"मित्र वरुण": अवतरणों में अंतर

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दोनों देवता पृथ्वी एवं आकाश को जल से संबद्ध किये रहते हैं तथा दोनों ही चंद्रमा, सागर एवं ज्वार से जुड़े रहते हैं। भौतिक मानव शरीर में मित्र शरीर से मल को बाहर निकालते हैं जबकि वरुण पोषण को अंदर लेते हैं, इस प्रकार मित्र शरीर के निचले भागों (गुदा एवं मलाशय) से जुड़े हैं वहीं वरुण शरीर के ऊपरी भागों (मुख एवं जिह्वा) पर शासन करते हैं।<ref>[http://www.galva108.org/deities.html#Mitra_Varuna द गे एण्ड लेस्बियन वैष्णव एसोसियेशन इंका] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20130827022633/http://galva108.org/deities.html#Mitra_Varuna |date=27 अगस्त 2013 }}- मित्र एण्ड वरुण। द्वारा अमर दास विल्हैल्म। गाल्वा-१०८। अभिगमन तिथि: २७ सितंबर २०१२</ref> मित्र, वरुण एवं [[अग्नि]] को ईश्वर के नेत्र स्वरूप माना जाता है।<ref>[http://in.jagran.yahoo.com/dharm/?page=article&articleid=2883&category=10 भगवान भास्कर के प्रति आभार प्रदर्शन है छठ व्रत] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20110119123158/http://in.jagran.yahoo.com/dharm/?page=article&articleid=2883&category=10 |date=19 जनवरी 2011 }}। याहू जागरण। अभिगमन तिथि: २७ सितंबर २०१२</ref> वरुण की उत्पत्ति व्रि अर्थात संयोजन यानि जुड़ने से हुई है। इसी प्रका मित्र की उत्पत्ति मींय अर्थात संधि से हुई है।<ref>[http://books.google.co.in/books?id=Kcr9XF-91I8C&pg=PA30&lpg=PA30&dq=मित्र+वरुण&source=bl&ots=kjPFJrHuKK&sig=8slC0GKnPur9BLBFIjYYbKsFQvs&hl=en&sa=X&ei=BYdkUKavHsGHrAeEkoH4Dg&ved=0CEUQ6AEwBjgK#v=onepage&q=%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A3&f=false ईरान:सभ्यता एवं संस्कृति की झलक]। अनुवाद एवं संपादन: चंद्रशेखर एवं मधुकर तिवारी। अध्याय २:ईरान के धर्म एवं मत। ईरान में आर्यों का आगमन, अनंतरकाल तथा इस्लामपूर्व कालीन धार्मिक स्थिति। पृ.३०। अभिगमन तिथि: २७ सितंबर २०१२</ref>
दोनों देवता पृथ्वी एवं आकाश को जल से संबद्ध किये रहते हैं तथा दोनों ही चंद्रमा, सागर एवं ज्वार से जुड़े रहते हैं। भौतिक मानव शरीर में मित्र शरीर से मल को बाहर निकालते हैं जबकि वरुण पोषण को अंदर लेते हैं, इस प्रकार मित्र शरीर के निचले भागों (गुदा एवं मलाशय) से जुड़े हैं वहीं वरुण शरीर के ऊपरी भागों (मुख एवं जिह्वा) पर शासन करते हैं।<ref>[http://www.galva108.org/deities.html#Mitra_Varuna द गे एण्ड लेस्बियन वैष्णव एसोसियेशन इंका] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20130827022633/http://galva108.org/deities.html#Mitra_Varuna |date=27 अगस्त 2013 }}- मित्र एण्ड वरुण। द्वारा अमर दास विल्हैल्म। गाल्वा-१०८। अभिगमन तिथि: २७ सितंबर २०१२</ref> मित्र, वरुण एवं [[अग्नि]] को ईश्वर के नेत्र स्वरूप माना जाता है।<ref>[http://in.jagran.yahoo.com/dharm/?page=article&articleid=2883&category=10 भगवान भास्कर के प्रति आभार प्रदर्शन है छठ व्रत] {{Webarchive|url=https://web.archive.org/web/20110119123158/http://in.jagran.yahoo.com/dharm/?page=article&articleid=2883&category=10 |date=19 जनवरी 2011 }}। याहू जागरण। अभिगमन तिथि: २७ सितंबर २०१२</ref> वरुण की उत्पत्ति व्रि अर्थात संयोजन यानि जुड़ने से हुई है। इसी प्रका मित्र की उत्पत्ति मींय अर्थात संधि से हुई है।<ref>[http://books.google.co.in/books?id=Kcr9XF-91I8C&pg=PA30&lpg=PA30&dq=मित्र+वरुण&source=bl&ots=kjPFJrHuKK&sig=8slC0GKnPur9BLBFIjYYbKsFQvs&hl=en&sa=X&ei=BYdkUKavHsGHrAeEkoH4Dg&ved=0CEUQ6AEwBjgK#v=onepage&q=%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%20%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%A3&f=false ईरान:सभ्यता एवं संस्कृति की झलक]। अनुवाद एवं संपादन: चंद्रशेखर एवं मधुकर तिवारी। अध्याय २:ईरान के धर्म एवं मत। ईरान में आर्यों का आगमन, अनंतरकाल तथा इस्लामपूर्व कालीन धार्मिक स्थिति। पृ.३०। अभिगमन तिथि: २७ सितंबर २०१२</ref>


