"पंथी गीत": अवतरणों में अंतर

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इस नृत्य के नर्तकों में महान स्वर्गीय देवदास बंजारे का नाम उल्लेखनीय है।<ref>{{समाचार सन्दर्भ|title=देवदास बंजारे को पुण्यतिथि पर किया याद|url=http://www.bhaskar.com/news/CHH-RAI-HMU-MAT-latest-raipur-news-030523-2523433-NOR.html|accessdate=3 अक्टूबर 2015|publisher=दैनिक भास्कर|date=27 अगस्त 2015|archive-url=https://web.archive.org/web/20151004093010/http://www.bhaskar.com/news/CHH-RAI-HMU-MAT-latest-raipur-news-030523-2523433-NOR.html|archive-date=4 अक्तूबर 2015|url-status=live}}</ref>
इस नृत्य के नर्तकों में महान स्वर्गीय देवदास बंजारे का नाम उल्लेखनीय है।<ref>{{समाचार सन्दर्भ|title=देवदास बंजारे को पुण्यतिथि पर किया याद|url=http://www.bhaskar.com/news/CHH-RAI-HMU-MAT-latest-raipur-news-030523-2523433-NOR.html|accessdate=3 अक्टूबर 2015|publisher=दैनिक भास्कर|date=27 अगस्त 2015|archive-url=https://web.archive.org/web/20151004093010/http://www.bhaskar.com/news/CHH-RAI-HMU-MAT-latest-raipur-news-030523-2523433-NOR.html|archive-date=4 अक्तूबर 2015|url-status=live}}</ref>


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==बाहरी कड़ियाँ==
* [https://web.archive.org/web/20160401202239/https://www.youtube.com/watch?v=vqHHnlCh94I यूट्यूब पर पंथी मास्टर देवदास बंजारे पर रमण सिंह का वक्तव्य]

19:23, 12 दिसम्बर 2020 का अवतरण

पंथी गीत[1] और इस गीत के साथ किया जाने वाला पंथी नृत्य छत्तीसगढ़ के सतनाम धर्म के लोगो के द्वारा ईश्वर (सतनाम पिता) की स्तुति में और संत गुरूघासीदास बाबा के जीवन चरित्र एवं उनके उपदेशों का वर्णन करने हेतु किया जाता है।पंजाब में जो स्थान गुरु नानक देव जी का है छत्तीसगढ़ में वही स्थान गुरु घासीदास जी का है इन्होंने महान तप करके सत्य को पाया और उसे ही मनुष्य एवं जीवन का आधार माना जीवन की मूल भूत इकाइयों को जाना और इसे जन मानस तक पहुचाया। सत्य की खोज करने के कारण ही धर्म का नाम सतनाम अर्थात सत्यनाम पड़ा । पंथी नृत्य सतनाम के अनुनायियों अर्थात सतनामियों के द्वारा किया जाने वाला नृत्य है जिसमे नृत्य करते हुए गुरु की महिमा गुरु के उपदेशों का बखान गाकर किया जाता है गुरु घासीदास दास द्वारा दिये उपदेश इस नृत्य के माध्यम से लोगो तक पहुचाये जाते है। ज्ञात हो कि गुरुघासीदास ने मूर्ति पूजा का खंडन किया इसलिए सतनाम में मूर्तिपूजा निषेध है। [2] यह निर्गुण भक्ति धारा से प्रेरित गीत और नृत्य हैं जिसमे गुरु घासीदास के द्वारा दिए गए उपदेश को गीत और नृत्य के माध्यम से मंच पर प्रस्तुत किया जाता है।नृत्य करने वालो की संख्या निश्चित नही है। इस नृत्य के नर्तक बहुत ज्यादा ऊर्जा से भरपूर होते हैं और तरह तरह की कलाबाजियां भी दिखाते हैं एवम मानव पिरामिड बनाते हैं जिससे दर्शक रोमांचित हो उठते हैं। [3]

इसके साथ प्रमुख वाद्य यंत्र के रूप में झांझ मंजीरा और मांदर तथा ढोलक का उपयोग किया जाता है। इसे छत्तीसगढ़ की खास पहचान के रूप में भी देखा जाता है।[4]

इस नृत्य के नर्तकों में महान स्वर्गीय देवदास बंजारे का नाम उल्लेखनीय है।[5]

  1. "छत्तीसगढ़ के लोकगीत और लोकनृत्य". ignca.nic.in. मूल से 29 अप्रैल 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्टूबर 2015.
  2. छत्तीसगढ़ वृहद सन्दर्भ. उपकार प्रकाशन. पृ॰ 408. मूल से 4 अक्तूबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्टूबर 2015.
  3. "घासीदास जी के अमर संदेश-पंथी गीत". देशबंधु. 20 फरवरी 2010. मूल से 4 अक्तूबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्टूबर 2015.
  4. "कृषि मंत्री ने किया सतनामी समाज के समाज सेवियों का सम्मान". dprcg.gov.in. छत्तीसगढ़ जनसंपर्क विभाग. 21 सितंबर 2013. मूल से 4 अक्तूबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्टूबर 2015.
  5. "देवदास बंजारे को पुण्यतिथि पर किया याद". दैनिक भास्कर. 27 अगस्त 2015. मूल से 4 अक्तूबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 3 अक्टूबर 2015.