"स्वास्थ्य": अवतरणों में अंतर

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छो Manoj Kumar Nagar Special Educator Rehabilitation Professionals स्वास्थ्य की देखभाल जिस व्यक्ति में अडिग एवं दृढ़ विश्वास तथा गुणों की शुद्धता होगी, उसमें स्वास्थ्य, सफलता और शक्ति होगी। ऐसे व्यक्ति में बीमारी, असफलता तथा विपत्ति को रहने का स्थान नहीं मिलेगा, क्योंकि ऐसे व्यक्ति में ऐसी कोई वस्तु नहीं मिलेगी जिस पर वह पनप सके। (अंग्रेजी पाठ्य पुस्तक कक्षा 12 का हिंदी अनुवाद है- किसी बीमारी विशेष में स्व -चिकित्सा उपचार व देखभाल से इसका कोई संबंध नहीं है l) जितना शीघ्र हम यह अनुभव कर लें
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{WORLD HEALTH ORGANISATION} (W.H.O.) ने सन् 1948 में '''स्वास्थ्य''' या '''आरोग्य''' की निम्नलिखित परिभाषा दी:
[[विश्व स्वास्थ्य संगठन]] (W.H.O.) ने सन् १९४८ में '''स्वास्थ्य''' या '''आरोग्य''' की निम्नलिखित परिभाषा दी:


:''दैहिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना (समस्या-विहीन होना)'' <ref>{{Cite web |url=http://www.who.int/about/definition/en/print.html |title=WHO definition of Health |access-date=24 अक्तूबर 2014 |archive-url=https://web.archive.org/web/20160707120526/http://www.who.int/about/definition/en/print.html |archive-date=7 जुलाई 2016 |url-status=live }}</ref>
:''दैहिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना (समस्या-विहीन होना)'' <ref>{{Cite web |url=http://www.who.int/about/definition/en/print.html |title=WHO definition of Health |access-date=24 अक्तूबर 2014 |archive-url=https://web.archive.org/web/20160707120526/http://www.who.int/about/definition/en/print.html |archive-date=7 जुलाई 2016 |url-status=live }}</ref>


स्वास्थ्य सिर्फ बीमारियों की अनुपस्थिति का नाम नहीं है। हमें सर्वांगीण स्वास्थ्य के बारे में जानकारी होना बहुत आवश्यक है। स्वास्थ्य का अर्थ विभिन्न लोगों के लिए अलग-अलग होता है। लेकिन अगर हम एक सार्वभौमिक दृष्टिकोण की बात करें तो अपने आपको स्वस्थ कहने का यह अर्थ होता है कि हम अपने जीवन में आनेवाली सभी सामाजिक, शारीरिक और भावनात्मक चुनौतियों का प्रबंधन करने में सफलतापूर्वक सक्षम हों। वैसे तो आज के समय मे अपने आपको स्वस्थ रखने के ढेर सारी आधुनिक तकनीक मौजूद हो चुकी हैं, लेकिन ये सारी उतनी अधिक कारगर नहीं हैं।
स्वास्थ्य सिर्फ बीमारियों की अनुपस्थिति का नाम नहीं है। हमें सर्वांगीण स्वास्थ्य के बारे में जानकारी होना बोहोत आवश्यक है। स्वास्थ्य का अर्थ विभिन्न लोगों के लिए अलग-अलग होता है। लेकिन अगर हम एक सार्वभौमिक दृष्टिकोण की बात करें तो अपने आपको स्वस्थ कहने का यह अर्थ होता है कि हम अपने जीवन में आनेवाली सभी सामाजिक, शारीरिक और भावनात्मक चुनौतियों का प्रबंधन करने में सफलतापूर्वक सक्षम हों। वैसे तो आज के समय मे अपने आपको स्वस्थ रखने के ढेर सारी आधुनिक तकनीक मौजूद हो चुकी हैं, लेकिन ये सारी उतनी अधिक कारगर नहीं हैं।

=== स्वास्थ्य की देखभाल ===



जिस

Rehabilitation Professionals

जिस व्यक्ति में अडिग एवं दृढ़ विश्वास तथा गुणों की शुद्धता होगी, उसमें स्वास्थ्य, सफलता और शक्ति होगी। ऐसे व्यक्ति में बीमारी, असफलता तथा विपत्ति को रहने का स्थान नहीं मिलेगा, क्योंकि ऐसे व्यक्ति में ऐसी कोई वस्तु नहीं मिलेगी जिस पर वह पनप सके।
(अंग्रेजी पाठ्य पुस्तक कक्षा 12 का हिंदी अनुवाद है- किसी बीमारी विशेष में स्व -चिकित्सा उपचार व देखभाल से इसका कोई संबंध नहीं है l)


जितना शीघ्र हम यह अनुभव कर लें और पहचान लें कि बीमारी हमारी अपनी भूलों तथा पापों का परिणाम है, उतना ही शीघ्र हम सफलता के मार्ग पर चल पड़ेंगे। बीमारी उन्हीं व्यक्तियों को आती है जो इसे आकर्षित करते हैं, उन व्यक्तियों को आती है जिनके मस्तिष्क और शरीर उसे ग्रहण करने के लिए तैयार हैं और उन व्यक्तियों से दूर भाग जाती है जिनकी दृढ़, शुद्ध और सकारात्मक विचार शक्ति उनमें स्वस्थ, सुन्दर तथा जीवनदायिनी धारा प्रवाहित करती है।

यदि आप क्रोध, चिन्ता, ईष्र्या, लालच या अन्य किसी विचलित करने वाली मानसिक दशा के सुपुर्द हो जाओ और पूर्ण शारीरिक स्वास्थ्य की आशा करो तब आप असम्भव वस्तु की आशा कर रहे हो, क्योंकि आपे लगातार अपने मस्तिष्क में बीमारी के बीज बो रहे हो। ऐसी मानसिक दशाओं से बुद्धिमान् व्यक्ति सावधानीपूर्वक बचता है, क्योंकि वह जानता है कि ये एक खराब नाली अथवा दूषित मकान से भी अधिक खतरनाक होती है।

(2) If you would ……………. with sickness.