मित्र-वरुण और उर्वशी से वसिष्ठ की उत्पत्ति

ऋग्वेद ७.३३.११ के आधार पर एक कथा प्रचलित कर दी गयी की मित्र-वरुण का उर्वशी अप्सरा को देख कर वीर्य सखलित हो गया , वह घरे में जा गिरा जिससे वसिष्ठ ऋषि पैदा हुए.

ऐसी अश्लील कथा से पढने वाले की बुद्धि भी भ्रष्ट हो जाती हैं.

इस मंत्र का उचित अर्थ इस प्रकार हैं .अथर्व वेद ५/१८/१५ के आधार पर मित्र और वरुण वर्षा के अधिपति यानि वायु माने गए हैं , ऋग्वेद ५/४१/१८ के अनुसार उर्वशी बिजली हैं और वसिष्ठ वर्षा का जल हैं. यानि जब आकाश में ठंडी- गर्म हवाओं (मित्र-वरुण) का मेल होता हैं तो आकाश में बिजली (उर्वशी) चमकती हैं और वर्षा (वसिष्ठ) की उत्पत्ति होती हैं.


==साहित्य==
==साहित्य==

23:25, 10 दिसम्बर 2020 का अवतरण

मित्र - वरुण
सागर, जल, तटारेखा

वरुणदेव का चित्र
संबंध देवता
अस्त्र त्रिशूल, पाश, शंख और पानी के बर्तन
सवारी

शार्क मछली या

सात स्वर्ण हंसों वाले रथ

मित्र और वरुण दो हिन्दू देवता है। ऋग्वेद में दोनों का अलग और प्राय: एक साथ भी वर्णन है, अधिकांश पुराणों में 'मित्रावरुण' इस एक ही शब्द द्वारा उल्लेख है।। ये द्वादश आदित्य में भी गिने जाते हैं। इनका संबंध इतना गहरा है कि इन्हें द्वंद्व संघटकों के रूप में गिना जाता है। इन्हें गहन अंतरंग मित्रता या भाइयों के रूप में उल्लेख किया गया है। ये दोनों कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के पुत्र हैं। ये दोनों जल पर सार्वभौमिक राज करते हैं, जहां मित्र सागर की गहराईयों एवं गहनता से संबद्ध है वहीं वरुण सागर के ऊपरी क्षेत्रों, नदियों एवं तटरेखा पर शासन करते हैं। मित्र सूर्योदय और दिवस से संबद्ध हैं जो कि सागर से उदय होता है, जबकि वरुण सूर्यास्त एवं रात्रि से संबद्ध हैं जो सागर में अस्त होती है।

