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[[चित्र:Mauser C96 prototype 1895Mar15.jpg|thumb|left|[[काकोरी काण्ड]] में प्रयुक्त माउजर की [[फोटो]] ऐसे चार माउजर इस ऐक्शन में प्रयोग किये गये थे।]]
एक समय ऐसा आया जब इस दल का खजाना खत्म हो चला [http://solutionclg.com/kakori-kand/ अंग्रेजों के विरूद्ध विद्रोह करने के लिए हथियार खरीदने के लिए] पैसों की कमी हो गई .
=== जर्मनी के माउजरों का प्रयोग ===
इन क्रान्तिकारियों के पास पिस्तौलों के अतिरिक्त [[जर्मनी]] के बने चार माउजर भी थे जिनके बट में कुन्दा लगा लेने से वह छोटी स्वचालित रायफल की तरह लगता था और सामने वाले के मन में भय पैदा कर देता था। इन माउजरों की मारक क्षमता भी अधिक होती थी उन दिनों ये माउजर आज की ए०के०-४७ रायफल की तरह चर्चित हुआ करते थे। [[लखनऊ]] से पहले काकोरी रेलवे स्टेशन पर रुक कर जैसे ही गाड़ी आगे बढी, क्रान्तिकारियों ने चेन खींचकर उसे रोक लिया और रक्षक के डिब्बे से सरकारी खजाने का बक्सा नीचे गिरा दिया। पहले तो उसे खोलने की प्रयास किया गया किन्तु जब वह नहीं खुला तो अशफाक उल्ला खाँ ने अपना माउजर मन्मथनाथ गुप्त को पकड़ा दिया और हथौड़ा लेकर बक्सा तोड़ने में जुट गए।
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