आप समस्त शारीरिक कष्टों से मुक्त होना चाहते हो और पूर्ण शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त करना चाहते हो तब अपने मस्तिष्क को नियन्त्रण में रखो और अपने विचारों को सन्तुलित करो। आनन्द देने वाली बातों को सोचो, प्यार भरी बातों को सोचो और सद्भावना रूपी अमृत अपनी नसों में बहने दो, तब आपको अन्य किसी दवा की आवश्यकता नहीं होगी। अपनी ईष्र्या, सन्देहों, चिन्ताओं, घृणा एवं स्वार्थ की भावनाओं को दूर हटा दो तब आपकी बदहजमी, जिगर की गड़बड़, घबराहट और जोड़ों का दर्द समाप्त हो जाएगा। यदि आप इन कमजोर बनाने वाली और मस्तिष्क की दूषित आदतों से चिपके रहोगे तब उस समय शिकायत मत करो जब आपका शरीर बीमार हो जाए।

(3) Many people complain ……………. quickly forfeits.

बहुत से व्यक्ति शिकायत करते हैं कि अधिक कार्य करने से उनका स्वास्थ्य खराब हो गया है। ऐसे अधिकांश मामलों में स्वास्थ्य के खराब होने का कारण मूर्खतापूर्ण ढंग से शक्ति को नष्ट करने का परिणाम होता है। यदि आप स्वास्थ्य को सुरक्षित रखना चाहते हो तब आपको चिन्तारहित होकर काम करना सीखना चाहिए। चिन्तित या उत्तेजित होना या व्यर्थ की बातों पर परेशान होना स्वास्थ्य के खराब होने का न्यौता है। कार्य चाहे मानसिक हो या शारीरिक, लाभदायक और स्वास्थ्य प्रदान करने वाला होता है और वह व्यक्ति जो लगातार शान्त मस्तिष्क से समस्त चिन्ताओं से मुक्त होकर और अपने मस्तिष्क से इन सभी चिन्ताओं को भुलाकर अपने हाथ में आए कार्य को कर सकता है, वह केवल उस व्यक्ति से अधिक कार्य ही नहीं करेगा जो सदा जल्दबाजी में रहता है और चिन्तित रहता है, अपितु वह अपने स्वास्थ्य को भी बनाए रखेगा जो एक वरदान है और जिसे अन्य व्यक्ति जल्दी से खो देते हैं।


(4) True health ………………. even dream of

सच्चा स्वास्थ्य और सच्ची सफलता साथ-साथ चलती हैं, क्योंकि वे विचारों के संसार में अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। विश्वास की शक्ति से प्रत्येक स्थायी कार्य पूर्ण हो जाता है। भगवान् में विश्वास, भगवान् के नियमों में विश्वास, अपने कार्य में विश्वास और उस कार्य को पूरा करने के लिए अपनी शक्ति में विश्वास और इस विश्वास को ही अपने जीवन के क्रियाकलापों का आधार बनाओ। इस आधार पर खड़े होगे तब गिरोगे नहीं अर्थात् सफलता ही-प्राप्त करोगे। सभी परिस्थितियों में अपनी अन्तरात्मा की आवाज का अनुसरण करो, अन्तरात्मा के प्रति सदा सच्चे रहो, आन्तरिक ज्ञान पर विश्वास करो तथा अन्तरात्मा की आवाज का अनुसरण करो, जो जीवन में हमारा सर्वोत्तम पथ-प्रदर्शक है, निर्भय होकर और शान्त हृदय से अपने उद्देश्य की प्राप्ति में लगो, इस विश्वास के साथ कि भविष्य तुम्हें प्रत्येक विचार और चेष्टा की आवश्यकता को प्रदान करेगा, यह जानते हुए कि संसार के नियम कभी असफल नहीं होते और इस प्रकार तुम्हें तुम्हारे अच्छे या बुरे कार्य का फल अवश्य प्राप्त होगा, यही जीता-जागता विश्वास है। ऐसे विश्वास की शक्ति से अनिश्चितता के गहरे सागर विभाजित हो जाते हैं, कठिनाई का प्रत्येक पहाड़ चकनाचूर हो जाता है और विश्वास । करने वाली आत्मा बिना हानि के आगे बढ़ती रहती है। अतः हे पाठक! ऐसे निर्भय विश्वास को प्राप्त करने के लिए जो सभी प्रकार की अमूल्य वस्तुओं से भी सर्वोपरि है, संघर्ष करो, क्योंकि यही आनन्द, सफलता, शान्ति, शक्ति तथा प्रत्येक उस वस्तु की कुंजी है जो जीवन को महान् और कष्टों से अच्छा बनाती है। ऐसे विश्वास का निर्माण करो, तब तुम एक स्थायी तथा दृढ़ नींव बनाओगे और उसमें सामग्री भी दृढ़ लगाओगे और वह ढाँचा जो तुम खड़ा करोगे, टूटेगा नहीं, क्योंकि यह उन सभी सांसारिक वस्तुओं, भौतिक सुखों तथा सम्पदाओं से महान् होगा जिनका अन्त धूल-मिट्टी है। चाहे तुम्हें दु:ख की गहराई में धकेल दिया जाए या आनन्द की ऊँचाइयों तक उठा दिया जाए, सदा इस विश्वास पर अपनी पकड़ मजबूत रखो, सदा इसे शरण लेने की चट्टान के समान समझो और इसके अमर और अडिग आधार पर अपने पैरों को जमाकर रखो।

यदि ऐसा विश्वास अपने में प्राप्त कर लोगे तब तुम्हें ऐसी आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होगी जो काँच के खिलौनों के समान उन समस्त बुरी शक्तियों को चकनाचूर कर देगी जो तुम्हारे सामने आएँगी और तुम ऐसी सफलता प्राप्त करोगे जिनके विषय में सांसारिक उपलब्धियों को प्राप्त करने में संघर्षरत व्यक्ति कभी जान भी नहीं पाएगा और न वह उनके विषय में सोच पाएगा।

(5) If you will become ……………… utterly insignificant.