मित्र द्वादश आदित्यों में से हैं जिनसे वशिष्ठ का जन्म हुआ। वरुण से अगस्त्य की उत्पति हुई और इन दोनों के अंश से इला नामक एक कन्या उस यज्ञकुंड से प्रगट हुई जिसे प्रजापति मनु ने पुत्रप्राप्ति की कामना से रचाया था। स्कन्दपुराण के अनुसार काशी स्थित मित्रावरुण नामक दो शिवलिंगों की पूजा करने से मित्रलोक एवं वरुणलोक की प्राप्ति होती है।

दोनों देवता पृथ्वी एवं आकाश को जल से संबद्ध किये रहते हैं तथा दोनों ही चंद्रमा, सागर एवं ज्वार से जुड़े रहते हैं। भौतिक मानव शरीर में मित्र शरीर से मल को बाहर निकालते हैं जबकि वरुण पोषण को अंदर लेते हैं, इस प्रकार मित्र शरीर के निचले भागों (गुदा एवं मलाशय) से जुड़े हैं वहीं वरुण शरीर के ऊपरी भागों (मुख एवं जिह्वा) पर शासन करते हैं।[1] मित्र, वरुण एवं अग्नि को ईश्वर के नेत्र स्वरूप माना जाता है।[2] वरुण की उत्पत्ति व्रि अर्थात संयोजन यानि जुड़ने से हुई है। इसी प्रका मित्र की उत्पत्ति मींय अर्थात संधि से हुई है।[3]

साहित्य

वैदिक साहित्य में मित्रावरुण को पुरुषों में भ्रातृसदृश स्नेह का प्रतीक दिखाया गया है। मित्र का शाब्दिक अर्थ ही दोस्त होता है। ये अंतरंग मित्रता या दोस्ती के प्रतीक हैं। इन्हें एक शार्क मत्स्य पर सवार दिखाया जाता है और इनके हाथों में त्रिशूल, पाश, शंख और पानी के बर्तन दिखाये जाते हैं। कई स्थानों पर इन्हें सात हंसों द्वारा खींचे गये स्वर्ण रथ पर साथ-साथ आरूढ भी दिखाया जाता है। प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार इन्हें चंद्रमा के दो रूपों या कलाओं के रूप में दिखाया जाता है, बढ़ता चंद्रमा वरुण एवं घटता चंद्रमा मित्र का प्रतीक दिखाया जाता है। इसी रात्रि में मित्र अपने बीज को वरुण में स्थापित करते हैं।[4] इसी प्रकार वरुण मित्र में अपने बीज की स्थापना पूर्णिमा की रात्रि को करते हैं।

भागवत पुराण के अनुसार[5] वरुण और मित्र को अदिति की क्रमशः नौंवीं तथा दसवीं संतान बताया गया है। इन दोनों की संतानें भी अयोनि मैथुन यानि असामान्य मैथुन के परिणामस्वरूप हुई बतायी गयी हैं। उदाहरणार्थ वरुण के दीमक की बांबी (वल्मीक) पर वीर्यपात स्वरूप ऋषि वाल्मीकि की उत्पत्ति हुई। जब मित्र एवं वरुण के वीर्य अप्सरा उर्वशी की उपस्थिति में एक घड़े में गिये तब ऋषि अगस्त्य एवं वशिष्ठ की उत्पत्ति हुई। इसी प्रकार वरुण की एक उत्पत्ति थी - वारुणी, अर्थात मधु और मद्य की देवी। मित्र की संतान उत्सर्ग, अरिष्ट एवं पिप्पल हुए जिनका गोबर, बेर वृक्ष एवं बरगद वृक्ष पर शासन रहता है। महाभारत के अनुसा मित्र, याणि इंद्र के भ्राता अर्जुन के जन्म के समय आकाश में उपस्थित थे। क्योंकि मित्र एवं वरुण आकाश एवं पृथ्वी पर अपने सागर के जलस्वरूप छाये रहते हैं, इन दोनों देवताओं की पूजा अर्चना ज्येष्ठ माह में अच्छी वर्षा की कामना से की जाती है। मित्र -वरुण की संयुक्त रूप से प्रतिपदा एवं पूर्णिमा के दिन अर्चना की जाती है, जबकि मित्र की अकेले शुक्ल पक्ष सप्तमी एवं वरुण की कृष्ण पक्ष सप्तमी को अर्चना की जाती है।[6]

