंत है। अगर वस्तु मानवकृत है तो उसे बनाना कठिन होना चाहिए, ताकि वस्तु दुर्लभ ही रहे।
  • पर्याप्त उपलब्धि (sufficient availability): वस्तु की आपूर्ति इतनी कम भी नहीं होनी चाहिए कि वह बहुत की कम लोगों के पास हो या उसे बड़े पैमाने पर विनिमय (लेनदेन) के लिए प्रयोग न किया जा सके। यही कारण है कि हीरे इतिहास में मुद्रा के रूप में नहीं उभरे।
  • प्रतिमोच्यता (fungibility): वस्तु की ईकाईयाँ एक-समान होनी चाहिए या इसकी ईकाईयाँ एक दूसरे से सरल रूप से तुलनात्मक होनी चाहिए। यही कारण है कि इतिहास में किसी क्षेत्र में आमतौर से एक ही प्रकार (या बहुत कम प्रकारों) के शंख ही मुद्रा बनते थे।
  • टिकाऊपन (durability): वस्तु लम्बे समय तक बिना विकृत या नष्ट हुए रहनी चाहिए। यानि ऐसा नहीं होना चाहिए कि कोई विक्रेता मुद्रा वस्तु को प्राप्त करे और उसे स्वयं प्रयोग कर पाने से पहले ही अपनी पहचान खो दे।

आधुनिक युग में सरकार कागज़ के टुकड़ों (नोट) को मुद्रा के रूप में प्रयोग करती है, लेकिन कागज़ की गुणवत्ता और उसपर विशेष छपाई से यह सारे लक्षण उस में निहित होते है। जब कोई सरकार देश की आर्थिक क्षमता की तुलना से अधिक नोट छाप दे, तो मुद्रा तेज़ी से अपना मूल्य खोने लगती है (यानी महंगाई हद से अधिक बढ़ जाती है) और सम्भव है कि जनता उसका मुद्रा के रूप में प्रयोग ही छोड़ दे। उदाहरण के लिए ज़िम्बाबवे की सरकार ने इतने नोट छाप दिए कि जनता ने काफी हद तक ज़िम्बाबवे की मुद्रा को मूल्यहीन मानना आरम्भ कर दिया और अमेरिकी डॉलर अपनाना शुरु कर दिया। इसके विपरीत जब इराक में सद्दाम हुसैन की सरकार गिर गई और नई इराकी सरकार ने यह घोषणा कर दी कि सद्दाम कि छवि वाले नोट अब मुद्रा नहीं रहे हैं, यह जानते हुए तब भी इराकी कुर्दिस्तान में सद्दाम की दिनार मुद्रा के रूप में चलित रही और लोग उसे स्वीकारते रहे। यह इसलिए हुआ क्योंकि सद्दाम मुद्रा में ऊपरलिखित सभी लक्षण मौजूद थे और उस समय नई मुद्रा इराकी कुर्दिस्तान में उपलब्ध नहीं थी।

इन्हें भी देखें

सन्दर्भ

  1. Mishkin, Frederic S. (2007). The Economics of Money, Banking, and Financial Markets (Alternate संस्करण). Boston: Addison Wesley. पृ॰ 8. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-321-42177-7.
  2. What Is Money? By John N. Smithin. Retrieved July-17-09.
  3. "money : The New Palgrave Dictionary of Economics". The New Palgrave Dictionary of Economics. अभिगमन तिथि 18 December 2010.
  4. Mankiw, N. Gregory (2007). "2". Macroeconomics (6th संस्करण). New York: Worth Publishers. पपृ॰ 22–32. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-7167-6213-3.
  5. Thomas H. Greco. Money: Understanding and Creating Alternatives to Legal Tender, White River Junction, Vt: Chelsea Green Publishing (2001). ISBN 1-890132-37-3