यदि तुम ऐसा विश्वास प्राप्त कर लोगे तब तुम्हें अपने भविष्य की सफलता या असफलता पर परेशान होने की आवश्यकता नहीं होगी और सफलता तुम्हें निश्चित प्राप्त होगी। तुम्हें फल के विषय में चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं होगी, बल्कि तुम यह जानते हुए कि उचित विचार और सही प्रयत्नों से निश्चित रूप से सही फल मिलेगा तुम आनन्दपूर्वक और शान्ति से काम करोगे। तुम्हारी सफलता, तुम्हारी असफलता, तुम्हारा प्रभाव, तुम्हारा पूरा जीवन जो तुम्हारे साथ है, तुम्हारे विचारों के प्रबल झुकाव के लिए तुम्हारे भाग्य के निर्णायक भाग हैं। जीवित, शुद्ध और आनन्ददायक विचार पैदा करो, तुम्हारे हाथों में परम आनन्द आएगा और तुम्हारी मेज पर शान्ति का कपड़ा फैल जाएगा अर्थात् तुम्हारा जीवन शान्ति से भरपूर होगा। घृणाजनक, अशुद्ध और दु:खदायी विचार पैदा करो, तुम्हारे ऊपर विपदाएँ बरस पड़ेगीं और भय तथा अशान्ति के कारण तुम आरामदायक गहरी नींद का आनन्द नहीं ले सकोगे। तुम अपने भाग्य के स्वतन्त्र निर्माता हो, चाहे भाग्य कुछ भी हो। प्रत्येक पल तुम अपने अन्दर से ऐसे प्रभाव भेज रहे हो जो तुम्हारे जीवन को या तो बना देंगे या नष्ट कर देंगे। अपने हृदय को विशाल, प्रिय और नि:स्वार्थी बनाओ, तब तुम्हारा प्रभाव और सफलता महान् और स्थायी होगी, भले ही तुम थोड़ा धन कमाओ। इसी को अपने स्वयं के स्वार्थ की संकुचित सीमाओं में बाँध दो यद्यपि तुम लखपति भी बन जाओ तब भी तुम्हारा प्रभाव और सफलता, अन्त में पूर्ण रूप से महत्त्वहीन होगी।


(6) Cultivate, then, ……………. physical excesses.

यह शुद्ध और नि:स्वार्थ भावना पैदा करो और इसे शुद्धता, विश्वास तथा एक उद्देश्य से इसे मिलाओ और तब तुम अपनी आत्मा में से ऐसे तत्त्व विकसित करोगे जो भरपूर स्वास्थ्य और चिरस्थायी सफलता से ही भरे हुए नहीं होंगे, अपितु महानती और शक्ति से भी भरपूर होंगे। तुम्हारा कार्य चाहे कुछ भी हो, अपने पूरे मस्तिष्क को इस पर केन्द्रित कर दो और इसमें अपनी पूरी शक्ति लगा दो जिसके तुम योग्य हो। छोटे-छोटे कार्यों को दोषरहित ढंग से पूरा करना निश्चित रूप से बड़े कार्यों की ओर अग्रसर करता है। इस प्रकार तुम देखोगे कि तुम लगातार चढ़ते रहने से ऊपर पहुँचोगे और कभी भी गिरोगे नहीं। और इसी बात में सच्ची शक्ति का रहस्य निहित है। लगातार अभ्यास के द्वारा यह सीखो कि अपने संसाधनों का ठीक प्रकार से प्रबन्ध कैसे करोगे और किसी भी पल किसी दिये हुए बिन्दु पर उसे कैसे केन्द्रित करोगे। मूर्ख व्यक्ति अपनी सारी मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति को निरर्थक बातों में, मूर्खतापूर्ण व्यर्थ की गपशप में, स्वार्थपूर्ण वाद-विवाद में या हानिकारक शारीरिक क्रियाओं में जैसे अधिक खाने और अधिक पीने में, जो स्वास्थ्य को नष्ट करती हैं, गॅवाते हैं।

(7) If you would. ………………. calm and unmoved.

यदि तुम नियन्त्रित करने वाली शक्ति प्राप्त करना चाहते हो, तब तुम्हें मानसिक सन्तुलन तथा मानसिक शान्ति पैदा करनी चाहिए। तुम्हें अकेले खड़े होने के भी योग्य होना चाहिए। दृढ़ता के साथ सभी शक्ति जुड़ी हुई है। पर्वत, बड़ी-बड़ी चट्टानें, तूफानों का मुकाबला करने वाला ओक का वृक्ष, सभी हमें शक्ति के विषय में बताते हैं, क्योंकि उनमें एकान्त, महानता तथा दृढ़ता है जबकि उड़ने वाला रेत, झुक जाने वाली पेड़ की शाखा और लहलहाती हुई घास सभी हमें कमजोरी के विषय में बताते हैं, क्योंकि वे उस समय गतिमान तथा दृढ़ नहीं होते जब उन्हें उनके साथियों से अलग कर दिया जाता है। वह व्यक्ति शक्तिशाली होता है जो उस समय भी शान्त और अडिग रहता है जब उसके सभी साथी किसी भावना या उत्तेजना से प्रभावित हो जाते हैं।

(8) He only is fitted ……………. valuable energy.