शब्दार्थ

वेदों के पारंपरित शब्दकोश निरुक्त-निघंटु में मित्रावरुणौ में से मित्र-वरुण दोनों को वायु कहा गया है। मित्र को प्राणरक्षा के अर्थ में और वरुण को जलभंडार और वृष्टिकारक के अर्थ में (निरुक्त ५.३)। ऋग्वेद के ब्राह्मण-ग्रंथ ऐतरेय के अनुसार मित्र रात है और वरुण दिन (ऐतरेय ब्राह्मण ४.१०)।


जल के निर्माता के रूप में इनका वेदों में वर्णन है। उदारण के लिए, ऋग्वेद १.२.७ का पाठ है -

मित्रं हुवे पूतदक्षं वरुणं च रिशादसम। धियं घृताचीं साधन्ता। ।

अर्थात् (पूतदक्षं मित्रम्) पवित्र करने में दक्ष मित्र (रिशादशं वरुणं च) और ख़राब करने वाले वरुण को भी मैं ग्रहण करूँ, (घृताचीं धियं साधन्ता) चे दोनों पानी का निर्माण या प्रमाण करते हैं।

और ऋग्वेद में ७.३३.११ में आया है कि

उतासि मैत्रावरुणो वशिष्ठोर्वश्या ब्रह्मन्मनसो अधिजातः। द्रप्सं स्कन्नं ब्रह्मणा दैव्येन विश्वेदेवाः पुष्करे त्वादद्रन्त। ।

अर्थात् (वसिष्ठ उत मैत्रावरुणः असि) हे वासकतम जल, तू मित्र-वरुण का है या उनसे बना है, (ब्रह्मन् उर्वश्याः मनसः अधिजातः) अन्नदाता! तू विद्युत के सामर्थ्य से उत्पन्न हुआ है (द्रप्सं स्कन्नं त्वा) जल के रूप में परिणत, तुझको विद्वानों के अन्न हेतु सूर्यकिरणें अंतरिक्ष में धारण करती हैं।


सन्दर्भ

  1. द गे एण्ड लेस्बियन वैष्णव एसोसियेशन इंका Archived 2013-08-27 at the वेबैक मशीन- मित्र एण्ड वरुण। द्वारा अमर दास विल्हैल्म। गाल्वा-१०८। अभिगमन तिथि: २७ सितंबर २०१२
  2. भगवान भास्कर के प्रति आभार प्रदर्शन है छठ व्रत Archived 2011-01-19 at the वेबैक मशीन। याहू जागरण। अभिगमन तिथि: २७ सितंबर २०१२
  3. ईरान:सभ्यता एवं संस्कृति की झलक। अनुवाद एवं संपादन: चंद्रशेखर एवं मधुकर तिवारी। अध्याय २:ईरान के धर्म एवं मत। ईरान में आर्यों का आगमन, अनंतरकाल तथा इस्लामपूर्व कालीन धार्मिक स्थिति। पृ.३०। अभिगमन तिथि: २७ सितंबर २०१२
  4. शतपथ ब्राह्मण, २.४.४.१९
  5. श्रीमद्भाग्वत पुराण ६.१८.३-६
  6. द गे एण्ड लेस्बियन वैष्णव एसोसियेशन इंका Archived 2013-08-27 at the वेबैक मशीन- मित्र एण्ड वरुण। द्वारा अमर दास विल्हैल्म। गाल्वा-१०८। अभिगमन तिथि: २७ सितंबर २०१२

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