वही व्यक्ति आदेश देने और नियन्त्रण करने में योग्य होता है जो स्वयं को आदेश देने और नियन्त्रण करने में सफल हो गया है। भावुक, भयभीत, मूर्ख और तुच्छ व्यक्तियों को संगति हूँढ़नी चाहिए, अन्यथा सहायता के अभाव में वे गिर पड़ेंगे, किन्तु शान्त, निर्भय, विचारशील और गम्भीर व्यक्तियों को यदि जंगल, रेगिस्तान या पर्वत की चोटी के एकान्त में भी रहना पड़े तब भी उनकी शक्ति में और वृद्धि होगी तथा वे और अधिक सफलतापूर्वक दुष्प्रभाव डालने वाली भावनाओं और उत्तेजनाओं पर नियन्त्रण कर सकेंगे जो मानव जाति को घेर लेते हैं। उत्तेजना शक्ति नहीं होती है, यह तो शक्ति का दुरुपयोग तथा बरबादी होती है। उत्तेजना एक भयंकर तूफान के समान होती है जो अचल चट्टान से बहुत तेजी से टकराता है, जबकि शक्ति स्वयं चट्टान के समान होती है जो सभी परिस्थितियों में शान्त और अडिग रहती है। यदि तुम्हारे पास यह शक्ति नहीं है तब इसे अभ्यास से प्राप्त कर सकते हो और शक्ति का आरम्भ बुद्धिमानी के आरम्भ के समान होता है। ऐसी उद्देश्यहीन तुच्छ बातों पर तुम्हें काबू पाना आरम्भ कर देना चाहिए जिनके तुम जान-बूझकर शिकार रहे हो। जोर-जोर की अनियन्त्रित हँसी, व्यर्थ की मूर्खतापूर्ण बातें, केवल दूसरों का हँसाने के लिए हँसी-मजाक करना, इन सभी बातों को एक ओर रख देना चाहिए, क्योंकि यह महत्त्वपूर्ण ऊर्जा की बरबादी है।


(9) Above all, be of ……………. secret of power.

Manoj Kumar Nagar

Special Educator

Rehabilitation Professionals

सभी बातों से ऊपर, एक लक्ष्य बनाओ, उद्देश्य को उचित और लाभदायक रखो और दृढ़ता के साथ स्वयं को इसमें समर्पित कर दो। कोई भी बात तुम्हें इससे अलग न कर सके। याद रखो कि “दोहरे मस्तिष्क वाला व्यक्ति अपनी सभी बातों से अस्थिर होता है।” सीखने के लिए उत्सुक बनो, किन्तु माँगने के लिए धीमे। अपने कार्य का पूरा ज्ञान प्राप्त करो और इसे अपना बना लो, और जब तुम अपने आन्तरिक मार्गदर्शक का अर्थात् अन्तरात्मा का अनुसरण करोगे जो कभी भूल नहीं करती, तब तुम प्रत्येक कार्य पर विजय प्राप्त करते हुए आगे बढ़ोगे और धीरे-धीरे सम्मान के शिखर तक पहुँच जाओगे और तुम्हारा सदैव व्यापक रहने वाला दृष्टिकोण तुम्हें जीवन की आवश्यक सुन्दरता और उद्देश्य को प्रकट करेगा। यदि स्वयं को पवित्र बना लोगे तब तुम्हें स्वास्थ्य प्राप्त होगा, विश्वास को सुरक्षित रखोगे, तब तुम्हें सफलता प्राप्त होगी और

आत्म-नियन्त्रण रखोगे तब तुम्हें शक्ति प्राप्त होगी और जो कुछ भी तुम करोगे उसमें फलो-फूलोंगे तथा तुम प्रकृति के नियम के अनुरूप होगे और सार्वभौम जीवन तथा शाश्वत भलाई के लिए कार्य करोगे। और जो भी स्वास्थ्य तुम प्राप्त करोगे वह तुम्हारे पास रहेगा, जो सफलता तुम प्राप्त करोगे वह मानवीय आकलन से परे होगी और कभी समाप्त नहीं होगी और जो प्रभाव तथा शक्ति तुम प्रयोग करोगे वह युगों तक बढ़ती रहेगी, क्योंकि यह उस अपरिवर्तनीय सिद्धान्त का भाग होगी जो पूरे संसार को आश्रये देता है। तब शुद्ध हृदय और भली प्रकार से नियन्त्रित मस्तिष्क ही स्वास्थ्य का रहस्य है। अटल विश्वास और बुद्धिमानी से निर्देशित उद्देश्य सफलता का रहस्य है और इच्छाओं पर दृढ़ इच्छा-शक्ति के साथ नियन्त्रण करना शक्ति का रहस्य है।

मनोज कुमार नागर


==समग्र स्वास्थ्य की परिभाषा ==
==समग्र स्वास्थ्य की परिभाषा ==

10:34, 24 दिसम्बर 2020 का अवतरण

विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) ने सन् १९४८ में स्वास्थ्य या आरोग्य की निम्नलिखित परिभाषा दी:

दैहिक, मानसिक और सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना (समस्या-विहीन होना) [1]

स्वास्थ्य सिर्फ बीमारियों की अनुपस्थिति का नाम नहीं है। हमें सर्वांगीण स्वास्थ्य के बारे में जानकारी होना बोहोत आवश्यक है। स्वास्थ्य का अर्थ विभिन्न लोगों के लिए अलग-अलग होता है। लेकिन अगर हम एक सार्वभौमिक दृष्टिकोण की बात करें तो अपने आपको स्वस्थ कहने का यह अर्थ होता है कि हम अपने जीवन में आनेवाली सभी सामाजिक, शारीरिक और भावनात्मक चुनौतियों का प्रबंधन करने में सफलतापूर्वक सक्षम हों। वैसे तो आज के समय मे अपने आपको स्वस्थ रखने के ढेर सारी आधुनिक तकनीक मौजूद हो चुकी हैं, लेकिन ये सारी उतनी अधिक कारगर नहीं हैं।

समग्र स्वास्थ्य की परिभाषा

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, स्वास्थ्य सिर्फ रोग या दुर्बलता की अनुपस्थिति ही नहीं बल्कि एक पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक खुशहाली की स्थिति है। स्वस्थ लोग रोजमर्रा की गतिविधियों से निपटने के लिए और किसी भी परिवेश के मुताबिक अपना अनुकूलन करने में सक्षम होते हैं। रोग की अनुपस्थिति एक वांछनीय स्थिति है लेकिन यह स्वास्थ्य को पूर्णतया परिभाषित नहीं करता है। यह स्वास्थ्य के लिए एक कसौटी नहीं है और इसे अकेले स्वास्थ्य निर्माण के लिए पर्याप्त भी नहीं माना जा सकता है। लेकिन स्वस्थ होने nका वास्तविक अर्थ अपने आप पर ध्यान केंद्रित करते हुए जीवन जीने के स्वस्थ तरीकों को अपनाया जाना है। Nयदि हम एक अभिन्न व्यक्तित्व की इच्छा रखते हैं तो हमें हर हमेशा खुश रहना चाहिए और मन में इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि स्वास्थ्य के आयाम अलग अलग टुकड़ों की तरह है। अतः अगर हम अपने जीवन को कोई अर्थ प्रदान करना चाहते है तो हमें स्वास्थ्य के इन विभिन्न आयामों को एक साथ फिट करना पड़ेगा। वास्तव में, अच्छे स्वास्थ्य की कल्पना समग्र स्वास्थ्य का नाम है जिसमें शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य , बौद्धिक स्वास्थ्य, आध्यात्मिक स्वास्थ्य और सामाजिक स्वास्थ्य भी शामिल है।

 हास्य की एक अच्छी भावना के बारे में सबसे अच्छी बात, निश्चित रूप से, यह एक निश्चित संकेत है कि आपके पास एक स्वस्थ दृष्टिकोण है

शारीरिक फिटनेस स्वस्थ होने का एकमात्र आधार नहीं है; स्वस्थ होने का मतलब मानसिक और भावनात्मक रूप से फिट होना है। स्वस्थ रहना आपकी समग्र जीवन शैली का हिस्सा होना चाहिए। एक स्वस्थ जीवन शैली जीने से पुरानी बीमारियों और दीर्घकालिक बीमारियों को रोकने में मदद मिल सकती है। अपने बारे में अच्छा महसूस करना और अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना आपके आत्म-सम्मान और आत्म-छवि के लिए महत्वपूर्ण है। अपने शरीर के लिए जो सही है उसे करके स्वस्थ जीवनशैली बनाए रखें। आप बहुत सारे व्यायाम कर सकते हैं, लेकिन उचित पोषण के बिना यह सब अप्रभावी हो जाएगा। फिटनेस में 70% आहार शामिल है, बाकी 30% व्यायाम है जो आप करते हैं।[2]

शारीरिक स्वास्थ्य =

शारीरिक स्वास्थ्य शरीर की स्थिति को दर्शाता है जिसमें इसकी संरचना, विकास, कार्यप्रणाली और रखरखाव शामिल होता है। यह एक व्यक्ति का सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए एक सामान्य स्थिति है। यह एक जीव के कार्यात्मक और/या चयापचय क्षमता का एक स्तर भी है। अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के निम्नलिखित कुछ तरीके हैं-

  • संतुलित आहार की आदतें, मीठी श्वास व गहरी नींद
  • बड़ी आंत की नियमित गतिविधि व संतुलित शारीरिक गतिविधियां
  • नाड़ी स्पंदन, रक्तदाब, शरीर का भार व व्यायाम सहनशीलता आदि सब कुछ व्यक्ति के आकार, आयु व लिंग के लिए सामान्य मानकों के अनुसार होना चाहिए।
  • शरीर के सभी अंग सामान्य आकार के हों तथा उचित रूप से कार्य कर रहे हों।
  • पाचन शक्ति सामान्य एवं सक्षम हो।
  • साफ एवं कोमल स्वच्छ त्वचा हो।
  • आंख नाक, कान, जिव्हा, आदि ज्ञानेन्द्रियाँ स्वस्थ हो।
  • जिव्हा स्वस्थ एवं निर्मल हो
  • दांत साफ सुथरें हो।
  • मुंह से दुर्गंध न आती हो।
  • समय पर भूख लगती हो।
  • शारीरिक चेष्टा सम प्रमाण में हो।
  • जिसका मेरुदण्ड सीधा हो।
  • चेहर पर कांति ओज तेज हो।
  • कर्मेन्द्रिय (हाथ पांव आदि) स्वस्थ हों।
  • मल विसर्जन सम्यक् मात्रा में समय पर होता हो।
  • शरीर की उंचाई के हिसाब से वजन हो।
  • शारीरिक संगठन सुदृढ़ एवं लचीला हो।

मानसिक स्वास्थ्य

मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ हमारे भावनात्मक और आध्यात्मिक लचीलेपन से है जो हमें अपने जीवन में दर्द, निराशा और उदासी की स्थितियों में जीवित रहने के लिए सक्षम बनाती है। मानसिक स्वास्थ्य हमारी भावनाओं को व्यक्त करने और जीवन की ढ़ेर सारी माँगों के प्रति अनुकूलन की क्षमता है। इसे अच्छा बनाए रखने के निम्नलिखित कुछ तरीके हैं-

  • प्रसन्नता, शांति व व्यवहार में प्रफुल्लता
  • आत्म-संतुष्टि (आत्म-भर्त्सना या आत्म-दया की स्थिति न हो।)
  • भीतर ही भीतर कोई भावात्मक संघर्ष न हो (सदैव स्वयं से युद्धरत होने का भाव न हो।)
  • मन की संतुलित अवस्था।
  • डर, क्रोध, इर्ष्या, का अभाव हो।
  • मनसिक तनाव एवं अवसाद ना हो।
  • वाणी में संयम और मधुरता हो।
  • कुशल व्यवहारी हो।
  • स्वार्थी ना हों
  • संतोषी जीवन की प्रवृति का वाला हो।
  • परोपकार एवं समाज सेवी की भावना वाला हो।
  • जीव मात्र के प्रति दया की भावना वाला हो।
  • परिस्थितियों के साथ संघर्ष करने की सहनशक्ति वाला हो।
  • विकट परिस्थितियों में सांमजस्य बढाने वाला हो।
  • सकारात्मक सोच हो।

बौद्धिक स्वास्थ्य

यह किसी के भी जीवन को बढ़ाने के लिए कौशल और ज्ञान को विकसित करने के लिए संज्ञानात्मक क्षमता है। हमारी बौद्धिक क्षमता हमारी रचनात्मकता को प्रोत्साहित और हमारे निर्णय लेने की क्षमता में सुधार करने में मदद करता है।

  • (1) समायोजन करने वाली बुद्धि, आलोचना को स्वीकार कर सके व आसानी से व्यथित न हो।
  • (2) दूसरों की भावात्मक आवश्यकताओं की समझ, सभी प्रकार के व्यवहारों में शिष्ट रहना व दूसरों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखना, नए विचारों के लिए खुलापन, उच्च भावात्मक बुद्धि।
  • (3) आत्म-संयम, भय, क्रोध, मोह, जलन, अपराधबोध या चिंता के वश में न हो। लोभ के वश में न हो तथा समस्याओं का सामना करने व उनका बौद्धिक समाधान तलाशने में निपुण हो।

आध्यात्मिक स्वास्थ्य

हमारा अच्छा स्वास्थ्य आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ हुए बिना अधूरा है। जीवन के अर्थ और उद्देश्य की तलाश करना हमें आध्यात्मिक बनाता है। आध्यात्मिक स्वास्थ्य हमारे निजी मान्यताओं और मूल्यों को दर्शाता है। अच्छे आध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्राप्त करने का कोई निर्धारित तरीका नहीं है। यह हमारे अस्तित्व की समझ के बारे में अपने अंदर गहराई से देखने का एक तरीका है।

अष्टादशेषु पुराणेषु व्यासस्य वचन द्वयं ।
परोपकारः पुण्याय, पापाय परपीडनम्॥

अर्थात अट्ठारह पुराणों में महर्षि व्यास ने दो बातें कहीं हैं - परोपकार से पुण्य मिलता है और दूसरों को पीड़ा देने से पाप

  • प्राणी मात्र के कल्याण की भावना हो।
  • 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' (सभी सुखी हों) का आचरण हो।
  • तन, मन, एवं धन की शुद्वता वाला हो।
  • परस्पर सहानुभूति वाला हो।
  • परेपकार एवं लोकल्याण की भावना वाला हो।
  • कथनी एवं करनी में अन्तर न हो।
  • प्रतिबद्वता, कर्त्तव्यपालन वाला हो।
  • योग एवं प्राणायाम का अम्यासी हो।
  • श्रेष्ठ चरित्रवान व्यक्तित्त्व हो।
  • इन्द्रियों को संयम में रखने वाला हो।
  • सकारात्मक जीवन शैली जीने वाला हो।
  • पुण्य कार्यो के द्वारा आत्मिक उत्थान वाला हो।
  • अपने शरीर सहित इस भौतिक जगत की किसी भी वस्तु से मोह न रखना।
  • दूसरी आत्माओं के प्रभाव में आए बिना उनसे भाईचारे का नाता रखना।
  • समुचित ज्ञान की प्राप्ति की सतत इच्छा

सामाजिक स्वास्थ्य

चूँकि हम सामाजिक जीव हैं अतः संतोषजनक रिश्ते का निर्माण करना और उसे बनाए रखना हमें स्वाभाविक रूप से आता है। सामाजिक रूप से सबके द्वारा स्वीकार किया जाना हमारे भावनात्मक खुशहाली के लिए अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

  • प्रदूषणमुक्त वातावरण हो।
  • शुद्व पेयजल एवं पानी की टंकियों का प्रबंध हो।
  • मल-मूत्र एवं अपशिष्ट पदार्थों के निकासी की योजना हो।
  • सुलभ शैचालय हो।
  • समाज अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रहमचर्य एवं अपरिग्रही स्वभाव वाला हो।
  • वृक्षारोपण का अधिकाधिक कार्य हो।
  • सार्वजनिक स्थलों पर पूर्ण स्वच्छता हो।
  • जंनसंख्यानुसार पर्याप्त चिकित्सालय हों।
  • संक्रमण-रोधी व्यवस्था हो।
  • उचित शिक्षा की व्यवस्था हो।
  • भय एवं भ्रममुक्त समाज हो।
  • मानव कल्याण के हितों का समाज वाला हो।
  • अपनी व्यक्तिगत क्षमता के अनुसार समाज के कल्याण के लिए कार्य करना।
पोषण एवं स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले अन्य सामाजिक तत्त्व
  • खाद्य सामग्री की जनसंख्या के अनुपात में उपलब्धता
  • मौसमी फल एवं सब्जियों की उपलब्धता
  • खान-पान की सामाजिक पद्वतियाँ
  • बच्चों के आहार से संबधी नीतियाँ
  • स्थानीय दुकान एवं बाजार सम्बन्धी नीतियाँ
  • समाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन में स्वास्थ्य सम्बन्धी जागरण की स्थिति
  • पेषण संबधी स्वास्थ्य-शिक्षा का प्रचार प्रसार
  • समुदाय का आर्थिक स्तर
  • समुदाय का शैक्षिणिक स्तर
  • समुदाय की चिकित्सकीय व्यवस्था
  • समुदाय हेतु परिवहन व्यवस्था
  • बच्चों एवं महिलाओं से संबधित विशेष स्वास्थ्य की नीतियाँ
  • पोषण व्यवस्था एवं आहार के समुचित भंडारण की व्यवस्था
  • अंधविश्वास एवं गलत धारणाओं से मुक्त समाज
  • सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं मनौवैज्ञानिक स्तर
  • निम्न मृत्युदर एवं न्यून बीमारियाँ
  • जनंसख्या वृद्वि का समुचित नियंत्रण
  • सामाजिक रीति रिवाज एवं परम्परागत मान्यताएँ।

अधिकांश लोग अच्छे स्वास्थ्य के महत्त्व को नहीं समझते हैं और अगर समझते भी हैं तो वे अभी तक इसकी उपेक्षा कर रहे हैं। हम जब भी स्वास्थ्य की बात करते हैं तो हमारा ध्यान शारीरिक स्वास्थ्य तक ही सीमित रहता है। हम बाकी आयामों के बारे में नहीं सोचते हैं। अच्छे स्वास्थ्य की आवश्यकता हम सबको है। यह किसी एक विशेष धर्म, जाति, संप्रदाय या लिंग तक सीमित नहीं है। अतः हमें इस आवश्यक वस्तु के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए। अधिकांश रोगों का मूल हमारे मन में होता है। एक व्यक्ति को स्वस्थ तब कहा जाता है जब उसका शरीर स्वस्थ और मन साफ और शांत हो। कुछ लोगों के पास भौतिक साधनों की कमी नहीं होती है फिर भी वे दुःखी या मनोवैज्ञानिक स्तर पर उत्तेजित हो सकते।

आयुर्वेद के अनुसार स्वास्थ्य की परिभाषा

आयुर्वेद में स्वस्थ व्यक्ति की परिभाषा इस प्रकार बताई है-

समदोषः समाग्निश्च समधातु मलक्रियाः।
प्रसन्नात्मेन्द्रियमनाः स्वस्थः इत्यभिधीयते ॥

( जिस व्यक्ति के दोष (वात, कफ और पित्त) समान हों, अग्नि सम हो, सात धातुयें भी सम हों, तथा मल भी सम हो, शरीर की सभी क्रियायें समान क्रिया करें, इसके अलावा मन, सभी इंद्रियाँ तथा आत्मा प्रसन्न हो, वह मनुष्य स्वस्थ कहलाता है )। यहाँ 'सम' का अर्थ 'संतुलित' ( न बहुत अधिक न बहुत कम) है।

आचार्य चरक के अनुसार स्वास्थ्य की परिभाषा-
सममांसप्रमाणस्तु समसंहननो नरः।
दृढेन्द्रियो विकाराणां न बलेनाभिभूयते॥१८॥
क्षुत्पिपासातपसहः शीतव्यायामसंसहः।
समपक्ता समजरः सममांसचयो मतः॥१९॥

अर्थात जिस व्यक्ति का मांस धातु समप्रमाण में हो, जिसका शारीरिक गठन समप्रमाण में हो, जिसकी इन्द्रियाँ थकान से रहित सुदृढ़ हों, रोगों का बल जिसको पराजित न कर सके, जिसका व्याधिक्ष समत्व बल बढ़ा हुआ हो, जिसका शरीर भूख, प्यास, धूप, शक्ति को सहन कर सके, जिसका शरीर व्यायाम को सहन कर सके , जिसकी पाचनशक्ति (जठराग्नि) सम़ावस्थ़ा में क़ार्य करती हो, निश्चित कालानुसार ही जिसका बुढ़ापा आये, जिसमें मांसादि की चय-उपचय क्रियाएँ सम़ान होती हों - ऐसे १० लक्षणो लक्षणों व़ाले व्यक्ति को आचार्य चरक ने स्वस्थ माना है।

काश्यपसंहिता के अनुसार आरोग्य के लक्षण-
अन्नाभिलाषो भुक्तस्य परिपाकः सुखेन च ।
सृष्टविण्मूत्रवातत्वं शरीरस्य च लाघवम् ॥
सुप्रसन्नेन्द्रियत्वं च सुखस्वप्न प्रबोधनम् ।
बलवर्णायुषां लाभः सौमनस्यं समाग्निता ॥
विद्यात् आरोग्यलिंङ्गानि विपरीते विपर्ययम् । - ( काश्यपसंहिता, खिलस्थान, पञ्चमोध्यायः )

भोजन करने की इच्छा, अर्थात भूख समय पर लगती हो, भोजन ठीक से पचता हो, मलमूत्र और वायु के निष्कासन उचित रूप से होते हों, शरीर में हलकापन एवं स्फूर्ति रहती हो, इन्द्रियाँ प्रसन्न रहतीं हों, मन की सदा प्रसन्न स्थिति हो, सुखपूर्वक रात्रि में शयन करता हो, सुखपूर्वक ब्रह्ममुहूर्त में जागता हो; बल, वर्ण एवं आयु का लाभ मिलता हो, जिसकी पाचक-अग्नि न अधिक हो न कम, उक्त लक्षण हो तो व्यक्ति निरोगी है अन्यथा रोगी है।

स्वास्थ्य की आयुर्वेद सम्मत अवधारणा बहुत व्यापक है। आयुर्वेद में स्वास्थ्य की अवस्था को प्रकृति (प्रकृति अथवा मानवीय गठन में प्राकृतिक सामंजस्य) और अस्वास्थ्य या रोग की अवस्था को विकृति (प्राकृतिक सामंजस्य से बिगाड़) कहा जाता है। चिकित्सक का कार्य रोगात्मक चक्र में हस्तक्षेप करके प्राकृतिक सन्तुलन को कायम करना और उचित आहार और औषधि की सहायता से स्वास्थ्य प्रक्रिया को दुबारा शुरू करना है। औषधि का कार्य खोए हुए सन्तुलन को फिर से प्राप्त करने के लिए प्रकृति की सहायता करना है। आयुर्वेदिक मनीषियों के अनुसार उपचार स्वयं प्रकृति से प्रभावित होता है, चिकित्सक और औषधि इस प्रक्रिया में सहायता-भर करते हैं।

स्वास्थ्य के नियम आधारभूत ब्रह्मांडीय एकता पर निर्भर है। ब्रह्मांड एक सक्रिय इकाई है, जहाँ प्रत्येक वस्तु निरन्तर परिवर्तित होती रहती है; कुछ भी अकारण और अकस्मात् नहीं होता और प्रत्येक कार्य का प्रयोजन और उद्देश्य हुआ करता है। स्वास्थ्य को व्यक्ति के स्व और उसके परिवेश से तालमेल के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। विकृति या रोग होने का कारण व्यक्ति के स्व का ब्रह्मांड के नियमों से ताल-मेल न होना है।

आयुर्वेद का कर्तव्य है, देह का प्राकृतिक सन्तुलन बनाए रखना और शेष विश्व से उसका ताल-मेल बनाना। रोग की अवस्था में, इसका कर्तव्य उपतन्त्रों के विकास को रोकने के लिए शीघ्र हस्तक्षेप करना और देह के सन्तुलन को पुन: संचित करना है। प्रारम्भिक अवस्था में रोग सम्बन्धी तत्त्व अस्थायी होते हैं और साधारण अभ्यास से प्राकृतिक सन्तुलन को फिर से कायम किया जा सकता है।

यह सम्भव है कि आप स्वयं को स्वस्थ समझते हों, क्योंकि आपका शारीरिक रचनातन्त्र ठीक ढंग से कार्य करता है, फिर भी आप विकृति की अवस्था में हो सकते हैं अगर आप असन्तुष्ट हों, शीघ्र क्रोधित हो जाते हों, चिड़चिड़ापन या बेचैनी महसूस करते हों, गहरी नींद न ले पाते हों, आसानी से फारिग न हो पाते हों, उबासियाँ बहुत आती हों, या लगातार हिचकियाँ आती हो, इत्यादि।

स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पंच महाभूत, आयु, बल एवं प्रकृति के अनुसार योग्य मात्रा में रहते हैं। इससे पाचन क्रिया ठीक प्रकार से कार्य करती है। आहार का पाचन होता है और रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र इन सातों धातुओं का निर्माण ठीक प्रकार से होता है। इससे मल, मूत्र और स्वेद का निर्हरण भी ठीक प्रकार से होता है।

स्वास्थ्य की रक्षा करने के उपाय बताते हुए आयुर्वेद कहता है-

त्रय उपस्तम्भा: आहार: स्वप्नो ब्रह्मचर्यमिति (चरक संहिता सूत्र. 11/35)

अर्थात् शरीर और स्वास्थ्य को स्थिर, सुदृढ़ और उत्तम बनाये रखने के लिए आहार, स्वप्न (निद्रा) और ब्रह्मचर्य - ये तीन उपस्तम्भ हैं। ‘उप’ यानी सहायक और ‘स्तम्भ’ यानी खम्भा। इन तीनों उप स्तम्भों का यथा विधि सेवन करने से ही शरीर और स्वास्थ्य की रक्षा होती है।

इसी के साथ शरीर को बीमार करने वाले कारणों की भी चर्चा की गई है यथा-

धी धृति स्मृति विभ्रष्ट: कर्मयत् कुरुतऽशुभम्।
प्रज्ञापराधं तं विद्यातं सर्वदोष प्रकोपणम्॥ -- (चरक संहिता; शरीर. 1/102)

अर्थात् धी (बुद्धि), धृति (धारण करने की क्रिया, गुण या शक्ति/धैर्य) और स्मृति (स्मरण शक्ति) के भ्रष्ट हो जाने पर मनुष्य जब अशुभ कर्म करता है तब सभी शारीरिक और मानसिक दोष प्रकुपित हो जाते हैं। इन अशुभ कर्मों को प्रज्ञापराध कहा जाता है। जो प्रज्ञापराध करेगा उसके शरीर और स्वास्थ्य की हानि होगी और वह रोगग्रस्त हो ही जाएगा।

स्वास्थ्य का आधुनिक दृष्टिकोण

स्वास्थ्य की देखभाल का आधुनिक दृष्टिकोण आयुर्वेद के समग्र दृष्टिकोण के विपरीत है; अलग-अलग नियमों पर आधारित है और पूरी तरह से विभाजित है। इसमें मानव-शरीर की तुलना एक ऐसी मशीन के रूप में की गई है जिसके अलग-अलग भागों का विश्लेषण किया जा सकता है। रोग को शरीर रूपी मशीन के किसी पुरजे में खराबी के तौर पर देखा जाता है। देह की विभिन्न प्रक्रियाओं को जैविकीय और आणविक स्तरों पर समझा जाता है और उपचार के लिए, देह और मानस को दो अलग-अलग सत्ता के रूप में देखा जाता है।

सन्दर्भ

  1. "WHO definition of Health". मूल से 7 जुलाई 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 अक्तूबर 2014.
  2. "How to get Fit?". 6 जून 2020. मूल से 10 जून 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जून 2020.

इन्हें भी देखें

बाहरी कड़ियाँ